दशकों से चली आ रही फ़टी -पुरानी बजट व्यवस्था से सरकार को बाहर निकलने की जरूरत - तहक़ीकात समाचार

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शुक्रवार, 5 जुलाई 2019

दशकों से चली आ रही फ़टी -पुरानी बजट व्यवस्था से सरकार को बाहर निकलने की जरूरत

विश्वपति वर्मा-

अपने पूरे भाषण में वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने एक बार भी बेरोजगारी या इससे सम्बंधित शब्दों का नाम नही लिया ,पहले से ही भारत मे पढ़े लिखे लोगों को पकौड़ी बेंचने की सलाह दी जा चुकी है अब "स्किल इन इंडिया" के नाम पर विदेशी छात्रों को पढ़ने के लिए आमंत्रित किये जाने की बात की जा रही है .जब सरकार अपने ही देश के डिग्रीधारकों को रोजगार उपलब्ध नही करा पा रही है तो केवल इस आशय से विदेशी छात्रों को भारत मे आमंत्रित करना विश्वपटल पर हंसी के पात्र बनने जैसा होगा कि सरकार अपने आय का जरिया मजूबत करने के लिए यह कदम उठा रही है. बेहतर होता कि खुद प्रधानमंत्री मोदी के ही इंटरव्यू वाले बयान को ध्यान में रखकर देश भर के हर एक ग्रामपंचायत में चाय, पकौड़ी,समोसा, नमकीन, बेंचने के लिए सरकारी धन से 1 -1 दुकान का निर्माण कराने के लिए बजट पेश किया जाता इतना करने से इस बात की संभावना निश्चित होती कि देश भर में 3 लाख लोगों को रोजगार मिल ही जाता।

महिलाओं के सम्मान के नाम पर जो 5000 रुपये का ओवरड्राफ्ट और एक लाख रुपये तक का ऋण देने की बात की गई है वह बहुत पहले से चलाई जा रही है ।जरूरी काम यह होता कि महिलाओं को ऋण और ड्राफ्ट की सुबिधा न देकर उनकी आजीविका में वृद्धि करने के लिए सरकारी समितियों के माध्यम से कच्चा माल की उपलब्धता वाले क्षेत्र में छोटी -छोटी इकाइयों का निर्माण होता जंहा पर इन महिलाओं को एक निश्चित रकम का भुगतान कर इनसे एक निर्धारित समय तक श्रम का कार्य लिया जाता और वँहा से तमाम प्रकार के खाद्य पदार्थ और अन्य उपयोगी सामानों का निर्माण कर उसे मांग वाले स्थान पर निर्यात किया जाता.निश्चित तौर पर देश भर में कम से कम 10 लाख महिलाओं को रोजगार से जोड़ने का मौका मिल जाता।

 यही फ़टी पुरानी बजट व्यवस्था पिछले कई दशकों से चलाई जा रही है जिसमे हर बार गरीबों और किसानों की बात होती है लेकिन आज तक गरीब और किसान अपने बदहाल स्थितियों से बाहर नही निकल पाए बेहतर होता कि गरीबी ,बेरोजगारी के साथ किसानों की समस्या को दूर करने के लिए नए नए तरहं के प्रयोग किये जायें .उदाहरण स्वरूप उत्तर प्रदेश में हर वर्ष 150 टन मछली की जरूरत पड़ती है जिसमे प्रदेश में महज 45 टन मछली का उत्पादन हो पाता है इसके अलावां 105 टन मछली का आयात अन्य राज्यों से होता क्या इस बात पर  गंभीरता लेने की जरूरत नही है कि जब देश और प्रदेश की सरकारें  मनरेगा और जल बचाव अभियान के तहत प्रत्येक ग्राम पंचायतों में तालाब पोखरों पर लाखों करोड़ों खर्च करती हैं तब क्यों न मत्स्य पालन की समितियों द्वारा प्रत्येक ग्राम पंचायत के तालाबों में मछली  पालन के महत्व को वरीयता दिया जाए।

इसी प्रकार छोटे छोटे प्रयोगों से देश भर में 25 लाख से अधिक लोगों को रोजगार से जोड़ा जा सकता है लेकिन इसके लिए जरूरी है कि सरकारें अपनी नीति और नियति में सुधार कर बजट बनाने और योजनाओं को क्रियान्वित कराने के लिए गंभीर हो.वरना कई दशकों से देखने को मिल रहा है कि गरीब और किसान के नाम पर सरकार हजारों करोड़ रुपया पानी की तरहं बहा रही है लेकिन उसका कोई सार्थक परिणाम अभी तक नही निकल पाया है।

45 साल में पहली बार आये ऐसे भयानक बेरोजगारी की समस्या को समझते हुए यह देखना चाहिए कि अब वह वक्त आ गया है कि इन छोटे -मझले कार्यक्रमों के तहत युवाओं और बेरोगारों को जोड़ कर उन्हें रोजगार उपलब्ध करा कर देश के करदाताओं द्वारा देय टैक्स का सदुपयोग किया जाए अन्यथा देखने को मिला है कि कई दर्जन योजनाओं के नाम पर देश का एक बड़ा बजट बर्बाद कर दिया गया जिसका निम्न वर्ग को आज तक कोई फायदा नही मिला है।

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