जस्टिस भूषण रामकृष्ण गवई बुधवार को देश के 52वें मुख्य न्यायाधीश पद की शपथ ली. उन्हें राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने पद और गोपनियता की शपथ दिलाई. जस्टिस गवई इस पद पर पहुंचने वाले पहले बौद्ध हैं.
जस्टिस गवई के पिता रामकृष्ण सूर्यभान गवई उन लोगों में शामिल थे, जिन्होंने डॉक्टर बीआर आंबेडकर के साथ बौद्ध धर्म अपनाया था. जस्टिस गवई सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के पद तक पहुंचने वाले अनुसूचित जाति के दूसरे व्यक्ति हैं. उनका कार्यकाल 23 नवंबर 2025 को खत्म होगा. सुप्रीम कोर्ट का मुख्य न्यायाधीश बनने के अगले ही दिन उन्हें वक्फ कानून में हुए संशोधनों को लेकर दायर याचिकाओं पर सुनवाई शुरू करनी होगी.
जस्टिस गवई का जन्म 24 नवंबर 1960 को महाराष्ट्र के अमरावती में हुआ था. वह अपने तीन भाइयों में सबसे बड़े हैं. जस्टिस गवई के पिता रामाकृष्ण सूर्यभान गवई महाराष्ट्र के दिग्गज नेता थे. वो 1964 से 1994 महाराष्ट्र विधान परिषद के सदस्य रहे. इस दौरान वो विधान परिषद के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और विपक्ष के नेता के पद पर रहे. वो 1998 में अमरावती से 12वीं लोकसभा के लिए चुने गए थे. इसके बाद वो अप्रैल 2000 से अप्रैल 2006 तक महाराष्ट्र राज्य से राज्यसभा के लिए चुने गए थे. मनमोहन सिंह की सरकार ने जून 2006 में उन्हें बिहार का राज्यपाल बनाया था. बिहार के अलावा वो सिक्किम और केरल के राज्यपाल रहे. आंबेडकरवादी राजनीति करने वाले रामाकृष्ण सूर्यभान गवई ने रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया (गवई) की स्थापना की थी. उनके पिता का जुलाई 2015 में निधन हो गया था.
इतने लंबे करियर में जस्टिस गवई ने अपने परिवार की राजनीतिक पृष्ठभूमि को कभी नहीं छिपाया . ताजा मामला राहुल गांधी की लोकसभा की सदस्यता खत्म करने वाले आपराधिक मानहानि मामले में सुनाई गई सजा से जुड़ा था. जुलाई 2023 में इस मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस गवई ने अपने परिवार का कांग्रेस से लगाव होने की वजह से मामले की सुनवाई से हटने का प्रस्ताव दिया था. उन्होंने कहा था,''मेरे पिता कांग्रेस से जुड़े रहे हैं, हालांकि, वह पार्टी के सदस्य नहीं थे लेकिन उसके साथ जुड़े थे. मिस्टर सिंघवी (अभिषेक मनु सिंघवी) आप भी कांग्रेस के साथ 40 साल से जुड़े हैं. मेरा भाई अभी भी राजनीति में है और वो कांग्रेस से जुड़ा है. कृपया आपलोग बताएं कि क्या मुझे इस केस की सुनवाई करनी चाहिए.'' उनके यह कहने पर दोनों पक्षों ने उनके सुनवाई करने को लेकर कोई आपत्ति नहीं जताई थी. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने राहुल को सुनाई गई सजा पर रोक लगाई थी. इससे राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता बहाल हो गई थी.