परंपरागत अध्ययन प्रणाली बनाम डिजिटल अध्ययन प्रणाली -नीरज कुमार वर्मा - तहक़ीकात समाचार

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सोमवार, 28 दिसंबर 2020

परंपरागत अध्ययन प्रणाली बनाम डिजिटल अध्ययन प्रणाली -नीरज कुमार वर्मा

नीरज कुमार वर्मा नीरप्रिय 
सम्प्रति. किसान सर्वोदय इंटर कालेज रायठ बस्ती 

परंपरागत अध्ययन प्रणाली का साधारण अर्थो में तात्पर्य है एक ऐसी अध्ययन प्रणाली जो सदियों से चली आ रही है। देखा जाए तो भारत जैसे देश में अध्ययन की शुरुआत भोजपत्रो से होती है जब  कागज का आविष्कार नहीं हुआ था तो मनुष्य भोजपत्रो पर लिखता पढ़ता था। इसी को आगे बढ़ाते हुए किसी लिखावट को अमर बनाने के लिए शिलालेखों की शुरुआत हुई जहां पत्थर पर लिखा जाता था। आज के समय में देखा जाय तो यह लिखने पढ़ने की परंपरा डिजिटल युग तक पहुंच गई है। अब हार्ड कापी बनाम साफ्ट कापी का जमाना आ गया है।

अध्ययन अध्यापन की जो प्रणालिया या सामाग्री हुई वे समय और परिस्थितियों के अनुसार थी। देखा जाय तो आदिम युग में मनुष्य भोजपत्रो, शिलाओं आदि पर पढ़ता लिखता था। धीरे-धीरे समय ने करवट ली और हम इन चीजों से बाहर निकले। तकनीकी के विकास तथा कागज की खोज ने मनुष्य के अध्ययन अध्यापन प्रणाली को निरन्तर प्रभावित किया है। जैसे जैसे अध्ययन की प्रणालिया बदलती गई उसी के अनुरुप अध्यापन के तरीके भी बदले। ज्यादा समय पीछे न जाकर यदि हम आज के लगभग बीस से पच्चीस साल पहले की बात करें तो उस समय जब बच्चा अपने पढ़ाई लिखाई की शुरुआत करता था तो उसे लेखनी के रुप में डाटपेन न देकर नरकुल की कलम दी जाती थी, कापी के बदले उसे काठ की तख्ती दी जाती थी तथा इरेजर के बदले उसे कालिख आदि प्रदान की जाती थी। उस दौरान बच्चे को सारे विषय उसी तख्ती पर लिखने पढ़ने पड़ते थे आजकल की तरह अलग अलग विषयों को लिखने के लिए अलग अलग कापियां निर्धारित नहीं होती थी। कलम के रुप में वही दुधी का सफेद रंग ही था विभिन्न रंग के डाटपेन नहीं दिये जाते थे। बच्चे बोरे या कपड़े से बने हुए बस्ते का इस्तेमाल करते थे तथा एक बोरा वे अपने पास रखते थे जिससे विघालय में वे जाकर बैठ सके और ज्ञानवर्धन कर सके। ऐसे में कह सकते है कि यह जो ज्ञानार्जन होता था वह काफी विषम परिस्थितियों में होता था।

