विश्वपति वर्मा-
शिक्षा नीति में किये गये सभी बदलावों पर विस्तार से चर्चा बाद में करेंगे ,लेकिन शिक्षा के सम्पूर्ण ढाँचे , उसकी संचालन प्रणाली , प्रशासनिक निकाय , विभिन्न की स्तर की शिक्षा के लिए पाठ्यक्रम और शैक्षणिक सत्र , परीक्षा और प्रमाण पत्र , फीस का निर्धारण , शैक्षिक संस्थानों का एकेडमिक बैंक क्रेडिट जैसी मान्यता , उच्च शिक्षा का निर्देशन और विनिमय करने वाले यूजीसी , एआईसीटीसी और अन्य सभी आयोगों की जगह सरकार के अधीन एकल निकाय बनाना , विशिष्ट शिक्षण संस्थानों , जैसे आईआईटी , आईआईएम , एम्स इत्यादि में कला , मानविकी सहित बहुविषयक शिक्षा को बढ़ावा , स्नातक पाठ्यक्रम में एक साल , दो साल या तीन साल पढ़ाई करके छोड़ने पर क्रमशः के सर्टिफिकेट , डिप्लोमा और डिग्री देने की व्यवस्था जैसे तमाम प्रावधानों पर विचार करने से ऐसा प्रतीत होता है कि ये बदलाव खुद पूँजीवादी व्यवस्था के लिए कुशल संचालकों को तैयार करने के लिहाज से भी बेकार साबित होंगे ।
नई शिक्षा नीति में ऑनलाइन पढ़ाई को काफी तरजीह दिया गया है । यह इस बात का प्रमाण है कि सरकार शिक्षा को लेकर हो कितनी गम्भीर है । लॉकडाउन और सामाजिक दूरी की विकट ढाँच परिस्थिति में शिक्षा को जैसे - तैसे जारी रखने के लिए ऑनलाइन पढ़ाई का तात्कालिक विकल्प प्रस्तुत किया गया । यह कितना व्यवहारिक और सफल रहा है , इस पर कोई शोध अध्ययन अभी तक सामने नहीं आया , लेकिन अपने प्रत्यक्ष अनुभव से हम समझ सकते की हैं कि यह कितना कारगर है । अधिकांश अभिभावक जिनमें कोरोना लॉकडाउन के चलते करोड़ों की संख्या में रोजी - रोजगार गवाँ चुके लोग भी शामिल हैं , जिनके बच्चों की पढ़ाई ही छूट गयी है , उनकी हैसियत अपने बच्चों को लैपटॉप या स्मार्ट फोन दिलाने की नहीं है । जिन थोड़े लोगों के पास ये साधन हैं भी , वहाँ नेटवर्क की समस्या है । छात्रों की तो बात ही क्या , दूर - दराज के इलाकों में शिक्षकों को क्षेत्र भी खराब नेटवर्क की समस्या से जूझना पड़ रहा है । अगर सबकुछ चाक - चौबन्द हो , तो भी क्लास रूम में शिक्षक और छात्रों के बीच जो जीवन्त संवाद और प्रत्यक्ष सम्पर्क होता है , ऑनलाइन पढ़ाई उसकी जगह नहीं ले सकती ।