सौरभ वीपी वर्मा
कभी हवाई चप्पल पहनने वालों को हवाई जहाज में बैठाने का कोरा सपना दिखाने वाले पीएम मोदी वास्तविक जीवन में कभी सच के साथ रहे ही नही हैं । झूठ के बादशाह एवं अहंकारी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सर्वप्रथम तो अपनी लोकप्रियता चमकाने एवं देश के पैसे से ऐशोआराम के सारे शौक पूरा करना चाहते हैं उसके बाद अपने अरबपतियों मित्रों का साथ फिर मुट्ठी भर लोगों को देश के महत्वपूर्ण संस्थाओं एवं उसके वित्तीय मामलों का अधिकार देकर उनकी कमाई में दिन दोगुना रात चौगुना की बढ़ोतरी करवाते हुए निचली इकाई में जीवन यापन करने वाले लोगों के सामाजिक एवं आर्थिक वृद्धि के अधिकार छीनने में पूरी मदद कर रहे हैं।
देश में गरीबी ,बेरोजगारी ,भुखमरी एवं भ्रष्टाचार का जो आलम है यह आजादी के 7 दशक बीत जाने के बाद पूरी तरह से खत्म होने के सतह पर पहुंच जाना चाहिए था लेकिन वर्तमान में जो स्थिति दिखाई दे रही है उससे ऐसा नही लगता कि आने वाले कुछ वर्षों में देश में ऐसी कोई क्रांति आएगी जिससे देश के 27 करोड़ गरीबों के जीवन में कोई ऐतिहासिक बदलाव आ सकता है जिससे गरीबी और बेरोजगारी खत्म हो सके।
अगर सरकार गरीबों के हित में कोई बड़ा बदलाव लाने का दावा कर रही है तो वह 80 करोड़ लोगों को मुफ्त राशन देने की है ,लेकिन नीति आयोग से लेकर सरकार और जनप्रतिनिधियों को इस बात को सदन में एवं दस्तावेजों के जरिये चर्चा में लाना चाहिए कि 5 किलो राशन देने भर से न तो गरीबी दूर होगी न तो गरीबों की संख्या । क्योंकि जिन आंकड़ों में भारत में आज 80 करोड़ लोगों को राशन देने की बात कही जा रही है उसी सरकारी आंकड़े से यह जानकारी मिलता है कि देश में 27 करोड़ लोग अति गरीबी रेखा से नीचे हैं । सच तो यह है कि आजादी के समय देश की 80 फीसदी आबादी गरीबी रेखा से नीचे थी जबकि तब देश की पूरी आबादी 30 करोड़ थी ,और आज वर्तमान आबादी के सापेक्ष भी 80 फीसदी लोग गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रहे हैं , इसमें एक हास्यप्रद यह भी है कि सरकार एक तरफ 80 करोड़ लोगों को मुफ्त राशन देकर कहती है कि 80 करोड़ गरीबों को मुफ्त राशन दिया जा रहा है ,वहीं दूसरे आंकड़ों में देश में 27 करोड़ लोगों को गरीब माना जाता है , आखिर इस देश में गरीब और गरीबों की संख्या कम कहाँ हुआ है? अध्ययन किया जाए तो इसमें कोई खास बदलाव नहीं हुआ है ,बल्कि गरीबी और गरीबों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है।
हाल के ही सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी के आंकड़ों से पता चलता है कि बेरोजगारी दर मई 2022 में 7.1 प्रतिशत से बढ़कर जून 2022 में 7.8 प्रतिशत हो गई, जिसमें ग्रामीण भारत में बेरोजगारी 1.4 प्रतिशत अंक बढ़ गई. शहरी संदर्भ में जुलाई 2022 में बेरोजगारी दर 8.21 प्रतिशत है । वहीं वर्ष 2022 एवं वर्ष 2023 के शुरुआती रुझानों एवं वैश्विक आंकड़ों से मिलने वाले आंकड़ों से पता चलता है कि आने वाले दिनों में गरीबी और बेरोजगारी तेजी से देश में पांव पसारेगी । इतना ही नही आंकड़े बताते हैं कि आने वाले दिनों में आजीविका के अवसरों में अचानक गिरावट , बच्चों की शिक्षा, स्वास्थ्य, पोषण और सुरक्षा से संबंधित अवसर में भी गिरावट दर्ज होगी।
ऐसी स्थिति को देखकर यह कहा जा सकता है कि देश में वर्तमान सत्ताधारी अंतिम पांक्ति में जीवन यापन करने वाले लोगों के हित में रोजगार के अवसर देने ,गरीबी उन्मूलन ,पोषण ,स्वास्थ्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में ठोस योजना बनाने में पूरी तरह से फेल है । कुल मिलाकर, पिछले कुछ दशकों में शिक्षा, स्वास्थ्य, पोषण, मानसिक कल्याण ,रोजगार और सुरक्षा के मुद्दों को सुरक्षित करने के लिए कई योजनाओं को लागू किया गया लेकिन धरातल पर किसी क्षेत्र की प्रगति और परिणाम अच्छे नही दिखाई दे रहे हैं।