महिला दिवस की शुभकामनाएं
नीरज कुमार वर्मा "नीरप्रिय"
किसान सर्वोदय इंटर कालेज रायठ बस्ती
नारी सशक्तिकरण का समान्य आशय है नारी को शक्तिशाली बनाना। भारतीय संदर्भ में यदि बात की जाय तो यहाँ कि संस्कृति में नारी को शक्ति का रुप सदियों से माना जाता रहा है। उसकी दुर्गा, काली, गौरा आदि के रुप में पूजा का प्रचलन आज भी है। देखा जाय तो मां के रुप में वह अनंतकाल से नागरिकों को जन्म देने व उनका पालन-पोषण बखूबी से करती आ रही है।
बहन, बेटी व पत्नी के रुप में वह पुरुष का साथ देती आ रही है। पर पुरुष है कि उसे दोयम दर्जे का समझता आ रहा है। उसे अपने बराबरी पर प्रतिष्ठित करने के लिए वह तैयार नहीं हैं जैसा कि जयशंकर प्रसाद ने लिखा है -
तुम भूल गये पुरुषत्व मोह में कुछ सत्ता है नारी की।
समरसता है संबंध बनी अधीकार और अधिकारी की।
सचमुच स्त्री और पुरुष एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। एक की उन्नति में दूसरे का विकास निहित है। देखा जाए तो विश्व में महिला की आबादी 50% है इसलिए उन्हें जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में पुरुषों के बराबरी की हिस्सेदारी मिलनी चाहिए।
जैसाकि स्वामी विवेकानंद ने कहा है- "जब तक महिलाओं की स्थिति नहीं सुधरती तब तक विश्व के कल्याण की कोई संभावना नहीं है। पक्षी के लिए एक ही पंख से उड़ना संभव नहीँ है।"
यह सही है कि वर्तमान समय में नारी माँ, पत्नी, बेटी और बहन की भूमिका से आगे बढ़कर डाॅ,इंजिनीयर, प्रशासक, राजनेता, पायलट, पर्वतारोही, खिलाङी आदि के दायित्व का निर्वाहन करने लगी है। पर ऐसी संख्या आबादी के लिहाज से बहुत कम है। उसकी दशा आज भी कुछ वैसी ही है जैसाकि राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने वर्षो पहले लिखा था -
अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी।
आंचल में है दूध आ़खों में पानी।।
सामाजिक स्तर पर देखा जाय तो आज भी स्त्री को जन्म से ही भेदभाव का शिकार होना पड़ता है। एक पुत्री को पुत्र के समान संस्कार नहीँ प्रदान किये जा रहे है बल्कि उसके प्रति परिवार की नकारात्मक भूमिका ज्यादा रहती है। उसे पुत्र के समान स्वतंत्रता व समानता का वातावरण नहीं प्रदान किया जाता है बल्कि उसके प्रति वर्जनाओं का जाल बुन दिया जाता है। दूसरी तरफ यदि नारी विधवा, तलाकशुदा या अविवाहित हैं तो उसे सामाजिक रुप से बहिष्कृत माना जाता है तथा आये दिन इसके लिए ताने भी सुनने पड़ते है। पुरुषों का संसाधनों पर, निर्णय लेने की प्रक्रिया पर, विचारधारा पर नियंत्रण होता है जो उसकी पितृसत्ता को निर्धारित करता है। इस प्रकार स्त्री की सामाजिक बंधनों से जकङी रहती है। उसकी ऊर्जा का एक बड़ा हिस्सा सामाजिक बंधनों से लड़ने में खर्च हो जाता है। इसी प्रकार यदि पारिवारिक हिंसा की ओर देखा जाए तो उसका ज्यादातर शिकार महिलाएं ही होती है।
संयुक्त राष्ट्र संघ के अनुमान के मुताबिक प्रत्येक तीन में से एक महिला हिंसा का शिकार है। इन सब वर्जनाओं को देखते हुए सिमोन द बोउवार का यह कथन सत्य साबित होता है कि- "स्त्री पैदा नहीं होती बल्कि उसे बना दिया जाता है।" ऐसी वर्जनाएं जो महिलाओं के प्रगति में बाधक है उसका आज के वैज्ञानिक युग में निरंतर विरोध किया जा रहा है जैसाकि हिन्दी के प्रसिद्ध छायावादी कवि सुमित्रानंदन पंत ने लिखा है -
मुक्त करो नारी को मानव, मुक्त करो नारी को।
युग युग की बर्बर काला से जननी सखी प्यारी को।।
जहाँ तक वर्तमान संदर्भ में यदि नजर डाला जाय तो हम निःसंदेह इस बात को स्वीकार कर सकते हैं कि जब से देश आजाद हुआ है तब से महिलाओं के कदम प्रगतिपथ पर अग्रसर है। यह हमारे संविधान निर्माताओं कि वह प्रगतिशील सोच थी जिन्होंने महिलाओं को पुरुषों के समान अधिकार प्रदान किए। पश्चिमी समाज पर यदि दृष्टि डाली जाय तो वहाँ पर महिलाओं को मताधिकार देर से प्राप्त हुए है पर भारत में संविधान लागू होने के साथ ही महिलाओं को ये अधिकार प्राप्त हो गये। आज एक के बाद सरकारों ने महिलाओं को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक क्षेत्रों में पुरुषों के समान स्थान दिए है। वर्तमान काल में महिलाओं को विभिन्न प्रकार की गतिविधियों में आगे बढ़ने के लिए विशेष प्रकार के अवसर भी उपलब्ध कराये जा रहे है।
