लूट कि देश आजाद है तेरा - अभिजित दूबे की कलम से - तहक़ीकात समाचार

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शुक्रवार, 22 जनवरी 2021

लूट कि देश आजाद है तेरा - अभिजित दूबे की कलम से

अभिजित दूबे, धनबाद झारखंड

आजादी का मतलब क्या है ? इस प्रश्न का सबसे सटीक उत्तर  अगर किसी देश का नागरिक दे सकता है, तो वह भारतीय नागरिक ही है । हमारे पड़ोस में चीन , पकिस्तान, मालदीव आदि देश के नागरिक तो इस प्रश्न का उत्तर देने में फुस्स हो जायेंगे। पर हम भारतीयों ने प्राप्त आजादी को  पिछले तिहत्तर सालों से भोगा, शहीदों ने जो सपना देखा था भले ही उसे तोड़ा।
अब जब देश आजाद है तो देश के लोग पहले तो अपना हित ही देखेंगे न , कौन सा उन्हें 'भारत रत्न' मिलना है जो भारत की चिंता करेंगे। उन्हें भारत की अर्थव्यवस्था, जीडीपी, प्रति व्यक्ति आय आदि बातों से क्या मतलब ? उन्हें तो बस मतलब है लूटो, खसोटो और देश से फूटो । जिस तरह चौकसी, नीरव और माल्या फूटे ,वैसे ही।
हालांकि, सर्वगुणसम्पन्न एक सौ तीस करोड़ लोगों में आपस में   देशभक्ति प्रदर्शित करने की होड़ मची रहती है । खासकर पंद्रह अगस्त और छब्बीस जनवरी के आस-पास। सुबह- सुबह पचास - सौ लोगों को तिरंगे का चित्र व्हाट्सएप्प पे फारवर्ड करेंगे, फिर उन्हें कसम देंगे की छब्बीस जनवरी या पंद्रह अगस्त तक हर मोबाइल में यह चित्र पहुंच जाना चाहिए।मोबाइल का रिंगटोन भी देशभक्ति के किसी गाने पे सेट करके मौसमी देशभक्ति का प्रदर्शन करेंगे।

हमारे पड़ोस में एक नेताजी रहते हैं। आजकल उन्होंने अपने मोबाइल पे रिंगटोन सेट किया है-- 'मेरे देश की धरती सोना उगले, उगले हीरे मोती, मेरे देश की धरती।' नेताजी फुटकर नेतागिरी के अलावा जमीन की खरीद-बिक्री और जबरिया दखल का काम देखते हैं। अतः जमीन का धंधा उनके लिए सोना चांदी उगलने वाला ही है।

देश की निरीह जनता का सारा का सार धन तो सदियों की गुलामी की भेंट कबका चढ़ चुका । समाजवाद का डमरू आजादी के बाद से बजता रहा, गरीबी थी तो वही सबके हिस्से में बंटता रहा। समेटता रहा अपने हिस्से की गरीबी, होरी और सिसकती रही शेल्टर होम में उसकी छोरी। आजादी की वर्षगांठ पे अनाथालय के किस्से अखबारों की सुर्खियां बना रहे हैं और हम दाँत निपोरते हुए निष्पक्ष जाँच और कड़ी से कड़ी सजा का पुराना टेप रिकॉर्डर बजा रहे हैं। नाबालिग बच्चियाँ सिसक रहीं हैं तो उससे क्या ? वो वोट बैंक थोड़े ही हैं कि उनकी चिंता की जाए। चरित्र, नैतिकता, फर्ज आदि ढकोसलों से जकड़े रहने के लिए हमारे पूर्वजों  ने थोड़े ही ना आजादी की जंग लड़ी थी।

हम तो आजाद हुए ताकि मिलावटी दूध, दवा आदि बनाकर भावी पीढ़ी को परोस सकें। गंदगी का अंबार खड़ा कर सकें। झूठ बोल सकें। अदालतों में झूठी गवाहियां दे सकें।  मरे हुए मरीज को जिंदा बताकर , वेंटिलेटर पे लिटाकर हफ्तों तक नर्सिंग होम का मीटर चालू रख सकें। सरकारी जमीन, किसानों की जमीन, गरीबों की जमीन अवैध रूप से हथिया सकें। मानव शरीर के अंगों का अवैध कारोबार कर सकें। देश को , संस्था को, समाज को हर तरह से लूट सकें। लूटना हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है, कर्तव्य का क्या , गोली मारो।

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