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शनिवार, 20 अप्रैल 2019

अपने सिद्धांतों के खातिर यूपी के भारतीय प्रोफेसर ने अमेरिका को लौटाए 25 लाख रुपये का पुरस्कार राशि

पैसा मेरे लिए आवश्यकता हो सकता पर आदर्श नहीं ,जानिए रमन मैग्ससे विजेता डॉ संदीप पाण्डेय के बारे में जिन्होंने अपनी पुरस्कार राशि लौटा दी Dr. Sandeep Pandey : Ramon Magsaysay Award For Emergent Leadership।

साधारण सफेद कुर्ता पायजामा ,पैरों में हवाई चप्पल,दाढ़ी अपने मूल रूप में बढ़ी हुई यह पहनावा है भौतिकवाद के इस दौर में जहाँ सब कुछ भोग लेने कि होड़ है वहाँ एक सामान्य मोबाइल फोन का भी उपयोग न करना यह इनकी जीवनशैली का हिस्सा है ,हम बात कर रहे है साधारण व्यक्तित्व से दिखने वाले असाधारण व्यक्तित्व के धनी और अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में पहचाने जानेवाले डॉ संदीप पाण्डेय कि जिन्हें समाजसेवा के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने के लिए साल 2002 में अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार रमन मैग्सेसे से नवाजा गया है परंतु अपने सिद्धान्तों से समझौता न करने के कारण उन्होंने पुरस्कार की भारी भरकम राशि वापस कर दी थी।

डॉo संदीप पाण्डेय ने साल 1999 में परमाणु हथियारों के परीक्षण के विरोध में पोखरण से सारनाथ तक शांति पदयात्रा की| जहाँ तक भारत पाकिस्तान संबंधो कि बात की जाए तो उन्होंने दोनों देशों के बीच शांति स्थापित करने के उद्देश्य से साल 2005 में दिल्ली से मुल्तान तक पदयात्रा निकाली थी इस यात्रा का पुरजोर समर्थन दोनों देशों के नागरिकों ने किया|

वर्तमान में डॉ संदीप आशा ट्रस्ट नामक संस्था चलाते है जिसके माध्यम से वो दलितों,शोषितों के अधिकारों की लड़ाई लड़ते है तथा शिक्षा के अधिकार कानून के तहत गरीब बच्चों को निजी स्कूलों में मुफ़्त दाखिला दिलाने हेतु मुहीम वो चला रहे है, आइये आज हम जानेंगे ऐसे विराट व्यक्तित्व से निजी,सामाजिक व देश से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण मुद्दों पर क्या है उनकी प्रतिक्रिया :


:आपने बीएचयू से कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी तक का सफर कैसे तय किया ?

 मैंने अपनी प्राथमिक शिक्षा बालियां में ग्रहण करने के बाद काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में साल 1982 में इंजीनियरिंग कि पढ़ाई के लिए दाखिला लिया और 1986 तक मैंने वहाँ पढ़ाई कि इस दौरान मैं छात्र राजनीति में भी शामिल हो गया और मैंने प्रौद्योगिकी संगठन के प्रतिनिधि के पद के लिए चुनाव लड़ने का फैसला किया मैं चुनाव जीत भी गया |इसी दौरान मैंने महात्मा गाँधी कि आत्मकथा पढ़ी जिससे मुझमें जीवन के प्रति सोच में व्यापक बदलाव आया ,मैंने समाज के लिए राजनीति से हटकर समाजसेवा करने का फैसला किया जो आज भी जारी है | पढ़ाई के दौरान ही मुझे अमेरिका कि कैलिफोर्निया  यूनिवर्सिटी में पढ़ने के लिए स्कॉलरशिप मिल गई और मैं 1986 में अमेरिका चला गया चूँकि मुझे कभी मेरे माता पिता ने किसी चीज को करने न करने को लेकर दबाव नहीं डाला हाँ वो ये जरूर कहते थे कि किसी भी निर्णय को लेने के बाद उसपर पीछे कभी न हटना और शायद उनका इसी विश्वास से मुझे समाजसेवा के कार्यों को व्यापक स्तर पर करने का हौसला मिला |


: कैलिफोर्निया  यूनिवर्सिटी से केमिकल इंजीनियरिंग में पीएचडी करने के बाद आप चाहते तो अमेरिका में नौकरी कर बेहतर जीवन व्यतीत कर सकते थे पर अचानक आपने भारत वापस लौटकर समाजसेवा करने का फैसला कैसे लिया?

