रविवार, 28 अप्रैल 2024

बस्ती- 2014 और 2019 की तरह बरकरार दिखाई पड़ रहा है भाजपा का वोट बैंक

सौरभ वीपी वर्मा 
28 अप्रैल 2024

बस्ती लोकसभा सीट पर भले ही सपा के समर्थक जोश भर रहे हैं कि चुनाव उनके पक्ष में है लेकिन भाजपा की सोशल इंजीनियरिंग ने सपा और बसपा दोनों को चुनौतियों के डब्बे में बंद कर दिया है ।
समाजवादी पार्टी जहां एमवाई समीकरण के साथ बस्ती लोकसभा सीट पर कुर्मी वोटरों के सहारे सीट पर जीत सुनिश्चित करना चाहती है तो वहॉं बसपा भी दलित और ब्राह्मण वोटों की बड़ी संख्या के आधार पर अपने प्रत्याशी को विजय की तरफ ले जाने के लिए उत्सुक है । लेकिन बस्ती लोकसभा सीट पर भाजपा की रणनीति और मोदी के चेहरे के आधार पर अभी तक की स्थिति में सपा और बसपा दोनों को कोई खास बढ़त मिलता हुआ नही दिखाई दे रहा है।

सपा और बसपा प्रत्याशी केवल जातीय समीकरण के हिसाब से चुनाव में जीत मान रहे हैं लेकिन भाजपा की बात करें तो उसका जातीय वोटरों के साथ जमीन पर उसके वोट बैंक 2014 और 2019 की तरह बरकरार है । ग्राउंड जीरो की रिपोर्ट में अभी तक जो आंकड़े मिले हैं उसमें बस्ती लोकसभा सीट पर भाजपा का बढ़त स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ रहा है।

जिस जातीय समीकरण को बैठा कर सपा और बसपा प्रत्याशी ताजपोशी चाहते हैं उसके महिला मतदाताओं में भाजपा की अच्छी पकड़ है । भाजपा के पास जहां मुफ्त राशन , किसान सम्मान निधि , राम मंदिर के नाम पर वोट है वहीं महिला समूहों का भी एक बड़ा वोट बैंक भाजपा की रुझान में है जिसमें दलित और ओबीसी वोटों की संख्या ज्यादा है  जिसके जरिये भाजपा को फायदा मिलना स्वाभाविक है। इस लिए चाय चुक्कड़ की दुकानों पर बैठ कर जीत का शेहरा बांधने वाले विपक्ष के लोग इस गलतफहमी में नह रहें कि उनका पलड़ा भारी है।

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शनिवार, 27 अप्रैल 2024

अन्नदाता के देश में नही खत्म हो रहा गरीबी का साया, कैसे पूरा होगा सम्पन्न भारत का सपना

सौरभ वीपी वर्मा 

दुनिया का कोई भी मुल्क  तब तक विकास के सारे पायदानों को नही छू पायेगा जब तक देश के अंदर रहने वाले एक बड़े समूह को शिक्षा, चिकित्सा, भोजन पानी और आवास की उपलब्धता सुनिश्चित न करा दे।
देश की मौजूदा हालात के समय में गरीबों की संख्या का सही आंकड़ा देखा जाए तो देश भर में 77 फीसदी लोग गरीब हैं  वहीं 2009 में योजना आयोग के एक रिपोर्ट में तो चौंकाने वाली बात कही जाती है जिसमे बताया जाता है कि शहर में 28 रुपए 65 पैसे प्रतिदिन और गाँवों में 22 रुपये 42 पैसे पर जीवन यापन करने वाला व्यक्ति गरीब नही है यानी कि सरकार  22 रुपया खर्च करने वाले लोगों को टाटा ,बिरला, अडानी अंबानी मान रही है . वहीं ठीक तरीके से ग्रामीण अंचल के लोगों के खान पान और जरूरतों को देखते हुए खर्च होने की एक सीमा की समीक्षा की जाए तो दैनिक जीवन जीने के लिए 100 रुपया भी कम पड़ता है उसके बाद भी देश की सरकारों द्वारा 77 फीसदी लोगों को जो 22 से 50  रुपये से भी कमपर जीवन यापन करती है उसे अमीर माना जा रहा है।

2009-10 के सरकारी फार्मूले के अनुसार शहरों में महीने में 859 रुपए 60 पैसे और ग्रामीण क्षेत्रों में 672 रुपए 80 पैसे से अधिक खर्च करने वाला व्यक्ति गरीब नहीं है जिसे सरकार ने  2011-2012 में ग्रामीण क्षेत्र में 816 रुपये और शहर में 1000 रुपये खर्च करने वाले को गरीबी रेखा से ऊपर कर दिया। 

बेशर्म सरकारों के पूंजीवादी लुटेरों हमेशा गरीबों ,मजदूरों श्रमिकों और कारीगरों का शोषण किया है लेकिन सत्ता के आगे घुटने  टेकने वाले नेताओं ने कभी इस मुद्दे पर आवाज नही उठाया कि 22 रुपये रोज पर किसी व्यक्ति का जीवन चलने वाला नही है इन लोगों ने इस बात का जिक्र भी नही किया कि साइकिल का टायर पंचर होने के बाद कमसेकम 10 रुपया उसका चार्ज लगता है .यह बताने के लिए इन लोगों ने जरूरत नही समझा कि अब दुकानों पर 5 रुपये में समोसा मिलता है और अगर मिनरल वाटर की बोतल खरीदना पड़े तो व्यक्ति को 20 रुपये की जरूरत पड़ेगी इसके अलावा और भी सामानों की जरूरत लोगों को पड़ती है जहां 22 रुपया किसी भी तरह से पर्याप्त नही है।

 संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार आज भी भारत में 37 करोड़ लोग गरीब हैं रिपोर्ट में बताया गया कि 28 फीसदी आबादी भारत मे गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करती है लेकिन भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के वर्तमान  स्थिति की सही समीक्षा की जाए तो देश में 77 ही नही लगभग 86 फीसदी आबादी गरीब है .यदि भारत सरकार की दलीलों के आधार पर 22 रुपया खर्च करने वाले को गरीब न माना जाए तो भारत सरकार को इस बात की घोषणा कर देनी चाहिए कि भारत मे 1 भी गरीब नही रह गया है क्योंकि 22 रुपया तक तो आज कल हर भारतीय खर्च कर रहा होगा। 

वर्ष वर्ष 2011 -12 में भारत सरकार ने गरीबी की स्थिति जानने के लिए एक सर्वे कराया लेकिन उसके बाद वर्ष 2014 से 2024 तक बीजेपी सरकार में गरीबों पर खूब बात की गई लेकिन न तो सर्वे कराये गए और न ही उनके जीवन में आर्थिक सुधार के लिए कोई ठोस कदम उठाया गया बीजेपी सरकार में मुफ्त राशन की बात की गई जिसे 82 फीसदी लोगों को उपलब्ध कराने की बात की जा रही है लेकिन सवाल यह है कि क्या 5 किलो अनाज हर महीने उपलब्ध कराने से देश में गरीबी खत्म हो पाएगी या फिर दुनिया में अन्नदाता के देश की हंसी हंसारत होगी ?

