भ्रष्टाचार जस का तस आखिर चुनाव में लड़ाई किस बात की - तहक़ीकात समाचार

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गुरुवार, 24 जनवरी 2019

भ्रष्टाचार जस का तस आखिर चुनाव में लड़ाई किस बात की



भ्रष्टाचार  से लड़ाई के मामले में भारत शीर्ष 20 देशों में भी शामिल नहीं हो पाया है. इसे लेकर बीजेपी नेता और सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा है. उपाध्याय ने कहा है कि देश में जमीनी स्तर पर भ्रष्टाचार में कोई कमी नहीं आई है, चारों तरफ समस्याएं ही समस्याएं हैं. जिस ईज ऑफ डूइंग को लेकर बातें होती हैं, उसका आम जनता को कोई आमूलचूल लाभ नहीं होने वाला. भ्रष्टाचार कम होने पर ही आम जनता को लाभ हो सकता है. ईज ऑफ डूइंग की रैकिंग अच्छी होने से व्यापारियों को कारोबार में भले कुछ सहूलियत हो जाए, मगर ज्यादा लाभ नहीं होने वाला. क्योंकि उन्हें अपने काम के लिए पहले की तरह तमाम कामों के लिए सुविधा शुल्क देने पड़ते हैं. लिहाजा भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई से ही व्यापारियों से लेकर आम जनता को लाभ हो सकता है. बीजेपी नेता अश्निनी उपाध्याय का पढ़िए इन बिंदुओं पर पत्र.



1.घूसखोरी और कमीशनखोरी के कारण सड़कें बार-बार टूट रही हैं, सरकारी स्कूल और हॉस्पिटल बदहाल हैं, प्राइवेट स्कूल और हॉस्पिटल जनता को लूट रहे हैं, अवैध खनन और सरकारी जमीनों पर अवैध कब्ज़ा जारी है, नकली आधार कार्ड और फर्जी राशन कार्ड बन रहे हैं, बेकसूर जेल जा रहे हैं और अपराधी जमानत पर छूट रहे हैं. जमाखोरी, मिलावटखोरी, कालाबाजारी, टैक्सचोरी, मानव तस्करी तथा न्याय में देरी और अदालत के गलत फैसलों का मूल कारण भी घूसखोरी है. अलगाववाद, कट्टरवाद, नक्सलवाद, अवैध घुसपैठ और पत्थरबाजी का मूल कारण भी भ्रष्टाचार है. यदि ध्यान से देखें तो हमारी 50% समस्याओं का मूल कारण भ्रष्टाचार है लेकिन आजतक किसी भी भ्रष्टाचारी की 100% संपत्ति जब्त कर उसे आजीवन कारावास की सजा नहीं दी गयी .

2.ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल के करप्शन परसेप्शन इंडेक्स में भारत कभी भी शीर्ष 20 देशों में शामिल नहीं हो पाया . यदि पिछले 20 साल की रैंकिंग देखें तो 1998 में हम 66वें स्थान पर, 1999 में 72वें स्थान पर, 2000 में 69वें स्थान पर, 2001 और 2002 में 71वें स्थान पर, 2003 में 83वें स्थान पर, 2004 में 90वें स्थान पर, 2005 में 88वें स्थान पर, 2006 में 70वें स्थान पर, 2007 में 72वें स्थान पर, 2008 में 85वें स्थान पर, 2009 में 84वें स्थान पर, 2010 में 87वें स्थान पर, 2011 में 95वें स्थान पर, 2012 में 94वें स्थान पर, 2013 में 87वें स्थान पर, 2014 में 85वें स्थान पर, 2015 में 76वें स्थान पर, 2016 में 79वें स्थान पर और 2017 में 81वें स्थान पर थे . इससे स्पस्ट है कि जमीनी स्तर पर भ्रष्टाचार में कोई कमी नहीं आयी है .