छात्र संघ की राजनीति से मोह भंग होने के कारण मैंने विदेश जा के उच्च शिक्षा ग्रहण करने का फैसला लिया था और मुझे  में वजीफे के साथ दाखिला मिला तो वहां से मास्टर्स और पीएचडी करके 6 वर्ष के बाद फिर मैंने लौटने का निर्णय लिया क्योंकि महात्मा गाँधी की आत्मकथा पढ़ने के बाद मेरे अंदर समाज के लिए कुछ करने की इच्छा थी लौटने के बाद आईआईटी कानपुर में डेढ़ वर्ष पढ़ाने के बाद मैंने नौकरी छोड़कर पूर्णकालिक सामाजिक काम करने का निर्णय लिया|       

: शिक्षा के क्षेत्र में आप किस तरह गरीब बच्चों की मदद करते हैं और आरटीआई कानून का कितना फायदा गरीब बच्चों को मिल पा रहा है ? 

हम लोग शिक्षा के अधिकार अधिनियम के तहत जो 25 प्रतिशत निजी स्कूलों में मुफ्त गरीब बच्चों को दाखिला दिलाने जिसमें दुर्बल वर्ग के बच्चों को कक्षा 1 से 8 तक निशुल्क शिक्षा की सुविधा है उस के तहत बच्चों का दाखिला कराने की कोशिश कर रहे हैं ज्यादातर विद्यालय जो है वह दाखिला ले ले रहे हैं लेकिन जो कुछ बड़े विद्यालय हैं जैसे सिटी मांटेसरी स्कूल , नवयुग रेडियंस, वीरेंद्र स्वरुप, यह कुछ विद्यालय लखनऊ  के दाखिला देने में दिक्कत कर रहे हैं और इसलिए हम लोग इनके खिलाफ एक अभियान चला रहे हैं धरना प्रदर्शन करने से लेकर न्यायालय तक में गए हैं और हम उम्मीद करते हैं कि किसी न किसी दिन गरीब बच्चों के लिए इन महंगे स्कूलों में पढ़ना आसान हो जाएगा |
तहकीकात समाचार के संपादक विश्वपति वर्मा लखनऊ के हजरतगंज स्थिति गांधी प्रतिमा पर शिक्षा की बदहाल व्यवस्था पर डॉo संदीप पाण्डेय के साथ धरना प्रदर्शन में हिस्सा लेते हुए साथ मे फ्यूचर आफ इंडिया के संस्थापक मजहर आजाद।

:आप देश और समाज से जुड़े सभी मुद्दों पर अपनी बेबाकी से राय रखते हैं और आप के बारे में धारणा यह भी है कि आप वामपंथी विचारधारा को मानते है  इस पर आपकी क्या प्रतिक्रिया है?

इस देश में पता नहीं क्यूं जो भी गरीबों के साथ काम करता है या गरीबों के अधिकारों की बात करता है उसको वामपंथी कह दिया जाता है या माओवादी तक कह दिया जाता है हकीकत यह है कि मैंने आज तक मार्क्स को या किसी भी वामपंथी विचारक को पढ़ा नहीं है मेरी मूल प्रेरणा महात्मा गाँधी से है , गाँधी गरीबों के लिए काम करते थे उनके अधिकारों के लिए लड़ते थे और वह कहते थे कि आप जो भी फैसला ले समाज के अंतिम व्यक्ति को ध्यान में रखकर लें, इसलिए मैं उनके उद्देश्यों को लोगों तक पहुँचाना का काम करता हूँ और मैं उनके सारे सिद्धांतों को मानता हूँ और कोशिश करता हूँ कि उनके मूल्यों का पालन अपने जीवन में करूँ, मैं चरखा चलाता हूं और आधुनिक प्रौद्योगिकी का जितना कम से कम हो सके इस्तेमाल करता हूँ कोशिश करता हूँ कि सीमित संसाधनों में काम कर सकूं |

: भारत व पाकिस्तान के बीच जो तनावपूर्ण हालात हैं उस पर आपकी क्या राय है ?

