विश्वपति वर्मा_
पांच साल पूरे होने वाले भारतीय जनता पार्टी के कार्यकाल में अब तक स्थानीय समस्या को मुद्दा मानकर जनहित के लिए किसी विशेष नियम और नीति को नही बनाया गया ,समाज के बदहाली की वही स्टोरी बार बार लिखी जा रही है और देश के नेता लोग उसी स्क्रिप्ट पर अपने भाषण से जनता को गुमराह कर रहे हैं ।देखने को मिल रहा है कि गरीब और असहाय वर्ग उसी लाइन में आज भी खड़ा है जंहा वह पांच -दस साल पहले था ,आखिर जब देश की बहुसंख्यक आबादी की स्थिति में कोई सुधार नही हो रहा है तो समस्या गिनाने की जरूरत ही नेताओं का लोकतंत्र में क्यों है?
साऊंघाट ब्लॉक के कोडरा गांव की तस्वीर
आजादी के 7 दशक बीत जाने के बाद भी किसी देश के व्यवस्था में मूलचूल सुधार न आये तो उस देश के विपक्षी लोगों पर भी बड़ा सवाल खड़ा होता है कि आखिर इन लोगों में सुनने और सहने की इतनी क्षमता क्यों नही कम हो रही है।आखिर इन लोगों की विपक्ष में रहने की भूमिका क्या है?शायद ये सभी लोग यही झोली के बटखरे हैं जिनका काम केवल तोल-मोल करना है
वर्तमान परिवेश को देखकर देश के छात्र संगठनों को देश की पूरी व्यवस्था चलाने की जिम्मेदारी अपने ऊपर लेनी चाहिए यदि यह कार्य लोकतंत्र के रास्ते न हो पाए तो सरकार को मजबूर कर उनसे सत्ता की चाभी छीन ली जानी चाहिए ,जिसमे यह तय कर दिया जाए कि सत्ताधारी अपने सांसद और विधायक को चाहे जितना भी पंवार दे लेकिन व्यवस्था चलाने की पूरी जिम्मेदारी देश भर के छात्र संगठनों को दी जानी चाहिए।
पांच साल पूरे होने वाले भारतीय जनता पार्टी के कार्यकाल में अब तक स्थानीय समस्या को मुद्दा मानकर जनहित के लिए किसी विशेष नियम और नीति को नही बनाया गया ,समाज के बदहाली की वही स्टोरी बार बार लिखी जा रही है और देश के नेता लोग उसी स्क्रिप्ट पर अपने भाषण से जनता को गुमराह कर रहे हैं ।देखने को मिल रहा है कि गरीब और असहाय वर्ग उसी लाइन में आज भी खड़ा है जंहा वह पांच -दस साल पहले था ,आखिर जब देश की बहुसंख्यक आबादी की स्थिति में कोई सुधार नही हो रहा है तो समस्या गिनाने की जरूरत ही नेताओं का लोकतंत्र में क्यों है?
साऊंघाट ब्लॉक के कोडरा गांव की तस्वीर
आजादी के 7 दशक बीत जाने के बाद भी किसी देश के व्यवस्था में मूलचूल सुधार न आये तो उस देश के विपक्षी लोगों पर भी बड़ा सवाल खड़ा होता है कि आखिर इन लोगों में सुनने और सहने की इतनी क्षमता क्यों नही कम हो रही है।आखिर इन लोगों की विपक्ष में रहने की भूमिका क्या है?शायद ये सभी लोग यही झोली के बटखरे हैं जिनका काम केवल तोल-मोल करना है
वर्तमान परिवेश को देखकर देश के छात्र संगठनों को देश की पूरी व्यवस्था चलाने की जिम्मेदारी अपने ऊपर लेनी चाहिए यदि यह कार्य लोकतंत्र के रास्ते न हो पाए तो सरकार को मजबूर कर उनसे सत्ता की चाभी छीन ली जानी चाहिए ,जिसमे यह तय कर दिया जाए कि सत्ताधारी अपने सांसद और विधायक को चाहे जितना भी पंवार दे लेकिन व्यवस्था चलाने की पूरी जिम्मेदारी देश भर के छात्र संगठनों को दी जानी चाहिए।