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शनिवार, 29 मई 2021

अंग्रेजी हुकूमत ने दिया था चौधरी चरण सिंह को गोली मारने का आदेश,पढ़िए किसान नेता का किस्सा

सौरभ वीपी वर्मा

देश में 183 दिनों से किसान आंदोलन चल रहा है और इस बात पर अभी तक बहस चल रही है कि कोरोना काल में भी इसके जारी रहने का क्या औचित्य है. जब भी देश में किसानों को लेकर कोई आवाज उठती है तो उसके आंदोलन का रूप लेने से पहले ही चौधरी चरण सिंह का नाम आता है । आज भारत के पांचवे प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की 24 वीं पुण्यतिथि है आइए जानते हैं उनके बारे में विशेष बात ।

चौधरी चरण सिंह का जन्म  23 दिसंबर 1902 में मेरठ के  हापुड़ में नूरपुर गांव में जाट परिवार में हुआ था.चौधरी चरण सिंह के पिता चौधरी मीर सिंह ने अपने नैतिक मूल्यों को विरासत में चरण सिंह को सौंपा था। चरण सिंह के जन्म के 6 वर्ष बाद चौधरी मीर सिंह सपरिवार नूरपुर से जानी खुर्द के पास भूपगढी आकर बस गये थे। यहीं के परिवेश में चौधरी चरण सिंह के नन्हें ह्दय में गांव-गरीब-किसान के शोषण के खिलाफ संघर्ष का बीजारोपण हुआ। 

आगरा विश्वविद्यालय से कानून की शिक्षा लेकर 1928 में चौधरी चरण सिंह ने ईमानदारी, साफगोई और कर्तव्यनिष्ठा पूर्वक गाजियाबाद में वकालत प्रारम्भ की। वकालत जैसे व्यावसायिक पेशे में भी चौधरी चरण सिंह उन्हीं मुकदमों को स्वीकार करते थे जिनमें मुवक्किल का पक्ष न्यायपूर्ण होता था। कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन 1929 में पूर्ण स्वराज्य उद्घोष से प्रभावित होकर युवा चरण सिंह ने गाजियाबाद में कांग्रेस कमेटी का गठन किया। 1930 में महात्मा गाँधी द्वारा सविनय अवज्ञा आन्दोलन के तहत् नमक कानून तोडने का आह्वान किया गया। गाँधी जी ने ‘‘डांडी मार्च‘‘ किया। 

आजादी के दीवाने चरण सिंह ने गाजियाबाद की सीमा पर बहने वाली हिण्डन नदी पर नमक बनाया। परिणामस्वरूप चरण सिंह को 6 माह की सजा हुई। जेल से वापसी के बाद चरण सिंह ने महात्मा गाँधी के नेतृत्व में स्वयं को पूरी तरह से स्वतन्त्रता संग्राम में समर्पित कर दिया। 1940 के व्यक्तिगत सत्याग्रह में भी चरण सिंह गिरफतार हुए फिर अक्टूबर 1941 में मुक्त किये गये। सारे देश में इस समय असंतोष व्याप्त था। महात्मा गाँधी ने करो या मरो का आह्वान किया। अंग्रेजों भारत छोड़ों की आवाज सारे भारत में गूंजने लगी। 9 अगस्त 1942 को अगस्त क्रांति के माहौल में युवक चरण सिंह ने भूमिगत होकर गाजियाबाद, हापुड़, मेरठ, मवाना, सरथना, बुलन्दशहर के गाँवों में गुप्त क्रांतिकारी संगठन तैयार किया। मेरठ कमिश्नरी में युवक चरण सिंह ने क्रांतिकारी साथियों के साथ मिलकर ब्रितानिया हुकूमत को बार-बार चुनौती दी इसी लिए मेरठ प्रशासन ने चरण सिंह को देखते ही गोली मारने का आदेश दे रखा था। एक तरफ पुलिस चरण सिंह की टोह लेती थी वहीं दूसरी तरफ युवक चरण सिंह जनता के बीच सभायें करके निकल जाता था। आखिरकार पुलिस ने एक दिन चरण सिंह को गिरफ्तार कर ही लिया। राजबन्दी के रूप में डेढ़ वर्ष की सजा हुई। जेल में ही चौधरी चरण सिंह की लिखित पुस्तक ‘‘शिष्टाचार‘‘, भारतीय संस्कृति और समाज के शिष्टाचार के नियमों का एक बहुमूल्य दस्तावेज है।

