सौरभ वीपी वर्मा
हमें स्कूलों से लेकर घरों में भले ही सिखाया जाता है कि सच बोलो झूठ से दूर रही मगर झूठ बोलकर अंधविश्वास की दुकानों में खूब नफा कमाया जा रहा है, वह भी उसी धर्म-मजहब के नाम पर जिसमें सच बोलने की सीख दी जाती है। जो लोग मजहब के रहनुमा बनने की बात करते हैं, उन्हीं की नाक के नीचे अंधविश्वास का यह कारोबार फल-फूल रहा है।
ऐसे में यह तो नहीं कहा जा सकता कि उन्हें इसकी खबर नहीं, मगर यह सवाल जरूर उठता है कि अंधविश्वास फैलाने वाले ढोंगी मौलानाओं, बाबाओं का विरोध पुरजोर तरीके से क्यों नहीं किया जाता, ऐसे लोगों के खिलाफ कोई मुहिम या फतवा जारी क्यों नहीं होता। 21वीं सदी में विज्ञान इंसान को चांद पर बसाने की कोशिश कर रहा है। कोई ठीक नहीं कि कुछ समय में चांद पर पहुंचाने के दावे ढोंगी तांत्रिक बाबाओं की ओर से किए जाने लगें, क्योंकि विज्ञान से ज्यादा आज लोग अंधविश्वास और जादू-टोने में अपनी मुसीबतों का इलाज तलाश रहे हैं।
इसकी वजह है कि लोगों में पैसा कमाने की जल्दी और जल्द से जल्द दिक्कतों को दूर कराने की होड़। इसका हल वे अपने प्रयासों में कम, इन ढोंगियों के पास ज्यादा ढूढ़ने लगे हैं। यही वजह है कि अभी तक कुछ आसूमल, निर्मल बाबाओं की एक खेप लोगों को झूठे ख्वाब दिखा कर उल्लू बना रही थी।
अब इसी तरह से गांव कस्बों में भी फर्जी तांत्रिक क्रियाओं के माध्यम से नादान और अशिक्षित लोगों को ठगने का काम किया जा रहा है ,यह तस्वीर सिदार्थनगर जनपद की है जहां खुले आसमान के नीचे तंत्र-मंत्र और टोटके के माध्यम से सफलता की कुंजी हासिल करने के लिए सैकड़ो लोग जुटे हुए हैं।
लेकिन इस तरह के ढोंग ढकोसले को न तो कोई रोकने वाला है और न ही इस पर प्रतिबंध लगाने के लिए शासन प्रशासन के पास कोई योजना है इनपर कोई कार्यवाई न होने की एक वजह यह भी है कि इन ढोंगियों को मीडिया का सहयोग हासिल है। जैसे सरकारें सिगरेट, तंबाकू, शराब से बचने की ताकीद विज्ञापनों के जरिए करती हैं और वही इनको बेचने का लाइसेंस भी वही मुहैया कराती हैं। ऐसे ही मीडिया भी एक तरफ अंधविश्वास की खबरों को दिखाकर उसका विरोध करता हैं और दूसरी तरफ अखबारों और चैनलों में तांत्रिकों, बाबाओं के विज्ञापन भी छापता और दिखाता है। मीडिया झूठे दावों को प्रचार-प्रसार भी करता है, क्योंकि सरकार को भी मीडिया से कर के रूप में आमदनी होती है। शायद सरकार भी इसीलिए चुप रहती है।