भारत पाकिस्तान का पड़ोसी हैं और उनको मिल कर रहना चाहिए उनके बीच में दोस्ती होनी चाहिए शांति होनी चाहिए इसके लिए हम लोग नागरिकों के स्तर पर प्रयास करते हैं मैं दस बार वहां गया हूं एक बार मैंने दिल्ली से मुल्तान तक की पदयात्रा भी निकाली थी जो हिंदुस्तान में तो पदयात्रा के रूप में रही लेकिन पाकिस्तान के अंदर हम लोगों को चलने नहीं दिया गया हम लोग गाड़ियों से गए थे लेकिन पाकिस्तान के अंदर वहां की जनता का जबरदस्त हम को समर्थन मिला इस मुद्दे पर हिंदुस्तान से ज्यादा और हमें लगता है कि सरकारों ने जो राजनीति की है दुश्मनी की यह एक दोनों देशों के लिए यह अच्छी बात नहीं है उनके महत्वपूर्ण संसाधन हथियारों में खर्च होते हैं जबकि दोनों देश गरीब है तो समझदारी इसी बात में है कि हम अपनी दुश्मनी को खत्म करके दोस्ती और शांति स्थापित करें | 

: कश्मीर में शांति स्थापित करने के लिए भारत सरकार को क्या नीति अपनानी चाहिए और क्या आप कश्मीर में जैसा कि पाकिस्तान हमेशा से संयुक्त राष्ट्र में कश्मीरी आवाम का जनमत संग्रह कराने कि माँग भारत के साथ रहने न रहने के संबंध में करता रहा है इस मांग को लेकर आपकी क्या प्रतिक्रिया है ?                   
 लोकतंत्र का मूल विचार  इसी बात पर आधारित है कि लोगों को स्वतंत्रता मिलनी चाहिए अगर हम एक तरीके से रहना चाहते हैं तो वह आजादी हम को मिलनी चाहिए भारत ने अंग्रेजो से आजादी पाई ,बांग्लादेश ने पाकिस्तान से आजादी पाई तो अगर कहीं के लोग भी चाहते हैं कि वह एक तरीके से रहे तो वह आजादी उनको मिलनी चाहिए मैं यह नहीं कह रहा हूं कि कश्मीर आजाद होना चाहिए या कश्मीर को पाकिस्तान में मिल जाना चाहिए यह बात तो कश्मीरी ही तय करेंगे लेकिन अगर कश्मीर को भारत में रहना है तो भारत सरकार ने जिस तरह से अभी तक जो नीति अपनाई है कश्मीर के लिए वह तो काम नहीं कर रही है क्योंकि वहां आपको सेना के सहारे अपना शासन चलाना पड़ रहा है आप वहां पर पैलेट गन जैसी चीजों का इस्तेमाल करते हैं जिससे मानव अधिकार हनन होता है वहां के लोग महिलाएं और बच्चे भी आपकी सेना पर पत्थर चलाते हैं तो या तो आप उनके लोगों को अपने पक्ष में कीजिए उन को मनाइए ताकि वह भारत के साथ रहे और नहीं तो उनको आजादी इस बात की मिलनी चाहिए कि वह जिस तरीके से रहना चाहे वह छूट उनको दीजिए यह यह बात जरूर हुई थी|

: आज चाहे वो देश में हो या दुनिया में धर्म को एक सांप्रदायिक रंग में रंगा जा रहा है और लोगों में एक दूसरे के प्रति वैमनस्यता बढ़ रही है इस पर आपकी प्रतिक्रिया और आप धर्म को किस रूप में मानते हैं ?   

