रविवार, 28 फ़रवरी 2021

पंचायत चुनाव की तैयारी कर रहे उम्मीदवारों को मिलेगी बड़ी राहत, इस बार जानिए क्या हो रहा नया

उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव (up panchayat Chunav 2021 date) की तैयारियां जोरों पर चल रही है. सभी को इंतजार चुनाव की तारीखों का (up panchayat Chunav 2021 date है. खबरों की मानें तो इस बार पंचायत चुनाव के लिए चार चरणों का मतदान बोर्ड परीक्षा शुरू होने से पहले यानि 24 अप्रैल से पहले पूरा कराने का काम किया जाएगा. इसी बीच खबर आ रही है कि सूबे में दस, पचास, सौ, पांच सौ रुपये मूल्य के स्टाम्प की बिक्री में स्टाम्प विक्रेताओं द्वारा की जा रही कालाबाजारी पर अंकुश लगाने की तैयारी चल रही है.


प्रदेश के स्टाम्प व पंजीयन विभाग ने अहम निर्णय लेते हुए आनलाइन ई-स्टाम्पिंग सेल्फ प्रिंटिंग की व्यवस्था लागू करने का काम किया है. आपको बता दें कि पंचायती चुनाव में कम मूल्य के ऐसे स्टाम्प पेपर की जबर्दस्त मांग होती है जिसे देखते हुए किसी भी तरह की अफरातफरी को रोकने के लिए यह नई व्यवस्था लागू की गई है. ऐसे में अब नामांकन के वक्त स्टाम्प पेपर के लिए मारामारी नहीं देखने को मिलेगी.

इस व्यवस्था की बात करें तो इसके तहत पांच सौ रुपये तक के स्टाम्प को खुद जरूरतमंद व्यक्ति स्टाक होल्डिंग कारपोरेशन आफ इण्डिया लि.(सीआए) की वेबसाइट पर आनलाइन शुल्क जमा कर के छापने में सक्षम होंगे. इस बारे में शासनादेश जारी किया गया है जिसमें कहा गया है कि कोई व्यक्ति जो अल्प धनराशि के स्टाम्प शुल्क का भुगतान करने का इच्छुक हो, वह स्टाक होल्डिंग कारपोरेशन आफ इण्डिया (सीआरए) की वेबसाइट www.shcilestamp.com पर ऑनलाइन ई-स्टाम्पिंग प्रणाली में भुगतान के लिए रजिस्टर कर सकेगा.

जब रजिस्ट्रेशन हो जाएगा तो इसके बाद उसका सत्यापन करने का काम किया जाएगा. फिर यूजर आईडी और पासवर्ड दिया जाएगा जिसका इस्तेमाल करते हुए लागइन करने में लोग सक्षम होंगे. लागइन के बाद प्रयोक्ता व्यक्ति द्वारा आवश्यक विवरण जैसे राज्य, अनुच्छेद, स्टाम्प शुल्क की राशि, पक्षकारों का विवरण (दोनों पक्षों का विवरण) दाखिल करना जरूरी होगा. इस विवरण में प्रयोग करने वाला स्पष्ट उल्लेख करेगा कि वह ई-स्टाम्प किस मकसद से खरीदने की इच्छा रखता है.

इस विवरण को दाखिल करने के बाद इसे खरीदने वाले को आनलाइन भुगतान करने की जरूरत होगी. नेट बैंकिंग/डेबिट कार्ड/यूपीआई के जरिये अपेक्षित स्टाम्प शुल्क की धनराशि का भुगतान करने में खरीदार सक्षम होगा. भुगतान के बाद ई-स्टाम्प सर्टीफिकेट का प्रयोक्ता /ई-स्टाम्प प्रमाण पत्र खरीदने वाला शख्‍स इसका प्रिंट ले सकता है.

