बक्सर विधानसभा चुनाव 2025 : समीकरण पुराने, मुकाबला नया
सौरभ वीपी वर्मा ,समीक्षात्मक रिपोर्ट – तहकीकात समाचार,
बिहार की बक्सर विधानसभा सीट एक बार फिर सुर्खियों में है। यह सीट सिर्फ राजनीतिक नहीं, बल्कि सामाजिक समीकरणों की भी गहरी बुनावट रखती है। यहां जातीय संतुलन हर बार चुनावी हवा का रुख तय करता है। ब्राह्मण, भूमिहार और राजपूत मतदाता इस क्षेत्र की मुख्य धुरी हैं। कांग्रेस ने पिछले दो चुनावों में इन्हीं सवर्ण वर्गों को साधकर जीत दर्ज की थी। वहीं भाजपा, जिसका पारंपरिक वोट बैंक कभी यहां अडिग माना जाता था, अब बंटा हुआ नज़र आ रहा है।
बक्सर में मुस्लिम और दलित वोटर्स की भी अच्छी-खासी मौजूदगी है। यह वर्ग प्रायः विपक्षी दलों खासकर कांग्रेस और महागठबंधन की ओर झुकता रहा है। यही कारण है कि कांग्रेस के संजय कुमार तिवारी लगातार इस सीट पर अपनी पकड़ बनाए हुए हैं। 2020 के चुनाव में उन्होंने भाजपा के परशुराम चौबे को 3,892 मतों के अंतर से हराकर 36.38% वोट शेयर के साथ जीत दर्ज की थी।
भाजपा ने अपने नये उम्मीदवार आनंद मिश्रा पर भरोसा जताया है।कांग्रेस ने एक बार फिर अपने मौजूदा विधायक संजय कुमार तिवारी को टिकट दिया है।वहीं, जन सुराज पार्टी (JSP) से तथागत हर्षवर्धन मैदान में हैं, जो प्रशांत किशोर के संगठन से जुड़े हैं।
राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर, जो खुद बक्सर के निवासी हैं, पहली बार अपनी पार्टी के प्रत्याशी के रूप में यहां के समीकरण बदलने की कोशिश कर रहे हैं। जन सुराज पार्टी का यहां उतरना मुकाबले को त्रिकोणीय बना रहा है और परंपरागत वोट बैंक में सेंध लगाने की संभावना पैदा कर रहा है।
1951 में स्थापित बक्सर विधानसभा सीट ने अब तक 17 चुनाव देखे हैं।
इनमें 10 बार कांग्रेस ने जीत दर्ज की है। भाजपा को तीन बार, वाम दल (सीपीएम) को दो बार, संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी और बसपा को एक-एक बार जीत मिली है। यह आंकड़ा साफ बताता है कि बक्सर कांग्रेस का ऐतिहासिक गढ़ रहा है।
फिर भी, मौजूदा हालात में हवा पूरी तरह स्थिर नहीं कही जा सकती। जन सुराज की एंट्री से कांग्रेस का वोट बैंक बिखरने का खतरा है, वहीं भाजपा अपने सवर्ण वोटरों को एकजुट करने की पुरजोर कोशिश में है।
यहां यादव और ब्राह्मण मतदाता निर्णायक माने जाते हैं। यादवों की झुकाव महागठबंधन की ओर है, जबकि ब्राह्मण मतदाता भाजपा और कांग्रेस के बीच बंटे हैं। भूमिहार और राजपूत समुदाय की भूमिका इस बार निर्णायक होगी, जो उम्मीदवार की साख और स्थानीय समीकरणों पर निर्भर करेगी।
बक्सर के ग्रामीण इलाकों में अभी भी कांग्रेस के पुराने समर्थकों का प्रभाव देखा जा सकता है, लेकिन शहरी हिस्सों में भाजपा की पैठ बनी हुई है। जन सुराज का प्रचार सीमित है, परंतु प्रशांत किशोर का स्थानीय जुड़ाव पार्टी को शुरुआती बढ़त दे रहा है।
कुल मिलाकर बक्सर का चुनाव इस बार सिर्फ दलों की टक्कर नहीं, बल्कि वोट बैंक बनाम जनभावना की परीक्षा है। कांग्रेस अपने परंपरागत गढ़ को बचाने की जद्दोजहद में है, भाजपा इसे फिर से अपने पाले में लाने को आतुर है और जन सुराज अपनी पहली सियासी परीक्षा में उम्मीद की किरण तलाश रही है।
अगर जातीय समीकरण वही रहे जो पिछले चुनाव में थे, तो कांग्रेस की राह अपेक्षाकृत आसान दिखती है। लेकिन अगर युवा और सवर्ण मतदाता भाजपा या जन सुराज की ओर झुकते हैं, तो इस बार बक्सर का परिणाम चौंका भी सकता है।