देखिए धर्म एक व्यक्तिगत आस्था का विषय है यह स्वतंत्रता हमारा संविधान देता है कि आप जो भी धर्म मानना चाहे आप मान सकते हैं लेकिन वह किसी दूसरे के ऊपर थोपा जाए या धर्म के आधार पर हम भेदभाव करें यह बात ठीक नहीं है और जो धर्म का सार्वजनिक प्रदर्शन और खास करके धर्म का इस्तेमाल राजनीति में हो रहा है सिर्फ अपने देश में ही नहीं दुनिया में कई देशों में हो रहा है यह बात ठीक नहीं है क्योंकि इससे इन नफरत बढ़ती है और तमाम तरह की अप्रिय परिस्थितियां पैदा होती है जो आम लोगों के खिलाफ है क्योंकि कहीं भी अगर सांप्रदायिक दंगे होंगे तुम्हारा गरीब आदमी ही मारा जाएगा तो धर्म के नाम पर राजनीति बंद होनी चाहिए धर्म को व्यक्तिगत आस्था का विषय मानते हुए हर एक व्यक्ति को यह छूट तो जरुर होनी चाहिए कि वह अपने घर में रहकर जो भी इस धर्म को मानना चाहे माने लेकिन उसका सार्वजनिक प्रदर्शन या हम अपने धर्म का पालन इस तरह करें कि उसे किसी दूसरे को असुविधा न हो इस बात का ध्यान देना चाहिए|

: दो वर्ष पहले आपको BHU में पढ़ाते समय अचानक आप पर देशद्रोह का आरोप लगाकर आपको वहाँ से निष्कासित कर दिया गया था इस आरोप में कितनी सच्चाई है ?                 

: क्या आप राष्ट्र की मूल भावना को  मानते हैं ?और वर्तमान में मोदी सरकार को लेकर आपकी क्या राय है ? 

काशी हिंदू विश्वविद्यालय में जो मेरा अनुभव था वहां पढ़ाने का उसको तीसरे वर्ष में समाप्त किया गया बीच में ही और मेरे ऊपर आरोप लगाए गए कि मैं जो पढ़ा रहा था वह देश द्रोही था और मैं नक्सलवादी विचारों को मानता हूं इन बातों में सच्चाई नहीं थी और यह मुझे कहने की जरूरत नहीं है अगर आप न्यायालय का फैसला देखेंगे जो मेरे मामले को लेकर आया था तो न्यायाधीश महोदय ने कहा है उस मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय से जो फैसला आया था उसमें न्यायाधीश महोदय ने कहा है कि मेरा अनुबंध इसलिए समाप्त किया गया क्योंकि मैं एक दूसरे विचार को मानता था और वहां के जो कुलपति महोदय हैं जिनको लेकर आज आप आजकल आप देख रहे हैं कितना विवाद खड़ा हो गया है काशी हिंदू विश्वविद्यालय में उनकी सोच के कारण तो न्यायाधीश महोदय ने कहा कि कुलपति और दूसरे जो लोग विश्वविद्यालय के ऊंचे पदों पर बैठे हैं वह एक विचारधारा को मानने वाले हैं और न्यायधीश महोदय ने यह भी कहा कि मदन मोहन मालवीय जी जिन्होंने काशी हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना की उन्होंने यह बात कही थी कि भारत सिर्फ हिंदुओं का देश नहीं है इसमें तमाम दूसरे धर्मों को मानने वाले लोग भी रहते हैं ,यहाँ सबके विचारों का सम्मान होना चाहिए और हमारे देश में एक विविधता की संस्कृति है वह उसमें अगर हम एक दूसरे के विचार को नहीं मानेंगे तो तमाम तरह की अप्रिय परिस्थितियां पैदा होंगे और इसलिए न्यायालय ने आदेश दिया कि मेरी नियुक्ति पुनः विश्विद्यालय  में होनी चाहिए |

: साल 2002 में आपको समाजसेवा के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य हेतु अन्तर्राष्ट्रीय पुरस्कार रमन मैग्सेसे से नवाजा गया परंतु उस पुरस्कार की भारी भरकम राशि आपने लौटा दी थी इसकी क्या वजह थी?

