गुरुवार, 25 जनवरी 2024

बस्ती- सल्टौआ में भाजयुमो की तरफ से आयोजित हुआ नमो नवमतदाता सम्मेलन

बस्ती- भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की युवा इकाई भारतीय जनता युवा मोर्चा (भाजयुमो ) की तरफ से आज सल्टौआ में नमो नवमतदाता सम्मेलन आयोजित हुआ ।
सम्मेलन के मुख्य अतिथि शेतुभान राय ने कहा कि  10 साल पहले अधीकांश घरों में चूल्हे पर खाना बनता था लेकिन मोदी सरकार ने देश के लोगों को  मुफ्त गैस सिलेंडर का कनेक्शन देखर धुएं से आजादी दिया है ,उन्होंने कहा कि भाजपा की सरकार में उज्ज्वला योजना ,  किसान सम्मान निधि , मुफ्त राशन देने का काम किया गया है वहीं बिजली आदि के क्षेत्र में काफी सुधार हुआ है।
इस मौके पर ब्लॉक प्रमुख प्रतिनिधि सल्टौआ दुष्यन्त विक्रम सिंह ने कहा कहा आज देश भर में टेक्नोलॉजी ,सड़क , स्वास्थ्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में तेजी से विकास हुआ है , दुनिया की सबसे बड़ी जीडीपी बनने की राह पर हमारा देश अग्रसर है। गांव ,गरीब , किसान एवं बहनों के लिए मोदी सरकार काम कर रही है जिसका परिणम है कि कई दशकों से जो काम देश में अटके हुए थे वह काम मोदी सरकार में पूरा हुआ।
बता दें कि आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्चुअल माध्यम से जुड़कर नवमतदाता सम्मेलन को संबोधित किया जिसमें 
पीएम ने कहा कि जिस तरह 1947 से 25 साल पहले देश  के नौजवानों पर देश को स्वतंत्र कराने की जिम्मेदारी थी, उसी तरह 2047 से पहले के इन 25 सालों में आप पर विकसित भारत के निर्माण की जिम्मेदारी है. पीएम मोदी ने कहा कि जब भी स्वतंत्रता सेनानियों का नाम आता है तो उनमें से अनेकों लोग ऐसे होते हैं जिनकी उम्र 18 से 25 साल के बीच ही थी, उनके नाम आज भी इतिहास के पन्नों में स्वर्ण अक्षरों में लिखे जाते हैं.

इस मौके पर जमुना पाण्डेय ,रामनिवास गिरी ,विश्वास चित्रांश समेत सैकड़ो नवमतदाता उपस्थित थे।

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बुधवार, 24 जनवरी 2024

बस्ती-सपा के कार्यकर्ता सम्मेलन में विधायकों ने उठाई परिवर्तन की मांग

सौरभ वीपी वर्मा

बस्ती- जनपद के रुधौली विधानसभा क्षेत्र के सल्टौआ गोपालपुर में सपा ने कार्यकर्ता सम्मेलन का आयोजन किया कार्यक्रम की अध्यक्षता  विधानसभा अध्यक्ष मोहम्मद उमर ने किया संचालन प्रभाकर वर्मा ने किया । कार्यक्रम के मुख्य अतिथि पूर्व कैबिनेट मंत्री रामप्रसाद चौधरी ने कर्पूरी ठाकुर की जयंती के अवसर पर उनके चित्र पर माल्यार्पण करते हुए अपना संबोधन किया ।
मुख्य अतिथि ने कहा कि देश की जनता ने अपना बहुमूल्य वोट देकर 2014 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को  बहुमत में लाया था लेकिन गरीबी ,बेरोजगारी और भ्रष्टाचार का हवाला देकर सत्ता में बैठने वाली मोदी सरकार ने 10 साल का समय बीत जाने के बाद अपने वादों को पूरा करने में फेल साबित हुई है । मोदी सरकार ने सरकार ने 2 करोड़ लोगों को रोजगार देने की बात किया था लेकिन इस सरकार में जो नौकरी में हैं उनका रोजगार भी छीन लिया जा रहा है। उन्होंने कहा कि यह क्षेत्र किसानों का है यहां के किसान गन्ना की खेती बड़े पैमाने पर करते हैं लेकिन इस सरकार में गन्ना मूल्य बढ़ाने की बात छोड़िए मिलों ने किसानों के पुराने भुगतान को अभी तक किसानों को नही दिया है।  उन्होंने कहा कि यह अन्नदाता का देश है लेकिन किसानों की आय दोगुना करने की बात करने वाली सरकार ने किसानों को न तो फसलों का वाज़िब मूल्य दिलवा पा रही है और न ही उनकी आय में वृद्धि कर पा रही है पूर्व मंत्री ने कहा कि आने वाले 2024 के आम चुनाव में आप सब किसानों के साथ अन्याय अत्याचार करने वाली सरकार को सत्ता से बाहर कर देश में कामकाजी सरकार को लाएं।कार्यक्रम में भीड़ को देखकर पूर्व कैबिनेट मंत्री ने कहा यह परिवर्तन का संकेत है।
इस मौके पर रुधौली विधानसभा के विधायक और कार्यक्रम के आयोजक राजेन्द्र चौधरी ने कहा स्वास्थ्य ,शिक्षा और रोजगार देने के मामले में डबल इंजन की सरकार पूरी तरह से विफल है , इस सरकार में समूह और सखी के नाम पर महिलाओं को गुमराह किया जा रहा है , युवाओं और बेरोजगार लोगों को चंद पैसों का लालच देकर मानसिक रूप से गुलाम बनाया जा रहा है । उन्होंने कहा कि मणिपुर जलता रहा लेकिन देश के प्रधानमंत्री ने उसपर बोलने की जरूरत नही समझी , उन्होंने कहा कि इस सरकार में गरीबों के घर पर बुलडोजर चल जाता है लेकिन अमीरों के घर पर इनका बुलडोजर नही चलता है क्योंकि ये  गरीबों की नही अमीरों की सरकार है । उन्होंने कहा कि आज किसान एवं संविधान को बचाने की आवश्यकता है क्योंकि मौजूदा सरकार किसान और संविधान दोनों को कमजोर कर रही है।

