कहीं गांव जल रहा है तो कहीं शहर बस रहा है,बस लिखने लगा हूँ ऐसा.... - तहक़ीकात समाचार

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शुक्रवार, 18 अक्तूबर 2019

कहीं गांव जल रहा है तो कहीं शहर बस रहा है,बस लिखने लगा हूँ ऐसा....

विश्वपति वर्मा-

सियासत भी दांव खेल रही है बर्चस्व बचाने में
उसे जरा सा भी फिक्र नहीं है समाज को बनाने में

बस लिखने लगा हूँ ऐसा क्रांति आ जाये 
बस लिखने लगा हूँ ऐसा क्रांति आ जाये 

कहीं किसान मर रहा है ,कहीं जवान मर रहा है
कहीं गांव जल रहा है तो कहीं शहर बस रहा है।

बस लिखने लगा हूँ ऐसा क्रांति आ जाये
बस लिखने लगा हूँ ऐसा क्रांति आ जाये।

मंदिर और मस्जिद में ये देश भी उलझ गया
देश का बड़े से बड़ा घोटाला कागजों में सुलझ गया।

बस लिखने लगा हूँ ऐसा क्रांति आ जाये
बस लिखने लगा हूँ ऐसा क्रांति आ जाये।

21 करोड़ लोग भुखमरी के चपेट में हैं 
उसके बाद भी सियासत के पेट भरे हैं

बस लिखने लगा हूँ ऐसा क्रांति आ जाये 
बस लिखने लगा हूँ ऐसा क्रांति आ जाये 



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