सौरभ वीपी वर्मा
बात समझ में नहीं आ रहा है कि अगर गाय देश का राष्ट्रीय पशु हो गई तो उस बाघ का क्या होगा जो आज तक भारत का राष्ट्रीय पशु है ।
हिंदुस्तान में सबसे ज्यादा किसी पशु की बदहाली है तो गाय की है किसान के खेतों से लेकर नगरपालिका और महानगरपालिका के कार्यालयों में पॉलीथिन ,कचड़ा एवं कूड़ेदान के अपशिष्ट पदार्थों को चबाती हुई गायें मिल जाती हैं।
तो क्या गाय के राष्ट्रीय पशु होने के बाद उसके ऐसी स्थिति में बदलाव आएगी या फिर गायों की यही दुर्दशा आगे भी जारी रहेगी इस बात पर सवाल होना चाहिए और गायों की लड़ाई लड़ने वाले लोगों को इसकी चिंता करनी चाहिए ।
गाय की लड़ाई लड़ने वाले लोगों को ही क्यों इसी चिंता करनी चाहिए इलाहाबाद हाईकोर्ट को भी ऐसे मामले को संज्ञान लेकर सरकार को आदेश देना चाहिए कि आखिर उत्तर प्रदेश के शहरों में गायों की इतनी बदहाली क्यों है। आखिर जिन गाय को गाय माता कहा जा रहा है उस माता की इतनी बुरी हालत क्यों है , आखिर सड़कों पर दर-दर भटकने के लिए गाय मजबूर क्यों है ,आखिर उत्तर प्रदेश के कान्हा गौशाला भ्रष्टाचार के आगोश में आने के बाद बंद क्यों हो गए , उत्तर प्रदेश में 600 करोड़ से ज्यादा रुपया खर्च करने के बाद गौशाला पर गाय क्यों नहीं है ? इन सब सवालों पर भी हाई कोर्ट को सरकार से जवाब मांगना चाहिए।
फिलहाल न्यायालय के निर्देश को कोई चुनौती नहीं है सरकार अपनी मर्जी से इस देश में बहुत सारे नियम कानून लागू करती है एक कानून और लागू कर देगी तो कोई बात बिगड़ने वाली नहीं है । बस गायों की स्थिति में सुधार आनी चाहिए ।
बता दें कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि गाय का भारतीय संस्कृति में महत्वपूर्ण स्थान है। गाय को भारत देश में मां के रूप में जाना जाता है और देवताओं की तरह उसकी पूजा होती है। इसलिए गाय को राष्ट्रीय पशु का दर्जा दिया जाना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि गाय के संरक्षण को हिंदुओं का मौलिक अधिकार में शामिल किया जाए ।