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शुक्रवार, 25 मार्च 2022

यूपी-बस्ती के इस गांव में बचा है अंग्रेजी हुकूमत की बर्बरता का दास्तां ,पढ़िए ग्राउंड रिपोर्ट

सौरभ वीपी वर्मा
बस्ती- ईस्ट इंडिया कंपनी के भारत में आने के बाद अंग्रेजी हुकूमत द्वारा भारत के ग्रामीण क्षेत्रों से पैसा कमाने के लिए कई प्रकार के इकाइयों की स्थापना किया गया था एक था नील बनाने की फैक्ट्री  । अंग्रेजों द्वारा उत्तर प्रदेश के बस्ती जनपद में स्थित अमरौली शुमाली गांव में कुवानों नदी के तट पर नील की खेती करवाई जा रही थी और यहीं पर नील फैक्ट्री की इकाई स्थापित करके अंग्रेज यहां के किसानों से नील की खेती करवाते थे उसके बाद उसे विदेश में ले जाकर अच्छे दामों में बेंचते थे।
अमरौली शुमाली गांव के पश्चिमी छोर पर कुवानों नदी के किनारे नील की इकाई की स्थापना अंग्रेजों द्वारा की गई थी जिसका कुछ अंश अभी भी जिंदा है जो देखने में काफी आकर्षण का केंद्र है । आज जहां अत्याधुनिक मशीनों का इस्तेमाल करके निर्माण कार्य में तेजी लाया जा रहा है वहीं अंग्रेज 150 साल पहले मानव शरीर का इस्तेमाल करके मजबूत एवं टिकाऊ इकाइयों की स्थापना करते थे।
नील फैक्ट्री का जो अंश बचा है वह काफी मजबूत एवं बड़ा है इसी इकाई के जरिये अंग्रेज यहां से नील का उत्पादन करते थे और यहां के किसानों से नील की खेती करवाकर उनके फसलों को औने पौने दामों में खरीद लेते थे और खुद मोटी कमाई करते थे ।

कैसे बनता था नील

नील से रंग दो प्रकार से निकाल जाता था एक हरे पौधे से और दूसरा सूखे पौधे से इस जगह पर अंग्रेज यहां के किसानों से नील की खेती करवाते थे उसके बाद कटे हुए हरे पौधों को इस हाल के आकार के नांद में दबाकर रख देते थे और ऊपर से पानी भर देते थे। बारह चौदह घंटे पानी में पड़े रहने से उसका रस पानी में उतर जाता था और पानी का रंग धानी हो जाता था।
इसके बाद पानी दूसरी नाँद में जाता था जहाँ डेढ़ दो घंटे तक लकड़ी से हिलाया और मथा जाता था मथने के बाद पानी थिराने के लिये छोड़ दिया जाता था जिससे कुछ देर में माल नीचे बैठ जाता था फिर नीचे बैठा हुआ यह नील साफ पानी में मिलाकर उबाला जाता था उबल जाने पर यह बाँस की फट्टियों के सहारे तानकर फैलाए हुए मोटे कपड़े पर ढाल दिया जाता था उसके बाद पानी रिसाव लेकर बह जाता था और नील लेई के रूप में लगा रह जाता था यह गीला नील छोटे छोटे छिद्रों से युक्त एक संदूक में, जिसमें गीला कपड़ा मढ़ा रहता था उसमें रखकर खूब दबाया जाता था जिससे मोटी तह जम जाती थी उसके बाद इसको काटकर  सूखने के लिये रख दिए जाते थे सूखने पर इन कपड़ो पर एक पपड़ी सी जम जाती  थी जिसे नील के नाम से अंग्रेज बेंचते थे ।

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