सौरभ वीपी वर्मा
जब सदन में जातीय जनगणना की बात हो रही है तब भाजपा के लोग इस विषय पर बहस करने से भड़क क्यों रहे हैं ,अगर भाजपा जातीय जनगणना करवा दे तो कौन सा खेत खलिहान उसका खाली हो जाएगा? इस जातीय समीकरण को साध कर राजनीतिक पार्टियों द्वारा दलित ,ओबीसी आदिवासी का वोट तो लिया जाता है लेकिन जब सत्ता की चाभी मिल जाती है तब हिस्सेदारी देने में समस्या क्यों होती है यह सवाल खड़ा होता है।
अगर सदन में सांसद जातीय जनगणना की मांग कर रहे हैं तो मैं इसका भरपूर समर्थन करता हूँ , जातीय जनगणना इस देश में क्यों जरूरी है मैं इसके लिए एक उदाहरण पेश करना चाहता हूं ।
बस्ती जनपद में दयाशंकर पटवा और उमाशंकर पटवा को शायद ही कोई नही जानता होगा , हर प्रमुख चौराहे पर आरसीसी बेंच की स्थापना करने की बात हो या फिर दीन दुखियों की सहयोग की बात हो पटवा बंधुओं ने दिल खोल कर मदद किया है लेकिन पटवा बंधुओं को आज तक जिला पंचायत सदस्य जीतने में भी जनता का समर्थन नही मिल पाया , जानते हैं क्यों क्योंकि पटवा बंधुओं को जातीय आंकड़े के बारे में कोई जानकारी नही था अगर ऐसा होता तो पटवा बंधु या तो करोड़ो रुपया खर्च नही करते या फिर उस क्षेत्र का नेतृत्व करते जहां से उन्हें राजनीतिक फायदा मिल सकता था । लेकिन पटवा बंधु ठहरे व्यवसायी उन्हें नही पता था कि जिस मिट्टी को अपना मिट्टी समझ कर वह राजनीति में एंट्री कर रहे हैं वहां जातीय समीकरण के हिसाब से सब कुछ चलता है ।
खैर यह तो एक मात्र उदाहरण था , जातीय भेदभाव की वजह से राजनीति में ही नही कई सारी जगहों पर हिस्सेदारी नही मिल पाती है , पत्रकार ,वकील ,नेता ,रिश्ता सब कुछ अपनी जाती का खोजा जा रहा है तो फिर हर किसी के जाति का सही आंकड़ा बताने में दिक्कत क्या है ।