इस रिपोर्ट में कहा गया है कि देश की शीर्ष 1 प्रतिशत आबादी के पास अर्जित कुल आय का 5-7 प्रतिशत हिस्सा है. वहीं लगभग 15 प्रतिशत कामकाजी आबादी ₹ 5,000 (लगभग $ 64) प्रति माह से कम कमाती है. जबकि औसतन ₹ 25,000 प्रति माह कमाने वाले कुल वेतन वर्ग के शीर्ष 10 प्रतिशत में आते हैं, जो कुल आय का लगभग 30-35 फीसदी है. रिपोर्ट से साफ जाहिर हो रहा है कि भारत में शीर्ष 1 प्रतिशत की आय में वृद्धि दिखाई देती है जबकि निचले 10 प्रतिशत की आय घट रही है.एनएफएचएस 2015-16 के आंकड़ों के अनुसार, ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के बीच घरेलू संपत्ति में बहुत बड़ा अंतर है. विशेष रूप से, 50 प्रतिशत से अधिक परिवार धन संकेंद्रण (लगभग 54.9 प्रतिशत) के निचले अनुपात में आते हैं. जिससे भारत में असमानता साफ नजर आती है.
भारत का लक्ष्य $ 5 ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था बनना है, लेकिन इस असमानता से अंदाजा लगाया जा सकता है कि कोई देश अपनी सामाजिक प्रगति और विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने में कितनी दूर है. शीर्ष एक प्रतिशत लोगों के पास 22 प्रतिशत आय है, संपन्न 10 प्रतिशत लोगों के पास कुल राष्ट्रीय आय का 57 प्रतिशत है तो वहीं दूसरी ओर, 50 प्रतिशत यानी कुल आबादी के आधे लोगों के पास 13 प्रतिशत आमदनी है. सरकार ने भले ही इस रिपोर्ट को खारिज़ कर दिया हो लेकिन कोरोना महामारी की त्रासदी और आए दिन बेरोज़गार होते लोगों की कहानी कुछ और ही बयां कर रही है.
रिपोर्ट में कहा गया क 'ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में श्रम शक्ति भागीदारी दर के बीच अंतर को देखते हुए यह हमारी समझ है कि मनरेगा जैसी योजनाओं को शहरी क्षेत्र में भी लागू किया जाना चाहिए. दरअसल मनरेगा मांग आधारित योजना है और ऐसी ही गारंटीकृत रोजगार की पेशकश शहरों में की जानी चाहिए ताकि अधिशेष श्रम को समायोजित किया जा सके.' आपको बता दें कि यह रिपोर्ट गुड़गांव स्थित इंस्टीट्यूट फॉर कॉम्पीटिटिवनेस द्वारा तैयार की गई है और इसको बुधवार को आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष बिबेक देबरॉय द्वारा जारी किया गया.