जिन लोगों को कोविड वैक्सिन (Covid vaccine) के ट्रायल में शामिल किया गया उन्हें सहमति पत्र नहीं दिया गया. कइयों को यह साफ जानकारी तक नहीं थी कि वे ट्रायल का इंजेक्शन ले रहे हैं. इस रिपोर्ट के संदर्भ में दीपक की मौत की कहानी भी अहम हो जाती है. हम नहीं कहते और कह सकते हैं कि दीपक की मौत वैक्सीन से हुई या किसी और चीज़ से. वो वैक्सीन के ट्रायल में शामिल थे और उनकी मौत किसी दूसरे कारण से भी हुई तो उनके परिजनों को क्यों नहीं बताया गया. क्या इसलिए कि दीपक दिहाड़ी मज़दूर थे, क्या ऐसा किसी पढ़े लिखे या नेता के साथ होता?
45 साल के दीपक मरावी मज़दूरी करते थे और टीला जमालपुरा की सूबेदार कॉलोनी में किराये के इसी एक कमरे में तीन बच्चों के साथ रहते थे. दीपक ने कोरोना वैक्सीन ट्रायल में हिस्सा लिया था. पहले डोज़ के बाद ही तबीयत खराब हो गई और अस्पताल पहुंचने से पहले दीपक की मौत हो गई.
दीपक को टीका लगा था या प्लेसिबो हम नहीं बता सकते. 12 दिसंबर से 21 दिसंबर के बीच दीपक के साथ क्या हुआ, हमारे लिए बताना मुश्किल है. पत्नी अब दूसरों से खाना मांग कर बच्चों का पेट भर रही हैं.
उनकी पत्नी वैजयंती मरावी का कहना है, ''वो इंजेक्शन लगवा कर आए, 7 दिन तक ठीक थे खाना खा रहे थे, इसके बाद चक्कर आ रहे थे. मैंने कहा चलते नहीं बन रहा आराम करो, खाना थोड़ा थोड़ा खा रहे थे. 21 को उल्टी होने लगी झाग निकल रहा था. मैंने कहा डॉक्टर के पास चलो वो जिद में रहे कहे कहीं नहीं जाउंगा मुझे आराम करने दो मुझसे चलते नहीं बन रहा, कुछ बीमारी नहीं थी. उनकी मौत वैक्सीन से हुई है, हमें कहीं से कोई मदद नहीं मिली, कोई नहीं आया. वो पीठे में काम करते थे वहीं किसी ने कहा होगा. मैंने कहा था वैक्सीन मत लगवाना ये खतरे का काम है. हमारे पास कुछ नहीं बचा.''
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