सदर विधानसभा के विधायक महेंद्र नाथ यादव ने कहा कहा कि   यह किसानों का इलाका है लेकिन 10 साल का समय बीत गया लेकिन भाजपा की सरकार ने किसानों की आय दोगुना करने की बात कहकर  कोई भी काम नही कर पाई , भाजपा ने अच्छे दिन गई गारंटी दिया था लेकिन किसानों को 50 किलो की यूरिया की बोरी 45 किलो की मिलने लगी , स्वास्थ्य और शिक्षा भी महंगी हो गई , कानून व्यवस्था और न्याय देने में भी सरकार विफल है क्योंकि भाजपा गरीबों की बात केवल कहती है लेकिन पूरा तरक्की अमीरों के लिए करती है । विधायक ने कहा कि समाजवादी पार्टी की सरकार में बेटियों को कन्याधन मिलता था लेकिन बेटियों को मिलने वाला यह सम्मान भी बीजेपी ने छीन लिया ।  उन्होंने कहा कि भाजपा की सरकार में न तो कोई सुरक्षित है न किसी को रोजगार और न्याय मिल रहा है इस लिए आने वाले लोकसभा चुनाव में बीजेपी को हटाने की जरूरत है।क्योंकि भाजपा नेगरीबों की आजादी खत्म कर दिया है।
  
इस मौके पर कप्तानगंज के विधायक अतुल चौधरी ने कहा कि इस क्षेत्र की जनता ने हर बार राम प्रसाद चौधरी को प्यार और सम्मान दिया है जिसकी वजह से बस्ती लोकसभा का नाम पूरे प्रदेश में होता रहा है उन्होंने कहा कि अब वह समय आ गया है जब वंचित वर्ग का अधिकार छीनने वाली सरकार को सत्ता से बाहर कर देश में स्वास्थ्य ,शिक्षा और रोजगार देने वाली सरकार का निर्माण करना है ।

इस मौके पर  राजमोहन चौधरी ,बृजेश पटेल , रविन्द्र चौधरी ,संजय चौधरी , प्रमोद यादव , रवि चौधरी , रामचन्द्र यादव , कमलेश चौधरी ,राजमोहन  चौधरी , द्वारिका चौधरी धीरसेन निषाद , जितेंद्र यादव ,अनिल चौधरी ,संजय चौधरी , संतोष चौधरी , कृष्ण कुमार जर्सी यादव , रोहित कनौजिया , रतनेश चौधरी , टोनी चौधरी , अंकित पाण्डेय , गुड्डू चौधरी ,रामतीर्थ यादव , डब्लू चौधरी ,लक्ष्मण चौधरी ,पवन मोदनवाल , मेवालाल यादव , विपिन चौधरी ,गिरधारी यादव , लल्लू मौर्या ,प्रेमा कुमारी ,महंत यादव ,जगराम यादव , राधेश्याम यादव ,रामकेवल यादव सहित हजारों की संख्या मौजूद रही।

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सोमवार, 22 जनवरी 2024

1528 से 2024 तक करीब 500 साल बाद मंदिर में विराजे श्रीराम

©BBC

अयोध्या- बरसों बाद राम भक्तों का सपना सच हो गया है. अयोध्या के राम मंदिर (Ram Mandir) में गर्भगृह में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा हो गई. अब राम भक्त, भगवान राम की जन्मभूमि पर ही उनका पूजन कर पाएंगे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Pm Modi) की सरकार ने अरसे पुराना ये सपना पूरा कर दिखाया. ऐसे खास समय में अयोध्या के इतिहास (History of Ayodhya) को जानना भी जरूरी है. आइए आपको बताते हैं राम जन्मभूमि, अयोध्या, राम मंदिर और अवध से जुड़ा जरूरी इतिहास...

1528: बाबरी मस्जिद की उत्पत्ति
यह किस्सा 1528 की है...जब मुगल शासक बाबर भारत आया. 2 साल बाद बाबर के सेनापति मीरबाकी ने अयोध्या में एक मस्जिद का निर्माण करवाया. ऐसा कहा जाता है कि यह मस्जिद वहीं बनाया गया, जहां भगवान राम का जन्म हुआ था. लेकिन मुगलों और नवाबों के शासनकाल में हिंदू मुखर नहीं हो पाए. 19 वीं सदी में जब मुगल शासक की पकड़ भारत में कमजोर हुई तो अंग्रेजी हुकूमत प्रभावी था. इसके कुछ दिनों बाद भगवान राम के जन्मस्थल को वापस पाने की लड़ाई शुरू हुई.

1751: जब निहंग सिखों ने मस्जिद में लिखा था श्रीराम का नाम
जानकार बताते हैं कि सिखों के इतिहास को खगालने पर पता चलता है कि अयोध्या (Ayodhya) में सबसे पहले बाबरी मस्जिद में विद्रोहियों के घुसने की जो घटना घटी थी वो हिंदुओं के द्वारा नहीं घटी थी बल्कि सिखों ने की थीं. श्रीराम जन्म स्थान के करीब ही अयोध्या में एक गुरुद्वारा है जिसका नाम है गुरुद्वारा ब्रह्म कुंड. इसी गुरुद्वारे में सिखों के गुरु, गुरु गोबिंद सिंह भी आकर ठहरे थे. यह घटना आज से 165 साल पहले की है. इतिहास के उस काल में निहंग सिखों (Nihang Sikh) ने बाबरी मस्जिद में घुसकर जगह-जगह पर श्रीराम का नाम लिखा था और यह साबित करने की कोशिश की थी कि यह श्रीराम के जन्म का स्थान है. इसके बारे में ना सिर्फ सिख ग्रंथों में जिक्र है बल्कि इतिहासकार भी इस बारे में जानकारी देते हैं.

1885: पहला कानूनी दावा
निर्मोही अखाड़े के पुजारी रघुबर दास ने 1885 में पहला कानूनी मुकदमा दायर किया, जिसमें मस्जिद के बाहरी प्रांगण में एक मंदिर बनाने की अनुमति मांगी गई. हालांकि, खारिज कर दिया गया, इसने एक कानूनी मिसाल कायम की और विवाद को जीवित रखा. तब तक, शहर में ब्रिटिश प्रशासन ने हिंदुओं और मुसलमानों के लिए पूजा के अलग-अलग क्षेत्रों को चिह्नित करते हुए स्थल के चारों ओर एक बाड़ लगा दी, और यह लगभग 90 वर्षों तक उसी तरह खड़ा रहा.