निश्चित तौर पर सरकारों को इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि अभी भी भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में एक बहुत बड़ी आबादी निवास करती है जिसे मूलभूत सुविधाओं की आवश्यकता है यह तस्वीर भी इसी भारत के नागरिकों के बारे में सटीक चित्रण करता हुआ दिखाई दे रहा है जहां गेहूं की फसल कटने के बाद गांव के बच्चे बुजुर्ग खेतों में गिरे हुए दानों को चुनने के लिए टूट पड़े हैं स्वाभाविक है कि यह भी गरीबी का एक हिस्सा है. इस लिए जरूरी है कि विभिन्न स्तरों में पिछड़े लोगों को गरीबी से बाहर निकालने में ईमानदारी से काम किया जाए  जिसमे खाना पकाने का ईंधन, साफ-सफाई ,चिकित्सा और शिक्षा की सुविधाएं ,पोषण सामग्री, स्वच्छ पेय जल ,मनरेगा की दैनिक मजदूरी मिलना पूरी तरह से सुनिश्चित हो तब जाकर हम एक सुंदर और संपन्न भारत का सपना पूरा का पाएंगे।

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बुधवार, 24 अप्रैल 2024

बस्ती-मजदूरों के हक का पैसा मार रहीं बीडीओ ? प्रधान कर रहे घोटाले का खेल

कुलदीप चौधरी

बस्ती- महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार योजना के तहत ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को रोजगार उपलब्ध कराने के उद्देश्य से  सरकार द्वारा रोजगार गारंटी कानून पारित किया गया लेकिन धरातल पर इसका जमकर दुरुपयोग हो रहा है ।
 एक तरफ जहां काम देने के बहाने रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने के लिए मनरेगा कानून को लागू किया गया वहीं इस योजना को क्रियांवित करवाने वाले अधिकारियों से लेकर के स्थानीय जनप्रतिनिधियों द्वारा जमकर घोटाले बाजी किया जा रहा है ।
              स्थलीय पड़ताल की तस्वीर-1
ताजा मामला बस्ती जनपद के रामनगर विकास खण्ड के बरडीहा खास ग्राम पंचायत की है जहां पर बिना काम कराए तीन स्थानों पर जमकर हाजिरी भरी जा रही है । भ्रष्टाचार और सरकारी धन की गबन की बात करें तो 10 अप्रैल से लगभग डेढ़ सौ मजदूरों की हाजिरी भरी गई लेकिन जब 24 अप्रैल को तहकीकात समाचार के संवाददाता ने मजदूरों से रोजगार की उपलब्धता पर बात की तो पता लगा कि उन्हें इस तरह की किसी कार्य के बारे में जानकारी नही है ।

इस जानकारी के बाद संवाददाता ने जब दिखाए गए कार्यों की स्थलीय पड़ताल किया तब पता चला कि ऑनलाइन हाजिरी में ग्राम पंचायत के परसाहवा और ककरहवा पोखरे की साफ सफाई के नाम पर 99 मजदूर काम कर रहे हैं लेकिन मौके पर वहां सब कुछ वीरान था न कोई मजदूर थे और न कोई काम हुआ था ।
           स्थलीय पड़ताल की तस्वीर-2
भ्रष्टाचार की इस हकीकत की अवगत कराने के लिए जब खंड विकास अधिकारी वर्षा बंग से बात करने का प्रयास किया गया तो दो बार फोन करने पर कोई जवाब नही मिल पाया ऐसे में स्पष्ट है कि बिना काम कराए ऑनलाइन चल रही हाजिरी में ब्लॉक के कर्मचारियों से लेकर के खंड विकास अधिकारी तक का हाथ होता है ताकि भ्रष्टाचार के इस खेल में बंदर बांट कर सरकारी धन से ऐशो आराम किया जा सके।

वहीं मिली जानकारी के अनुसार भ्रष्टाचार के इस खेल में प्रधान से लेकर बीडीओ तक का हाथ होता है जहां ब्लॉक के कई पटल के कर्मचारियों के साथ बीडीओ का कमीशन तय होता है जिसके नाते न तो ऐसे  मामलों में कोई स्थलीय जांच होती है और न ही कार्रवाई ।

आखिर सवाल यह है कि जब सरकार द्वारा ग्रामीण क्षेत्र में  रोजगार उपलब्ध कराने के लिए मनरेगा कानून बनाए गया है तब बिना काम कराए या मशीनीकरण के प्रयोग से कैसे योजना अपने उद्देश्य की पूर्ति कर पायेगा इसकी जवाबदेही जनपद के जिम्मेदार अधिकारियों को तय करनी चाहिए ।


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चुनाव में सोना ,गहना ,मंगलसूत्र का नाम लेकर बेशर्मी की हद पार कर रहे हैं पीएम नरेंद्र मोदी

सौरभ वीपी वर्मा

देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को शर्म से तो झुक ही जाना चाहिए अगर शर्म न आती हो तो बेशर्मी तो कोई भी कर सकता है । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इस तरह से घटिया शब्दों का इस्तेमाल नही करना चाहिए जिससे संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति की हंसी हंसारत हो , भारतीय जनता पार्टी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को 10 साल के अपने कार्यकाल में हुए कार्यों के बारे में बताना चाहिए लेकिन दो पंचवर्षीय की पूर्ण बहुमत की सत्ता चलाने के बाद भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष नेता बार-बार कांग्रेस को ही कोसते नजर आ रहे हैं । 
क्या भारतीय जनता पार्टी के पास कोई ऐसा मुद्दा नहीं है जिससे वह राजनीतिक अखाड़े में अपनी बातों को जनता के बीच में रख सकें?  ऐसा लगता है कि झूठ की बुनियाद पर खड़ी भारतीय जनता पार्टी केवल लोगों को गुमराह कर वोट हासिल करना चाहती है । लगभग साढ़े सात दशक का समय बीत चुका है जब यह देश आजाद हुआ उसके बाद अधिकांश समय तक कांग्रेस ने ही इस देश की सत्ता को संभाला है हमें तो नहीं लगता कि कांग्रेस ने किसी महिला का सोना , गहना और मंगलसूत्र छीन लिया हो , किस मंगलसूत्र को छीनने की बात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कर रहे हैं ? क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को नहीं पता है कि कांग्रेस की इंदिरा गांधी और सोनिया गांधी ने अपने मंगलसूत्र का कुर्बानी देश में कर दिया है । सच तो यह है कि भारतीय जनता पार्टी और नरेंद्र मोदी के पास 10 साल का कोई उपलब्धि ही नहीं रहा है अगर ऐसा कुछ होता तो जनता के बीच में जाकर अपनी 10 साल की उपलब्धियां को बताते न कि  बार-बार कांग्रेस की पूर्ववर्ती सरकार को कोसते नजर आते । 10 साल सत्ता में रहने के बाद इस तरह की भाषण सुनने के बाद ऐसा प्रतीत होता है की हार के डर से बौखलाए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी झूठ और प्रोपेगेंडा का प्रचार कर रहे हैं । प्रधानमंत्री को कम से कम अपनी गरिमा का ध्यान देकर भाषण देना चाहिए अन्यथा देश दुनिया में फजीहत कराने के लिए कुछ भी करें। 