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शनिवार, 27 फ़रवरी 2021

बस्ती-पंचायत चुनाव के नजदीक मतदाता सूची में हो रहा गड़बड़ी , 13 साल के नाबालिग का बन रहा वोट

सौरभ वीपी वर्मा

बस्ती - जैसे-जैसे पंचायत चुनाव नजदीक आता जा रहा है वैसे-वैसे चुनाव सी जुड़ी कमियां भी निकल कर सामने आ रही है । पंचायत चुनाव से जुड़ी एक सबसे बड़ी कमी मतदाता सूची में गड़बड़ी करने का है जहां 12 ,13 ,14 साल के नाबालिग को वोटर बनाया जा रहा है वहीं अन्य जगहों पर मतदान करने वाले लोगों को वोट के लालच गांव के सूची में लाकर जोड़ा जा रहा है।
इस तरह का मामला वैसे तो जनपद भर के कई ग्राम पंचायतों से सुनने को मिल रहा है लेकिन सल्टौआ ब्लॉक के केवटाखोर ग्राम पंचायत के निवर्तमान प्रधान रामबचन चौधरी ने उपजिलाधिकारी आनंद श्रीनेत को मतदाता सूची में गड़बड़ी की शिकायत पत्र देकर सबको चौंका दिया है ।

रामबचन चौधरी ने शिकायत पत्र में लिखते हुए बताया कि ग्राम पंचायत में 86 ऐसे लोगों का नाम वोटर लिस्ट में जोड़ने के लिए आवदेन किया गया है जो या तो नाबालिग हैं या फिर अन्य जगहों पर मतदाता हैं ,उन्होंने उपजिलाधिकारी के समक्ष कुछ नए वोटरों का दस्तावेज भी प्रस्तुत किया जिसमें कम उम्र के बच्चों को मतदाता बनाया गया है।

इस सम्बंध में उप जिला अधिकारी आनंद श्रीनेत ने बताया कि शिकायत मिली है मामले की जांच की जाएगी 18 साल से नीचे के लोग मतदाता नही बन सकते न ही एक व्यक्ति दो जगहों पर मतदाता बन सकता है ,इस मामले की जांच का आवश्यक कार्यवाही की जाएगी।


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धर्म और मजहब के नाम पर फर्जी बाबाओं और मौलवियों ने फैलाया अंधविश्वास का कारोबार

सौरभ वीपी वर्मा

 हमें स्कूलों से लेकर घरों में भले ही सिखाया जाता है कि सच बोलो झूठ से दूर रही मगर झूठ बोलकर अंधविश्वास की दुकानों में खूब नफा कमाया जा रहा है, वह भी उसी धर्म-मजहब के नाम पर जिसमें सच बोलने की सीख दी जाती है। जो लोग मजहब के रहनुमा बनने की बात करते हैं, उन्हीं की नाक के नीचे अंधविश्वास का यह कारोबार फल-फूल रहा है।

 ऐसे में यह तो नहीं कहा जा सकता कि उन्हें इसकी खबर नहीं, मगर यह सवाल जरूर उठता है कि अंधविश्वास फैलाने वाले ढोंगी मौलानाओं, बाबाओं का विरोध पुरजोर तरीके से क्यों नहीं किया जाता, ऐसे लोगों के खिलाफ कोई मुहिम या फतवा जारी क्यों नहीं होता। 21वीं सदी में विज्ञान इंसान को चांद पर बसाने की कोशिश कर रहा है। कोई ठीक नहीं कि कुछ समय में चांद पर पहुंचाने के दावे ढोंगी तांत्रिक बाबाओं की ओर से किए जाने लगें, क्योंकि विज्ञान से ज्यादा आज लोग अंधविश्वास और जादू-टोने में अपनी मुसीबतों का इलाज तलाश रहे हैं।
इसकी वजह है कि लोगों में पैसा कमाने की जल्दी और जल्द से जल्द दिक्कतों को दूर कराने की होड़। इसका हल वे अपने प्रयासों में कम, इन ढोंगियों के पास ज्यादा ढूढ़ने लगे हैं। यही वजह है कि अभी तक कुछ आसूमल, निर्मल बाबाओं की एक खेप लोगों को झूठे ख्वाब दिखा कर उल्लू बना रही थी। 

अब इसी तरह से गांव कस्बों में भी फर्जी तांत्रिक क्रियाओं के माध्यम से नादान और अशिक्षित लोगों को ठगने का काम किया जा रहा है ,यह तस्वीर सिदार्थनगर जनपद की है जहां खुले आसमान के नीचे तंत्र-मंत्र और टोटके के माध्यम से सफलता की कुंजी हासिल करने के लिए सैकड़ो लोग जुटे हुए हैं। 

