राजनीतिक दलों को उम्मीदवार के आपराधिक रिकार्ड को सोशल मीडिया और अखबार में बताना होगा -सुप्रीम कोर्ट - तहक़ीकात समाचार

ब्रेकिंग न्यूज़

Post Top Ad

Responsive Ads Here

गुरुवार, 13 फ़रवरी 2020

राजनीतिक दलों को उम्मीदवार के आपराधिक रिकार्ड को सोशल मीडिया और अखबार में बताना होगा -सुप्रीम कोर्ट

राजनीति के अपराधीकरण को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को अहम फैसला सुनाया. जस्टिस आर एफ़ नरीमन और जस्टिस एस रविन्द्रभट ने चुनाव आयोग और याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय की दलीलें सुनने के बाद अपना फ़ैसला सुरक्षित रख लिया था, जिस पर आज फैसला सुनाते हुए राजनीतिक पार्टियों दिशानिर्देश जारी किए हैं. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राजनीतिक पार्टियां ऐसे उम्मीदवारों के आपराधिक मामलों की जानकारी अपनी वेबसाइटों पर अपलोड करेंगी. अगर आपराधिक पृष्ठभूमि के व्यक्ति को चुनावी टिकट देती है उसका कारण भी बताएंगी कि आखिर वो किसी बेदाग प्रत्याशी को टिकट क्यों नहीं दे पाई?

साथ ही कोर्ट ने कहा कि राजनीतिक पार्टियों को उम्मीदवार के आपराधिक रिकॉर्ड के बारे में तमाम जानकारी अपने आधिकारिक फेसबुक और ट्विटर हैंडल पर देनी होगी. वहीं, पार्टियों को इस बारे में एक स्थानीय और राष्ट्रीय अखबार में भी जानकारी देनी होगी.

इसके साथ ही ऐसे उम्मीदवार के जीतने की संभावना ही नहीं बल्कि पार्टी आपराधिक पृष्ठभूमि के व्यक्ति को टिकट देने पर उसकी योग्यता, उपलब्धियों और मेरिट की उम्मीदवार चुने जाने बाद 72 घंटे के भीतर चुनाव आयोग को देनी होगी. कोई पार्टी अगर इन दिशानिर्देशों का पालन नहीं करती है तो उसके खिलाफ चुनाव आयोग कानून के तहत कार्रवाई करेगा. 

बता दें, जस्टिस आर एफ नरीमन और जस्टिस एस रवींद्र भट की पीठ ने इसे राष्ट्रहित का मामला बताते 31 जनवरी को याचिकाकर्ताओं और चुनाव आयोग की दलीलें सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था. पीठ ने कहा था कि इस समस्या को रोकने के लिए कुछ कदम उठाने होंगे.  पीठ ने चुनाव आयोग और याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय को एक सप्ताह के भीतर के सामूहिक प्रस्ताव देने के निर्देश दिए थे. दरअसल पीठ वकील और भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय की याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें कहा गया था कि इस मामले में 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवार और उनकी राजनीतिक पार्टियां आपराधिक केसों की जानकारी वेबसाइट पर जारी करेंगी और नामांकन दाखिल करने के बाद कम से कम तीन बार इसके संबंध में अखबार और टीवी चैनलों पर देना होगा लेकिन इस संबंध में कदम नहीं उठाया गया.

इस संबंध में सरकार और चुनाव आयोग के खिलाफ अवमानना याचिका भी दाखिल की गईं थी. चुनाव आयोग की ओर से वकील विकास सिंह ने पीठ को बताया था कि अदालती आदेश का कोई असर नहीं हुआ है क्योंकि 2019 में लोकसभा चुनाव जीतने वाले 43 फीसदी नेता आपराधिक मामलों का सामना कर रहे हैं.  ऐसे में बेहतर तरीका ये है कि राजनीतिक दलों को ही कहा जाए कि वो ऐसे उम्मीदवारों को ना चुनें।

Post Bottom Ad

Responsive Ads Here

Pages