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शुक्रवार, 4 दिसंबर 2020

सरकारी संस्थाओं में जनप्रतिनिधियों का नियंत्रण पूरी तरह से फेल ,आम आदमी लुटने पिटने को विवश

विश्वपति वर्मा(सौरभ)

निश्चित तौर पर हमारे नेता निकम्मे हैं इसमे कोई शक संदेह की बात नही है ,हम अपने नेताओं को सदन से लेकर ब्लॉक और जिला पंचायत तक भेजते हैं ताकि वह हमारा और हमारे वंचित समाज का नेतृत्व करेगा, लेकिन सदन से लेकर निचली सतह पर काम करने वाले जनप्रतिनिधियों का वर्तमान में जो स्थिति है उसको देखते हुए इस जनता को दूसरी बार किसी भी जनप्रतिनिधि को मौका नही दिया जाना चाहिए।
ग्राम पंचायत का एक जनप्रतिनिधि जो चुनकर ब्लाक स्तर जाता है वह भी भ्रष्टाचार के आगोश में समा जाता है देखने को मिलता है कि जो जनप्रतिनिधि चुनकर ग्राम पंचायत के समग्र एवं समेकित विकास की योजनाओं को लाने के लिए ब्लॉक की तरफ जाता है वह जनता के लिए आये धन में बंदरबांट का खेल शुरू कर देता है , जनादेश के बाद जो प्रत्याशी विजयी होता है उसे यह भी नही पता होता है कि ब्लॉक पर बैठे अधिकारी उसके प्रस्ताव को अस्वीकार नही कर सकते लेकिन यह प्रथा चल पड़ी है कि वह ब्लॉक और ग्राम पंचायत के अधिकारियों द्वारा बताए गए रास्ते पर चलना शुरू कर देता है ,ब्लॉक पर बैठे अधिकारी हर योजना के नाम पर 7 से 10 प्रतिशत कमीशन लेते हैं वहीं मनरेगा में 20 से 25 प्रतिशत कमीशन दे देते हैं लेकिन यह पूछने की हिम्मत नहीं जुटा पाते हैं कि आखिर जनता के धन में सेंधमारी क्यों हो रही है।

थोड़ा और ऊपर जाएंगे विधायक और सांसद भी यही कर रहे हैं लेकिन थोड़ा हटकर जिन मुद्दों पर उन्हें काम करने की आवश्यकता है उसे भी पूरा करने में नाकाम हैं, ग्राउंड जीरो की रिपोर्ट को देखा जाए तो आज एक बड़ी आबादी थाने ,ब्लॉक और तहसील के कार्यों में स्थिलता ,लापरवाही और घूसखोरी की वजह से परेशान हैं लेकिन हमारे जनप्रतिनिधियों ने यह भी नही सुनिश्चित करा पाया कि सरकारी  संस्थाओं में आम आदमी का उत्पीड़न नही होगा ,एक लाइन में यह कह लिया जाए कि जनप्रतिनिधियों का सरकार के सभी संस्थाओं में नियंत्रण फेल है ,वहां बैठे लोग जैसा चाहते हैं वैसा काम करते हैं न विधायक का सुनते हैं और न ही सांसद का सुनते हैं।

ऐसे में तो सवाल खड़ा ही होता है कि हम ऐसे जनप्रतिनिधियों को दोबारा मौका क्यों देते हैं जो सरकार और प्रशासन की कठपुतली बनकर मात्र रह जाते हैं ,आखिर जनता को न्याय और समानता दिलाने की बात कौन करेगा? कौन है जो आम आदमी को बिना परेशानी हुए उसके जायज कामों को करवाने की पैरवी करेगा, कौन है जो सरकारी योजनाओं की बदहाली पर आवाज उठाएगा ? जो भी हो यह सब काम जनप्रतिनिधियों का ही है जो जनता के लिए आवाज बनने का काम करेंगे लेकिन उनकी स्वार्थ भरी चुप्पी ने जनता को उसी स्थान पर छोड़ दिया है जहां वह आजादी के दौर से खड़ा है।

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