1949: विवादित ढांचे के अंदर रखी गई 'राम लला' की मूर्तियां
22 दिसंबर, 1949 की रात को बाबरी मस्जिद के अंदर 'राम लल्ला' की मूर्तियां रखी गईं, जिससे स्थल के आसपास धार्मिक भावनाएं तीव्र हो गईं और इसके स्वामित्व पर कानूनी लड़ाई शुरू हो गई. हिंदुओं ने दावा किया कि मूर्तियां मस्जिद के अंदर "प्रकट" हुईं. इस साल पहली बार संपत्ति विवाद अदालत में गया.

1950-1959: कानूनी मुकदमे बढ़े
अगले दशक में कानूनी मुकदमों में वृद्धि देखी गई, जिसमें निर्मोही अखाड़ा ने मूर्तियों की पूजा करने का अधिकार मांगा और सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने साइट पर कब्ज़ा करने की मांग की और यह विवाद गहराता गया.

1986-1989: बाबरी मस्जिद के ताले खोले गए
 1986 में केंद्र में राजीव गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार के दौरान, बाबरी मस्जिद के ताले खोल दिए गए, जिससे हिंदुओं को अंदर पूजा करने की अनुमति मिल गई. इस निर्णय ने तनाव को और बढ़ा दिया. विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) ने 1990 में राम मंदिर के निर्माण के लिए एक समय सीमा तय की, जिससे मंदिर की मांग बढ़ गई. इस अवधि में भाजपा के दिग्गज नेता लालकृष्ण आडवाणी की रथ यात्रा की शुरुआत की थी. वीएचपी और भाजपा ने राम जन्मभूमि की 'मुक्ति' के लिए समर्थन जुटाया.

1990: रथ यात्रा और विध्वंस का असफल प्रयास
मंडल आयोग के कार्यान्वयन और बढ़ते राजनीतिक तनाव के बीच, एल.के. 1990 में आडवाणी की रथ यात्रा का उद्देश्य मंदिर के लिए समर्थन जुटाना था. मस्जिद को ध्वस्त करने के असफल प्रयास के बावजूद, यह आंदोलन में एक महत्वपूर्ण मोड़ था.

1992: बाबरी मस्जिद विध्वंस
वर्ष 1992 बाबरी मस्जिद का विध्वंस...सुप्रीम कोर्ट के आश्वासन के बावजूद, हिंदू कार्यकर्ताओं द्वारा मस्जिद को ढहा दिया गया. उस प्रलयंकारी घटना और उसके बाद हुए दंगों ने भारतीय राजनीति को हमेशा के लिए बदल दिया. 

1993-1994: विध्वंस के बाद दंगे
बाबरी मस्जिद के विध्वंस के बाद, पूरे भारत में सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे, जिसके परिणामस्वरूप जान-माल का नुकसान हुआ. पीवी नरसिम्हा राव के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार द्वारा विवादित क्षेत्र के अधिग्रहण को डॉ. इस्माइल फारुकी ने चुनौती दी, जिसके बाद 1994 में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया. फैसले ने अधिग्रहण को बरकरार रखा, जिससे मामले में राज्य की भागीदारी और मजबूत हो गई.

2002-2003: एएसआई की खुदाई और इलाहाबाद उच्च न्यायालय में सुनवाई
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 2002 में मामले की सुनवाई शुरू की, और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने मस्जिद के नीचे एक हिंदू मंदिर के सबूत का दावा करते हुए खुदाई की और यह कानूनी लड़ाई जारी रही.

2009-10: लिब्रहान आयोग की रिपोर्ट
16 वर्षों में 399 बैठकों के बाद, लिब्रहान आयोग ने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिसमें बाबरी मस्जिद विध्वंस के जटिल विवरणों का खुलासा किया गया और प्रमुख नेताओं को शामिल किया गया. लिब्रहान आयोग ने अपनी जांच शुरू करने के लगभग 17 साल बाद जून 2009 को अपनी रिपोर्ट सौंपी, जिसमें लालकृष्ण आडवाणी, अटल बिहारी वाजपेयी और अन्य भाजपा नेताओं का नाम शामिल था.

इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 2010 के फैसले में भूमि को हिंदुओं, मुसलमानों और निर्मोही अखाड़े के बीच विभाजित करके विवाद को सुलझाने का प्रयास किया गया. हालांकि, निर्णय को अपील और आगे की कानूनी चुनौतियों का सामना करना पड़ा.

2019: सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला
2019 में एक ऐतिहासिक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने राम मंदिर के निर्माण के लिए पूरी विवादित भूमि हिंदुओं को दे दी और मस्जिद के निर्माण के लिए एक वैकल्पिक स्थल आवंटित किया.

2020: राम मंदिर शिलान्यास
PM नरेंद्र मोदी ने 5 अगस्त, 2020 को भव्य राम मंदिर की आधारशिला रखी. भूमि पूजन और श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के गठन ने राम मंदिर के निर्माण का मार्ग प्रशस्त कर दिया, जिससे एक लंबी कानूनी गाथा का अंत हुआ.

2024: पीएम मोदी ने राम मंदिर का उद्घाटन किया
22 जनवरी, 2024 को अयोध्या के राममंदिर में गर्भगृह में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा हुई. इस अवसर पर गर्भगृह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत और उत्‍तर प्रदेश के मुख्‍यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ भी मौजूद रहे. 

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शुक्रवार, 19 जनवरी 2024

नीति आयोग की रिपोर्ट पर अर्थशास्त्रियों ने जताई आपत्ति कहा देश में गरीबी घटने का दावा झूठ

रिपोर्ट-द वायर

नीति आयोग की एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि देश में बीते 9 वर्षों में 24.8 करोड़ से अधिक लोग ग़रीबी से बाहर निकले हैं. अर्थव्यवस्था के विशेषज्ञों ने इस पर आपत्ति जताते हुए कहा है कि इन दावों के आधार के तौर पर इस्तेमाल किया गया बहुआयामी गरीबी सूचकांक (एमपीआई) गरीबी का प्रतिनिधित्व नहीं करता है.
नई दिल्ली: अर्थव्यवस्था के विशेषज्ञों ने नीति आयोग की उस हालिया रिपोर्ट पर संदेह जताया है जहां उसने दावा किया है कि वर्ष 2022-23 तक पिछले 9 वर्षों में देश के 24.8 करोड़ लोगों को बहुआयामी गरीबी से बाहर निकाला गया है.

