अंग्रेजी हुकूमत में होने वाली नील की खेती जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का हिस्सा बना - तहक़ीकात समाचार

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रविवार, 11 जून 2023

अंग्रेजी हुकूमत में होने वाली नील की खेती जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का हिस्सा बना

सौरभ वीपी वर्मा
ग्राउंड जीरो रिपोर्ट

ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन भारतीय सुप्रारंभिक काल में, अंग्रेजों ने विभिन्न व्यापारिक गतिविधियों को शुरू किया। इसमें नील का व्यापार भी शामिल था। अंग्रेजो द्वारा नील की खेती देश के कई हिस्सों में करवाया जाता था ऐसा माना जाता है कि इसकी शुरुआत पश्चिम बंगाल से हुई थी।
   पानी के स्रोत के लिए बनाई गई मोटी दीवाल

नील एक वनस्पति है जिसके इंदिगो वृक्ष (Indigofera tinctoria) के फूलों से प्राप्त किया जाता है। यह फूल नीली रंग को उत्पन्न करने के लिए उपयोग किए जाते थे।

ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी और अन्य यूरोपीय कंपनियों ने भारत में नील के क्षेत्र में अत्यधिक ध्यान दिया क्योंकि नील को विदेशी बाजारों में महंगा और मुनाफावदार माना जाता था। उन्होंने भारतीय किसानों को नील की खेती करने के लिए बुलाया और उनसे नील की उत्पादन में योगदान करने के लिए अनुबंध समझौते किए। यह कारोबार अंग्रेजों को बहुत लाभदायक था, लेकिन यह भारतीय किसानों के लिए बहुत कठिन था। वे कम मजदूरी मिलती थी और उन्हें अनुबंधों के कठिन शर्तों का पालन करना पड़ता था।
       नील फैक्ट्री की मोटी चाहरदीवारी
नील का व्यापार अंग्रेजी हुकूमत के दौरान भारत में एक महत्वपूर्ण उद्योग था, जिसने अंग्रेजी कंपनियों को लाभ प्रदान किया और भारतीय किसानों को कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। इसके अलावा, नील के व्यापार ने अंग्रेजी कंपनियों के आर्थिक और राजनीतिक मदद का एक स्रोत भी बनाया।

नील (Indigo) एक पौधा है जिसके पत्तों और फूलों से एक गहरे नीले रंग का पिगमेंट प्राप्त किया जाता है। इसका वैज्ञानिक नाम Indigofera tinctoria है। नील पश्चिमी एशिया, दक्षिण एशिया, और उत्तरी अफ्रीका में पाया जाता है।

नील के फूलों को तोड़ने के बाद उसे सुखाकर पीसे जाते थे और फिर उनके अंदर का रंग प्राप्त किया जाता था। यह रंग इंदिगो नामक छोटी कणों में होता है जिसे बाद में उपयोग के लिए अलग किया जाता है।

भारत में, नील एक प्राचीन फसल थी और पहले से ही रंग के लिए उपयोग होती थी। विशेष रूप से मुग़ल समय में, नील की खेती और उत्पादन में विशेष गति हुई।लेकिन ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन भारत में नील का व्यापार और उत्पादन बढ़ाया गया। ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी और अन्य यूरोपीय कंपनियां भारत में नील की खेती को व्यवसायिक रूप से बढ़ाने के लिए भारतीय किसानों से संबंध स्थापित की। उन्होंने बड़े पैमाने पर नील की उत्पादन में निवेश किया और भारतीय किसानों को अनुबंधों के ज़रिए मजदूरी पर नियंत्रण रखा। नील की मशीनों के आगमन से, नील की खेती को और भी मशीनीकृत कर दिया गया और उत्पादन की क्षमता बढ़ाई गई।
     वह स्थान जहाँ नील के पत्ते सुखाए जाते थे
नील के व्यापार ने भारतीय अर्थव्यवस्था को प्रभावित किया, और यह व्यापार व्यवसायिक गतिविधियों के माध्यम से ब्रिटिश साम्राज्य को लाभ प्रदान किया। हालांकि, नील के व्यापार में उत्पन्न कठिनाइयां और न्यायसंगतता के मुद्दे ने इसे एक प्रमुख आंदोलन का केंद्र बना दिया। नील की खेती और नील मशीन के विरोध में बहुत सारे किसान आंदोलनों ने भाग लिया और यह आंदोलन मुख्य रूप से भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक हिस्सा बना।

अंग्रेजी हुकूमत में भारतीय किसानों के साथ किये गए अन्याय एवं बर्बरता की तस्वीर आज भी मौजूद है जहां नील के खेती के नाम पर अंग्रेज मुनाफा कमाते थे वहीं भारतीय लोग एवं किसान अंग्रेजी हुकूमत की अत्याचार झेलने के लिए मजबूर होते थे।

सभी तस्वीर उत्तर प्रदेश के बस्ती जनपद के अंतर्गत सल्टौआ विकास खंड के अमरौली शुमाली गांव में अंग्रेजी हुकूमत में लगाये गए नील फैक्ट्री के बचे अवशेष की है।

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