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सोमवार, 22 अप्रैल 2024

पृथ्वी को बचाने के लिए प्लास्टिक कचरे को समाप्त करने की आवश्यकता- डॉo हीरालाल


लखनऊ- आगा खाँ फाउण्डेशन, वाटर ऐड, एक्शन ऐड, सी०एम०एस०, इरिगेशन एसोसिएशन ऑफ इण्डिया द्वारा अर्थ डे के अवसर पर "प्लेनेट बनाम प्लास्टिक" पर एक गोष्ठी का आयोजन लिनियज होटल, गोमती नगर, लखनऊ में किया गया। कार्यक्रम का शुभारम्भ डॉ० हीरा लाल, अध्यक्ष एवं प्रशासक, ग्रेटर शारदा सहायक परियोजना, राज कुमार प्रबन्ध निदेशक स्वच्छ भारत मिशन उ०प्र०, राजीव यादव अपर आयुक्त ग्रेटर शारदा, गीता गाँधी किंगडन प्रेसिडेन्ट सी०एम०एस० तथा पदमश्री सुधा सिह द्वारा किया गया। इस अवसर पर बोलते हुये पदम‌श्री सुधा सिंह द्वारा पानी की आवश्यकताओं पर बल देते हुये प्लास्टिक के प्रयोग को कम करने का आवाहन किया। गीता गाँधी किंगडन द्वारा विश्व के परिप्रेक्ष्य में प्लास्टिक कचरे को समाप्त करने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होने इस सदर्भ में विशेष रूप से नदियों, तालाबो आदि में डाले जा कचरे को साफ करने की जरूरत को बताया, जो कि पर्यावरण को दूषित कर रहा है। राजीव यादव अपर आयुक्त द्वारा इस अवसर पर बोलते हुये कहा कि वर्तमान युग, एक प्लास्टिक युग की भाँति हो गया है। प्लास्टिक रसायन के कारण ब्रेन, हृदय, पैरालाइसिस जैसी बीमारियों हो रही है। प्लास्टिक एक स्लो प्वाइजन है, जो मानव स्वास्थ्य और पृथ्वी के स्वास्थ्य दोनों को प्रभावित कर रहा है। डॉ० हीरा लाल, अध्यक्ष एव प्रशासक द्वारा विभिन्न जिलों से आये हुये मीडिया कर्मियों से आवाहन किया कि प्लास्टिक के बारे में जागरूकता फैलाना सबसे बड़ी प्राथमिकता है और इस कार्य मे मीडिया सर्वाधिक महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकता है। उन्होंने कहा कि प्रत्येक व्यक्ति जितना आक्सीजन लेता है उसको उतनी ऑक्सीजन वर्षभर में  उसको उत्पन्न करनी चाहिए। इसी प्रकार उन्होंने कहा कि प्रत्येक व्यक्ति जितना पानी का प्रयोग करता है उसको उतना वर्षा का जल रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम का प्रयोग कर बचाना चाहिए। उन्होंने मीडिया कर्मी अपने अपने जिलों में इस विषय का प्रचार प्रसार करे कि प्लास्टिक हमारे और हमारे पृथ्वी के लिए कितना खतरनाक है। इस विषय में समाज को जागरूक करना अत्यन्त आवश्यक है तभी हम पृथ्वी को प्लास्टिक से मुक्त कर सकते हैं।
इस अवसर पर चार समूह परिचर्चा भी किये गये, जिनमें अरूण सिन्हा सेवानिवृत्त अपर मुख्य सचिव, संजय भूसरेड्डी सेवानिवृत्त अपर मुख्य सचिव एव अध्यक्ष रेरा उ०प्र०, आशुतोष शुक्ला, राज्य सम्पादक, दैनिक जागरण, सुधीर मिश्रा स्थानीय सम्पादक नवभारत टाइम्स, प्रांशु मिश्रा स्थानीय सम्पादक हिन्दुस्तान टाइम्स, पदमश्री राम शरन वर्मा, पदमश्री बाबू लाल दहिया, पद्मश्री सुधा सिंह, आगा खॉ फाउण्डेशन, वाटर ऐड, एक्शन ऐड के प्रतिनिधियों तथा डॉ० रोहित बघेल, विलियम जे क्लिंटन फाउण्डेशन छत्तीसगढ, आशीष कुलकर्णी पार्टनर बी०सी०जी० सोशल इम्पैक्ट आदि द्वारा भाग लिया गया। समूह परिचर्चा में सौरभ लाल, सी०ई०ओ० मॉडल गाँव, अर्पित गुप्ता सहायक सम्पादक इकोनॉमिक टाइम्स, इभा सिंह और ओम सिंह द्वारा पैनल डिस्कशन का संचालन किया। इस अवसर पर प्रदेश के लगभग 35 जिलों के प्रिन्ट मीडिया, इलेक्ट्रानिक मीडिया, सोशल मीडिया, रेडियो सवांददाता आदि द्वारा अपनी सहभागिता दी गयी। पैनल डिस्कशन में प्रश्नोत्तरो के माध्यम से प्लास्टिक से पृथ्वी से बचाने हेतु विभिन्न प्रयासों पर चर्चा की गयी। 

उपरोक्त कार्यक्रम को ग्रेटर शारदा सहायक समादेश क्षेत्र विकास प्राधिकारी/परियोजना द्वारा सहयोग करते हुये विभिन्न जिलो में सभी भूमि संरक्षण इकाईयों कार्यक्रम आयोजित करवाया गया। कार्यक्रम के अंत में जयराम पाठक आगा खॉ फाउण्डेशन द्वारा धन्यवाद ज्ञापन किया गया।

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गुरुवार, 18 अप्रैल 2024

पहले चरण में देश भर में कल होगा मतदान , यूपी के आठ सीटों पर सुरक्षा के विशेष ध्यान

लखनऊ: उत्तर प्रदेश में पहले चरण की 8 लोकसभा सीटों पर कल मतदान होगा. इसके लिए 7689 मतदान केंद्र और 14849 मत देय स्थल बनाए गए हैं. पहले चरण के मतदान के लिए 60 कंपनी पीएसी, 220 कंपनी केंद्रीय अर्धसैनिक बल, 6018 इंस्पेक्टर, 35750 कांस्टेबल, 24992 होमगार्ड की तैनाती की गई है. पीलीभीत इंटरनेशनल बॉर्डर पर विशेष नजर रखी जाएगी. वहां 11 बैरियर लगाए गए हैं. इसी तरह इंटरस्टेट बॉर्डर पर 18 बैरियर लगाकर चेकिंग की जाएगी.
निर्वाचन आयोग ने मतदान के दिन मतदान केंद्रों के अंदर मोबाइल फोन, स्मार्ट फोन, वायरलेस सेट आदि ले जाने पर रोक लगा दी है. पीठासीन अधिकारी अपने फोन साइलेंट मोड में ले जा सकेंगे और जरूरत पड़ने व आपात स्थिति में केवल सेक्टर अधिकारियों, रिटर्निंग अधिकारियों और पर्यवेक्षकों के साथ बातचीत के लिए उपयोग कर सकेंगे.

