विश्वपति वर्मा-
कल यानी 15 अगस्त को देश अपना 73वां स्वतंत्रता दिवस मनाएगा आजादी के इस जश्न पर देश के 135 करोड़ की आबादी भी तिरंगा झंडा, जुलूस ,रैली एवं तमाम सांस्कृतिक कार्यक्रमों के माध्यम से अपने देश की स्वतंत्रता के उपलक्ष्य में रंगारंग कार्यक्रमों में सराबोर रहेगी लेकिन हमे नही लगता कि देश मे कुछ बेहतर हो रहा है जिसके उपलक्ष्य में इतने व्यापक पैमाने पर खुशियां मनाई जाए।
आज देश भर के अलग- अलग क्षेत्रों के लोगों की अपनी अलग -अलग समस्याएं हैं लेकिन सारी समस्या का हल सत्ता के गलियारे में मौजूद मठाधीश लखनऊ और दिल्ली के एयरकंडीशनर कमरों में बैठ कर कर दे रहे हैं. देश के लोगों की जमीनी हकीकत क्या है यह मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री भी नही समझ पा रहा है.
इस देश मे पढ़े लिखे और अनपढ़ वर्ग से आने वाली एक बड़ी आबादी को जब शासन और प्रशासन की विसंगतियों पर आवाज उठाने की जरूरत है तब उनके अंदर अभी यह काबिलियत पैदा नही हो पा रही है कि उन्हें कब ,कैसे,कंहा और कौन सा निर्णय लेना है ।
भारत में पढ़े लिखे या गैरपढ़े लिखे लोगों की एक बड़ी आबादी है जिनके पास खुद किसी बात पर निर्णय लेने की क्षमता नही है वह दूसरे लोगों की कही गई बातों पर ही विश्वास कर किसी भी प्रोपोगेंडा का प्रचार -प्रसार करने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं वंही कथित बुद्धजीवियों का एक वर्ग तो यह भी कहने लगा है कि फला बात टीबी पर बताई गई है .टीबी पर बताई जाने वाली कौन सी बात उन्हें भा गई मुझे नही पता लेकिन मुझे यह पता है कि टीबी पर बताई जाने वाली हर बात सही नही होती।
आज देखने को मिल रहा है कि देश की 40 फीसदी से अधिक आबादी सरकार की निरंकुशता शासन की उदासीनता और जनप्रतिनिधियों के दोगली नीतियों पर बोलने के लिए सक्षम नही हैं बल्कि उसके उलट यह देखने को मिला है यह वर्ग इन उच्च वर्ग के लोगों के सामने सिर खुकाये खड़ी हुई है।
जिसका परिणाम है की आजादी के 72 वर्षों बाद भी एक बड़ी आबादी बदसे बदतर जिंदगी जीने को मजबूर है,गरीबी ,बेरोजगारी ,भ्रष्टाचार ,चिकित्सा की असुविधा एवं कुपोषण के दायरे में जीने वाले लोगों की संख्या भारत मे बहुसंख्यक है उसके बाद भी हम आने वाले कल के तारीख में 15 अगस्त की खुशियां केवल इस लिए मनाएंगे क्योंकि हमें लगता है कि हम आजाद हैं।
आजादी का जश्न मनाइये और वह भी जोर- शोर से क्योंकि बार्कलेज-हुरुन इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार मुकेश अंबानी प्रति दिन 300 करोड़ रुपया कमाते हैं वंही लगभग 44 करोड़ भारतीय 22 रुपये से कम में जीवन यापन करते हैं.उसके बाद भी लगता है कि हम आजाद हैं.
राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय की पीएलएफएस की रिपोर्ट के मुताबिक देश में साल 2017-18 में बेरोजगारी दर पिछले 45 साल में सबसे ज्यादा बढ़ी है रिपोर्ट में बताया गया है कि 1972 के बाद से बेरोजगारी का यह सबसे बड़ा त्रासदी है .उसके बाद भी लगता है कि हम आजाद हैं.
ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की 180 देशों की रिपोर्ट में वर्ष 2019 में भारत को एशिया-प्रशांत क्षेत्र में भ्रष्टाचार और प्रेस स्वतंत्रता के मामले में सबसे ख़राब स्थिति वाले देशों की श्रेणी में रखा गया है.180 देशों की रिपोर्ट में भ्रष्टाचार के मामले में भारत 81 वें स्थान पर हैं जबकि 2016 में 76 वें स्थान पर था यानी कि इन दिनों में भारत मे भ्रष्टाचार और बढ़ा है. उसके बाद भी लगता है कि हम आजाद हैं
72 वर्ष बीत जाने के बाद देश मे व्याप्त इतनी बड़ी-बड़ी एवं गंभीर समस्याओं को देखने के बाद भी यदि आपको लगता है कि हम आजाद हैं तो आप आजादी का जश्न जोर-शोर से मनाइये क्योंकि आजादी के जश्न में हिस्सा तो हमे भी लेना है .लेकिन बीते 72 वर्षों की समीक्षा जरूर कीजियेगा ताकि 73वें वर्ष में अच्छे दिनों की खोज के लिए कुछ करने की इच्छा जाग जाए।
कल यानी 15 अगस्त को देश अपना 73वां स्वतंत्रता दिवस मनाएगा आजादी के इस जश्न पर देश के 135 करोड़ की आबादी भी तिरंगा झंडा, जुलूस ,रैली एवं तमाम सांस्कृतिक कार्यक्रमों के माध्यम से अपने देश की स्वतंत्रता के उपलक्ष्य में रंगारंग कार्यक्रमों में सराबोर रहेगी लेकिन हमे नही लगता कि देश मे कुछ बेहतर हो रहा है जिसके उपलक्ष्य में इतने व्यापक पैमाने पर खुशियां मनाई जाए।
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की एक आंकड़े को देखें तो सही मायने में देश भर में महज 11 फीसदी लोग ही आर्थिक और राजनीतिक रूप से आजाद हैं उसके बाद बचे 89 फीसदी लोगों का जश्न केवल नासमझी और दिखावा है।
आज देश भर के अलग- अलग क्षेत्रों के लोगों की अपनी अलग -अलग समस्याएं हैं लेकिन सारी समस्या का हल सत्ता के गलियारे में मौजूद मठाधीश लखनऊ और दिल्ली के एयरकंडीशनर कमरों में बैठ कर कर दे रहे हैं. देश के लोगों की जमीनी हकीकत क्या है यह मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री भी नही समझ पा रहा है.
