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बुधवार, 19 अगस्त 2020

47 करोड़ लोग प्रतिदिन 20 रुपये के खर्चे पर जीने को मजबूर ,प्रधानमंत्री पर प्रतिदिन 2 करोड़ का खर्चा, पढ़ें "सौरभ वीपी वर्मा" का निष्पक्ष पन्ना

विश्वपति वर्मा-

ये मुर्दा विपक्ष और गोदी मीडिया दोनों को बहिष्कार कर देना चाहिए, ये दोनों अपने निजी फायदे के लिए देश मे जातिवाद, भेदभाव ,हिंसा ,लूट ,डकैती आदि खबरों को अपने हिसाब से उछाल कर उसपर राजनीतिक गलियारों में तूफान मचा सकते हैं ,यह दोगली सपा ,बसपा ,और कांग्रेस की सरकारों का देन है कि आज देश और देश के सबसे बड़े राज्य में जातिवाद के नाम पर राजनीतिक घटनाक्रम की खबरें संज्ञान में आने लगी हैं, यही पार्टियों का देन है कि देश प्रदेश में गरीबी ,बेरोजगारी और भ्रष्टाचार का आंकड़ा मजबूत हुआ है ।
                लेखक-विश्वपति वर्मा (सौरभ)

उधर गरीबी ,बेरोजगारी और भ्रष्टाचार आदि बिंदुओं पर तत्कालीन सरकार को घेरने के लिए भाजपा अपना चुनावी स्क्रिप्ट लिख कर जनता से यह बताने में लग गई गई कि अब उसके सारे दुःख दर्द का दवा वही लेकर आएगी यह अलग विषय है कि 2014 में वेंटिलेटर से उठने वाली भारतीय जनता पार्टी सत्ता में आने के बाद झूठ और लूट के गेम को ही खेलने में भलाई समझने लगी, 2014 लोकसभा चुनाव में भाजपा द्वारा केंद्रीय कांग्रेस सरकार की योजनाओं और देश की खराब वास्तविक स्थिति का हवाला देकर अपने आप को सर्वश्रेष्ठ साबित करने के लिए  95 फीसदी इलेक्ट्रॉनिक  मीडिया जगत को ही खरीद लिया गया जिसका परिणाम रहा कि चुनाव के नतीजों में भाजपा के नेताओं  में जबरदस्त खुशियां तो देखने को मिली लेकिन 6 साल बाद भी जनता के होठों पर मुस्कान नही दिखाई दिया।

भले ही आज देश मे 22 करोड़ लोग भूखे पेट सोने को मजबूर हैं ,46 फीसदी महिलाओं में खून की कमी है ,अस्पतालों में बुनियादी सुविधाओं के न होने से 24 घंटे में60 से अधिक गर्भवती महिलाओं की मौत हो जाती है ,परिषदीय स्कूलों में शैक्षणिक व्यवस्था कमजोर होने के कारण यहाँ पढ़ने वाले 80 फीसदी बच्चों को सामाजिक और सांस्कृतिक ज्ञान नही हो पाता लेकिन मीडिया के लिए यह कभी न तो खबर बनता है और न ही सरकार के लिए मुद्दा।

भारत के गांवों की बदहाली देखने के बाद गांधी जी ने भारत में ग्राम स्वराज के सपने को देखा था लेकिन 1942 में लिखे अपने एक आलेख के 78 वर्ष बीत जाने के बाद भी देश के गांवों में स्वतंत्रता का कोई  ऐतिहासिक रूप नही दिखाई दिया, हमारे देश को जिन महापुरुषों और क्रांतिकारियों ने देश की रखवाली करने के लिए सौंपा था वह केवल और केवल सत्ता का हस्तांतरण करने में ही 72 साल बिता दिए . इतने दिनों में भारत मे कृषि से लेकर मशीनरियों और टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में खूब वृद्धि हुआ लेकिन यह सब बनाने में देश के जिम्म्मेदारों ने आवश्यकता से कहीं ज्यादा धन खर्च किया या यह कहें कि धन का बंदरबांट किया गया उसके बाद भी आज मानव जाति कृषि क्षेत्र से लेकर कोयला खदानों में हांड -तोड़ मेहनत करके पारिश्रमिक जुटाने में मजबूर है 

