प्रशासनिक व्यवस्था से नही सुधर रही गांवों की हालात , गांवों को मिले शासन करने का दर्जा - तहक़ीकात समाचार

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बुधवार, 23 फ़रवरी 2022

प्रशासनिक व्यवस्था से नही सुधर रही गांवों की हालात , गांवों को मिले शासन करने का दर्जा

सौरभ वीपी वर्मा
महात्मा गांधी, राम मनोहर लोहिया और जय प्रकाश नारायण की मंशा थी कि गांव में शासन हो, प्रशासन नहीं।  प्रशासन तो वहां अंग्रेजों के समय एवं उससे पहले से चल रहा था। गांवों में शासन हो, इसके प्रयास 73 वें संविधान संशोधन के जरिये किए थे। पर उसके बाद भी कोई खास सुधार नहीं हुआ। पंचायतें शासन की इकाई नहीं बन पाईं, तो इसके दो कारण हैं। एक तो नेता नहीं चाहते कि पंचायतें शासन की इकाई बनें, क्योंकि वैसे में उनकी नेतागीरी हल्की पड़ जाएगी। दूसरा यह कि अधिकारी वर्ग अपने उच्च अधिकारियों के नियंत्रण में कार्य करता है, ताकि उनकी अच्छी प्रगति रिपोर्ट मिल सके, जिसके आधार पर उनकी तरक्की हो सके।

लेकिन गांव में प्रशासनिक व्यवस्था के चलते ग्राम पंचायतों को दी जाने वाली भारी भरकम बजट को हड़पने और बंदरबांट कर लेने का प्रथा लगातार चलता रहा है समग्र एवं समेकित विकास के क्षेत्र में आज भी भारत के गांव पीछे खड़े हुए हैं । एक ही योजनाओं के नाम पर सरकार द्वारा कई संस्थाओं के द्वारा धन दिया जा रहा है लेकिन सब जगह केवल बंदरबांट का खेल ही चल रहा है जिसका परिणाम है कि भारत के गांव में मूलभूत सुविधाओं की आवश्यकता की पूर्ति अभी तक नहीं हो पाई है ।

सरकार को चाहिए कि धन का दुरुपयोग रोकने के लिए ग्राम पंचायत को  शासन करने की व्यवस्था दी जाए और ग्राम पंचायत में सदन की व्यवस्था की तरह पक्ष और विपक्ष को सवाल पूछने के लिए बेहतर प्रोग्राम दिए जाएं ताकि ग्राम पंचायत के विकास की कार्ययोजना गांव के पंचायत भवन में बन सके और चिन्हित कार्यों पर धन खर्च करके गांव को तरक्की की तरफ लाया जाए ।

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