उत्तर प्रदेश के तीन बार मुख्यमंत्री रहे मुलायम सिंह यादव का आज लंबी बीमारी के चलते गुड़गांव के मेदांता अस्पताल में निधन हो गया उनका राजनीतिक करियर साढ़े पांच दशक लंबा रहा. मुलायम सिंह यादव कांग्रेस विरोधी राजनीति की सोच के साथ सियासी अखाड़े में कूदे और राम मनोहर लोहिया के साथ समाजवाद की राह पकड़ ली. मुलायम सिंह यादव ने चौधरी चरण सिंह के सहारे सियासी बुलंदी हासिल की. पहलवानी से राजनीति में आए मुलायम अपने दौर की राजनीति के मजबूत 'पहलवान' रहे.
भारत की राजनीति के अखाड़े में हर कोई मुलायम सिंह यादव नहीं हो सकता. समाजवाद की राह पर चलकर पहलवानी से राजनीति में आए मुलायम सिंह यादव को उन राजनेताओं में शुमार किया जाता है, जिनके सियासी दांव-पेंच ने अपने दौर में कई धुरंधरों को पटखनी दी. मुलायम आबादी के लिहाज से देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश के तीन बार मुख्यमंत्री रहे और अब उनके खून-पसीने से सींची समाजवादी पार्टी को उनके बेटे अखिलेश यादव संभाल रहे हैं.
यूपी का मुख्यमंत्री रहने के बाद अखिलेश अब अन्य विपक्षी दलों को पीछे छोड़कर राज्य की राजनीति में मुख्य विपक्षी नेता की भूमिका में हैं. मुलायम सिंह ने केंद्र की सत्ता में रक्षा मंत्री का पद भी संभाला लेकिन सत्ता के शीर्ष पद यानी प्रधानमंत्री की कुर्सी तक कभी नहीं पहुंच पाए.
1989 में मिली मुख्यमंत्री की कुर्सी
जमीन से जुड़ी राजनीति करने वाले मुलायम सिंह यादव को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री की कुर्सी 1989 में मिली. मुलायम 5 दिसंबर 1989 को देश के सबसे बड़े राज्य के मुखिया बने. लेकिन मुलायम सिंह यादव की सत्ता ज्यादा समय नहीं चल पाई. 24 जनवरी 1991 को उनकी सरकार गिर गई. इसके बाद 1993 के विधानसभा चुनाव में मुलायम सिंह यादव ने कांशीराम और मायावती की पार्टी बीएसपी से हाथ मिलाया और दूसरी बार राज्य के मुख्यमंत्री बने.
5 दिसंबर 1993 को मुलायम सिंह ने दूसरी बार सीएम पद की शपथ ली. मुलायम सरकार पांच साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर पाई और बसपा ने समर्थन वापस ले लिया. 2 जून 1995 को लखनऊ में गेस्ट हाउस कांड हो गया. बता दें कि सहयोगी बसपा ने मुलायम सरकार से समर्थन वापस लेने के लिए गेस्ट हाउस में विधायकों की बैठक बुलाई थी. मीटिंग शुरू होते ही सपा कार्यकर्ताओं ने गेस्ट हाउस में हंगामा कर दिया. गेस्ट हाउस कांड के बाद मुलायम की सरकार गिर गई और मायावती बीजेपी के समर्थन से मुख्यमंत्री बन गईं.
बाबरी मस्जिद को गिरने से बचाया
राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद के विवाद ने इस देश की राजनीति को हमेशा के लिए बदल दिया. बीजेपी को इस आंदोलन में संजीवनी देने का काम मुलायम ने ही किया. तारीख थी 30 अक्टूबर 1990, जब कारसेवक बाबरी मस्जिद की तरफ बढ़ रहे थे. उस समय यूपी की कमान मुख्यमंत्री के तौर पर मुलायम सिंह यादव के पास ही थी. उनकी सरकार ने सख्त फैसला लेते हुए कारसेवकों पर गोली चलाने का आदेश दिया. इसमें कई कारसेवकों की मौत हो गई.
मुलायम सिंह के इस कदम से बाबरी मस्जिद तो उस समय बच गई, लेकिन मुलायम सिंह यादव की छवि हिंदू विरोधी बन गई. हिंदूवादी संगठनों ने उन्हें 'मुल्ला मुलायम' कहना शुरू कर दिया. अपनी इस हिंदू विरोधी छवि से मुलायम और उनकी पार्टी कभी नहीं उबर पाए, लेकिन वे मुसलमानों के सबसे बड़े नेता बनकर भी उभरे. इसका सियासत में उन्हें खूब फायदा मिला, जिसके चलते 1992 में उन्होंने जनता दल से अलग होकर अपनी समाजवादी पार्टी का गठन किया. बसपा के साथ मिलकर मुलायम सिंह यादव ने बीजेपी के पक्ष में बनी राम मंदिर आंदोलन की हवा को मात दे दी, लेकिन दो साल बाद गेस्ट हाउस कांड से उनकी सरकार चली गई.
रक्षा मंत्री की कुर्सी भी संभाली
1995 में मुख्यमंत्री की कुर्सी जाने के बाद मुलायम का कद सियासत में गिरा नहीं बल्कि वे और बड़े बनकर खड़े हुए. 1996 में वे मैनपुरी लोकसभा क्षेत्र से 11वीं लोकसभा के सदस्य चुने गए. जब केंद्र में किसी पार्टी को बहुमत नहीं मिला तो मुलायम किंगेमकर बने. तीसरे मोर्चे की सरकार में रक्षा मंत्री बने और अपनी पार्टी के कई नेताओं को केंद्र में मंत्री बनवाया. हालांकि उनका कार्यकाल लंबा नहीं रहा, क्योंकि 1998 में सरकार ही गिर गई. इसके बाद मुलायम सिंह ने 29 अगस्त 2003 को तीसरी बार यूपी के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली और 11 मई 2007 तक राज्य की सत्ता संभाली.