वर्तमान समय रेडीमेड का है जहां पर पहले से सबकुछ बाजार में पहले से तैयार बना बनाया बाजार में मिल रहा है। उस समय जब बच्चा तख्ती लेकर पढ़ने जाता था तो उसके पास लिखने के लिए केवल एक ही सामग्री होती थी वह थी तख्ती जिस पर उसे विभिन्न विषय लिखने पड़ते थे। ऐसे में एक समय यदि वह उस पर वर्णमाला लिखता तो दूसरे समय उसे मिटाकर उस पर गणित के सवाल हल करने पड़ते थे इस प्रकार किसी बच्चे को सीखने तथा संरक्षित रखने का समय नहीं मिल पाता था। जहां तक पुस्तकों की बात की जाय तो उस समय इतना पैसा नहीं था कि सभी बालकों के पास सुचारु रुप से सभी पुस्तकें उपलब्ध हो। ऐसे में बालक को सीखने में काफी कठिनाई का सामना करना पड़ता था। पर यदि दूसरे नजरिए से देखा जाए तो शिक्षा व्यवस्था काफी किफायती भी थी लोग कम पैसे में शिक्षा प्राप्त कर लेते थे।
पुस्तक तथा कापी प्रणाली की शुरुआत बड़े कक्षाओं अर्थात् कक्षा छह से होती थी। इस कक्षा में पहुंचने पर बच्चे को पढ़ने के लिए पुस्तक तथा लिखने के लिए डाटपेन व कापी मिल जाती थी। इस समय जो अध्यापन की जो पद्धतियां थी वे बहुत विकसित नहीं थी। देखा जाए तो प्रायः मौखिक ढंग से या किताबों के माध्यम से जैसा आज भी देखने को मिलता है बच्चों को अध्यापकों के द्वारा ज्ञान प्रदान किया जाता था। प्रायः शिक्षक किसी पाठ को मौखिक रूप से बताकर या पुस्तकों के सहारे से लिखवाकर अपने कार्य को इतिश्री मान लेते थे। आज के समय में बच्चों को जहां पर करके सीखने या सचित्र पुस्तक प्रणाली के माध्यम से ज्ञान प्रदान किया जाता है वह उस समय नहीं था। आज तो बच्चा विभिन्न विषयों के संदर्भ में खुद प्रयोग करके वैज्ञानिक ढंग से सीखता है या पुस्तकों में जिस विषय या वस्तु का वर्णन किया जाता है उसका एक स्पष्ट चित्र बना होता है। कह सकते है कि उस समय की शिक्षा कल्पनाओं पर आधारित थी पर आज की शिक्षा यथार्थ पर आधारित है। पर हां उस समय की शिक्षा प्रणाली में बच्चों के अंदर एक प्रकार की जिज्ञासा विघमान रहती थी जो बच्चे को किसी विषय वस्तु को जानने के लिए जिज्ञासु बनाये रखती थी। जैसे मुझे याद आता है कि जब कक्षा आठ में मेरे अध्यापक चन्द्रमा के विषय में पढ़ाते थे तो उस समय पुस्तक में चन्द्रमा का चित्र नहीं दिया रहता था आजकल तो पुस्तक में पूर्णिमा से लेकर एकादशी तक के चित्र दिये रहते है। ऐसे में मेरा मन रात होने पर चन्द्रमा को देखने के लिए लालायित रहता था तथा चन्द्रमा को ध्यान से एकटक कुछ देर तक देखते रहते और उसके सतह पर जो पर्वत है काले काले दिखते तो हमारे पूर्वज जो प्रायः अशिक्षित थे उन्हें एक बुढ़िया बताते जो जाते पर अनाज दर रही है ऐसा कहते। वह शिक्षा प्रणाली हमारे जिज्ञासा को तो बनाये रखती थी पर कभी-कभी हम अपनी जिज्ञासा को शांत करने के लिए गलत धारणाओं पर विश्वास कर लेते थे। ऐसे में हमें भ्रमित रहना पड़ता जो उचित नहीं था। वर्तमान शिक्षा प्रणाली हमारी जिज्ञासाओं को शांत करके हमें वास्तविक विषय वस्तु का तुरंत ज्ञान कराने में सक्षम है जो सही है।

ये तो रहा जूनियर तक की कक्षाओं का हाल अब हम बात करें माध्यमिक औल उच्च कक्षाओं की तो उस समय इन कक्षाओं में व्यस्क बच्चे ही पहुंचते थे क्योंकि उनकी जो पढ़ाई शुरू होती थी वह आजकल की तरह तीन साल की आयु में न होकर छह सात वर्ष या इससे ऊपर की उम्र में शुरू होती थी। उस समय बच्चे को खेलने कूदने अर्थात् बचपना का पूरा आनंद उठाने का समय दिया जाता था। आजकल के इस प्रतिस्पर्धी युग की तरह खेल खेल में ही शिक्षा अर्थात् एलकेजी और यूकेजी कक्षाएं नहीं हुआ करती थी। तो हां इन माध्यमिक कक्षाओं मे परंपरागत अध्ययन सामग्री अर्थात् पुस्तके होती थी और इन्ही के माध्यम से अध्यापन भी किया जाता था। आजकल भी अधिकांश विघालयो व महाविद्यालयों तथा विश्वविद्यालयों  में इसी प्रकार हो रहा है जो थोड़ा बहुत परिवर्तन दिखाई दे रहा है वह विभिन्न विषयों में प्रायोगिक प्रणाली को अपनाना है। यह सही है कि वर्तमान समय में विज्ञान ने वह विभिन्न संसाधन आसानी से मुहैय्या करा दिये है जिसके माध्यम से हम बिना समय गवांये विभिन्न विषयों को प्रयोग करके तथा प्रत्यक्ष निष्कर्ष निकालकर आसानी से सीख सकते हैं। जिस विषय को हम पढ़कर कठिनाई से सीखते है उसे यदि हम प्रयोग करके सीखते है तो वह एक तरफ तो आसान हो जाता है और दूसरी तरफ हमारे मस्तिष्क में उस विषय का स्थायित्व हो जाता है।   