बहुआयामी गरीबी- स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन स्तर में अभाव की स्थिति को मापती है, जिनका प्रतिनिधित्व 12 सतत विकास लक्ष्यों से संबद्ध संकेतक करते हैं.

रिपोर्ट में कहा गया है, ‘भारत में बहुआयामी गरीबी 2013-14 में 29.17 फीसदी से घटकर 2022-23 में 11.28 फीसदी हो गई. इस अवधि के दौरान लगभग 24.82 करोड़ लोग इस श्रेणी से बाहर आए हैं. राज्य स्तर पर उत्तर प्रदेश 5.94 करोड़ लोगों के गरीबी से बाहर निकलने के साथ सूची में शीर्ष पर है, इसके बाद बिहार (3.77 करोड़) और मध्य प्रदेश (2.30 करोड़) का नंबर आता है.’

रिपोर्ट में दावा किया गया है कि सरकार की कुछ पहलों – जैसे पोषण अभियान, एनीमिया मुक्त भारत, उज्ज्वला और अन्य – ने अभाव के विभिन्न पहलुओं को संबोधित करने में ‘महत्वपूर्ण भूमिका’ निभाई है.

इसमें यह भी कहा गया है कि भारत 2030 से काफी पहले सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी) 1.2 (बहुआयामी गरीबी को कम से कम आधा कम करना) हासिल कर सकता है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सरकारी थिंक-टैंक की रिपोर्ट के बारे में ट्वीट करते हुए कहा, ‘बहुत ही उत्साहजनक, (यह) समावेशी विकास को आगे बढ़ाने और हमारी अर्थव्यवस्था में परिवर्तनकारी बदलावों पर ध्यान केंद्रित करने के प्रति हमारी प्रतिबद्धता को दर्शाता है. हम सर्वांगीण विकास और प्रत्येक भारतीय के लिए समृद्ध भविष्य सुनिश्चित करने की दिशा में काम करना जारी रखेंगे

हालांकि, द टेलीग्राफ की रिपोर्ट के अनुसार विशेषज्ञों ने इन दावों को करने के लिए बहुआयामी गरीबी सूचकांक (एमपीआई) के उपयोग पर कुछ गंभीर संदेह जताए हैं.

सेवानिवृत्त भारतीय आर्थिक सेवा अधिकारी केएल दत्ता ने अखबार को बताया, ‘एमपीआई हमें केवल उन लोगों का प्रतिशत बताता है जिनकी सरकार द्वारा प्रदान की गई या उनके लिए उपलब्ध कुछ सुविधाओं तक पहुंच नहीं है.’

उन्होंने कहा, ‘इसका उपयोग योजनाकारों और नीति निर्माताओं द्वारा लक्ष्य निर्धारित करने के लिए नहीं किया जाता है, न ही इसका उपयोग गरीबी कम करने की योजना बनाने के लिए इनपुट के रूप में किया जाता है. संक्षेप में, एमपीआई गरीबी का प्रतिनिधित्व नहीं करता है. सरकार एमपीआई आकलन को गरीबी अनुपात के विकल्प के रूप में पेश करने की कोशिश कर रही है. यह ठीक नहीं है.’

पटना के एएन सिन्हा इंस्टिट्यूट के पूर्व निदेशक अर्थशास्त्री सुनील राय ने कहा, ‘कोई राज्य सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी) कैसे हासिल कर सकता है जब उसकी सरकार को अपनी दो-तिहाई से अधिक आबादी का सर्वाइवल (राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के माध्यम से) सुनिश्चित करना पड़ता हो. सरकार यह मुफ्त सुविधा इसलिए दे रही है क्योंकि लोग आत्मनिर्भर नहीं हैं.’

अर्थशास्त्री और अधिकार कार्यकर्ता ज्यां द्रेज ने भी एमपीआई के उपयोग को लेकर संदेह व्यक्त किया. उन्होंने द टेलीग्राफ को बताया, ‘एमपीआई में अल्पकालिक क्रय शक्ति का कोई संकेतक शामिल नहीं है. इसलिए हमें अन्य जानकारी, जिसमें वास्तविक मजदूरी में धीमी वृद्धि के हालिया प्रमाण शामिल हैं, के साथ एमपीआई डेटा को देखना चाहिए.’

उन्होंने जोड़ा कि एमपीआई डेटा लंबे समय से लंबित उपभोक्ता व्यय सर्वेक्षणों के गरीबी अनुमानों का पूरक हो सकता है, लेकिन उनका विकल्प नहीं.

अर्थशास्त्री और कलकत्ता विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति असीस बनर्जी ने कहा कि जहां एमपीआई का उपयोग गरीबी मापने के लिए नहीं किया जा सकता है, वहीं यह विशेष सरकार कम एमपीआई का भी श्रेय नहीं ले सकती है.

उन्होंने अखबार को बताया, ‘यह (एमपीआई) लंबे समय से गिर रहा है, न कि सिर्फ पिछले नौ सालों से. अधिकतर अध्ययन दिखाते हैं कि इसका श्रेय 2014 में केंद्र में सरकार बदलने से पहले शुरू किए गए उपायों को जाता है.’

उन्होंने यह भी कहा, ‘…यह बड़ा रहस्य है कि अगर गरीबी में इतनी प्रभावशाली कमी आई है तो हालिया समय में वैश्विक भुखमरी सूचकांक (ग्लोबल हंगर इंडेक्स) में भारत के प्रदर्शन में गिरावट क्यों देखी गई है?’

बता दें कि 12 अक्टूबर 2023 को दो यूरोपीय एजेंसियों द्वारा जारी ग्लोबल हंगर इंडेक्स रिपोर्ट में भारत 125 देशों में 111वें स्थान पर था. भारत से नीचे बस अफगानिस्तान, हैती, सोमालिया, कांगो और सूडान जैसे अभावग्रस्त देश थे.





