शनिवार, 4 मई 2019

समता, स्वतंत्रता, राष्ट्र की एकता और अखंडता सुनिश्चित करने वाली बंधुता समाज से गायब

विश्वपति वर्मा_

26 जनवरी 1950 को स्वतंत्र भारत का अपना संविधान लागू होने के बाद राष्ट्र के नव निर्माण और समस्याओं के समाधान के एजेंडे में राष्ट्रीय शिक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता मिलनी चाहिए थी ।

70 साल बाद भी राष्ट्रीय शिक्षा उद्देश्यहीन है राष्ट्र। की सारी समस्याओं का समाधान शिक्षा में निहित है शिक्षा की उपेक्षा के कारण समस्याएं गहराती जा रही है संविधान की प्रस्तावना में  दृढ़ संकल्प के साथ दर्ज जीवन मूल्यों, लोकतंत्र ,न्याय, स्वतंत्रता, समता, व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखंडता सुनिश्चित करने वाली बंधुता एक तरह से शासक दलों द्वारा नकार दिया जिसका दुष्परिणाम यह हुआ कि आज पूरा देश अंधविश्वास ,अश्लीलता ,नशा खोरी ,अपराध, आतंकवाद ,महंगाई, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार की चपेट में है ।

ऐसी स्थिति को देखने के बाद इतना तो स्पष्ट हो चुका है कि देश की सत्ताधारी शिक्षा व्यवस्था के प्रति गंभीर नहीं होने वाले हैं इस समस्या से निपटने के लिए आम जनमानस को आगे आना होगा और इस आवाज को बुलंद करना होगा कि देश मे एक शिक्षा नीति के साथ मूल्यपरक शिक्षा का प्रचार प्रसार और क्रियान्वयन हो।

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