यूपी में लोकसभा चुनाव में पहले चरण में कैराना, नगीना, पीलीभीत, सहारनपुर, मुजफ्फर नगर, बिजनौर, रामपुर, मुरादाबाद में वोट डाले जाएंगे. प्रथम चरण की इन सभी लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों के लिए 80 उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं. इसमें 73 पुरुष और 7 महिला हैं

बता दें कि देश भर में पहले चरण में अरुणाचल प्रदेश (2 सीटें), असम (5), बिहार (4), छत्तीसगढ़ (1), मध्य प्रदेश (6), महाराष्ट्र (5), मणिपुर (2), मेघालय ( 2), मिजोरम (1), नागालैंड (1), राजस्थान (12), सिक्किम (1), तमिलनाडु (39), त्रिपुरा (1), उत्तर प्रदेश (8), उत्तराखंड (5), पश्चिम बंगाल (3) , अंडमान और निकोबार (1), जम्मू और कश्मीर (1), लक्षद्वीप (1) और पुडुचेरी की 1 सीट पर मतदान होगा परिणम 4 जून को एक साथ आएगा ।

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नौ प्रधानमंत्री देने वाले उत्तर प्रदेश की बेहाली

उत्तर प्रदेश को यों ही ‘प्रधानमंत्रियों का प्रदेश’ नहीं कहा जाता. अब तक इसके रिकाॅर्ड नौ सांसद प्रधानमंत्री बनकर देश की बागडोर संभाल चुके हैं. इनमें से चार-पं. जवाहरलाल नेहरू, लालबहादुर शास्त्री इंदिरा गांधी और राजीव गांधी- कांग्रेसी रहे हैं तो पांच गैर-कांग्रेसी — चौधरी चरण सिंह, विश्वनाथ प्रताप सिंह, चंद्रशेखर, अटल बिहारी वाजपेयी और नरेंद्र मोदी.
लेकिन चूंकि विश्वनाथ प्रताप सिंह व अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने राजनीतिक जीवन में एक से ज्यादा लोकसभा सीटों का प्रतिनिधित्व किया, इसलिए ‘प्रधानमंत्रियों के’ या उनसे जुड़े क्षेत्रों की कुल संख्या नौ के बजाय ग्यारह है: फूलपुर (पं. जवाहरलाल नेहरू व विश्वनाथ प्रताप सिंह), इलाहाबाद (लाल बहादुर शास्त्री व विश्वनाथ प्रताप सिंह), रायबरेली (इंदिरा गांधी), बागपत (चौधरी चरण सिंह), अमेठी (राजीव गांधी), फतेहपुर (विश्वनाथ प्रताप सिंह), बलिया (चंद्रशेखर), लखनऊ व बलरामपुर (अटल बिहारी वाजपेयी) और वाराणसी (नरेंद्र मोदी).

सवाल है कि प्रधानमंत्री से जुड़कर मिली नई पहचान ऐसे क्षेत्रों को विकास वगैरह में प्राथमिकता कहें या वीवीआईपी ट्रीटमेंट ही उपलब्ध कराकर रह जाती है अथवा उनकी सामाजिक-राजनीतिक चेतनाओं को उन्नत करने और गरीबी व गिरानी आदि के दीर्घकालिक या स्थायी समाधान में भी कोई भूमिका निभाती है?

इस लिहाज से देखें तो पं. नेहरू के लोकसभा क्षेत्र फूलपुर का हाल सबसे बुरा है. उनके निधन के चार दशक भी नहीं बीते थे कि इसकी चेतना इतनी दूषित हो गई कि उसने अतीक अहमद और कपिलमुनि करवरिया जैसे बाहुबलियों को चुनना आरंभ कर दिया. 2004 में उसने सपा के अतीक अहमद को चुना तो 2009 में बसपा के कपिल मुनि करवरिया को.

बात को यों भी कह सकते हैं कि नेहरू की कांग्रेस इस सीट पर उनकी विरासत को उनके निधन के बाद पांच साल भी नहीं संजो पाई. 1964 (उपचुनाव) और 1967 (आम चुनाव) में उनकी जगह उनकी बहन विजयालक्ष्मी पंडित जीतीं भी तो दो साल बाद ही संयुक्त राष्ट्र में प्रतिनिधि बनने के लिए इस्तीफा दे गईं. इस तरह इस सीट का नेहरू परिवार से नाता टूटा तो छात्र आंदोलन से निकलकर आए संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के युवा नेता जनेश्वर मिश्र ने नेहरू के सहयोगी केशवदेव मालवीय को शिकस्त देकर उपचुनाव में ही कांग्रेस का यह गढ़ ढहा दिया.

उसके बाद 1999 तक हुए नौ आम चुनावों में कांग्रेस के प्रत्याशी 1971 (विश्वनाथ प्रताप सिंह) और 1984 (रामपूजन पटेल) में ही जीत पाए. 1989 में रामपूजन पटेल ने पाला क्या बदला, कांग्रेस यह सीट जीतने को तरसने लगी. बाद में वह मुख्य मुकाबले से भी बाहर रहने लगी और जीत-हार का फैसला सपा, बसपा व भाजपा के बीच होने लगा. 2014 में क्रिकेटर मोहम्मद कैफ तक कांग्रेस के प्रत्याशी बनकर महज 58,127 वोट और चौथा स्थान ही पा सके. उनकी जमानत तक नहीं बची. 2019 में कांग्रेस के पंकज पटेल तो महज 32,761 वोट ही पा सके.

फिलहाल, इस पर भाजपा काबिज है और सपा व बसपा उसके मुकाबिल हैं. बेबस कांग्रेस ने सपा से उसकी शर्तों पर गठबंधन कर यह सीट उसके लिए छोड़ दी है, जिससे ईवीएम में उसका चुनाव निशान तक नहीं होगा.

क्या पता, देश के पहले (कांग्रेसी) प्रधानमंत्री के चुनाव क्षेत्र में अपनी यह दुर्दशा कभी कांग्रेस को चिंतित करती है या नहीं. करती हो तो दूसरे प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री की इलाहाबाद लोकसभा सीट की दुर्दशा भी चिंतित करनी चाहिए. क्योंकि 1984 में चुने गए उसके स्टार सांसद अमिताभ बच्चन के इस्तीफे के बाद से यह सीट भी उसके लिए पराई होकर रह गई है.