लेकिन इस तरह के ढोंग ढकोसले को न तो कोई रोकने वाला है और न ही इस पर प्रतिबंध लगाने के लिए शासन प्रशासन के पास कोई योजना है इनपर कोई कार्यवाई न होने की एक वजह यह भी है कि इन ढोंगियों को मीडिया का सहयोग हासिल है। जैसे सरकारें सिगरेट, तंबाकू, शराब से बचने की ताकीद विज्ञापनों के जरिए करती हैं और वही इनको बेचने का लाइसेंस भी वही मुहैया कराती हैं। ऐसे ही मीडिया भी एक तरफ अंधविश्वास की खबरों को दिखाकर उसका विरोध करता हैं और दूसरी तरफ अखबारों और चैनलों में तांत्रिकों, बाबाओं के विज्ञापन भी छापता और दिखाता है। मीडिया झूठे दावों को प्रचार-प्रसार भी करता है, क्योंकि सरकार को भी मीडिया से कर के रूप में आमदनी होती है। शायद सरकार भी इसीलिए चुप रहती है।

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शुक्रवार, 26 फ़रवरी 2021

CAIT का सुबह 6 बजे से शाम 8 बजे तक भारत बंद का ऐलान, देश के 40 हज़ार व्यापारी संघ का समर्थन

देशभर के व्यापारी संगठनों ने शुक्रवार को वस्तु एवं सेवा कर यानी जीएसटी की कमियों, बढ़ते पेट्रोल-डीज़ल की कीमतोंऔर ई-वे बिल के विरोध में भारत बंद का ऐलान किया है.

अखिल भारतीय व्यापारी परिसंघ (CAIT) के इस ऐलान को देश के 40 हज़ार व्यापारी संघ ने समर्थन दिया है जिसमें देशभर के 8 करोड़ व्यापारी शामिल हैं.

सड़क परिवहन क्षेत्र की सर्वोच्च संस्था ऑल इंडिया ट्रांसपोटर्स वेलफेयर एसोसिएशन ने इसके समर्थन में सुबह 6 बजे से लेकर शाम 8 बजे तक चक्का जाम का ऐलान किया है.

ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन के राष्ट्रीय प्रवक्ता महेंद्र आर्य ने कहा है, ‘’ सभी राज्य स्तरीय परिवहन संघों ने भारत सरकारकी ओर से लाए गए नए ई-वे बिल कानूनों और पेट्रोल-डीज़ल की बढ़ती कीमतों के विरोध में परिवहन का संचालन ना करने के हमारे ऐलान को समर्थन दिया है. हम एक दिन के लिए सभी ई-वे बिल वाले सामान का परिचालन रोकने के उद्देश्य से ये आंदोलन कर रहे हैं. ‘’

क्या-क्या बंद रहेगा?

·देशभर में कमर्शियल बाज़ार बंद रहेंगे क्योंकि 40,000 से अधिक व्यापारी संघ भारत बंद में हिस्सा ले रहे हैं.

·देशभर में सड़क परिवहन सेवाएं प्रभावित रह सकती हैं, ऑल इंडिया ट्रांसपोटर्स वेलफेयर एसोसिएशन ने परिवहन कंपनियों को अपने वाहन सुबह 6 से 8 बजे के बीच ना चलाने को कहा है.

·बुकिंग, साथ ही ई-बिल वाली वस्तुओं की आवाजाही प्रभावित होगी.

·चार्टर्ड एकाउंटेंट्स और कर अधिवक्ताओं के संघ ने भी हड़ताल का समर्थन किया है, इसलिए उनकी सेवाएं भी प्रभावित रहने की संभावना है.

