संविधान को कमजोर कर दलितों, पिछड़ों, अल्पसंख्यकों के हितों पर कुल्हाड़ी चला रहे नेता - तहक़ीकात समाचार

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रविवार, 14 नवंबर 2021

संविधान को कमजोर कर दलितों, पिछड़ों, अल्पसंख्यकों के हितों पर कुल्हाड़ी चला रहे नेता

Rajendra Chaturvedi 

दोस्त, अंग्रेजों से माफी किसी ने नहीं मांगी। माफी तो बहादुर शाह जफर ने भी नहीं मांगी थी, जबकि उनसे कहा गया था कि माफी मांग लो तो शहंशाह बने रहोगे। 

जिस तरह से पूरे रुतबे के साथ पेशवा बाजीराव को पुणे से कानपुर विस्थापित कर दिया गया है, उसी तरह से अपनी मन पसन्द जगह चुन लो, आपको विस्थापित कर दिया जाएगा, दिल्ली से।

 लेकिन बहादुर शाह जफर ने माफी नहीं मांगी। जफर ने खुद लिखा-मुवफ्फस मुअफा न फ़र्जन्दगी, जर्जन्दगी, न मुआसार। 

दोस्त, आपको पता ही होगा कि बहादुर शाह जफर उर्दू और फ़ारसी में कविता भी लिखते थे। फ़ारसी की जो लाइन हमने ऊपर लिखी है, उसका हिंदी में भावार्थ है-माफी मांगकर शहंशाह बना रहा तो इतिहास माफ नहीं करेगा, सो माफी तो नहीं मांगूंगा।

फिर अंग्रेजों ने बहादुर शाह जफर की कितनी दुर्गति की, आपको पता ही होगा। चांदी के थाल में रखकर उनके लड़के का सिर तक उनके पास भेजा गया। मगर जफर डिगे नहीं, माफी नहीं मांगी।

सावरकर ने माफी मांगी, जबकि अंग्रेजों ने उन्हें बहादुर शाह जफर जैसा रुतबा देने का वादा नहीं किया था। वीर ने 60 रुपये महीना अंग्रेजों से पेंशन ली। उस समय 60 रुपए कलेक्टर की भी तनख्वाह नहीं थी।

दोस्त, आप कह रहे हैं कि नीति कहती है कि साम, दाम, दंड, भेद सब अपना कर दुश्मन के चंगुल से मुक्त हो हराएं। आपकी बात तो सही है। सचमुच नीति वही कहती है जो आप कह रहे हैं लेकिन माफी मांगकर मुक्त हुए सावरकर ने फिर क्या किया?

अगर उन्होंने साम, दाम, दण्ड, भेद के तहत माफी मांगी थी, तो जेल से बाहर आकर उन्हें फिर अंग्रेजों से लड़ना चाहिए था लेकिन ऐसा नहीं हुआ। सावरकर ने अंग्रेजों से पेंशन ली। और अंग्रेजों को मजबूत करने के काम में जुट गए। कैसे?

 1857 की क्रांति के बाद अंग्रेज इस बात को समझ गए थे कि अगर उन्हें भारत पर शासन करना है तो हिंदुओं और मुसलमानों के बीच फूट डालनी ही होगी। इसके लिए उन्होंने हिंदुओं में ऐसे कई लोग पैदा किए जो मुसलमानों के खिलाफ जहर उगलते थे। मुसलमानों में ऐसे कई लोग पैदा किए जो हिंदुओं के खिलाफ जहर उगलते थे। 

60 रुपए महीना की पेंशन लेकर सावरकर वैसे हिन्दू नेता बन गए, जिसका काम मुसलमानों के खिलाफ जहर उगलना था। इससे हिन्दू मुसलमानों में दूरी बढ़ी और अंग्रेज मजबूत हुए। 

आपको इस बात का पता होगा ही कि द्विराष्ट्रवाद की थियरी, जिसके कारण आगे चलकर देश का विभाजन हुआ, उसके जनक सावरकर थे, बाद में जिन्ना ने भी इसी थियरी को आगे बढ़ाया, देश बंटा।

