सौरभ वीपी वर्मा
इलाज के अभाव में जिस तरह से नागरिकों की मौत हो रही है उसे देखने के बाद मात्र कोरोना वायरस को जिम्मेदार ठहराना बेईमानी होगा । जिला अस्पताल से लेकर राजधानी के प्रमुख अस्पतालों में इलाज करवाने के लिए पहुंचे सैकड़ों लोगों की मौत प्रतिदन इस लिए हो जा रही है क्योंकि उनको अस्पताल ,बेड ,डॉक्टर और दवा नही मिल पा रही है।
इस देश का हर नागरिक अपने उपभोग के जरिये सरकार को टैक्स देता है ताकि उसके स्वास्थ्य और शिक्षा की व्यवस्था सुनिश्चित हो पाए लेकिन आजादी के सात दशक बाद देश में बढ़ती आबादी के बाद भी जनसंख्या के सापेक्ष अस्पताल और डॉक्टर की व्यवस्था नही हो पाई।
आज जब कोरोना जैसी वैश्विक महामारी ने देश में कदम रखा तब हमारे पास अस्पताल कम पड़ने लगे लिहाजा हम स्कूलों और होटलों को अस्पताल में बदलने लगे लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या इस तरह के अस्थाई व्यवस्था से हम देश की स्वास्थ्य संबंधी ढाँचा को मजबूत कर सकते हैं ? या फिर अस्पतालों ,दवाओं एवं डॉक्टरों के अभाव में हम अपने नागरिकों को ऐसे ही मरने के लिए छोड़ दें ?
इस तरह की चुनौती को देखने के बाद निश्चित रूप से सरकार को स्वास्थ्य सेवाओं के क्षेत्र में बुनियादी ढांचा मजबूत करने की सख्त जरूरत है वर्ष 2021 के लिए स्वास्थ्य के क्षेत्र में खर्च करने के लिए 94,452 करोड़ का आवंटन भले ही किया गया है लेकिन देश भर के अस्पतालों को चलाने के लिए यह बजट नाकाफी है।
यदि देश के नागरिकों को अस्पतालों ,डॉक्टरों और दवाओं के अभाव में मरने से बचाना है तो सबसे पहले केंद्र सरकार को प्रति वर्ष 4 से 5 लाख करोड़ रुपये का प्रावधान बजट में करना चाहिए साथ ही प्रदेश सरकार को अपनी व्यवस्था में युद्ध स्तर पर बदलाव लाने की जरूरत है अन्यथा हम ऐसे ही कोरोना को कोसते रहेंगे जबकि नागरिकों की मौत गैर कोरोना बीमारियों से होती रहेंगी।