बस्ती- कान की बाली और पायल बेंचकर अपने पति को थाने से छुड़ाने गई महिला ,सोनहा पुलिस ने कहा अभी कम है - तहक़ीकात समाचार

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रविवार, 12 जुलाई 2020

बस्ती- कान की बाली और पायल बेंचकर अपने पति को थाने से छुड़ाने गई महिला ,सोनहा पुलिस ने कहा अभी कम है

विश्वपति वर्मा(सौरभ)

पैसे के लालच में डूबी यूपी पुलिस को देश, दुनिया, समाज और मानवता के नाम पर सोचने, समझने और न्याय करने की क्षमता पूरी तरह से खत्म हो चुकी है  जिसका परिणाम है कि 100 में से 98 आदमी यूपी पुलिस के कार्यप्रणाली पर सवाल खड़ा कर रहा है।

भ्रष्टाचार मुक्त का दावा करने वाली योगी सरकार और बड़े-बड़े स्लोगन के माध्यम से आम आदमी का हितैषी बनने वाली यूपी पुलिस का चरित्र वैसा नही है जैसा दिखाई और सुनाई देती है ,जब भी गहराई में जाकर आप थाना और थाने पर तैनात पुलिस के चरित्र का अवलोकन करेंगे तो आपको अन्याय ,अत्यचार और बर्बरता की काली तस्वीर दिखाई पड़ेगी ।

ताजा मामला शनिवार का है जहां थाना क्षेत्र के सेखुई निवासी दुर्गावती नाम की एक महिला 3 दिन से सोनहा थाने में बंद अपने पति को छुड़ाने के लिए पुलिस से लेकर दीवान ,दारोगा और इंस्पेक्टर का चक्कर लगा रही थी लेकिन 10 हजार रुपया इकट्ठा करना गरीब महिला के लिए बहुत बड़ी चुनौती थी क्योंकि महिला के पति को छोड़ने के लिए सोनहा पुलिस ने पीड़ित महिला से 10 हजार रुपये की मांग किया था।
चाय की दुकान से बेंच चोरी करने के आरोप में सोनहा पुलिस द्वारा बृहस्पतिवार को सतीश नामक व्यक्ति को हिरासत में लिया गया उसके बाद शिकायतकर्ता को बेंच मिल गया फिर शिकायतकर्ता ने पुलिस से प्रार्थनापत्र पर कार्यवाही न करने को कहा गया और शिकायतकर्ता घर चला गया लेकिन सतीश को थाने पर बैठा लिया गया ।

अगले दिन थाने में बंद सतीश का भाई विजय उसे छुड़वाने के लिए थाने पर गया तब थाने के एक सिपाही द्वारा उसे छोड़ने के लिए 10 हजार रुपए की मांग की गई .विजय वापस घर आया और शुक्रवार को दिन भर पैसे के बंदोबस्त में लगा रहा जब दिन भर पैसा नही मिला तो वह वापस थाने पर गया और पुलिस को पैसा न मिलने की बात को बताया लेकिन पुलिस ने साफ कह दिया कि पैसा लाओ नही इनको जेल भेज देंगे।

विजय वापस घर आया रात हो गया सो गया ,सुबह जगा और पैसे की व्यवस्था में लग गया लेकिन कहीं से भी 10 हजार रुपया घूस देने के लिए व्यवस्था नही बन पाया  तब सतीश की पत्नी ने अपने कान की बाली और पायल को बेंच कर 6500 रुपया जुटाया और विजय को देकर सतीश को थाने से लाने के लिए कहा।

विजय शाम को थाने पर गया पुलिस से बात किया लेकिन 3500 रुपया कम होने की वजह से पुलिस ने उसे छोड़ने से इनकार कर दिया ,पीड़ित व्यक्ति परेशान होकर इधर उधर लोगों से मदद मांगने लगा थाने पर फोन की सैकड़ो घण्टियाँ बजीं लेकिन हर बार आश्वासन देकर पीड़ित को राहत दे दिया जाता।

