अमरौली शुमाली सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र – 5 करोड़ के अस्पताल में सुविधाओं का टोटा, जिम्मेदार कौन?

अमरौली शुमाली सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र – 5 करोड़ के अस्पताल में सुविधाओं का टोटा, जिम्मेदार कौन?

सौरभ वीपी वर्मा
तहकीकात समाचार

बस्ती जनपद के अमरौली शुमाली सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र की हालत देखकर कोई भी यह सवाल पूछने पर मजबूर हो जाएगा कि आखिर 5 करोड़ रुपये की लागत से बने इस विशाल अस्पताल में मरीजों को मूलभूत सुविधाएं क्यों नहीं मिल रही हैं।
आधुनिक भवन, करोड़ों की मशीनें, और कागजों में उपलब्ध 60 से अधिक प्रकार की जांच  सब कुछ मौजूद है। लेकिन हकीकत यह है कि अस्पताल में अधिकांश जांचें या तो हो ही नहीं रही हैं या फिर मशीनें लंबे समय से खराब पड़ी हैं। मरीजों को मजबूरन निजी अस्पतालों या लैब का रुख करना पड़ रहा है, जहां वे मोटी रकम चुकाकर जांच करवाने को विवश हैं।

करीब 5 करोड़ रुपये की लागत से बना यह स्वास्थ्य केंद्र एक समय क्षेत्र के लोगों की उम्मीदों का केंद्र था। यहां लाखों रुपये खर्च कर 60 से ज्यादा जांचों के लिए अत्याधुनिक मशीनें लगाई गईं। परंतु आज ये मशीनें या तो धूल फांक रही हैं या बंद पड़ी हैं। स्टाफ की कमी, तकनीशियन की अनुपलब्धता और रखरखाव में लापरवाही की वजह से सरकारी संसाधन पूरी तरह से ठप हैं।

विडंबना यह है कि बड़े सरकारी अस्पताल को दरकिनार कर छोटे-छोटे किराए के मकानों में चल रहे निजी अस्पताल और पैथोलॉजी सेंटर फल-फूल रहे हैं। जहां सरकारी केंद्र में मुफ्त जांच होनी चाहिए, वहां मरीज को या तो रेफर कर दिया जाता है या कह दिया जाता है कि मशीन खराब है। इसका सीधा फायदा निजी संस्थानों को हो रहा है।

स्थानीय लोगों का आरोप है कि स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी और संबंधित तकनीकी कर्मचारी जानबूझकर इस लापरवाही को नजरअंदाज कर रहे हैं। करोड़ों की मशीनों का रखरखाव करने के लिए बजट भी आता है, लेकिन उसका सदुपयोग नहीं हो रहा। नतीजतन, जनता को मुफ्त सुविधा के बजाय जेब ढीली करनी पड़ रही है।

 सही मायने में तो इस पूरे मामले की उच्चस्तरीय जांच होनी चाहिए। जो भी अधिकारी या कर्मचारी इस बदइंतजामी के लिए जिम्मेदार हैं, उन पर कार्रवाई होनी चाहिए। साथ ही, अस्पताल में सभी मशीनें तत्काल दुरुस्त कराकर जांच सेवाएं शुरू की जाएं।

 सवाल और भी हवा में तैर रहा है कि आखिर 5 करोड़ रुपये के अस्पताल और करोड़ों की मशीनों का सही उपयोग क्यों नहीं हो रहा? जब छोटे संसाधनों वाले निजी अस्पताल मरीजों का इलाज कर सकते हैं, तो सरकारी तंत्र ऐसा क्यों नहीं कर पा रहा?
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