3.ग्लोबल हंगर इंडेक्स में हम 103वें स्थान पर, साक्षरता दर में 168वें स्थान पर, वर्ल्ड हैपिनेस इंडेक्स में 133वें स्थान पर, ह्यूमन डेवलपमेंट इंडेक्स में 130वें स्थान पर, सोशल प्रोग्रेस इंडेक्स में 93वें स्थान पर, यूथ डेवलपमेंट इंडेक्स में 134वें , होमलेस इंडेक्स में 8वें, न्यूनतम वेतन में 124वें स्थान पर, क्वालिटी ऑफ़ लाइफ इंडेक्स में 43वें स्थान पर, फाइनेंसियल डेवलपमेंट इंडेक्स में 51वें स्थान पर, रूल ऑफ़ लॉ इंडेक्स में 66वें स्थान पर, एनवायरमेंट परफॉरमेंस इंडेक्स में 177वें स्थान पर, आत्महत्या के मामले में 43वें स्थान पर तथा जीडीपी पर कैपिटा में हम 139वें स्थान पर हैं. अंतराष्ट्रीय रैंकिंग में भारत की इस दयनीय स्थिति का मुख्य कारण भी भ्रष्टाचार है. रोटी कपड़ा मकान की समस्या, गरीबी भुखमरी कुपोषण की समस्या तथा वायु प्रदूषण जल प्रदूषण मृदा प्रदूषण और ध्वनि प्रदूषण की समस्या का मूल कारण भी भ्रष्टाचार है और हमारे भ्रष्टाचार-विरोधी कानून बहुत ही घटिया और कमजोर हैं .


4.हमारे पास पुलिस है, क्राइम ब्रांच है, सीबीआई है, ईडी है और इनकम टैक्स विभाग भी है फिर भी 2004-14 में 12 लाख करोड़ रुपये और पिछले 70 साल में 50 लाख करोड़ रूपये का घोटाला हो गया . देश का एक भी थाना, तहसील या जिला भ्रष्टाचार-मुक्त नहीं है और आगे भी ऐसी कोई संभावना नहीं दिखाई देती है . केंद्र और राज्य सरकार का एक भी सरकारी विभाग ऐसा नहीं है जिसके बारे में गारंटी के साथ यह कहा जा सके कि वह भ्रष्टाचार से मुक्त है और अब तो सुप्रीम के जज भी सार्वजनिक रूप से न्यायपालिका में भ्रष्टाचार स्वीकार करते है . संसद में उड़ती हुई नोटों की गड्डियां और पैसा लेकर विधान सभा में सवाल पूंछने का मामला भी सबके सामने है, अर्थात भारतीय लोकतंत्र का कोई भी स्तम्भ भ्रष्टाचार से मुक्त नहीं है .

5.हमारे भ्रष्टाचार-विरोधी कानून अमेरिका की तुलना में बहुत कमजोर हैं . 1988 में बनाया गया प्रिवेंशन ऑफ़ करप्शन एक्ट और बेनामी एक्ट तथा 2002 में बनाया गया मनी लांड्रिंग एक्ट सहित किसी भी कानून में 100% संपत्ति जब्त करने और आजीवन कारावास देने का प्रावधान नहीं है. अंग्रेजों की ओर से 1860 में बनाई गयी भारतीय दंड संहिता, 1861 में बनाया गया पुलिस एक्ट, 1872 में बनाया गया एविडेंस एक्ट, 1882 में बनाया गया प्रॉपर्टी ट्रांसफर एक्ट, 1897 में बनाया गया जनरल क्लॉज़ एक्ट तथा 1908 में बनाया गया सिविल प्रोसीजर कोड आज भी लागू है. इसलिए आपसे निवेदन है कि 25 साल से अधिक पुराने सभी कानूनों को रिव्यु करने; अपराधियों का नार्को, पॉलीग्राफ और ब्रेन मैपिंग टेस्ट अनिवार्य करने तथा घूसखोरों, जमाखोरों, मिलावटखोरों, टैक्सचोरों, मानव तस्करों, नशे के सौदागरों, हवाला कारोबारियों तथा कालाधन, बेनामी संपत्ति और आय से अधिक संपत्ति रखने वालों की 100% संपत्ति जब्त करने और उन्हें आजीवन कारावास की सजा देने के लिए संबंधित मंत्रालयों को कानून बनाने का निर्देश दें.

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