विश्वपति वर्मा(सौरभ)
कोरोना जैसी महामारी दस बीस ,पचास 100 साल में एक बार जरूर आना चाहिए इससे राज्य के राजा और देश की सरकारों का असली चरित्र देखने को मिलता है कि सरकार किसी महामारी के दौरान जनता के साथ कैसा व्यवहार करती है।
हम दुनिया भर के देशों का अध्ययन तो नहीं कर पाए लेकिन भारत जैसा देश जो पूरी दुनिया में आबादी की दृष्टि से दूसरे स्थान का दर्जा प्राप्त करता है हमने यहां की एक बहुत बड़ी आबादी को लॉकडाउन के दौरान नरकीय और दर्दनाक जीवन की नैय्या पार करते हुये देखा है।
ऐसा नही है कि बड़ी आबादी होने के नाते सरकार को व्यवस्था प्रदान करने में दिक्कत हुई बल्कि यह एक ऐसा मौका था जब मौजूदा सरकार महामारी में अवसर तलाशने में जुट गई और वही हुआ जैसा सरकार चाहती थी।
जिस तरह से देश की बड़ी आबादी है उसी तरह से देश की बहुसंख्यक जनता ने सरकार को टैक्स दिया ,लॉक डाउन के बाद दान दिया ,बगल के गरीब का सहयोग किया ,भूखे को भोजन कराया ,बीमार का दवा कराया ,सेनेटाइजर खरीदा यहां तक कि मास्क को भी स्वयं खरीदना पड़ा जबकि एक -एक जिले से 20 लाख से लेकर 20-20 करोड़ रुपये तक दानदाताओं ने धनवर्षा किया ,सरकार ने 20 हजार करोड़ रुपये का आपातकालीन बजट पास किया , पीएम केयर्स फंड बनाकर बड़े बड़े पूंजीपतियों से हजारों करोड़ रुपये का गुप्त दान लिया,विश्वबैंक से 76 हजार करोड़ रुपया कर्ज लिया उसके बाद 20 लाख करोड़ रुपये का राहत पैकेज भी जारी किया उसके बाद भी कोरोना और लॉकडाउन से निपटने के लिए सारा पैसा जनता को अपने जेब से खर्च करना पड़ा ,आखिर देश की जनता ऐसे ही दिनों को देखने के लिए लोकतांत्रिक व्यवस्था में सरकार बनाने का काम करती है या नैतिकता के आधार पर देश की सरकार जनता के हित मे काम करेगी।