वर्तमान समय में देखा जाय तो यह विज्ञान प्रधान युग है। आज के समय में सूचनाओं का संजाल फैला है इसका कारण यह है कि वर्तमान समय में हमारा सूचना प्रौद्योगिकी बहुत उफान पर है। इस सूचना प्रौद्योगिकी ने जहां पर अन्य क्षेत्रों में मानव जीवन को आसान बनाया है वहीं पर शिक्षा के क्षेत्र में भी क्रांतिकारी कार्य किए हैं। सूचना प्रौद्योगिकी के साथ साथ आज देखा जाय तो विभिन्न प्रकार की सुख सुविधाओं से लैस हमारे पास विघालय और विश्वविद्यालय हो गए है। आज के वैज्ञानिक युग में एक सामान्य मनुष्य को एक वैज्ञानिक मानव अर्थात् तर्कशील बनने में समय नहीं लगता है। आजकल के समय में शिक्षा का भी उद्देश्य बच्चों को तर्कशील बनाना उनमें वैज्ञानिक चेतना का विकास करना हो गया है ऐसे में अब शिक्षा विश्वास पर न आधारित होकर निष्कर्ष पर आधारित होने लगी है। आज का बच्चा जब किसी विषय पर ज्ञान प्राप्त करता है तो उसे विज्ञान पर कसकर उसका निष्कर्ष भी प्राप्त करना चाहता है यदि वह प्रयोग खरा नहीं उतरता है तो वह उसे नकार देता है न कि उस पर विश्वास करने लगता है। यह सबकुछ संभव हुआ है तो शिक्षा की इस डिजिटल प्रणाली के कारण।
     इस वैज्ञानिक युग में जहां पर विज्ञान का प्रयोग अन्य क्षेत्रों में किया जा रहा है वहीं पर शिक्षा के क्षेत्र में भी विज्ञान का कुशलता से प्रयोग होने लगा है। कंप्यूटर, एंड्रॉयड मोबाइल, कैलकुलेटर, पेजर आदि यंत्रों के आविष्कार ने शिक्षा के क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव किए है। इन साधनों की सहज उपलब्धता ने शिक्षा प्रणाली को आसान व वैज्ञानिक बना दिया है। आज जब बालक पैदा होता है तभी से उसके वातावरण में ही इन सभी चीजों से उसका स्वाभाविक नाता बनने लगता है। ऐसे में इन सब विषयों के प्रति उसकी रुचि बढ़ने लगती है। आज के समय मे कम्प्यूटर के आविष्कार ने शिक्षा मे आमूलचूल परिवर्तन ला दिया है। कम्प्यूटर एक ऐसा साधन है जिसके माध्यम से हम विभिन्न विषयों का आसानी से अध्ययन अध्यापन कर सकते है। बालक को जिन चीजों को सीखने मे वर्षों जाया करना पड़ता था आज वह उसे डिजिटल प्रणाली के माध्यम से सहजता से और कम समय में सीख सकता है। डिजिटल तकनीक में इंटेरनेट और यू-ट्यूब की खोज ने चार चांद लगा दिए है। आज यदि हम किसी भी विषय वस्तु से संबंधित अध्ययन करना चाहे तो वह हमें टेक्स्ट और वीडियो दोनों रुप मे मिल सकता. है। जिस विषय को  हम पढ़कर नहीं सीख पाते उसका हम इंटेरनेट पर विडियो देखकर आसानी से सीख सकते है। सचमुच इस तकनीक ने मानव को  होमोसेंपियस अर्थात् वैज्ञानिक मानव बनाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है।

इस अध्ययन अध्यापन की सामग्री ने मनुष्य को तो वैज्ञानिक मानव बना दिया पर वह एक तरीके से रोबोटिक मानव बन गया है। कहते है कि जब मनुष्य ज्यादा बौद्धिक हो जाता है तो वह बुद्धिप्रधान हो जाता है उसका ह्रदय पक्ष छिजने लगता है अर्थात उसमें प्रेम, करुणा और श्रद्धा के भाव कम होने लगते है। इस डिजिटल सामग्री से उसके चेतना को तो विस्तार मिला पर किताबों के प्रति जो एक लगाव, एक प्रकार की भक्तिभावना, एक प्रकार की श्रद्धा भावना होती है उसका ह्रास हुआ है। दूसरी तरफ यह अध्ययन सामग्री सूचना परक है जिसमें हमें विषय वस्तु की मात्र सूचना दे दी जाती है उसके संबंध में व्यापक अध्ययन सामग्री हमें कई साइटों पर खोजनी पड़ती है जबकि पुस्तक में यह एक ही स्थान पर मिल जाती है।

 ऐसे में हम कह सकते हैं का हमें परंपरागत अध्ययन सामग्री और डिजिटल अध्ययन सामग्री दोंनो में तालमेल विठाकर तथा मध्यम मार्ग अपनाकर अध्ययन अध्यापन करना होगा। दोंनों को एकदूसरे का विरोधी न मानकर बल्कि पूरक मानकर हमें इस प्रणाली को अपनाना होगा।
       
   

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