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गुरुवार, 18 जनवरी 2024

बस्ती- जिले के स्वास्थ्य विभाग का तंत्र कमीशनखोरी के चलते नही चलने देता एक्सरे मशीन

सौरभ वीपी वर्मा

स्वास्थ्य सुविधाओं के नाम पर इस देश में खूब ढोल पीटे गए जिसमें ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को उनके आसपास के अस्पतालों में बुनियादी सुविधाओं का जाल बिछाने के नाम पर लाखों करोड़ों रुपया खर्च हुआ , लेकिन चिकित्सा विभाग के भ्रष्ट अधिकारियों द्वारा सरकार की महत्वाकांक्षी योजनाओं को लागू करने के बजाय कमीशन खोरी के चलते सरकारी अस्पताल की  सेवाओं को या तो चलने नही देते हैं या फिर जान बूझ कर मशीनों को खराब कर देते हैं ताकि मरीज आएं और बाहर प्राइवेट में भी जाकर हजार -दो हजार खर्च करने करें और पीछे के रास्ते शाम को जेब से गर्म कर अपने घर निकल जाएं।
ऐसा ही मामला सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र गौर का है जहां पर करीब 4 महीने से एक्स-रे मशीन ताला बंद कमरे में रखी गई है , एक्सरे टेक्नीशियन कहीं अन्य जगह पर सेवा दे रहा है । लेकिन स्वास्थ्य विभाग ने अभी तक यह जहमत नहीं उठाई कि सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पर आकर रखी गई मशीन को वहां पर आने वाले मरीजों के लिए चालू कर दिया जाए ।

बात साफ है की सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के अधीक्षक को शाम को मेडिकल स्टोर , लैब ,एक्सरे एवं अल्ट्रासाउंड सेंटरों से वसूली करनी है इस लिए वह सरकारी यंत्र को चलने में मदद क्यों करें ।

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मंगलवार, 16 जनवरी 2024

जिसका उदय हुआ है उसका अस्त भी तय है- सौरभ वीपी वर्मा

जो उदय हुआ है वह अस्त भी होगा
🖊️सौरभ वीपी वर्मा

तथागत गौतम बुद्ध के धर्मोपदेशों (त्रिपिटक) से बहुजन हिताय बहुजन सुखाय ,उपदेश शब्द को लेकर बसपा ने देश- प्रदेश की जनता को एक बड़ा संदेश दिया था जिसका परिणाम रहा कि मायावती का एक दौर स्वर्णिम युग की तरह देखा जा सकता है ।चाहे राजस्थान , मध्यप्रदेश , छत्तीसगढ़ , पंजाब , हरियाणा ,झारखंड और बिहार जैसे राज्यों में सीटों को निकाल कर राष्ट्रीय स्तर का दर्जा प्राप्त करना हो ,या फिर मायावती का पूर्ण बहुमत में उत्तर प्रदेश में सरकार में लौटना , यह उनके राजनीतिक उदय का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन रहा है। लेकिन यहां ध्यान रखना जरूरी है कि जिस तरह से मायावती ने राजनीति के गलियों से लेकर सत्ता की कुर्सी तक पूरा ध्यानकेंद्रित अपने ऊपर रखा उसका नतीजा रहा कि वर्ष 2012 के बाद से मायावती का राजनीतिक सूरज अस्त होने की तरफ बढ़ते हुए दिखाई देने लगा । 2014 लोकसभा में बसपा को एक भी सीटें न मिलना और 2022 की विधानसभा चुनाव में केवल एक सीट पर सिमटने वाली बसपा को भी हमने देखा है ।
यह तो रहा भूमिका लेकिन कहने का आशय यह है कि जिसका उदय हुआ है उसका अस्त होना भी तय है , चाहे पूरब से उदय होने वाले सूरज का पश्चिम में अस्त होना या फिर धरना प्रदर्शन और भ्रष्टाचार का हवाला देकर मुख्यमंत्री से लेकर प्रधानमंत्री बनने वाले नेता की बात हो एक स्वस्थ समय आने के बाद सबका शाम ढलना तय है । अब हम बात करेंगे देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जो गरीबी , बेरोजगारी और भ्रष्टाचार जैसी मुद्दे पर कोई खास राय नही रखते हैं , वह केवल मंच और मीडिया के सामने गरीबी ,बेरोजगारी और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दे पर जुमलाबाजी भाषण देकर लोगों के जेहन को हाईजैक करते हुए सत्ता की कुर्सी पर जमे रहना चाहते हैं , 2014 से ही देश की जनता से सस्याओं को लिस्ट दिखा कर उसपर समाधान लाने की बात करने वाली भारतीय जनता पार्टी 10 वर्षों का कार्यालय पूरा करने वाली है लेकिन बाजारीकरण वाले योजनाओं  को छोड़ दें तो अभी तक कोई भी ऐसा कार्य इस सरकार में नही हुआ है जिसकी वजह से लोगों के जीवन और जीविका के क्षेत्र में बदलाव आए ।ऐसी स्थिति पर नरेंद्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी की सरकार से भी देश की जनता का मोह भंग होना तय है बशर्ते हिंदी ,हिन्दू और हिंदुस्तान के नाम पर फैलाये जा रहे प्रोपोगंडा का नशा उतरने तो दीजिये।

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शनिवार, 13 जनवरी 2024

सर्दी ने तोड़े सारे रिकॉर्ड, 3 डिग्री सेल्सियस पर कांपा यूपी, अभी और बढ़ेगी ठंड, अलर्ट

उत्तर प्रदेश में सर्दी ने सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं. ऐसा पहली बार हुआ है जब न्यूनतम तापमान तीन डिग्री सेल्सियस तक रिकॉर्ड किया गया. यह न्यूनतम तापमान ताज नगरी आगरा में रिकॉर्ड किया गया है, जबकि मेरठ में न्यूनतम तापमान 4 डिग्री सेल्सियस रिकॉर्ड हुआ. अलीगढ़ में भी चार डिग्री सेल्सियस न्यूनतम तापमान रिकॉर्ड हुआ है. जबकि बरेली, शाहजहांपुर,‌ मुजफ्फरनगर और लखनऊ में न्यूनतम तापमान 5 से 6 डिग्री सेल्सियस तक रिकॉर्ड हुआ है. लखनऊ मौसम केंद्र की ओर से घने कोहरे की चेतावनी जारी की गई है. साथ ही अलर्ट जारी किया गया है कि तापमान अभी और नीचे जा सकता है.

