सांसद, विधायक के बच्चे सरकारी स्कूल में नहीं पढ़ते , तो सरकारी स्कूल बचाने की लड़ाई क्यों ?

सांसद, विधायक, अधिकारी-कर्मचारी जब किसी के भी बच्चे सरकारी स्कूल में नहीं पढ़ते , तो सरकारी स्कूल बचाने की लड़ाई क्यों ?

समाजवादी पार्टी को प्राइमरी स्कूल बचाने  की इतनी बड़ी चिंता है तो अपनी सरकार में गरीबों के हित में 2015 में हाईकोर्ट के फैसले को लागू क्यों नही किया?

सौरभ वीपी वर्मा
संपादक-तहकीकात समाचार

जब भी कहीं कोई सरकारी प्राइमरी स्कूल बंद होता है या विलय की योजना आती है, अचानक कुछ नेता, सामाजिक कार्यकर्ता और संगठन झंडा उठाकर "स्कूल बचाओ आंदोलन" शुरू कर देते हैं। मीडिया में बयान, धरना, ज्ञापन और भाषणों की भरमार हो जाती है। पर क्या वास्तव में ये स्कूल बचाने की लड़ाई होती है? या कुछ नेताओं की राजनीति चमकाने की कवायद?
जमीनी हकीकत तो यह है कि सरकारी प्राइमरी स्कूल खुद ही मृतप्राय हो चुके हैं  भवन हैं पर छात्र नहीं, शिक्षक हैं पर पढ़ाई नहीं, नामांकन हैं पर उपस्थिति नहीं।

गांवों में बने प्राइमरी स्कूलों में तीन शिक्षक हैं, पांच बच्चे, । कई स्कूलों में बच्चे सिर्फ मिड-डे मील और छात्रवृत्ति के लिए आते हैं , किताबें समय पर नहीं मिलतीं, और शिक्षण सामग्री नाम मात्र की होती है , शिक्षकों की तैनाती फॉर्म भरवाने, सर्वे कराने और जनगणना जैसे कार्यों में ज़्यादा होती है, पढ़ाने में कम ।

और सबसे बड़ी विडंबना  वही शिक्षक जो सरकारी स्कूल में तैनात है, अपने बच्चे को प्राइवेट स्कूल भेजता है। जब शिक्षक को खुद अपने ही स्कूल पर भरोसा नहीं है, तो अभिभावक कैसे भरोसा करेगा?

सांसद, विधायक, आईएएस, पुलिस अधिकारी, बैंक मैनेजर, ब्लॉक प्रमुख  किसी के भी बच्चे सरकारी स्कूल में नहीं पढ़ते , यहां तक कि ग्राम प्रधान और अध्यापक भी अपने बच्चे को प्राइमरी स्कूल में नही पढ़ाते।

जब शासन चलाने वाले, नीति बनाने वाले और स्कूल में पढ़ाने वाले ही सरकारी स्कूल पर भरोसा नहीं करते, तो फिर इस स्कूल के अस्तित्व को बचाने का नैतिक आधार क्या रह जाता है?

सच तो यह है कि यहां सरकारी स्कूल बचाने की लड़ाई नही चल रही है ,लड़ाई तो राजनीति में अपना वोट बैंक हासिल करने के लिए चल रही है अन्यथा जिस समाजवादी पार्टी द्वारा पीडीए पाठशाला की बात की जा रही उसी समाजवादी पार्टी के सरकार में जब अखिलेश यादव मुख्यमंत्री थे तब  वर्ष 2015 में इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस सुधीर अग्रवाल ने कहा था कि यदि प्राइमरी स्कूलों की व्यवस्था में सुधार नही हो रही है तो सरकार सभी सरकारी अधिकारी कर्मचारी के बच्चे को प्राइमरी स्कूल में पढ़ने के लिए अनिवार्य करे । अगर अखिलेश यादव और समाजवादी पार्टी को प्राइमरी स्कूल बचाने  की इतनी बड़ी चिंता है तो अपनी सरकार में गरीबों के हित में हाईकोर्ट के फैसले को लागू क्यों नही किया?
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