मैग्सेसे पुरस्कार की राशि मैंने वापस की थी उसकी वजह थी कि मैं वहां पुरस्कार मिलने के बाद अमेरिकी दूतावास जो मनीला फिलीपींस में था वहां पर प्रदर्शन एक प्रदर्शन होने वाला था,जिसमें मैं शामिल होने जा रहा था वो प्रदर्शन अमेरिका के खिलाफ था क्योंकि अमेरिका उस समय इराक पर हमले की तैयारी कर रहा था और दुनिया भर में उसके खिलाफ प्रदर्शन हो रहे थे लेकिन मैग्सेसे पुरस्कार देने वालों ने मुझसे कहा कि मैं उस प्रदर्शन में शामिल ना हूं  क्यों कि  मैग्सेसे फाउंडेशन पूरा अमेरिका के पैसों से चलता है जिसका नाम है रॉकफेलर फाउंडेशन और मेरी जो पुरस्कार राशि है वह फोर्ड फाउंडेशन से आ रही थी ,जो पुरस्कार राशि थी वो लगभग 25 लाख रूपये थी मतलब $50000 डॉलर और उसी समय एक अखबार ने मुझे यह चुनौती दी कि यदि मैं इतना ही सिद्धांतवादी हूं यानी कि मैं अमेरिका की नीतियों का विरोध करता हूं तो  मुझे अमेरिका के पैसों से चलनेवाले इस पुरस्कार को   अमेरिकी दूतावास को लौटा कर भारत आना चाहिए तो मैंने उन की चुनौती स्वीकार की और अमेरिकी दूतावास को तो नहीं लेकिन मैग्सेसे फाउंडेशन को वह पैसा मैंने वहीं वापस कर दिया और उनको यह भी कहा कि यदि मेरी भूमिका से ,मेरे कार्यक्रमों से उनको ज्यादा तकलीफ हो तो मैं उनका पुरस्कार भी वापस करने को तैयार हूं ,पुरस्कार आज भी मेरे पास है पुरस्कार राशि मैंने उसी समय लौट दी क्यों कि मेरी नजर में धन का मतलब सिर्फ मेरे विचार और सिद्धान्त है न कि पैसा|

 : अगला सवाल आपसे अब जो युवा देश के आईआईआईटी संस्थानों से इंजीनियरिंग कर रहे हैं उनका सपना  विदेशों में अच्छी नौकरी पाने की होती है ऐसे में आप उन्हें आईआईटीयन होने के नाते क्या संदेश देना चाहेंगे कि उन्हें  देश और समाज के प्रति क्या कर्त्तव्य निभाना चाहिए?

भारत में जो पढ़ने वाले खास करके आईआईटी में पढ़ने वाले जो  छात्र छात्राएं हैं मुझे यह लगता है कि उनको अपनी पढ़ाई लिखाई का इस्तेमाल इस देश की समस्याओं को हल करने के लिए करना चाहिए ,हमारे देश में बहुत गरीबी है ,बहुत सारे लोग है  जिनकी मूलभूत आवश्यकता ही भी पूरी नहीं होती है ,किसान आत्महत्या कर रहे हैं और अमीर गरीब के बीच का अंतर बढ़ता जा रहा है भ्रष्टाचार से हम निजात नहीं पापा रहे हैं तो तमाम इस तरह की जो समस्याएं हैं जो इंसानों के लिए उनके जीवन को कठिन बनाती हैं उनका हल निकालने के लिए दिव्य काम करेंगे तो ऐसा माना जाएगा कि उनकी शिक्षा का वह समाज के लिए एक बेहतर उपयोग कर रहे हैं lआज हमारे देश को सभी क्षेत्रों में तकनीक की आवश्यकता है इस तकनीक का निर्माण  ज्यादा पैसों की लालच में नौकरी के लिए बाहर जाने वाले  इंजीनियरों से आग्रह करूँगा कि वे देश में ही रहकर गरीबों के विकास में सहभागी बनने कि सोचें क्यों कि इस देश की बहुत बड़ी आबादी सोच के अभाव से ग्रसित है शायद यह भी गरीबी का बहुत बड़ा कारण है |

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