यही नहीं पूरा प्रदेश शीत लहर की चपेट में है. शीत लहर लगातार बढ़ने की वजह से भी तापमान में गिरावट हो रही है. लखनऊ मौसम केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक मोहम्मद दानिश ने बताया कि प्रदेश में न्यूनतम तापमान तीन डिग्री सेल्सियस तक रिकॉर्ड हुआ है, जबकि अधिकतम तापमान लगातार 11 डिग्री सेल्सियस से लेकर 15 डिग्री सेल्सियस के बीच ही चल रहा है. लखनऊ में भी यही हाल है. सर्दी से अभी कोई राहत मिलती हुई नजर नहीं आ रही है. बल्कि आने वाले एक से दो दिनों में सर्दी और बढ़ेगी. उसके बाद तापमान में थोड़े बदलाव हो सकते हैं. लेकिन अभी मौसम केंद्र की मॉनिटरिंग जारी है.

लखनऊ मौसम केंद्र की ओर से दी गई जानकारी के मुताबिक लखनऊ का अधिकतम तापमान 17 डिग्री सेल्सियस जबकि न्यूनतम तापमान 6 डिग्री सेल्सियस रहेगा. वहीं बाराबंकी, हरदोई, कानपुर शहर, कानपुर देहात, लखीमपुर खीरी, गोरखपुर और वाराणसी समेत बलिया चुर्क, बहराइच और प्रयागराज में न्यूनतम तापमान 7 डिग्री सेल्सियस से लेकर 8 डिग्री सेल्सियस के बीच ही रहेगा जबकि इन जिलों का अधिकतम तापमान 14 डिग्री सेल्सियस से लेकर 15 डिग्री सेल्सियस के बीच रहने का पूर्वानुमान है. फतेहपुर, बांदा, सुल्तानपुर, फैजाबाद, फुरसतगंज, गाजीपुर, फतेहगढ़, बस्ती, झांसी, उरई और हमीरपुर में न्यूनतम तापमान 6 डिग्री सेल्सियस से लेकर 5 डिग्री सेल्सियस के बीच रहने का पूर्वानुमान है, वहीं अधिकतम तापमान 15 डिग्री सेल्सियस से लेकर 16 डिग्री सेल्सियस के बीच रहेगा.


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मंगलवार, 9 जनवरी 2024

CEO ने चार साल के बेटे की कर डाली हत्या ,शव को बैग में रखकर गोवा से भाग रही थी बेंगलुरु ,गिरफ्तार

©नवभारत टाइम्स

पणजी: दुनिया में पूत कपूत हो सकता है लेकिन माता कभी कुमाता नहीं हो सकती... इस कहावत को बेंगलुरु की रहने वाली 39 साल की महिला ने झूठा साबित कर दिया है। एक कंपनी की सीईओ सुचना सेठ ने अपने चार साल के मासूम बेटे को मार डाला। गोवा में वारदात को अंजाम देने के बाद सुचना सेठ बेटे के शव को बैग में भरकर बेंगलुरु रवाना हो गईं। हालांकि मामले में गोवा पुलिस हरकत में आई और कर्नाटक पुलिस से संपर्क किया। इसके बाद आरोपी महिला को कर्नाटक के चित्रदुर्ग जिले के ऐमंगला पुलिस स्टेशन में हिरासत में लिया गया है। गोवा पुलिस ने महिला के खिलाफ चार साल के बेटे की कथित तौर पर हत्या करने का मामला दर्ज किया है।
क्या है पूरा मामला
कलंगुट पुलिस इंस्पेक्टर परेश नाइक ने टीओआई को बताया कि हमने सुचना सेठ के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज किया है। जो कि एक कंपनी के संस्थापक और सीईओ हैं। यह घटना तब सामने आई जब सुचना अपने चार साल के बेटे के साथ शनिवार को कैंडोलिम के होटल सोल बनयान ग्रांडे के सर्विस अपार्टमेंट के कमरा नंबर 404 में गई थी। सोमवार सुबह चेक आउट करने के बाद कर्मचारी उनके कमरे की सफाई करने गए। एक कर्मचारी ने कमरे में खून का धब्बा देखा और तुरंत होटल प्रबंधन को सूचित किया। इस पर सोमवार सुबह करीब 11 बजे होटल प्रबंधन ने कैलंगुट पुलिस से संपर्क किया।

सीसीटीवी फुटेज से खुलासा

सूचना पर उत्तरी गोवा के पुलिस अधीक्षक निधिन वलसन ने कहा कि जब पुलिस होटल पहुंची और सीसीटीवी फुटेज की जांच की। पुलिस ने पाया कि सुचना सेठ अपने बेटे के बिना कमरे से बाहर गई थी। पुलिस को मामला संदिग्ध लगा और उसने होटल स्टाफ से पूछताछ की।

कैब से बेंगलुरु रवाना
होटल के कर्मचारियों ने कहा कि सुचना सड़क मार्ग से बेंगलुरु जाना चाहती थी और वहां जाने के लिए टैक्सी चाहती थी। पुलिस को बताया कि उन्होंने उससे कहा था कि टैक्सी महंगी होगी और उसे हवाई यात्रा करनी चाहिए। लेकिन सुचना ने टैक्सी के लिए जिद की। इसके बाद होटल के स्टाफ ने उसे बेंगलुरु ले जाने के लिए एक स्थानीय कैब की व्यवस्था की।

पुलिस को दिया फर्जी पता
कलंगुट पीआई नाइक ने कहा कि उन्होंने कैब ड्राइवर का नंबर लिया और सुचना से बात की। नाइक ने कहा कि जब उसने उससे उसके बेटे के बारे में पूछा तो सुचना ने उसे बताया कि उसने अपने बेटे को फतोर्दा में अपने दोस्त के घर छोड़ दिया था। जब पुलिस ने दोस्त का पता पूछा तो उसने सारी जानकारी भेज दी। इसके बाद नाइक ने पते को वेरिफाइड करने के लिए फतोर्दा में अपने समकक्ष से संपर्क किया। लेकिन पता चला कि पता फर्जी है।

इसके बाद नाइक ने फिर ड्राइवर से संपर्क किया। उससे कोंकणी में बात की और वाहन को नजदीकी पुलिस स्टेशन ले जाने के लिए कहा। उस समय तक वे कर्नाटक के चित्रदुर्ग जिले में पहुंच चुके थे। सुचना की जानकारी के बिना ड्राइवर टैक्सी को ऐमंगला पुलिस स्टेशन ले गया। नाइक ने अमीमंगला पुलिस इंस्पेक्टर से संपर्क किया और उनसे बैग की जांच करने का अनुरोध किया। नाइक ने कहा कि जब बैग खोला गया तो चार साल के बच्चे का शव मिला।

