अगर लोग कोरोना से मर रहे हैं तो हर साल अनेकों बीमारियों से मरने वाले आंकड़े कहाँ गए

विश्वपति वर्मा(सौरभ)

हम प्रकृति के संसाधनों को नष्ट कर जिस तकनीकी दुनिया  की तरफ बढ़ रहे हैं वह हमारे जीवन के लिए कितना खतरा बनता जा रहा है इसका हम जीता जागता उदाहरण देखना शुरू कर दिए हैं , क्या आपको नही लगता कि जिस दौर में महज 2 से 3 फीसदी लोगों  को ऑक्सीजन की आवश्यकता पड़ने पर पूरे देश में हाहाकार मच गया जरा सोचिए इतने बड़े भूभाग पर अगर 25 फीसदी लोगों को ही एक साथ ऑक्सीजन की आवश्यकता पड़ जाए तो क्या होगा ?

निश्चित तौर पर हमे इस बात पर ध्यान देना ही चाहिए कि इतिहास के काल खंडों में यह सबसे बड़ा आपदा काल होगा कि जब इंसान मुफ्त में मिलने वाली चीज़ों को रुपया ,पैसा सोना ,चांदी , गाड़ी आदि का लाभ देकर भी उसे हासिल नही कर पायेगा और अपनी आंखों के सामने अनेकों इंसानों , जानवरों और पक्षियों को दम तोड़ते देख वह बस यही सोच सकेगा कि मेरी बारी भी आने वाली होगी। 

देश के नीति निर्माताओं को इस बात का दुख होता है कि इस देश का किसान अपनी खेतों से धुआं क्यों पैदा कर रहा है , लेकिन वीआईपी से लेकर वीवीआइपी इलाक़ों में सबसे ज्यादा कार्बनडाइऑक्साइड उनके एयरकंडीशनर से निकल रहा है इस बात की चिंता उन्होंने कभी नही की ।
हमे इस बात की चिंता भी करनी चाहिए कि यदि लोग कोरोना से मर रहे हैं तो हर साल अनेकों बीमारियों से मरने वाले आंकड़े कहाँ गए?फिलहाल मौका मिला है कोरोना के नाम पर देश दुनिया के लोगों को डरा दिया जाए क्योंकि अभी तक हमने  इंसानी जिंदगी बचाने वाली संसाधनों की व्यवस्था बहुत सीमित मात्रा में की है। 
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