इस देश मे पढ़े लिखे और अनपढ़ वर्ग से आने वाली एक बड़ी आबादी को जब शासन और प्रशासन की विसंगतियों पर आवाज उठाने की जरूरत है तब उनके अंदर अभी यह काबिलियत पैदा नही हो पा रही है कि उन्हें कब ,कैसे,कंहा और कौन सा निर्णय लेना है ।
भारत में पढ़े लिखे या गैरपढ़े लिखे लोगों की एक बड़ी आबादी है जिनके पास खुद किसी बात पर निर्णय लेने की क्षमता नही है वह दूसरे लोगों की कही गई बातों पर ही विश्वास कर किसी भी प्रोपोगेंडा का प्रचार -प्रसार करने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं वंही कथित बुद्धजीवियों का एक वर्ग तो यह भी कहने लगा है कि फला बात टीबी पर बताई गई है .टीबी पर बताई जाने वाली कौन सी बात उन्हें भा गई मुझे नही पता लेकिन मुझे यह पता है कि टीबी पर बताई जाने वाली हर बात सही नही होती।
विश्वपति वर्मा |
आज देखने को मिल रहा है कि देश की 40 फीसदी से अधिक आबादी सरकार की निरंकुशता शासन की उदासीनता और जनप्रतिनिधियों के दोगली नीतियों पर बोलने के लिए सक्षम नही हैं बल्कि उसके उलट यह देखने को मिला है यह वर्ग इन उच्च वर्ग के लोगों के सामने सिर खुकाये खड़ी हुई है।
जिसका परिणाम है की आजादी के 72 वर्षों बाद भी एक बड़ी आबादी बदसे बदतर जिंदगी जीने को मजबूर है,गरीबी ,बेरोजगारी ,भ्रष्टाचार ,चिकित्सा की असुविधा एवं कुपोषण के दायरे में जीने वाले लोगों की संख्या भारत मे बहुसंख्यक है उसके बाद भी हम आने वाले कल के तारीख में 15 अगस्त की खुशियां केवल इस लिए मनाएंगे क्योंकि हमें लगता है कि हम आजाद हैं।
आजादी का जश्न मनाइये और वह भी जोर- शोर से क्योंकि बार्कलेज-हुरुन इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार मुकेश अंबानी प्रति दिन 300 करोड़ रुपया कमाते हैं वंही लगभग 44 करोड़ भारतीय 22 रुपये से कम में जीवन यापन करते हैं.उसके बाद भी लगता है कि हम आजाद हैं.
राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय की पीएलएफएस की रिपोर्ट के मुताबिक देश में साल 2017-18 में बेरोजगारी दर पिछले 45 साल में सबसे ज्यादा बढ़ी है रिपोर्ट में बताया गया है कि 1972 के बाद से बेरोजगारी का यह सबसे बड़ा त्रासदी है .उसके बाद भी लगता है कि हम आजाद हैं.
ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की 180 देशों की रिपोर्ट में वर्ष 2019 में भारत को एशिया-प्रशांत क्षेत्र में भ्रष्टाचार और प्रेस स्वतंत्रता के मामले में सबसे ख़राब स्थिति वाले देशों की श्रेणी में रखा गया है.180 देशों की रिपोर्ट में भ्रष्टाचार के मामले में भारत 81 वें स्थान पर हैं जबकि 2016 में 76 वें स्थान पर था यानी कि इन दिनों में भारत मे भ्रष्टाचार और बढ़ा है. उसके बाद भी लगता है कि हम आजाद हैं
72 वर्ष बीत जाने के बाद देश मे व्याप्त इतनी बड़ी-बड़ी एवं गंभीर समस्याओं को देखने के बाद भी यदि आपको लगता है कि हम आजाद हैं तो आप आजादी का जश्न जोर-शोर से मनाइये क्योंकि आजादी के जश्न में हिस्सा तो हमे भी लेना है .लेकिन बीते 72 वर्षों की समीक्षा जरूर कीजियेगा ताकि 73वें वर्ष में अच्छे दिनों की खोज के लिए कुछ करने की इच्छा जाग जाए।