वैसे तो चरण सिंह के राजनैतिक जीवन का जब जिक्र होता है तो आपात काल के बाद के समय का होता है, लेकिन वे बहुत पहले ही किसानों की आवाज बन चुके थे. देश की आजादी के पहले ही वे जमीदारों के किसान मजूदरों के उत्पीड़न के खिलाफ आवाज उठाते रहे थे. वे किसानों कि समस्याएं सुन कर बहुत द्रवित हो जाया करते थे और कानून के ज्ञान का उपयोग वे किसानों की भलाई के करते दिखाई देते रहे थे.चौधरी चरण सिंह भारत के एकमात्र ऐसे प्रधानमंत्री हैं जिन्होंने अपने कार्यकाल में संसद का सामना नहीं किया था. 

1951 में वे उत्तर प्रदेश कैबिनेट में न्याय एवं सूचना मंत्री बने. इसके बाद वे 1967 तक राज्य कांग्रेस के अग्रिम पंक्ति के तीन प्रमुख नेताओं में गिने जाते रहे. और भूमि सुधार कानूनों के लिए काम करते रहे. किसानों के लिए उन्होंने 1959 के नागपुर कांग्रेस अधिवेशन में पंडित नेहरू तक का विरोध करने से गुरेज नहीं किया. इस समय तक ने उत्तर भारत के किसानों के आवाज बन चुके थे.

चौधरी चरण सिंह ने साल 1967 में कांग्रेस से खुद को अलग कर लिया और वे उत्तर प्रदेश के पहले गैर कांग्रेसी मुख्यमंत्री बने. भारतीय लोकदल के नेता के तौर पर वे जनता गठबंधन से जुड़े जिसमें उनका दल सबसे बड़ा घटक था. लेकिन राजनैतिक जानकार बताते हैं कि 1974 से वे गठबंधन में अलग थलग हो गए थे और जयप्रकाश नारायण ने जब मोरारजी देसाई को प्रधानमंत्री चुना तो वे बहुत निराश हुए. उसके बाद चौधरी चरण सिंह का मोरारजी देसाई से मतभेद के चलते मोरारजी देसाई को प्रधानमंत्री पद छोड़ना पड़ा  उसके बाद चौधरी चरण सिंह ने 28 जुलाई 1979 से 14 जनवरी 1980 तक प्रधानमंत्री का पद संभाला। चौधरी चरण सिंह ने अपना संपूर्ण जीवन भारतीयता और ग्रामीण परिवेश की मर्यादा में जिया।

कहा यह भी जाता है कि चौधरी चरण सिंह का कांग्रेस के समर्थन के साथ प्रधानमंत्री बनना उनकी छवि को धूमिल कर गया था, लेकिन ज्यादातर लोग यही मानते हैं चरणसिंह हमेशा ही अपने क्षेत्रों के लोकप्रिय नेता हमेशा ही बने रहे और उन्होंने अपनी वह जमीन कभी नहीं छोड़ी. यही वजह से कि उनके इस्तीफे के बाद भी वे 1987 तक लोकसभा में लोकदल का प्रतिनिधित्व करते रहे और किसानों के हक की आवाज बने रहे.इसी वर्ष उनका निधन हुआ था ।

ऐसे बहुत से किस्से हैं जो बताते हैं कि चौधरी चरण सिंह का प्रभाव किसानों से लेकर राजनीति के ऊंचे स्तर तक रहा करता था. उनके प्रभाव की सबसे बड़ी मिसाल यही है कि उन्हें आज भी किसानों को मसीहा माना जाता है. अंग्रेजों से कर्ज माफी का बिल पास करवाना, किसानों के खेतों की नीलामी रुकवाना, गावों के विद्युतिकरण, भूमि कानून सुधारों के लिए संघर्ष जैसे कई काम किए. उन्होंने किसानों के खातिर पुरानी पार्टी छोड़ी और कांग्रेस के समर्थन से सरकार तक बनाने के काम कर लिए, लेकिन उनकी लोकप्रियता में कभी कमी नहीं आई.यही कारण है कि उनके निधन के 24 साल बाद भी वह किसानों के मसीहा के रूप में जाने जा रहे हैं।

चौधरी चरण सिंह की विरासत संभालने वाले उनके बेटे चौधरी अजीत सिंह का इसी महीने निधन हो गया था अब उनके पौत्र यानी चौधरी अजित सिंह के पुत्र जयंत चौधरी पार्टी को आगे ले जाएंगे ,वह राजनीति में काफी सक्रिय हैं और लोकसभा सदस्य भी रह चुके हैं।

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