 देश मे गांधी जी के सपने को साकार करने के लिए पहली बार 2 अक्टूबर 1959 को पंचायती राज व्यवस्था की नींव रखी गई उसके बाद 24 अप्रैल 1993 को भारत में पंचायती राज के (73वां संशोधन) अधिनियम, 1992 के माध्यम से पंचायती राज संस्थाओं को संवैधानिक दर्जा हासिल हुआ और इस तरह महात्मा गांधी के ग्राम स्वराज के स्वप्न को वास्तविकता में बदलने की दिशा में कदम बढ़ाया गया था लेकिन आज जब भारत के गांवों का रिपोर्ट कार्ड तैयार किया जाता है तो पंचायती राज व्यवस्था के आड़ में ग्राम पंचायत में भ्रष्टाचार के अलावा कुछ और दिखाई नही देता।

निश्चित तौर पर भारत के गांव में ही भारत की आत्मा बसती है जहां से डॉक्टर ,इंजीनियर, वैज्ञानिक पैदा होते ,जहां पर सांसद विधायक ,आईएएस अफसर पैदा होते हैं, जहां पर कारपोरेट घरानों में काम करने के लिए मजदूर पैदा होते हैं और जहां पर इन सब का पेट भरने के लिए किसानों द्वारा अनाज पैदा किया जाता है लेकिन दुर्भाग्य है कि आज आजादी के 7 दशक बाद भी उस गांव की स्थिति बदसे बदतर है।

एक तरफ हम अंतरिक्ष में छलांग लगा रहे हैं दूसरी तरफ हमारे देश के गांवों में बुनियादी सुविधाओं का अभाव है आखिर इस बात की चिंता इस देश में क्यों नही की जाती ,एक तरफ राजनीतिक पार्टियों और सरकारी दफ्तरों के लिए बड़े बड़े बिल्डिंग खड़े किए जा रहे हैं दूसरी तरफ घास फूस की झोपड़ी में रहने वालों की एक बड़ी तादात आज भी है वहीं देश मे 11 लाख लोग ऐसे हैं जिनके पास अपना झोपड़ी भी नही है .देश के नेता अभिनेता एयरकंडीशनर कमरों में बैठ कर मिनरल वाटर का मजा ले रहे हैं लेकिन देश में 47 करोड़ 41 लाख लोग दूषित पानी पीने के लिए मजबूर हैं । 

एक तरफ देश के प्रधानमंत्री को जहां वीवीआइपी सुविधाओं का लाभ मिल रहा है वहीं केवल उनकी जान बचाने के लिए प्रतिदिन 1 करोड़ 62 लाख रुपया सुरक्षा पर खर्च किया जाता है लेकिन इसी देश के 47 करोड़ से ज्यादा लोग प्रतिदिन 20 रुपये से कम पर जीवन यापन करने के लिए मजबूर हैं .देश की गलत नीतियों ने सांसदों और विधायकों के  ऐशो आराम के लिए कई सारे मद बनाये गए लेकिन इस देश की भ्रष्ट और खोखली व्यवस्था ने सामाजिक कार्यकर्ता, पत्रकार ,लेखक  और सामाजिक चिंतको के लिए कोई ऐसी व्यवस्था नही बनाई गई जिससे वें देश के विकास में कर रहे अपने योगदान को आगे बढ़ा सकें.

ऐसे ही देश मे अनगिनत संख्या है जहां सत्ताधारियों की निरंकुशता के चलते देश के नागरिक मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं .पंचायती राज में गांव के लोगों की अपनी सरकार बनाई गई जहां इस बात का स्वतंत्रता दिया गया कि गांव के लोग ग्राम पंचायत के माध्यम से अपनी समस्याओं का कार्ययोजना तैयार कर वहां पानी निकासी ,सड़क ,साफ सफाई ,पेय जल ,लाइट की व्यवस्था ,चक मार्ग ,तालाब ,खेत की सिचांई के बंदोबस्त ,स्वास्थ्य सुबिधा की प्राथमिक व्यवस्था के साथ वंचित वर्गो की आवश्यकता के साथ सामाजिक सुरक्षा को प्रमुखता से सम्मिलित करते हुए  आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए काम करने की  प्राथमिकता दी गई लेकिन वर्ष 2000 के बाद ग्राम पंचायत के धन को सुनियोजित तरीके से लूटने का सिस्टम इस देश के जिम्म्मेदारों की मिलीभगत से तैयार कर दिया गया जिसका नतीजा है कि वंचित वर्ग अंतिम पंक्ति में रहने के लिए आज भी मजबूर है।

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