कर्नाटक के लिए गोवा पुलिस रवाना
इसके बाद सुचना को हिरासत में लेने के लिए कैलंगुट पुलिस टीम पहले ही कर्नाटक के लिए रवाना हो चुकी है। नाइक ने कहा कि वे उसे गिरफ्तार करेंगे। ट्रांजिट रिमांड लेंगे और आगे की जांच के लिए उसे गोवा लाएंगे।

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रविवार, 7 जनवरी 2024

अमेरिकी भूमिका के विरोध में संदीप पांडेय ने लौटाया मैग्सेसे पुरस्कार, अमेरिकी डिग्रियां भी लौटाईं

नई दिल्ली। जाने-माने सामाजिक कार्यकर्ता संदीप पांडेय ने गाजा युद्ध में अमेरिकी भूमिका का विरोध करते हुए अपना मैग्सेसे पुरस्कार लौटाने का फैसला किया है। इसके साथ ही उन्होंने अमेरिका में हासिल अपनी डिग्रियों को भी वापस करने का फैसला किया है। संदीप पांडेय को 2002 में मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।

संदीप पांडेय ने एक बयान जारी कर कहा है कि “2002 में जब मैं मैग्सेसे पुरस्कार लेने मनीला गया तो वहां एक छोटा सा विवाद खड़ा हुआ। फिलीपींस की राष्ट्रपति से पुरस्कार प्राप्त करने के अगले दिन मुझे मनीला स्थित अमरीकी दूतावास पर अमरीका के इराक पर होने वाले सम्भावित हमले के खिलाफ एक प्रदर्शन में शामिल होना था। तब मैग्सेसे फाउंडेशन की अध्यक्षा ने मुझे वहां जाने से यह कहकर रोकने की कोशिश की कि मेरे अमरीकी दूतावास पर प्रदर्शन में शामिल होने से फाउंडेशन की बदनामी होगी।

मैंने उन्हें याद दिलाया कि जिन चार कारणों से उन्होंने मुझे मैग्सेसे पुरस्कार दिया था उसमें एक भारत के नाभिकीय परीक्षण के खिलाफ वैश्विक नाभिकीय निशस्त्रीकरण के उद्देश्य से पोकरण से सारनाथ तक निकाली गई पदयात्रा थी। यानी युद्ध के खिलाफ मेरी भूमिका से वे पूर्व-परिचित थीं। मैंने उन्हें बताया कि इत्तेफाक से जिस दिन मुझे पुरस्कार मिला उसी दिन मनीला के विश्ववि़द्यालय में हुए एक शांति सम्मेलन में अमरीकी दूतावास पर प्रदर्शन करने का निर्णय लिया गया था और मैं इस सम्मेलन में भी आमंत्रित था।”

उन्होंने कहा कि “मेरे विरोध प्रदर्शन में शामिल होने के बाद मनीला के एक अखबार ने अपने सम्पादकीय में मुझे यह चुनौती दी कि यदि मैं उतना ही सिद्धांतवादी हूं जितना कि मैं चाहता हूं कि वे मानें तो मैं भारत लौटने से पहले मैग्सेसे पुरस्कार लौटा कर जाऊं। इससे मेरा काम आसान हो गया।

मैंने हवाई अड्डे से पुरस्कार के साथ मिली धनराशि लौटा दी और मैग्सेसे फाउंडेशन की अध्यक्षा को एक पत्र लिखकर कहा कि फिलहाल मैं पुरस्कार अपने पास रख रहा हूं क्योंकि पुरस्कार फिलीपींस के एक लोकप्रिय भूतपूर्व राष्ट्रपति के नाम पर है और भारत में यह ऐसे प्रतिष्ठित व्यक्तित्वों को मिल चुका है, जैसे जयप्रकाश नारायण, विनोबा भावे व बाबा आम्टे, जो मेरे आदर्श हैं।”

संदीप पांडेय ने कहा कि उस पत्र में मैंने यह भी लिखा कि जिस दिन उन्हें लगे कि मेरी वजह से मैग्सेसे फाउंडेशन की ज्यादा बदनामी हो रही है तो मैं पुरस्कार भी लौटा दूंगा

लेकिन अब मुझे लगता है कि समय आ गया है। मैग्सेसे पुरस्कार रॉकेफेलर फाउंडेशन व मुझे जिस श्रेणी में पुरस्कार मिला वह फोर्ड फाउंडेशन द्वारा प्रायोजित है, जो दोनों अमरीकी संस्थाएं हैं। अमरीका जिस तरह से वर्तमान में फिलिस्तीन के खिलाफ युद्ध में बेशर्मी से खुलकर इजराइल का साथ दे रहा है और अभी भी इजराइल को हथियार बेच रहा है, अब मेरे लिए असहनीय हो गया है कि मैं यह पुरस्कार रखूं।

इसलिए मैंने अब मैग्सेसे पुरस्कार भी लौटाने का फैसला लिया है। मैं फिलीपींस के लोगों से माफी चाहता हूं क्योंकि भूतपूर्व राष्ट्रपति रेमन मैग्सेसे का नाम इस पुरस्कार के साथ जुड़ा हुआ है। किंतु मेरा विरोध सिर्फ पुरस्कार के अमरीकी जुड़ाव वाले पक्ष से है।”

उन्होंने कहा कि “जैसे मैं मैग्सेसे पुरस्कार वापस कर रहा हूं तो मुझे लगता है कि मुझे अमरीका से प्राप्त डिग्रियां भी वापस कर देनी चाहिए। मैं न्यूयॉर्क राज्य स्थित सिरैक्यूस विश्वविद्यालय से प्राप्त मैन्यूफैक्चरिंग व कम्प्यूटर अभियांत्रिकी की व कैलिफोर्निया के विश्वविद्यालय, बर्कले से प्राप्त मेकेनिकल अभियांत्रिकी की डिग्रियां भी वापस करने का निर्णय ले रहा हूं।