शास्त्री की विरासत भी वह उनके जाने के बाद के महज दो चुनावों तक ही बचा पाई. 1967 में उसके प्रत्याशी हरिकृष्ण शास्त्री (शास्त्री के पुत्र) चुने गए और 1971 में हेमवतीनंदन बहुगुणा. 1977 में जनता पार्टी के जनेश्वर मिश्र ने उसकी जीत का सिलसिला तोड़ा तो 1980 में विश्वनाथ प्रताप सिंह द्वारा फिर जोड़े जाने के बावजूद अमिताभ के इस्तीफा देते ही फिर टूट गया.

अलबत्ता, यहां इस अर्थ में उसके लिए हालात फूलपुर से बेहतर हैं कि सपा से गठबंधन में यह सीट उसके पास है-चुनाव में भाजपा से छीन लेने का मौका भी. लेकिन मजबूरी ऐसी कि उसे एक वयोवृद्ध सपा नेता के बेटे पर ही दांव लगाना पड़ रहा है!

फूलपुर और इलाहाबाद के विपरीत तीसरी प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की रायबरेली में कांग्रेस का जलवा कायम है और वह उनकी बहू सोनिया गांधी की चुनावी पारी के सुखद समापन के बाद उनके परिवार के किसी अन्य सदस्य की बाट जोहती दिखती है. यह और बात है कि 1977 में इसने स्वयं इंदिरा गांधी को हराकर किसी पदासीन प्रधानमंत्री को उसकी सीट हराने जो रिकाॅर्ड बनाया था, वह तब से अब तक हुए ग्यारह लोकसभा चुनावों में अटूट चला आ रहा है.

रायबरेली के ही निवासी राजनीतिविज्ञानी डाॅ. रामबहादुर वर्मा इसका हवाला देते हुए पूछते हैं कि ‘वीवीआईपी ट्रीटमेंट’ खोने का रिस्क उठाकर कांग्रेसी प्रधानमंत्री को हरा देने के बावजूद यह सीट कांग्रेस की गढ़ क्योंकर है? उनकी मानें तो कई लोग इसे इसलिए भी कांग्रेस का गढ़ कहते हैं ताकि जता सकें कि इसे मेरिट के आधार पर चुनाव करना नहीं आता. लेकिन इसने 1977 में जनता पार्टी को ही नहीं, 1996 व 1998 में भाजपा को भी जिताया था.

अलबत्ता, इसके चुनावी आंकड़े अभी भी कांग्रेस के पक्ष में ही हैं. अब तक सर्वाधिक 17 बार (उपचुनावों सहित) वही जीती है, जबकि भाजपा दो व जनता पार्टी सिर्फ एक बार 1977 में.

राजीव गांधी की अमेठी की बात करें, तो उसे न नाराज होते देर लगती है, न खुश होते. 1977 में उसने जिन संजय गांधी (राजीव के छोटे भाई) को बुरी तरह नकारा था, 1980 में उन्हें ही सिर आंखों पर बैठा लिया था. विमान दुर्घटना में उनके निधन के बाद उसने उनकी जगह आए राजीव का भी स्वागत ही किया था. 1984 में उनके मुकाबले संजय की पत्नी मेनका की जमानत तक जब्त करा दी थी तो 2014 में राहुल के सामने आए आम आदमी पार्टी के कवि प्रत्याशी कुमार विश्वास को 25 हजार से थोड़े ही ज्यादा वोट मयस्सर होने दिए थे. फिर 2019 में उन्हीं राहुल को भाजपा की स्मृति ईरानी के हाथों हरा दिया था.

साफ है कि अमेठी भी गांधी परिवार का वैसा गढ़ नहीं है, जैसा प्रचारित किया जाता है. वह शरद यादव, कांशीराम, राजमोहन गांधी और कुमार विश्वास की ही तरह राहुल, उनके चाचा संजय गांधी और चाची मेनका गांधी को भी करारी शिकस्त दे चुकी है.

गैर-कांग्रेसी प्रधानमंत्रियों में चौधरी चरण सिंह बागपत तो विश्वनाथ प्रताप सिंह फतेहपुर (प्रधानमंत्री बनने से पहले फूलपुर और इलाहाबाद) और चंद्रशेखर बलिया लोकसभा सीट का प्रतिनिधित्व करते रहे हैं. इसी तरह अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री बने तो लखनऊ के सांसद थे, जबकि उससे पहले वे दो बार बलरामपुर के सांसद रह चुके थे. इनमें चौधरी चरण सिंह की बागपत सीट उनसे ज्यादा उनके बेटे अजित सिंह की लगती है.

जनता पार्टी और लोकदल के नेता के रूप में चरण सिंह ने 1977 से 1984 तक कुल तीन बार ही इसका प्रतिनिधित्व किया, जबकि अजित ने 1998 को छोड़ दें तो 1989 से 2009 तक जनता दल, कांग्रेस व राष्ट्रीय लोकदल के बैनरों पर एक उपचुनाव समेत सात बार जीत हासिल की. अलबत्ता, 2014 में भाजपा के मुकाबले वे तीसरे स्थान पर चले गए थे, जबकि 2019 में उनके बेटे जयंत को भी दूसरा स्थान ही मिल पाया था. अब बदली हुई स्थितियों में जयंत भाजपा के समर्थन से सपा के विरुद्ध अपनी पार्टी के प्रत्याशी को जिताने में लगे हैं.

चौधरी के विपरीत विश्वनाथ प्रताप सिंह कुल मिलाकर डेढ़ कार्यकाल ही फतेहपुर के सांसद रहे. तिस पर बाद में उन्होंने खुद को राजनीति से निर्लिप्त भी कर लिया था. इसलिए वहां उनके गढ़ जैसा कुछ न कभी रहा, न अब है. हां, चंद्रशेखर 1977 से 2004 तक-बीच में 1984 को छोड़कर-आठ बार बलिया के सांसद रहे और नहीं रहे तो उनके बेटे नीरज शेखर ने सपा के समर्थन से पहले उपचुनाव, फिर एक चुनाव भी जीता. फिर नीरज खुद भी भाजपा में चले गए और उनकी सीट भी.

अटल बिहारी वाजपेयी 1991 से 2004 तक पांच बार लखनऊ से चुने गए और उसके बाद से इस सीट पर लगातार उनकी पार्टी का कब्जा चला आ रहा है. वे 1957 और 1967 में बलरामपुर के सांसद भी थे, लेकिन उनके प्रधानमंत्री पद का कोई चाक्चिक्य उसके हिस्से नहीं आया. वाराणसी में नरेंद्र मोदी तीसरी बार मतदाताओं के सामने हैं और अभी उनकी पारी की बाबत कोई निष्कर्ष निकालना जल्दबाजी होगा.

बहरहाल, इतने विवरणों की रोशनी में यह तो समझा जा सकता है कि प्रधानमंत्रियों की सीटों के मतदाताओं का लोकतांत्रिक प्रशिक्षण अन्य सीटों के मतदाताओं के मुकाबले थोड़ा बेहतर होता है. इसलिए कि डाह या चाह जिसके भी चलते हो, उस पर प्रायः सारे दावेदारों व दलों का ज्यादा ध्यान होता है. लेकिन यह नहीं कहा जा सकता कि इससे इन मतदाताओं की सामाजिक-राजनीतिक चेतनाएं भी ऊंची उठ जाती हैं. इतनी ऊंचाई तक तो वे कतई नहीं उठतीं, जिसे अलग से रेखांकित किया जा सके. वंशवाद, जातिवाद, क्षेत्रवाद व सांप्रदायिकता और धनबल व बाहुबल के दुरुपयोग जैसी राजनीति की बीमारियां इन सीटों पर भी मौका पाते ही संक्रामक हो जाती हैं.

