अमित कुमार-
सत्ता का एक ही चरित्र होता है। खुद को हमेशा स्थापित रखना। फिर चाहे वो समाज के भाई-चारा को खत्मकर मनुष्य को संख्या मे तब्दील करके हो या अपने ही कार्यकर्ता की बलि लेकर।
कबीर का परिवार, न्याय के लिए दर दर भटक रहा है। कल तक जो उसके लिए अछूत थे। आज उन से भी उम्मीद कर रहा है। दरअसल जनता के पास उम्मीद के सिवाय कुछ भी नहीं होता। इसे के सहारे वो तमाम दल और झंडे के पीछे लामबंद होते रहते है। हम अनेक बार मिलते थे। वैचारिक असहमति के बावजूद, स्नेह का पक्ष कभी कमजोर न हुआ। आज के दौर में जब राजनैतिक पसंद और नापसंद, निजी कटुता का कारण बन जाता है। तब हमें भी समझने की जरुरत है कि सत्ता, चाहे वो किसी की भी हो, उसे हम सब ( जनता) से मजबूत नहीं होना चाहिए।
लोकतंत्र का सीधा मतलब जनता का शासन होता है। यहाँ तो कबीर के परिवार को न्याय के दरबदर भटकना पड़ रहा है। सिर्फ कबीर ही नहीं, देश की विभाजित जनता अक्सर थाने, कचहरी से लेकर नेताओं के दरबारों तक न्याय की उम्मीद में भटक रही है। इसलिए भी अपने लिए सरकार चुनते वक्त और उसके बाद नेताओं को इतना मजबूत न होने दे की जनता ही कमजोर हो जाये।
कबीर का परिवार, सिर्फ न्याय मांग रहा है। हम उनके इस मांग के साथ है। परन्तु याद रहे वो तब तक सम्भव नहीं है, जब तक हर अन्याय के प्रति आपके मन में आक्रोश न होगा और हर असहमति के बावजूद जनता की व्यापक एकता बनने की कोशिश न होगा। इसलिए भी हम सब को कबीर के परिवार के साथ खड़ा होने की जरुरत है। एक व्यापक एकता के बल पर जनता से बड़ी समझने वाली इस सत्ता को इस परिवार के लिए न्याय, को मजबूर करना होगा।
सत्ता का एक ही चरित्र होता है। खुद को हमेशा स्थापित रखना। फिर चाहे वो समाज के भाई-चारा को खत्मकर मनुष्य को संख्या मे तब्दील करके हो या अपने ही कार्यकर्ता की बलि लेकर।
कबीर का परिवार, न्याय के लिए दर दर भटक रहा है। कल तक जो उसके लिए अछूत थे। आज उन से भी उम्मीद कर रहा है। दरअसल जनता के पास उम्मीद के सिवाय कुछ भी नहीं होता। इसे के सहारे वो तमाम दल और झंडे के पीछे लामबंद होते रहते है। हम अनेक बार मिलते थे। वैचारिक असहमति के बावजूद, स्नेह का पक्ष कभी कमजोर न हुआ। आज के दौर में जब राजनैतिक पसंद और नापसंद, निजी कटुता का कारण बन जाता है। तब हमें भी समझने की जरुरत है कि सत्ता, चाहे वो किसी की भी हो, उसे हम सब ( जनता) से मजबूत नहीं होना चाहिए।
लोकतंत्र का सीधा मतलब जनता का शासन होता है। यहाँ तो कबीर के परिवार को न्याय के दरबदर भटकना पड़ रहा है। सिर्फ कबीर ही नहीं, देश की विभाजित जनता अक्सर थाने, कचहरी से लेकर नेताओं के दरबारों तक न्याय की उम्मीद में भटक रही है। इसलिए भी अपने लिए सरकार चुनते वक्त और उसके बाद नेताओं को इतना मजबूत न होने दे की जनता ही कमजोर हो जाये।
कबीर का परिवार, सिर्फ न्याय मांग रहा है। हम उनके इस मांग के साथ है। परन्तु याद रहे वो तब तक सम्भव नहीं है, जब तक हर अन्याय के प्रति आपके मन में आक्रोश न होगा और हर असहमति के बावजूद जनता की व्यापक एकता बनने की कोशिश न होगा। इसलिए भी हम सब को कबीर के परिवार के साथ खड़ा होने की जरुरत है। एक व्यापक एकता के बल पर जनता से बड़ी समझने वाली इस सत्ता को इस परिवार के लिए न्याय, को मजबूर करना होगा।