सौरभ वीपी वर्मा
छत्तीसगढ़ के सुकमा और बीजापुर बार्डर पर नक्सलियों के मुठभेड़ में 22 जवानों की मौत हुई है लेकिन इस मामले में राज्य और केंद्र सरकार ने अभी तक केवल यह कहा है कि यह शहादत बेकार नही जाएगा।
कैसा शहादत ? कैसा शहीद ? अब ये सब बातें बेकार की हो गई हैं जब हम किसी जवान की मौत पर उसके सामने शहीद लिखकर श्रद्धांजलि देते हैं तो सोशल मीडिया से लेकर शोक सभा मे सत् सत् नमन के अलावा इन जवानों के नाम पर और मिलता ही क्या है?
पुलवामा हमले में लगभग 50 जवानों ने अपनी जान गंवाई है लेकिन उन परिवारों को अभी तक क्या मिला है इसका पड़ताल भी समाज को करना चाहिए , फिलहाल समाज जांच पड़ताल क्या करेगा ,समाज खुद अंधा है जो जाति-धर्म और राजनीतिक दलों के पागलपन में डूबा हुआ है। जिसके नाते वह कभी कुछ सही सोचने और सच बोलने की हिम्मत नहीं जुटा पाता है।
सच तो यह है कि इस लुटेरे नेताओं के चलते इस तरह के हमले हो रहे हैं क्योंकि आदिवासियों की भूमि को बिना दाम दिये यह नेता कारपोरेट घरानों को कब्जा करवाना चाहते हैं जो आदिवासी या वहां के स्थानीय निवासी नही चाहते।
अगर यह सही नही है तो वर्ष 2007 में बीजापुर के रानीबोदली में 55 पुलिस के जवानों की हत्या कर दी गई थी आखिर उसके कारण को जानने का प्रयास क्यों नही किया गया और किया गया तो इसका रिपोर्ट अभी तक क्यों नही आया।
इसी प्रकार 2007 में उरपलमेटा में सीआरपीएफ के 23 वर्ष 2009 में मानपुर इलाके में पुलिस अधीक्षक समेत 29 , वर्ष अप्रैल 2010 में ताड़मेटला इलाके में सीआरपीएफ के 76 + 36 +27 वर्ष 2013 में कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार पटेल एवं पूर्व मंत्री विद्याचरण शुक्ला समेत 30 वर्ष 2017 में दुर्पाल इलाके में रिजर्व पुलिस बल के 25 ,वर्ष 2019 में भाजपा विधायक और उनके चार सुरक्षाकर्मियों की हत्या कर दी गई लेकिन आज तक इनके कारणों को जानने का प्रयास क्यों नही किया गया। इसके अलावा 1, 2 ,3 , जवानों की मौत इस इलाके में प्रतिदिन होता रहता है लेकिन नेता अपनी जवाबदेही अभी तक भी तय नही कर पाए।