सौरभ वीपी वर्मा
15 अगस्त 2024 को इस देश को आजाद हुए 78 वर्ष पूरे हो गए, इन 78 वर्षों में देश मे काफी तरक्की हुई है सड़क ,रेल ,हवाई यात्राएं सुगम हुई हैं , थाना , तहसील ,ब्लॉक हाईटेक हुए हैं , लोगों के बोल -चाल , भाषा एवं सभ्यता में बदलाव आई है , स्कूल ,कॉलेज ,अस्पताल ,दुकान ,मॉल आदि की वृद्धि बड़े पैमाने पर हुई है ।
लेकिन इन सबके बीच सबसे बड़ी चिंता है यह है कि इस देश का धन मुट्ठी भर लोगों के हाथों में सिमटता जा रहा है जिसका परिणाम है कि अत्याधुनिक सुविधाओं से लैश हो रहे भारत में वर्ष दर वर्ष गरीबों की संख्या बढ़ती जा रही है। वर्ष 2024 के शुरुआती महीने में नीति आयोग ने दावा किया था कि देश में 25 करोड़ लोग गरीबी से बाहर हुए हैं लेकिन आसान भाषा में समझने वाली बात यह है कि यदि देश में गरीबी खत्म हुई और गरीबों की संख्या में कमी आई तो आखिर कोविड-19 के बाद से देश में राशन कार्ड बनवाने की मांग क्यों बढ़ी है।
जिस तरह से इस देश में चंद लोगों के पास धन एकत्रित होता जा रहा है और दूसरी तरफ राशन की मार पड़ी हुई है निश्चित तौर इस देश में गरीबी के आंकड़े बढ़ रहे हैं , ज्यादातर लोगों के पास काम होने के बाद भी पैसे की किल्लत है वहीं अधिकांश लोग ऐसे भी हैं जिनके पास कोई काम नही है तो आखिर इस देश में गरीबी के आंकड़े कम कैसे हो रहे हैं यह अपने आप में बड़ा सवाल है।
सच तो यह है कि इस देश में गरीबी उन्मूलन के बहाने इस देश के गरीबों का उन्मूलन हो रहा है यहां तक कि मध्यवर्गीय परिवार में आये दिन ऐसी घटनाएं सामने आ रही हैं जहां कर्ज के बोझ के तले दबे होने की वजह से परिवार का मुखिया कहीं आत्महत्या कर रहा है तो कहीं पूरे परिवार के साथ आत्मदाह कर ले रहा है।
सही मायने में इस देश से गरीबी कम करना है तो सबसे पहले इस देश में गरीबी रेखा की तरह अमीरी रेखा का निर्माण करना होगा , अंतिम पायदान पर खड़े लोगों को चिन्हित करना होगा ,पहली सीढ़ी , दूसरी सीढ़ी ,तीसरी सीढ़ी पर खड़े लोगों की पहचान करना होगा उसके बाद इस देश में ग्राम पंचायत स्तर पर धन का विकेंद्रीकरण करना होगा तब जाकर एक स्वस्थ भारत का निर्माण होगा अन्यथा पाकिस्तान और बांग्लादेश पर बेबुनियाद बहस करने वाले 100 करोड़ से ज्यादा भारतीय वर्ष दर वर्ष गरीबी रेखा की तरफ जाते दिखाई देंगे।