बल्कि यह मुझे 1991 में बर्कले के परिसर पर ही, जब राष्ट्रपति वरिष्ठ बुश ने इराक पर हमला कर दिया था, युद्ध विरोधी प्रदर्शन में पता चला कि अमरीकी विश्वविद्यालयों, खासकर प्रौद्योगिकी एवं विज्ञान विभागों, में हथियारों से जुड़े शोध कार्य होते हैं। युद्ध विरोधी प्रदर्शन में भाग लेने वाले एक इलेक्ट्रिकल अभियांत्रिकी के प्रोफेसर प्रवीण वरैया, जो रक्षा विभाग से शोध हेतु कोई पैसा नहीं लेते थे, से पता चला कि उनका शोध क्षेत्र कंट्रोल सिस्टम्स्, जो मेरा भी शोध क्षेत्र था, का जुड़ाव रक्षा कार्यक्रम से है।

यानी अनजाने में मैं अमरीकी युद्ध तंत्र का हिस्सा बन गया था। मेरा अपने शोध क्षेत्र से पूरी तरह से मोहभंग हो गया और जब मैंने भारत लौटकर भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, कानपुर में पढ़ाना शुरू किया तो अपना शोध क्षेत्र बदल लिया।”


संदीप पांडेय ने अपने पत्र में कहा कि “यहां मैं फिर यह स्पष्ट कर दूं कि मेरा अमरीकी जनता या अमरीका देश से भी कोई विरोध नहीं है। बल्कि मैं समझता हूं कि अमरीका में मानवाधिकारों के उच्च आदर्शों का पालन होता है और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता भी वहां उच्च कोटि की है। किंतु इन उच्च आदर्शों का पालन सिर्फ अमरीका के अंदर ही होता है। अमरीका के बाहर, खासकर तीसरी दुनिया के देशों में अमरीका को इनकी कोई चिंता नहीं है। यदि वह न्याय के साथ खड़ा है तो किसी भी युद्ध में उसे उत्पीड़ित के पक्ष में भूमिका लेनी चाहिए।

रूस के यूक्रेन पर हमले में उसने सही भूमिका ली है। किंतु न जाने वह क्यों फिलिस्तीनियों के उत्पीड़न और तबाही की ओर आंख मूंदे हुए है और इजराइल की सेना द्वारा किए जा रहे जघन्य अपराधों को भी नजरअंदाज करने को तैयार है। यदि यह कोई और देश कर रहा होता तो अभी तक अमरीका, जैसा उसने दुनिया के अन्य देशों के साथ मिलकर रंगभेद की नीति लागू करने वाले दक्षिण अफ्रीका के साथ किया था, कठोर प्रतिबंध लगा चुका होता।”

संदीप पांडेय ने अपने बयान में कहा कि “मैं यह कड़ा निर्णय इसलिए ले रहा हूं कि मैं मानता हूं कि यह दुनिया की राय के खिलाफ जाकर अमरीका के बढ़ावा देने के कारण ही इजराइल फिलिस्तीनियों के साथ बर्बरता कर रहा है। चाहिए तो यह था कि अमरीका एक तटस्थ भूमिका लेकर इजराइल और फिलिस्तीन के बीच शांति हेतु मध्यस्थता करता, जैसा उसने पहले किया भी हुआ है।

एक सम्प्रभु स्वतंत्र फिलिस्तीन, जिसको संयुक्त राष्ट्र संघ एक पूर्ण देश का दर्जा दे, ही इजराइल-फिलिस्तीन विवाद का हल है। किंतु यह विचित्र बात है कि अमरीका, जिसने अभी बहुत ज्यादा दिन नहीं हुए, अफगानिस्तान, जिसका क्षेत्रफल फिलिस्तीन से बहुत बड़ा है, को चांदी की थाली में सजाकर तालिबान को सौंप दिया, यह जानते हुए कि वह आम अफगान, खासकर औरतों, की नागरिक स्वतंत्रता को खतरे में डाल रहा है।”

संदीप पांडेय ने कहा कि “अमेरिका इजराइल की इस बात को दोहराता है कि हमास एक आतंकवादी संगठन है। वह इस बात को नजरअंदाज करता है कि हमास ने फिलिस्तीन में चुनाव जीत कर गज़ा में सरकार बनाई है जबकि तालिबान ने कोई चुनाव नहीं लड़ा था। मुझे लगता है कि अमरीका की दोगली नीति पर सवाल उठाना चाहिए

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सोमवार, 1 जनवरी 2024

अनिश्चित कालीन हड़ताल पर गए ट्रक ड्राइवर ,ईंधन एवं सब्जियों की हो सकती है किल्लत

 केंद्र सरकार के हिट एंड रन मामले में नए कानून पास होने पर देश में नई समस्या खड़ी हो गई है. दरअसल इस कानून के विरोध में ट्रक और टैंकर ड्राइवर अनिश्चितकाल तक हड़ताल पर बैठ गए हैं. ड्राइवरों के ऐसा करने से एक बड़ी समस्या देश भर में खड़ी हो गई है. ऐसे में पेट्रोल पंप पर पेट्रोल और डीजल की आंशिक किल्लत शुरू हो गई है. जानकारी के मुताबिक, कई पेट्रोल पंप ड्राइ हो गए हैं. वहीं पेट्रोल पंप के मालिकों का मानना है कि अगर ड्राइवरों को हड़ताल और लंबे समय तक चली तो कई और पेट्रोल पंप ड्राइ हो जाएंगे.
              प्रतीकात्मक तस्वीर

केंद्र सरकार ने पास किया है ये कानून
दरअसल, केंद्र सरकार ने हिट एंड रन मामले में एक कानून को पास कर दिया है. इस कानून के बाद अगर किसी वाहन की टक्कर किसी से हो जाती है तो ड्राइवर वहां से भाग कर नहीं जा सकता है. अगर वह ऐसा करता है तो उसे 10 साल तक की सजा और सात लाख का जुर्माना देना पड़ सकता है. विरोध कर रहे ड्राइवरों को कहना है कि यह एक काला कानून है. इसमें संसोधन की जरुरत है. वहीं दूसरी तरफ ऐसा भी माना जा रहा है कि अगर यह हड़ताल लंबे समय तक चलती है तो इसका असर अर्थव्यवस्था पर भी पड़ सकता है. क्योंकि ट्रकों के जरिए समान इधर से उधर पहुंचाया जाता है. ऐसे कमर्शियल व्हीकल बंद हो गए तो अर्थव्यवस्था बिगड़ सकती है.



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