जो हालात दिखते हैं, उनमें इनके मतदाताओं की गरीबी व गिरानी को लेकर कभी कोई गंभीर अध्ययन हो तो शायद यही निष्कर्ष निकले कि संबंधित प्रधानमंत्रियों की सत्ता रहते इन सीटों पर स्वर्ग उतारे जाने के व्यापक प्रचार के बावजूद वहां कोई नखलिस्तान नहीं बन पाया हैं- भले ही दूसरी सीटों के लोग इसकी बिना पर उनके प्रति ईर्ष्या से भरे रहते हों.

कृष्ण प्रताप सिंह(वरिष्ठ पत्रकार)

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मंगलवार, 16 अप्रैल 2024

बस्ती- डीएम आंद्रा वामसी की शह पर हो रही तानाशाही ? कुर्की के बाद बिक रही चीनी मिल

सौरभ वीपी वर्मा 
16 अप्रैल 2024

बस्ती - एक तरफ जनपद के जिलाधिकारी आंद्रा वामसी अपने कार्यों को लेकर सुर्खियों में रहते हैं दूसरी तरफ कुर्की के बाद कबाड़ में बिक रही बस्ती शुगर मिल की वजह से सवालों के घेरे में खड़े हो चुके हैं।
बस्ती और वाल्टरगंज शुगर फैक्ट्री कई वर्षों से बंद पड़ी हुई है  वर्ष 2013 में बस्ती शुगर फैक्ट्री बंद हुई उसके बाद वर्ष 2018 में वाल्टरगंज शुगर फैक्ट्री भी बंद हो गई । एक ही ग्रुप की दोनों फैक्ट्रियों पर किसानों और कर्मचारियों का बड़ा बकाया है ,कर्मचारियों के लंबे समय तक चले धरना प्रदर्शन के बाद दोनों शुगर फैक्ट्रियों को कुर्क कर लिया गया ताकि किसानों और कर्मचारियों के करीब 55 करोड़ के बकाए का भुगतान किया जा सके लेकिन समझौते के बाद भी कर्मचारियों के बकाया भुगतान दिए बगैर चीनी मिल के मशीनों को ट्रकों में लादकर भेजा जा रहा है ।

बस्ती शुगर फैक्ट्री को वर्ष 2023 में 35 करोड़ रुपये में बेंच दी गई जिसपर स्थाई कर्मचारियों का करीब 2 करोड़ रुपया एवं क्षेत्रीय कर्मचारियों का लगभग 8 करोड़ रुपया बकाया है चीनी मिल बिकने के बाद कुछ पैसे का भुगतान किया गया लेकिन सभी कर्मचारियों का बकाया भुगतान नही मिल पाया उसके बाद भी बस्ती शुगर फैक्ट्री के सामानों को बेंचा जा रहा है ।

सवाल यह है कि जब मिल नीलाम हो चुकी है और अभी तक कर्मचारियों का बकाया भुगतान नही मिल पाया है तो आखिर मिल मालिक, जिला प्रशासन और दलाल मिलकर किसके शह पर जोर जबरदस्ती करके मिल के उपकरण उठा कर ले जा रहे हैं. 

सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार जिस व्यापारी द्वारा चीनी मिल को खरीदा गया है जब उसके लोग शुगर फैक्ट्री के सामानों को काटने के लिए शुगर मिल पहुंचे तब अपना बकाया भुगतान न पाने वाले कर्मचारियों ने विरोध शुरू कर दिया था उसके बाद व्यापारी की तरफ से कुछ लोगों ने जिलाधिकारी बस्ती से मुलाकात की और उनके तरफ से मिल के सामानों को ले जाने के लिए हरी झंडी दी गई उसी मुलाकात के बाद एसडीएम शत्रुघ्न पाठक मिल के उपकरणों को ट्रक में लदवाकर सुरक्षाकर्मियों के सहयोग से मिल से बाहर निकलवा रहे हैं. क्या यह माना जाए कि डीएम अंद्रा वामसी ने कर्मचारियों के हित को दरकिनार कर व्यापारी के साथ खड़े हो चुके हैं।

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शुक्रवार, 12 अप्रैल 2024

बस्ती- फर्जी मस्टरोल के सहारे मनरेगा मजदूरों का हक मार रहा नकली प्रधान

कुलदीप चौधरी

बस्ती- ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को रोजगार देने के लिए सरकार द्वारा मनरेगा योजना को लागू किया गया जिसके जरिये ग्रामीण क्षेत्रों में जीवन यापन करने वाले लोगों को सौ दिन का रोजगार देने के लिए कानून भी बनाया गया लेकिन जमीन पर फैले भ्रष्टाचार की वजह से गांव के लोगों को मनरेगा योजना के जरिये रोजगार मिलना मुश्किल हो गया है।
                     फोटो 9 अप्रैल 
ताजा मामला जनपद के रुधौली विकासखंड के ग्राम पंचायत आमबारी की है जहां पर ग्राम पंचायत में पोखरा खुदाई के नाम पर 148 मजदूरों की हाजिरी भरी गई लेकिन जब तहकीकात समाचार के संवाददाता ने मौके पर जाकर योजना द्वारा चल रहे कार्य की पड़ताल किया तो वहां पर एक भी मजदूर नही मिले । गांव के एक आदमी ने नाम न  छापने की शर्त पर बताया कि इस गांव के प्रधान विश्वनाथ हैं लेकिन सर्वेश नाम का व्यक्ति ग्राम पंचायत के बागडोर को अपने हाथ में लिया हुआ है  और उसी व्यक्ति द्वारा सभी प्रकार के कार्यों को कराया जाता है। गांव के तालाब पर चल रहे कार्य के बारे में जब पूछा गया तो उन्होंने बताया कि गांव के उत्तर तरफ स्थिति पोखरे पर कुछ दिन पहले करीब आधा दर्जन लोगों ने काम किया था लेकिन आज किसी प्रकार के कोई मजदूर पोखरे पर काम नही कर रहे हैं।
              12 अप्रैल 148 हाजिरी 14 मौजूद
इसी तरह ग्राम पंचायत आमबारी में लगातर फर्जी मस्टोरल भरकर बिना मजदूरों के ही हाजिरी भरी जा रही है ताकि मनरेगा के धन का बंदरबांट किया जा सके ।

इस संबंध में खंड विकास अधिकारी विनय कुमार द्विवेदी से बात हुई तो उन्होंने कहा कि इस तरह से फर्जी कारनामा करने वाले कार्यों को देखा जाएगा और उसकी जांच कर आवश्यक कार्रवाई करते हुए ऑनलाइन भरी गई सभी हाजिरियों को शून्य किया जाएगा ।



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बुधवार, 10 अप्रैल 2024

किसानों का हक मारकर दोगली चाल चल रही है "चंदा मामा"की सरकार

सौरभ वीपी वर्मा

देश के किसानों से 15 रुपया किलो प्याज खरीद कर खाड़ी देशों में 120 से 150 रुपया किलो बेंचा जा रहा है ,सवाल यह है कि जब प्याज निर्यात पर प्रतिबंध लगाया गया है तो आखिर किसके इशारे पर प्याज देश से बाहर जा रहा है । 
निर्यातकों का कहना है कि एक किलोग्राम प्याज के लिए भारतीय किसानों को 12 से 15 रुपये का भुगतान किया जा रहा है, लेकिन यही प्याज़ जब यूएई पहुंचता तो वहां इसकी कीमत 120 रुपये प्रति किलोग्राम हो जाती है.