हाल के वर्षों में देखा जा रहा है कि विभिन्न सरकारों ने महिला सशक्तिकरण में अहम भूमिका का निर्वाहन कर रही है। आज गर्भ में पल रही कन्या शिशु से लेकर कामकाजी महिलाओं तक की सुरक्षा सरकार द्वारा मुहैया करायी जा रही है। शिक्षा की जहाँ तक बात है इसने महिलाओं के सशक्तिकरण में अहम भूमिका का निर्वाहन किया है। शिक्षा के कारण महिलाएं अपने अधिकारों एवं कर्तव्यों के प्रति जागरूक हुई तथा विभिन्न प्रकार की सेवाओं में जाकर वे आर्थिक रुप से स्वावलंबी बनी है। न केवल सेवाओं में बल्कि विभिन्न प्रकार के अग्रणी व्यवसायियों में भी इनका नाम जैसे इन्द्रा नूयी, किरण मजूमदार शा, चंदा कोचर आदि का शुमार है। ऐसे में ये आर्थिक रुप से स्वावलंबी हुई और उनके इस स्वावलंबन के कारण उन्हें अन्य क्षेत्रों में भी सफलता मिलने लगी। जैसाकि वर्जीनिया बुल्फ ने कहा है-"बौद्धिक स्वतंत्रता भौतिक चीजों पर निर्भर करती है।" हिन्दी लेखिका महादेवी वर्मा ने इसके विषय में लिखा है - "यदि स्त्री को अर्थ संबंधी वे सुविधाएं प्राप्त हो सके जो पुरुषों को मिलती आ रही है तो न उनका जीवन उनके निष्ठुर कुटुम्बियों के लिए भार बन सकेगा और न ही वे समाज से निकालकर फेंकी जा सकेगी प्रत्युत वे अपने शून्य क्षणों को देश के सामाजिक तथा राजनैतिक उत्कर्ष के प्रयत्नों से मरकर सुखी रख सकेगी।
वर्तमान सरकार ने बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ, सुकन्या समृद्धि योजना जैसे कार्यक्रमों से लड़कियों की सुरक्षा व वित्तीय सुरक्षा सुनिश्चित कर रही है। आयुष्मान भारत कार्यक्रम, राष्ट्रीय पोषण मिशन, उज्ज्वला योजना आदि भारतीय महिलाओं के पोषण से संबंधित जरुरतों का ख्याल रखती है। प्रधानमंत्री जनधन योजना ने महिलाओं के वित्तीय समावेशन में अग्रणी भूमिका का निर्वाहन किया है।
विश्व में आधी आबादी नारियों की है। देश को नई राह पर ले जाने के लिए नारियों के सशक्तिकरण की आवश् है। यह सच है कि आज महिलाएं पहले की अपेक्षा बहुआयामी दृष्टि से सशक्त हूई है। पर अभी उनकी मंजिल यहीं तक सीमित नहीं है जैसाकि सुमित्रानंदन पंत ने लिखा है-
इस पथ का उद्देश्य नहीं श्रान्त भवन में टिके रहना।
किंतु पहुंचना उस मंजिल तक जिसके आगे राह नहीं ।।
पर आज इस आधुनिकता ने जहाँ पर नारियों के जीवन को सुगम बनाने में मदद की है वहीं स्त्री को एक उत्पाद के रुप में बदलने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है। आज इस आधुनिकीकरण की प्रक्रिया व बाजार व्यवस्था ने स्त्री के शोषण का एक नया तरीका लेकर आया है। भूमंडलीकरण व आधुनिकीकरण के कारण स्त्री जरुर चमकती नजर आ रही है पर इसने स्त्री के शोषण के दायरे को बढ़ा दिया है। पहले जहाँ परिवार में स्त्री का शोषण होता था आज समाज, देश व विश्व में हो रहा है। यह आधुनिकता केवल उसके बदन के इस्तेमाल पर टिकी है उसके बुद्धि पर नहीं। प्रत्येक स्त्री को इससे सावधान रहना होगा तथा उसे अपने शोषण के जो तरीके है उसका ज्ञान रखना होगा जैसाकि महादेवी वर्मा ने कहा - "समस्या का समाधान, समस्या के ज्ञान पर निर्भर है और यह ज्ञान ज्ञाता की अपेक्षा रखता है। सामान्यतः भारतीय नारी में इसी विशेषता का अभाव मिलेगा। कहीं उसमें साधारण दयनीयता है और कहीं असाधारण विद्रोह परंतु संतुलन से उसका परिचय नहीं है।
इस प्रकार स्त्री को अपने आपको जागरुक करना होगा। यदि उसके जीवन में यह अज्ञानता रुपी अंधकार विघमान रहेगा तो उसमें भटकाव आना निश्चित है। उसे पारिवारिक और सामाजिक जीवन में संतुलन बनाए रखते हुए प्रगतिपथ पर बढ़ना होगा। नारी के अपने इन्हीं अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति जागरूकता लाने के लिए प्रतिवर्ष 8 मार्च को अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में मनाया जाता है।