 तो यदि आपके दिमाग में यह चल रहा है कि सावरकर ने साम, दाम, दंड, भेद की नीति पर चलकर माफी मांगी थी, तो प्लीज इस बात को दिमाग से निकाल दीजिए। 

हालांकि, आरएसएस का थिंक टैंक यही स्थापित करने की कोशिश करता है कि सावरकर ने साम, दाम, दंड, भेद की नीति पर चलकर माफी मांगी थी। लेकिन आप उनकी बातों में मत आइए।

 झूठ को सच की तरह स्थापित करने की आरएसएस के थिंकटैंक की क्षमता पर मुझे कभी कोई संदेह नहीं रहा। आरएसएस की एक क्षमता और गौरतलब है। वे अपना एजेंडा उन लोगों से भी पूरा करा लेते हैं, जिनके लिए उनका एजेंडा नुकसानदायक होता है। 

जैसे आरएसएस का एजेंडा दलितों, पिछड़ों, अल्पसंख्यकों के लिए नुकसानदेह है। दलितों, पिछड़ों, अल्पसंख्यक समुदायों के हित भारतीय संविधान ने सुरक्षित किए हैं। यानी भारतीय संविधान जितनी मजबूती से लागू होगा, दलितों, पिछड़ों, अल्पसंख्यकों के हित उतने ही सुरक्षित होंगे।

 लेकिन यह कमाल आरएसएस ही कर सकता है कि संविधान को कमजोर कर दलितों, पिछड़ों, अल्पसंख्यकों के हितों पर कुल्हाड़ी चलाने का काम पिछड़े नरेंद्र मोदी, वेंकैया नायडू, दलित रामनाथ कोविंद और अल्पसंख्यक अमित शाह बहुत खूबसूरत तरीके से कर रहे हैं।

 थोड़ा पीछे मुड़कर देखिए तो आपको राम मंदिर वाला आंदोलन याद आ जाएगा। उस आंदोलन के पांच मुख्य चेहरे थे। महंत रामचंद्र दास,  महंत अवैध नाथ, साध्वी उमा भारती, साध्वी ऋतम्भरा और अशोक सिंघल।

इनमें से तीन चेहरे पिछड़े थे-महंत रामचंद्र दास, साध्वी उमा भारती, साध्वी ऋतम्भरा जी। जिस समय बाबरी मस्जिद गिराई गई, उस समय पिछड़े कल्याण सिंह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे। 

आज मंदिर बन रहा है। उसके ट्रस्टियों के बारे में जान लीजिए। इस ट्रस्ट में केवल एक दलित को शामिल किया गया है। क्यों, क्योंकि मनु महाराज ने कहा है कि भद्रजनों की सभा में एक सेवक जरूरी होता है। 

जब पिछड़ी जाति से आने वाले रामदेव कह रहे थे कि भद्रजनों की सेवा में एक सेवक होना चाहिए, तब मैं मन ही मन आरएसएस की क्षमता को प्रणाम कर रहा था। मंदिर आंदोलन का उदाहरण इसलिए दिया है कि ये आंदोलन संविधान विरोधी था, बाबरी विध्वंस भी संविधान विरोधी था। खैर।

 तो इस स्थापना पर मत जाइए कि सावरकर ने साम, दाम, दंड, भेद के तहत माफी मांगी थी। हां, शिवजी महाराज का उदाहरण आपने बढ़िया दिया है। वे भागे थे लेकिन फिर उन्होंने औरंगजेब से पेंशन नहीं ली थी, औरंगजेब की नाक में दम कर दिया था। 

उम्मीद है मित्र कि आपको आपके सवाल का जवाब मिल गया होगा। ये भी उम्मीद है कि जो मित्र इस पोस्ट को पढ़ेगा, उसे सवाल अपने आप समझ में आ जाएगा।

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