सवाल है कि जब प्याज़ के निर्यात पर प्रतिबंध लगा हुआ है, तो सरकार चुनिंदा देशों को प्याज क्यों बेच रही है? क्या भारत सरकार कूटनीति के लिए अब प्याज का इस्तेमाल कर रही है? अगर बाहरी दुनिया में प्याज बेंचे जा रहे हैं तो किसानों को धोखा क्यों दिया जा रहा है क्या इस देश का किसान अपनी प्याज को 50 रुपया किलो पाने का हक नही रखता ,जो खाड़ी देशों में जाकर डेढ़ सौ में बिक रहा है।

हिंदुस्तान टाइम्स में छपी एक ख़बर के मुताबिक भारत ने 'बांग्लादेश को 50,000 टन, भूटान को 550 टन, बहरीन को 3,000 और मॉरिशस को 1,200 टन प्याज़ के निर्यात' की इजाज़त दी है.

आम तौर पर वैश्विक बाजार में प्याज की कीमतें 30 रुपये से 35 रुपये प्रति किलोग्राम के बीच रहती हैं. हालांकि हाल के महीनों में यूएई जैसे प्रमुख बाजारों में कीमतें 150 रुपये प्रति किलोग्राम तक पहुंच गई हैं.इन कीमतों में उछाल इसलिए आया है, क्योंकि भारत, पाकिस्तान और मिस्र ने प्याज के निर्यात पर प्रतिबंध लगाया हुआ है.

द हिंदू अखबार के मुताबिक निर्यातकों को जानकारी मिली है कि हाल ही में  500 से 550 डॉलर प्रति टन के हिसाब से यूएई को प्याज भेजा गया है. अगर भारतीय रुपये में प्रति किलोग्राम प्याज की बात करें तो यह 45 से 50 रुपये के बीच है.
अखबार के मुताबिक भारत से प्याज खरीदने वाले यूएई के आयातकों को 300 करोड़ रुपये से ज्यादा का मुनाफा हो चुका है.अनुमान है कि 10 हजार मीट्रिक टन प्याज जब यूएई जाएगा, तो आयातकों को करीब एक हजार करोड़ रुपये का मुनाफा होगा.

सच तो यह है कि भारतीय जनता पार्टी की सरकार किसानों की सबसे बड़ी दुश्मन है जो पीछे के रास्ते से बड़े व्यापारियों से करोड़ो रुपया लेकर प्याज निर्यात पर प्रतिबंध के बावजूद भी निर्यात को मंजूरी दे रही है , जो प्याज पैदा कर रहा है उसके जीवन में सुधार नही आ पा रहा है और जो बिचौलिया का काम कर रहा है वह हजारों करोड़ की कमाई कर रहा है इससे स्पष्ट होता है कि यह सब भाजपा सरकार को दोगली चाल है जो किसानों के साथ छलावा कर रही है ।

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शनिवार, 6 अप्रैल 2024

आइए समझते हैं बस्ती लोकसभा सीट पर वोटों का रुझान

सौरभ वीपी वर्मा

बस्ती लोकसभा सीट जिसके अंतर्गत 5 विधानसभा सीटें सदर ,रुधौली ,महादेवा , कप्तानगंज एवं हर्रैया आती है । विधानसभा में क्रमशः महेंद्र नाथ यादव ,राजेन्द्र प्रसाद चौधरी ,दूधराम , कवींद्र चौधरी और अजय सिंह विधायक हैं। महेंद्र नाथ यादव ,राजेन्द्र प्रसाद चौधरी एवं कवींद्र चौधरी सपा के विधायक हैं दूधराम सपा एवं सुभासपा के गठबंधन में विधायक चुने गए थे जो अब एनडीए का हिस्सा हैं वहीं अजय सिंह भारतीय जनता पार्टी से लगातार दूसरी बार विधायक बने हैं ।
लोकसभा सीट पर हरीश द्विवेदी सांसद हैं जो लगातार दो बार से लोकसभा का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं । 2019 के लोकसभा चुनाव की बात करें तो हरीश द्विवेदी को 471162 मत , सपा एवं बसपा के गठबंधन में बसपा से रामप्रसाद चौधरी को 440808 मत , कांग्रेस से राजकिशोर सिंह को 86920 मत , एवं सुभासपा के विनोद राजभर को 11971 वोट मिले थे इसके अलावा लगभग 35 हजार वोट अन्य पार्टियों एवं निर्दल प्रत्याशियों के खाते में गया था , चुनाव में भाजपा के हरीश द्विवेदी ने सपा - बसपा गठबंधन के प्रत्याशी राम प्रसाद चौधरी को करीब 30 हजार वोटों से हराकर सीट पर दूसरी बार कब्जा जमाया था ।

अब 2024 में 18 वीं लोकसभा का बिगुल बज चुका है जिसमें सपा ,भाजपा के बाद अब बसपा ने भी अपने उम्मीदवार की घोषणा कर दी है इस बीच आइए बस्ती लोकसभा सीट पर वोटों के रुझान को समझते हैं । बस्ती लोकसभा सीट पर दलित वोटों की संख्या करीब 4 लाख 25 हजार है वहीं 4 लाख 15 हजार वोट सामान्य की है ,ओबीसी वोटों की बात करें तो इनकी संख्या करीब 7 लाख 25 हजार है वहीं 1.84 लाख वोट मुस्लिम मतदाताओं की है । 

2024 लोकसभा चुनाव की बात करें तो जनपद में OBC की दो सबसे बड़ी जातियां कुर्मी और यादव सपा की रुझान में हैं , मुस्लिम मतदाताओं की बात करें तो वह भी सपा और कांग्रेस के रुझान में हैं इस बार सपा और कांग्रेस यूपी में एक साथ चुनाव लड़ रही है । वहीं यदि बसपा की बात करें तो उसका एक वोट बैंक है जो हाथी निशान पर ही वोट करेगा , इस बार लोकसभा सीट पर बसपा ने दयाशंकर मिश्रा को प्रत्याशी घोषित कर लड़ाई  दिलचस्प बना दिया है वहीं भाजपा की बात करें तो उसके पास भी सामान्य वोटों के साथ महिला समूहों के वोटों में भी अच्छी पकड़ है इसके अलावा मौजूदा सरकार की कई योजना भी भाजपा के वोट बैंक में इजाफा करेगी । 

