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मंगलवार, 31 दिसंबर 2019

देश के नागरिकों के प्रति अपने कर्तव्यों का निर्वहन करे सरकार ,मीडिया और न्यायपालिका की भी जिम्मेदारी

विश्वपति वर्मा
   संपादक

आज 2019 का अंतिम दिन है ,वर्ष 2019 में समाज से जुड़ी तमाम विसंगतियों पर आवाज उठाई गई ,समाचार के माध्यम से शासन -प्रशासन को कई दर्जन मामलों से अवगत कराया गया कुछ का समाधान हुआ कुछ ठंडे बस्ते में पड़ा है। 

राज्य और केंद्र सरकार के पास 3 दर्जन से अधिक सुझाव और शिकायत भी भेजी गई हर बार CMO और PMO से धन्यवाद लिखा हुआ एक पन्ना प्राप्त हुआ जिसको सहेजे हुए पूरा वर्ष बीतने के अंतिम धुरी पर है जहां पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करते हुए 365 दिन 6 घंटे 48 मिनट और 45.51 सेकेंड का समय पूरा करने वाला है।

किसी देश की व्यवस्थापिका और कार्यपालिका की नैतिक जिम्मेदारी है कि वह देश के नागरिकों की चिंता को समझे और उसकी समस्या के समाधान के लिए बेहतर प्रयास करे ,मीडिया और न्यायपालिका भी अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए  यह  सुनिश्चित करे कि नागरिकों के पक्ष को सुनने के बाद उसे न्याय दिलाने के लिए बाध्य हो लेकिन देखने में आया है कि देश का 90 फीसदी मशीनिरी "सिस्टम " में चल रहा है जो राजनीतिक दलों और सत्ताधारियों के इशारे पर शोषित वंचित वर्ग के लोगों का खून चूसने में लगा है

सरकार की योजनाएं अंतिम व्यक्ति के पास नही पहुंच पा रही हैं ,प्रशासन की कार्यशैली पर लगातार सवाल उठ रहा है ,मीडिया का अस्तित्व सवालिया निशाने पर है न्यायपालिका में लाखों मामले लंबित हैं उसके बाद भी हम सशक्त भारत बनाने की बात करते नजर आ रहे हैं।

बेहतर होता कि देश मे गरीबी ,बेरोजगारी और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दे पर भी कानून बनाया जाता जहां यह सुनिश्चित हो सके कि गरीब के सिर पर छत पहुंचाने के लिए उसका किसी प्रकार का शोषण नही होगा ,बेरोजगारी के प्रति ऐसी व्यवस्था बनाई जाती जहां यह तय हो सके कि देश में 18 से 25 साल के ऊपर के व्यक्ति को प्रशिक्षण देकर देश विदेश के नामी गिरामी कंपनियों और संस्थाओं में भर्ती कराया जाता , कर्मचारियों के कमी से जूझ रहे देश के प्रत्येक विद्यालय ,चिकित्सालय , ट्रैफिक व्यवस्था,तहसील, प्रखंड ,बिजली, समेत दर्जनों विभागों में 10 हजार रुपया महीना मानदेय पर भर्ती कर लोगों को रोजगार दिया जाता और बदहाली झेल रहे तमाम विभागों के द्वारा लेट लतीफे कार्यों पर विराम लगाया जाता , उसके बाद के बचे हुए बेरोजगारों को भारतीय मतदाता पेंशन के रूप में कमसेकम 5 हजार रुपया महीना भत्ता देने का प्रावधान तैयार किया जाता इसके अलावां भ्रष्टाचार के दलदल में डूब रहे भारत मे ऐसी व्यवस्था तैयार की जाए जहां पर घूस और घोटाला के आरोपों पर त्वरित न्याय हो और लोगों को बेहतर सरकार और समाज की बात समझ मे आये । 

लेकिन देश मे इस प्रकार से कोई कानून प्रभावी ढंग से लागू नही हो पा रहे हैं इसके पीछे का कारण भी समझ मे नही आ रहा है ,ऐसा करने से देश को आर्थिक समस्याओं से जूझना पड़ेगा इस तरह की कोई बात भी सामने नही आती क्योंकि जिस देश मे  1 से अधिक बार जीतने वाले सांसदों विधायकों को जितनी बार जीतते हैं पेंशन की संख्या उतनी ही बढ़ती जाती है तो उस देश मे आर्थिक समस्याओं का होना कोई प्रश्न खड़ा नही होता ।इससे  एक बात साफ है कि ऐसा करने के लिए देश की सरकारों के पास नीति और नियति नही है।

फिलहाल आने वाले 2020 में ऐसे ही धारदार लेखनी के माध्यम से शासन और प्रशासन के दबावों से मुक्त होकर  समाज के अंतिम पंक्ति में खड़े व्यक्ति को अग्रिम पंक्ति में लाने का शानदार प्रयास किये जाने का सिलसिला चलता रहेगा।

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