समीक्षा
सौरभ वीपी वर्मा
करीब एक दशक से इस देश में गरीबों पर खूब चर्चा हुई इस दौरान केंद्र में भारतीय जनता पार्टी 10 वर्षों से लगातर सत्ता में काबिज़ रही और देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सबसे ज्यादा बार गरीब एवं किसान शब्द का प्रयोग किया लेकिन असल जिंदगी में गरीबों ,मजदूरों एवं किसानों के जीवन में कोई ठोस बदलाव नही आया ।
दिहाड़ी मजदूरी करने वाले लोगों के सामने आज जो चुनौती है वह न तो प्रधानमंत्री समझ सकते हैं और न ही इस देश के लोगों की आर्थिक स्थिति पर नजर रखने वाली संस्थाओं ने समझने की कोशिश किया । पिछले 10 वर्षों की बात करें तो इस देश में महंगाई दोगुनी से तीनगुनी कुछ आवश्यक वस्तुओं जैसी की स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में 10 गुना से ज्यादा महंगाई बढ़ी है ।
अमीर और गरीब सबकी दैनिक जरूरतों की सामग्री खाद्य तेल , दाल , ईंधन , रसोई गैस , दवाएं , खाद ,कीटनाशक दवा , आदि जरूरत के सामानों ने महंगाई के क्षेत्र में आसमान को छू लिया है लेकिन दूसरी तरफ इस देश में अंतिम पायदान में खड़े लोगों जैसे के मजदूरों ,बटाई किसानों , लघु किसानों के आर्थिक स्थिति में कोई सुधार नही हुआ क्योंकि उसका सबसे बड़ा कारण सरकार की उदासीनता है । इस दौरान ने तो किसानों के फसलों के दाम वृद्धि हुआ और न ही मजदूरों की मजदूरी , निश्चित रूप से यह बात कहा जा सकता है कि किसानों और मजदूरों के बारे में बात करने वाली सरकार और उसके प्रधानमंत्री ने मंच और मीडिया के माध्यम से जितने दावे किए हैं वह शत प्रतिशत फेल साबित हुई है ।
सरकार को किसानों और मजदूरों दोनों के बारे में सोचना होगा तब जाकर गरीबों के जीवन में बदलाव आएगा और यह तभी संभव है जब सरकार इस महंगाई को देखते हुए गेहूं ,गन्ना ,धान आदि फसलों को मौजूदा मूल्य से डबल कर उसकी खरीददारी करेगी क्योंकि जब किसानों के जेब में पैसे होंगे तो वह मजदूरों को भी 400 से 500 रुपया मजदूरी दे सकेंगे और जब किसी मजदूर के जेब में महीने के 12 से 15 हजार पहुंचेंगे तो वह एक सामान्य जिंदगी जीने का सपना देख सकता है अन्यथा एसी कमरे में बैठकर प्रधानमंत्री झूठे
दावे करते रहेंगे और ऐसे ही सरकारें आती जाती रहेंगी वहीं हमेशा गरीबों के साथ छलावा होता रहेगा।