सौरभ वीपी वर्मा
संपादक-तहकीकात समाचार
जब देश "हाऊडी मोदी" और "नमस्ते ट्रंप" जैसे आयोजनों की चमक-दमक में झूम रहा था, तब राहुल गांधी ने एक सधी हुई चेतावनी दी थी—H1B वीज़ा पर संकट आने वाला है। उस वक्त यह चेतावनी राजनीतिक बयानबाज़ी मानकर हवा में उड़ा दी गई, लेकिन आज हक़ीक़त सामने है। अमेरिका ने वीज़ा शुल्क बढ़ाकर भारत को पहला झटका दे दिया है और आने वाले दिनों में यह केवल शुरुआत साबित हो सकती है।
यह कदम केवल वीज़ा नीति का संशोधन नहीं है, बल्कि एक प्रकार का "दूसरे स्तर का टैरिफ" है। इसका असर सीधा भारत की सर्विस इंडस्ट्री, खासकर आईटी सेक्टर पर पड़ेगा। अमेरिका भारत के सॉफ्टवेयर निर्यात का सबसे बड़ा बाज़ार है। वहां वीज़ा महंगा होने का मतलब है—भारतीय कंपनियों के लिए लागत में भारी इज़ाफ़ा और प्रतिस्पर्धा में गिरावट। अगर हालात नहीं संभाले गए, तो भारत की कई प्रमुख आईटी कंपनियों का अस्तित्व ही संकट में पड़ सकता है।
विडंबना यह है कि जब यह चेतावनी दी गई थी, तब देश का माहौल उत्सवधर्मी था। वीज़ा धारक खुद "मोदी-मोदी" के नारे लगा रहे थे और भारत में अमेरिका को हल्के में लिया जा रहा था। मगर कूटनीति नारेबाज़ी से नहीं चलती, ठोस आर्थिक रणनीति से चलती है। अमेरिका ने आज साफ़ संदेश दिया है कि उसकी प्राथमिकता "अमेरिका फर्स्ट" है, चाहे भारत जैसे साझेदार देशों की कीमत पर ही क्यों न हो।
यह भी समझना होगा कि वीज़ा शुल्क बढ़ाना कोई एकमात्र कार्रवाई नहीं है। व्यापारिक दृष्टि से यह "पहला कदम" है। अगले चरण में भारत के ख़िलाफ़ और कड़े कदम उठाए जा सकते हैं—चाहे वह सेवा क्षेत्र हो, फ़ार्मा हो या अन्य निर्यात। यह भारत के विदेशी व्यापार के लिए गंभीर संकट की घंटी है।
मगर अफ़सोस, हमारे यहां अभी भी कोई व्यापक बहस नहीं हो रही। सरकार और मीडिया दोनों इस मुद्दे पर खामोश हैं। चंद जयकारों और आयोजनों की चमक में वास्तविक संकट को अनदेखा किया जा रहा है।
भारत को चाहिए कि वह तत्काल अमेरिका के साथ संवाद की नई पहल करे, अपने व्यापारिक गठबंधनों को विविधता दे और आईटी सेक्टर के लिए घरेलू बाज़ार को मजबूत बनाए। वरना यह संकट न केवल रोजगार के लाखों अवसरों को निगल जाएगा, बल्कि भारत की वैश्विक साख को भी कमजोर कर देगा।