अमित कुमार के फेसबुक से ....
बाबा साहब डाक्टर भीम राव अम्बेडकर की आज जयंती है। इसको देश भर में मनाया जा रहा है।
सबसे पहले बधाई उस तबके को जिन्होंने बाबा साहब को गली से लेकर गलियारे तक में स्थापित कर दिया। बधाई उस शोषित पीडित वर्ग को, जिसने डाक्टर अम्बेडकर को गली मोहल्ले में स्थापित करने लिए, लाठी और गोली खाया है। आज भी अम्बेडकर को लेकर एक बड़े तबके में घृणा की भावना है। इस देश में सबसे अधिक बार किसी की मूर्ति तोड़ा गया होगा और फिर उसे बनाया गया होगा, तो वो निश्चित ही डाक्टर अम्बेडकर होंगे।
जब हम दलित शोषित वर्ग कहते है। तो हमें समझने की जरुरत है ये दोनों शब्द अलग अलग है। दलित उस प्रक्रिया का नाम है जो विभिन्न कारणों से एक वर्ग विशेष को दबा कर रखने, उन्हें दोयम दर्जे के नागरिक में तब्दील कर देने में यकीन रखता है। पर शोषित वर्ग वो वर्ग होता है जिसके मेहनत और उत्पादन पर ताकतवर लोगों कब्जा जमा लेते है। जो एक सतत प्रक्रिया के तहत अनवर जारी रहता है।
डाक्टर अम्बेडकर जिस समाज में पैदा होते है वो एक ऎसा समाज था। जहां शोषण के स्थायी नियम बनाये गये थे। जिसे दर्शन के शक्ल में लोगों की चेतना में गहरे धंसा दिया गया था। डाक्टर साहब उस दर्शन के साथ संवाद स्थापित करते है। तो पाते है कि ऋग्वेद के नौवें अध्याय तक न ही जाति है और न ही ईश्वर। अधिकांश वेदान्त दर्शन तक जाति शब्द के लिए कुछ खाश उपलब्ध नहीं है। परन्तु जब वो मनुस्मृति के साथ संवाद करते है तो पाते है। कि वहाँ बड़ी ही चतुराई से जाति के दर्शन को गढ़ा गया है। इसलिए वो समझते है कि हिन्दू धर्म के समाजिक सुधार के आन्दोलन के जरिये वो अस्पृश्यता को कोढ़ को खत्म कर देंगे। इसलिए अपने पहले संगठन बहिष्कृत हितकारिणी सभा के उद्भव के समय से ही उन्होंने दूसरी जातियों और समुदायों के तरक्कीपसंद लोगों को इस तरह से इसमें जोड़ा था।
परन्तु जातिय श्रेष्ठता बोध और उस आधारित शोषण का स्थायी नियम, जो हजारों साल के धर्म दर्शन का परिणाम है। वो कब किसी समाजिक सुधारवादी आंदोलन से खत्म हुआ है। क्योंकि जिन सवर्ण हिंदुओं के जातियों में निहित स्वार्थ हैं और वे कभी भी अपने धर्मशास्त्रों को नष्ट करने को तैयार नहीं होंगे. इसलिए जाति के शिकार लोगों के लिए इकलौता विकल्प यही है कि वे हिंदू धर्म को छोड़ कर उससे बाहर निकल आएं। अतः बाबा साहब इस नतीजे पर पहुँचते है कि हिन्दू धर्म में पैदा होना हमारे बस में नहीं था, परन्तु मैं एक हिन्दू के रुप में नहीं मर सकता। वो ऎसा इसलिए सोच रहे थे कि यदि सारा दलित वर्ग हिन्दू धर्म को छोड़ दे, तो वर्ण व्यवस्था अपने आप ही ध्वस्त हो जायेगी।
जब वो बौद्ध धर्म स्वीकार करते है। उसके साथ ही भारी संख्या में लोग बौद्ध धर्म ग्रहण करने लगते है। वहाँ पर अनुभव और इतिहास ये बताता है कि इस वंचित तबके के लोगों को समानता तक भी हासिल न हो सका। उन्हें वहाँ नवबौद्ध कहा गया। जो बौद्ध धर्म लोगों को बुद्ध बनने का हामी था वो अब बोधिसत्व से काम चला रहा है। छोटी नौका हीनयान संप्रदाय और बड़ी नौका महायान संप्रदाय में विभक्त कर वहीं सारे ब्राह्मणवादी संस्कार धारण कर लिया गया है। आज तमाम दलित वर्ग में काली, दुर्गा, राम और बुद्ध के साथ बाबा साहेब अम्बेडकर की मूर्ति स्थापित किया जा चुका है।
दरअसल जाति पैदा ही धर्म की कोख में होता है। अतः उसका इलाज भी किसी धर्म में जाकर सम्भव ही नहीं है। इसलिए पेरियार कहते है।
‘‘यद्यपि मैं पूरी तरह जाति को खत्म करने को समर्पित था; लेकिन जहां तक इस देश का संबंध है, उसका एकमात्र निहितार्थ था कि मैं ईश्वर, धर्म, शास्त्रों तथा ब्राह्मणवाद के खात्मे के लिए आन्दोलन करूं। जाति का समूल नाश तभी संभव है, जब इन चारों का नाश हो। यदि इनमें से कोई एक भी बचता है, तब जाति का आमूल उच्छेद असंभव होगा….। क्योंकि, जाति की इमारत इन्हीं चारों पर टिकी है….केवल आदमी को गुलाम और मूर्ख बनाने के बाद ही, जाति को समाज पर थोपा जा सकता था। (लोगों में) ज्ञान और स्वाधीनता के प्रति जागरूकता पैदा किए बिना जाति का कोई भी खात्मा नहीं कर सकता। ईश्वर, धर्म, शास्त्र और ब्राह्मण लोगों में गुलामी और अज्ञानता की वृद्धि के लिए बनाए गए हैं। वे जाति व्यवस्था को मजबूती प्रदान करते हैं।’
जाति वास्तव में आर्थिक शोषण का नियम है। यह श्रम के पैदावार पर कब्जा जमाने का नियम है। ये मेहनत के सारे पेशे के साथ में समाज के तमाम जाति समूहों को जन्मजात बांध देने का नियम है। इसलिए वंचित तबके को दलित शोषित वर्ग कहना ज्यादा, स्पष्ट है। डाक्टर अम्बेडकर कहते है कि हर व्यक्ति के वोट का एक ही मूल्य है परन्तु ये जब तक पूर्ण न हो जब तक हर व्यक्ति को एक ही मूल्य में न बदल दिया जाय। स्पष्ट है कोई भी समाजिक न्याय तब तक स्थापित नहीं किया जा सकता जब तक आर्थिक न्याय स्थापित न हो। इसलिए मुझे लगता है कि समाजिक न्याय आन्दोलन को आर्थिक न्याय में बदलना ही होगा। क्योंकि ब्राह्मण दलित के घर और दलित ब्राह्मण के घर पानी पीने लगे, तब भी शोषण की व्यवस्था नहीं बदलने वाली।