अरविंद कुमार सिंह
लेखक राज्य सभा टीवी के पत्रकार हैं
चौरीचौरा में 5 फरवरी 1922 को चार हजार किसान स्वयंसेवकों की भीड़ पर पुलिस ने गोली चलायी। फिर लाठियों और संगीनों का प्रहार किया। लोगों का धैर्य जब जवाब दे गया और वे हिंसक हुए तो भाग कर पुलिस के जवान थाने में छिप गए। तब विदेशी कपड़ों की होली जलाने निकली उस भीड़ ने थाने को जला दिया, जिसमें 21 सिपाही मारे गए। इस घटना में 26 स्वतंत्रता सेनानी शहीद हुए और सैकड़ों घायल।
चौरीचौरा कांड में अंग्रेजों ने 172 लोगों को फांसी की सजा और कुछ को कारावास दिया। पंडित मदन मोहन मालवीय की अपील पर फांसी की सजा 20 को हुई और 14 को आजीवन कारावास। लेकिन गांधीजी को इस घटना ने इतना उद्वेलित किया कि उन्होंने गुजरात में 12 फरवरी से होने वाले बारदोली के कर बंदी आंदोलन को स्थगित कर दिया। बारदोली किसानों का सत्याग्रह था। इसी बारदोली सेेे सरदार पटेल को सरदार की उपाधि मिली थी। बारदोली ही नहीं राष्ट्रव्यापी आंदोलन को भी उन्होंने स्थगित कर दिया। उनको आशंका थी कि ऐसा न हुआ तो देश में अराजकता फैल जाएगी। ..तब राज अंग्रेजों का था और आज अपना है।
लेकिन कोई भी आंदोलन हो उसमें अगर अराजकता या हिंसा का स्थान आंशिक तौर पर भी दिखता है तो वह कितना भी विशाल क्यों न हो, कमजोर ही होता है। इस नाते किसान संगठनों को इससे सबक लेते हुए आत्मचिंतन करना चाहिए। इस पूरे घटनाक्रम की विस्तृत जांच करा कर दोषिय़ों को दंडित किया जाये। और हमारी राष्ट्रीय धरोहर लाल किले के उस प्रमुख हिस्से को फिर से सेना के हवाले किया जाये, जहां प्रधानमंत्री झंडा फहराते हैं। ताकि ऐसी घटना की पुनरावृत्ति फिर नहीं हो।