8 बजे से ज्यादा का समय था हमारे फोन पर ज्ञात नंबर से एक फोन आया हम उनका हाल चाल पूछने के लिए मुह खोलने वाले थे तब तक एक महिला का रोते हुए आवाज कान में सुनाई दिया। उसके बाद उन्होंने हमसे बात किया जिन्होंने फोन लगाया हुआ था और सारी समस्या बताते हुए हमें थाने पर पहुंचने के लिए कहा गया।

मामले की गंभीरता और महिला की समस्या को जानने के बाद हम थाने पर पहुंचे तो वहां पीड़ित महिला 1 और 3 साल के बच्चे के साथ खड़ी थी  हमने बात चीत किया तो बताया गया कि पुलिस द्वारा सतीश को छोड़ने के लिए 10 हजार रुपये की मांग की जा रही है महिला ने बताया कि "हमारे पति चाट फुल्की बेंचते हैं  काफी दिनों से दुकान बंद होने की वजह से घर पर पैसा नही है हमने कान की बाली और पायल बेंच कर 6500 रुपया इकट्ठा किया है लेकिन पुलिस हमारे पति को छोड़ने के लिए तैयार नही है वह 10 हजार रुपये की मांग कर रहे हैं"

उसके बाद हमने उस पुलिस से बात करना चाहा तो पीड़ित लोगों ने बताया कि वह थाने से चले गए अब 12 बजे के बाद आने को कहे हैं उन लोगों ने पुलिस वाले से फोन पर हमारी बात कराई तो उन्होंने मामले को खत्म करने के लिए 1 दूसरे पुलिस को भेजने को कहा कुछ देर बाद सादे ड्रेस में एक पुलिस वाला आता है और पूछता है कौन लोग आये हैं इन्हें छुड़ाने के लिए उसके बाद पीड़ित लोगों द्वारा हमारी तरफ इशारा किया गया .मुझे इस बात की जानकारी नही है कि वह व्यक्ति मुझे जानता पहचानता था लेकिन वह भड़क गया और महिला से कहा कि सोर्स-पावर लेकर के आओगी तो कुछ नहीं होगा हमने उस व्यक्ति को बुलाया लेकिन वह चला गया और जाते-जाते महिला और उसके भाई से अकेले में मिलने को कहा।

यह सब नौटंकी देखने के बाद हम थाने के इंस्पेक्टर राजेश कुमार मिश्रा के पास पहुंचे और उनसे हमने पूरे प्रकरण को साझा किया उसके बाद वह साफ इंकार हो कि थाने पर पैसा भी चलता है। उन्होंने पूछा वह कौन लोग थे जो पैसा मांग रहे थे हमने पीड़ित लोगों को खड़ा किया उन लोगों ने उस पुलिस वाले का नाम और हुलिया बताया जो पैसा मांग रहा था।

इंस्पेक्टर साहब ने पीड़ित महिला से बात किया और उन्होंने हमसे कहा भाई साहब आप 10 मिनट के लिए बाहर चलिए हमे इन लोगों से पूछताछ करना है हम बाहर आये उसके बाद कागजी कार्यवाही के बाद सतीश को पुलिस ने छोड़ दिया और वह थाने से बाहर आया ।

अब सबसे बड़ा सवाल यह पैदा होता है कि क्या इंस्पेक्टर साहब को नही पता है कि थाने पर पैसा चलता है? क्या इंस्पेक्टर साहब पैसे के खेल के बारे में नही जानते ? यदि इंस्पेक्टर साहब को पता है कि थाने पर न्याय होता है तो सतीश को थाने पर 3 दिन क्यों बैठाया गया ? यदि सतीश चोर था तो उसे चोरी के जुर्म में जेल भेजने की बजाय थाने पर 60 घंटे तक क्यों बैठाया गया? क्या इंस्पेक्टर साहब ने 60 घंटे तक मे पुलिस हिरासत में आने और लॉकअप में बंद होने वाले लोगों के बारे में जानकारी नही लिया ? ऐसे बहुत सारे सवाल खड़े होते हैं।

 सच तो यह है कि थाने पर चलने वाली तानाशाही व्यवस्था और सुबिधाशुल्क के रिवाज के चलते एक पीड़ित को पैसा नही देना पड़ा लेकिन न जाने कितनी महिलाओं को अपने पति और बेटे को थाने से छुड़ाने के लिए अपने जेवरात को बेंच देना पड़ता है।

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