इस बार सपा  प्रत्याशी राम प्रसाद चौधरी जहां कुर्मी ,यादव ,मुस्लिम एवं अन्य OBC की वोटों को हासिल करने की बात कर रहे हैं , वहीं बसपा से ब्राह्मण प्रत्याशी के तौर पर मैदान में उतरे दयाशंकर मिश्रा दलित एवं ब्राह्मण वोटों की बड़ी संख्या को देखते हुए अपनी जीत की दावेदारी पेश करेंगे वहीं भाजपा के हरीश द्विवेदी सामान्य वोटों के साथ ओबीसी और दलित वोटों के पुराने आंकड़े को दोहरा कर हैट्रिक लगाने के लिए मैदान में बने हुए हैं। 

खैर मतगणना के दिन परिणाम देखना होगा कि क्या भाजपा प्रत्याशी हरीश द्विवेदी हैट्रिक लगाएंगे या फिर बस्ती लोकसभा सीट पर दो बार जीत हासिल करने वाली बसपा की हैट्रिक लगेगा या फिर आज तक बस्ती लोकसभा सीट पर खाता न खोल पाने वाली समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी राम प्रसाद चौधरी जीत हासिल कर रिकॉर्ड को तोड़ेंगे ।

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शुक्रवार, 5 अप्रैल 2024

यूपी- डॉo हीरालाल ने सर्फेस वाटर के माध्यम से माइक्रोएरिगेशन को लागू करने के लिए दिया बल

लखनऊ-  05 अप्रैल, 2024 , कमाण्ड एरिया डेवलपमेन्ट थ्रू माइक्रो एरिगेशन पर मार्डन ड्रोन टेक्नालॉजी के प्रयोग पर एक तकनीकी प्रशिक्षण कार्यशाला का आयोजन हुआ । कार्यक्रम का आयोजन होटल कसाया इन, गोमती नगर, लखनऊ में सर्वे एवं प्लानिंग से जुड़ी संस्थाओं द्वारा ग्रेटर शारदा सहायक समादेश, उ०प्र० लखनऊ के सहयोग से आयोजित की गयी। 
इस तकनीकी प्रशिक्षण कार्यक्रम की शुरूआत मुख्य अतिथि अजय दीप सिंह, सेवानिवृत्त आई०ए०एस० द्वारा दीप प्रज्जवलन कर की गयी। प्रशिक्षण कार्यक्रम में सर्वप्रथम श्री रजनीश प्रकाश चौधरी, अधीक्षण अभियन्ता द्वारा अतिथियों का स्वागत किया गया। 
कार्यक्रम में बोलते हुये श्री राजीव यादव, अपर आयुक्त, ग्रेटर शारदा द्वारा कहा गया कि वर्तमान में जलवायु परिवर्तन एक वैश्विक समस्या है, जिससे निपटने के लिए समाज के प्रत्येक वर्ग में जागरूकता की आवश्यकता है। जलवायु परिवर्तन से जल संरक्षण एवं जल संरक्षण हेतु माइक्रो एरिगेशन की नवीन पद्धतियों की जानकारी अत्यन्त आवश्यक है। 
डॉ० हीरा लाल, अध्यक्ष एवं प्रशासक, ग्रेटर शारदा द्वारा सर्वे एवं प्लानिंग के लिए जमीनी स्तर पर कार्यवाही को आवश्यक बताया। उन्होंने सम्बोधित करते हुये कहा कि बिना टेक्नालॉजी के किसी भी परियोजना के उद्देश्य को प्राप्त नहीं किया जा सकता। सर्वे एवं प्लानिंग में ड्रोन टेक्नालॉजी की उपयोगिता पर बल देते हुये इसे जरूरी और मजबूरी बताया। उन्होंने कहा कि सभी अधिकारी कर्मचारी अपने अपने क्षेत्र में सर्फेस वाटर के माध्यम से माइक्रोएरिगेशन को लागू करने के लिए प्रोजेक्ट बनाकर 15 दिन में प्रस्तुत करें। अपने सम्बोधन में उन्होंने यह भी अपील की, कि अधिकारियों और कर्मचारियों का विकास केवल और केवल उनके द्वारा ही किया जा सकता है। इसके लिए युद्ध स्तर पर कार्य करने और नई तकनीक सीखने और इसे अमल में लाने की आवश्यकता है। 

कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुये अजय दीप सिंह, सेवानिवृत्त आई०ए०एस० द्वारा सर्वे एवं प्लानिंग में ड्रोन टेक्नालॉजी को आवश्यक बताते हुये इस पर दिये जा रहे प्रशिक्षण की प्रशंसा की तथा अपने पूर्व प्रशासनिक अनुभवों को साक्षा करते हुये उन्होंने कहा कि कोई भी उद्देश्य तभी पूर्ण हो सकता है, जब उसके पीछे ईमानदारी और लगन हो। 

अनिरुद्ध सिंह, प्रतिनिधि, सिटी मान्टेसरी स्कूल, लखनऊ द्वारा इस तरह के प्रशिक्षण को अनिवार्य बताया। कार्यशाला में कई तकनीकी सत्र आयोजित किये गये, जिनमें विभाग के अधिकारियों तथा सर्वे एवं प्लानिंग से जुड़े हुये संस्थाओं के तकनीकी विशेषज्ञों द्वारा सर्वे, प्लानिंग, डिजाइनिंग, बेनिफिट ऑफ मार्डन टेक्नालॉजी, एडवांस मैपिंग टेक्नालॉजी, जियोटैग आधारित ड्रोन टेक्नालॉजी पर प्रशिक्षण दिया गया।

 प्रशिक्षण में ए०पी०एस०एल० सैल्युशन, एडवांस जियोटैग सैल्युशन, कल्यानी जियोटैग, पी०सी०एस० मैंनेजमेंट कन्सलटेन्सी, प्योरवेज इन्फा, बिजनेस इनोवेशन, एल०आर०एम० कल्सटेन्स एवं ऐरोडाइन इण्डिया द्वारा तथा विभागीय तकनीकी अधिकारियों द्वारा सर्वे एवं प्लानिंग से जुड़ी हुई विभिन्न टेक्नालॉजियों पर प्रशिक्षण दिया गया। कार्यक्रम में ग्रेटर शारदा सहायक समादेश के समस्त उप निदेशक, भूमि संरक्षण अधिकारी, अवर अभियन्ता, सहायक भूमि संरक्षण निरीक्षक एवं अन्य तकनीकी अधिकारियों, कर्मचारियों द्वारा भाग लिया गया। कार्यक्रम का समापन श्री संदीप कुमार, डायरेक्टर सेल, ए०पी०एस०एल० सैल्युशन, नई दिल्ली द्वारा धन्यवाद ज्ञापन के साथ किया गया।

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