विश्वपति वर्मा(सौरभ)
छल-कपट और भेदभाव के साये में देश कई सरकारों के कार्यकाल से गुजर रहा है लेकिन जब इन सब का हवाला देकर गरीबी ,बेरोजगारी और भ्रष्टाचार से निपटने का दावा कर कोई पार्टी सत्ता में वापसी करती है और उसके द्वारा भी वही छल कपट शुरू कर दिया जाता है जो आजादी के बाद से जनता सहन करती आ रही है तो ऐसी स्थिति में जनता को खड़ा होना चाहिए लेकिन देशवासियों को किसी भी समस्या पर कोई चिंता नही होती ।
बात नई शिक्षा नीति की कर रहा हूँ जो मात्र बकवास है ...अब आप कहेंगे कि नई शिक्षा नीति में तो कई बदलाव आए हैं तो यह बकवास कैसे हो सकता है लेकिन जब नई शिक्षा नीति के एजेंडे को आप पढ़ेंगे और समझेंगे तो आपको छल कपट के अलावा और कुछ भी मिलने वाला नही है
पहली बात तो यह है कि नई शिक्षा नीति एक पॉलिसी है यानी कि सरकार का मन करेगा तो वह एजेंडे में शामिल बिंदुओं पर काम करेगी नही तो वह वैसे पड़ा रह जाएगा और जनता उसपर कोई आवाज नही उठा पाएगी क्योंकि यह कोई कानून नही है।
दूसरी बात यह है कि सरकार भले ही कह रही है कि वह नई शिक्षा नीति लागू करने के लिए देश भर के ग्राम पंचायतों से सुझाव मांग कर ही इसपर अमली जामा पहनाने का काम किया है तो वह पूरा सही नही है ,सरकार के पास विचार पहुंचा भी होगा तो कथित राष्ट्रवादी, दक्षिणपंथी हिंदुत्ववादी लोगों का सुझाव पहुंचा होगा जो सबको पता है कि आज का राष्ट्रवादी अंतिम वर्ग के लोगों के न्याय के लिए किस तरह से निष्पक्ष होता है।
उत्तर प्रदेश के योगी आदित्यनाथ ने 5,000 ( पांच हज़ार) सरकारी प्राइमरी स्कूलों को अंग्रेजी मीडियम बनाने का आदेश 2017 में जारी किया, ताकि हरेक ब्लॉक में कम-से-कम एक अधिकत 5 अंग्रेजी मीडियम स्कूल हो. लेकिन आजतक पूरे प्रदेश के एक भी स्कूल में अंग्रेजी माध्य का स्कूल सरकार की डैशबोर्ड पर परचम नही लहरा पाया और न ही लहरा पायेगा ,क्योंकि बिना संसाधन और शिक्षक के कुछ होने वाला नही है ,सच तो यह है कि सरकार जनता का नब्ज पकड़ कर जान जाती है कि उसे चाहिए क्या और वही काम योगी आदित्यनाथ ने कर दिया .क्या योगी ऊंचे वर्ग के हैं? अंग्रेजी से सम्मोहित हैं? पश्चिमी हैं? भूरे साहब हैं? जी नहीं, बल्कि वे तो भगवाधारी संन्यासी हैं. धरती से जुड़े हुए. वे जानते हैं कि उनके वोटर क्या चाहते हैं. हमारे देश के वोटर को भी चाहिए जुमला और वही जुमला योगी सरकार के बाद भारतीय जनता पार्टी के केंद्रीय सरकार लेकर पहुंच गई
नई शिक्षा नीति पर जीडीपी का 6 फीसदी धन खर्च करने की बात कही जा रही है सरकार के इस कथन के बाद राष्ट्रभक्त कूद पड़े ,उछल पड़े नाचने गाने लगे लेकिन उन्हें यह भी नही पता है कि इसके पहले का खर्च कितना था और अब कितना बढ़ गया है . इसके पहले शिक्षा पर जीडीपी का 4.43 फीसदी खर्च हो रहा था और अब 6 फीसदी खर्च करने की बात कही जा रही है जिसमे वालपुष्टाहार के बजट को भी इसी में जोड़ दिया गया है यानी कि सरकार ने शिक्षा के बजट में कुछ खास बदलाव नही किया है। जरूरी तो यह था कि मौजूदा शिक्षा व्यवस्था को दुरुस्त बनाने के लिए जीडीपी का 10 फीसदी धन खर्च करने की आवश्यकता थी जिसकी मांग लंबे अरसे से हो रही थी।
बहुत ज्यादा विस्तार से कुछ नही कहना है बस बताना यह है कि नई शिक्षा नीति केवल और केवल शैक्षणिक प्रणाली को बर्बाद करने का एक बाजारू षणयंत्र है जो आरएसएस के इशारे पर पॉलिसी तैयार कर देश की जनता को ठगने के लिए बनाया गया है। निश्चित तौर पर शिक्षा के क्षेत्र में कोई बदलाव आने वाला नही है आने वाले वर्षों में अगर कुछ बदलता दिखाई देगा तो वह स्कूलों की चहारदीवारी की पेंटिंग और शिक्षा विभाग का भौकाल खास कर परिषदीय विद्यालयों की शैक्षणिक व्यवस्था में तो बिल्कुल कोई बदलाव आने की उम्मीद नही है ।