·शुक्रवार को कोई भी व्यापारी जीएसटी पोर्टल पर लॉगइन नहीं करेगा

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मार्च के पहले हप्ते में आ सकता है पंचायत चुनाव का आरक्षण ,चक्रानुसार प्रकिया अपनाने का फैसला

उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनावों में जिला पंचायत अध्यक्षों और ब्लॉक प्रमुख के पदों के लिए आरक्षण की सूची पहले ही जारी कर दी गई है, लेकिन ग्राम प्रधान को लेकर यह प्रक्रिया जारी है. जिले स्तर पर जिला पंचायत सदस्य, ग्राम प्रधान, पंचायत सदस्य और बीडीसी सदस्यों के पदों पर आरक्षण को लेकर सभी की निगाहें लगी हुई हैं. 30 अप्रैल तक पंचायत चुनाव कराने की डेडलाइन को देखते हुए मार्च के पहले सप्ताह में सरकार बाकी बचे पदों के लिए आरक्षण की सूची जारी कर सकती है. 
यूपी में पंचायत चुनाव के आरक्षण को लेकर जिला स्तर पर डीपीआरओ की अगुवाई में जिला पंचायत सदस्य, ग्राम प्रधान, पंचायत सदस्य और बीडीसी सदस्यों के आरक्षण की सूची तैयारी की जा रही है. यह सूची मार्च के पहले सप्ताह में जारी कर दी जाएगी ताकि जिला प्रशासन के द्वारा जारी आरक्षण की सूची को लेकर किसी को कोई आपत्ति है तो वो अपनी आपत्ति दर्ज करा सके.

ऐसे में सरकार ने 15 मार्च तक आरक्षण सूची जारी करने की डेड लाइन दे रखी है, जिसके चलते आपत्तियां मांगने के लिए कम से कम 12 से 13 दिन का समय चाहिए. इसलिए माना जा रहा है कि मार्च के पहले ही सप्ताह में जिला प्रशासन आरक्षण सूची जारी कर देगा ताकि लोग अपनी आपत्तियां दर्ज करा सकें. इसके बाद 15 मार्च को फाइल लिस्ट आएगी, जिसके बाद कोई फेरबदल नहीं हो सकेगा.

यूपी पंचायत चुनाव में सरकार ने आरक्षण के लिए चक्रानुसार प्रकिया अपनाने का फैसला किया है. इसके लिए सरकार ने तय किया है कि सबसे पहले उन सीटों को महत्व दिया जाएगा, जो 1995 के बाद से अभी तक आरक्षण के दायरे में नहीं आई हैं. सूबे में कोई अगर पंचायत साल 1995, 2000, 2005, 2010 और 2015 में रिजर्व कैटेगरी में रही होगी तो उसके इस बार सामान्य होनी की संभावना है. साथ ही अगर कोई सीट सामान्य रही होगी तो अबकी बार वो आरक्षित हो जाएगी. इसमें एससी, एसटी, ओबीसी और महिलाओं के लिए आरक्षण होगा

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गुरुवार, 25 फ़रवरी 2021

बस्ती- वेब मीडिया एसोसिएशन की बैठक सम्पन्न , संगठन के विस्तार एवं आधुनिक पत्रकारिता पर चर्चा

बस्ती - मीडिया दस्तक के मालवीय रोड स्थित कार्यालय पर वेब मीडिया एसोशिएशन की बैठक जिलाध्यक्ष सौरभ वीपी वर्मा की अध्यक्षता में हुई जिसमे संगठन के विस्तार एवं आधुनिक पत्रकारिता पर विस्तार से चर्चा हुई। संयोजक अशोक श्रीवास्तव ने आधुनिक मीडिया पर प्रकाश डालते हुये कहा कि एटीएम के आविष्कार ने बैंकिंग सेक्टर में क्रांति ला दिया, उसी तरह वेब मीडिया पत्रकारिता क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन का साक्षी बन रही है। 
उन्होंने कहा कि अनगिनत साथी वेबसाइटों के जरिये तेज गति से समाचारों को लाखों पाठकों और दर्शकों तक पहुंचा रहे हैं लेकिन सरकार और स्थानीय प्रशासन इस बदलाव को स्वीकार नही कर पा रहा है। उन्होने कहा वेब साइट संचालकों को चाहिये कि वे सक्रिय रहे, खबरे नियमित अपडेट करते रहें और अधिक से अधिक पाठकों के बीच पहुंच बनाकर उनका एक बड़ा समूह खड़ा करें ,साथ ही जन अपेक्षाओं पर खरा उतरेंगे तो सम्मान भी मिलेगा और आप अपने लक्ष्य को प्राप्त भी कर पायेंगे। 

जिलाध्यक्ष ने संगठन का विस्तार करते हुये राजकुमार पाण्डेय को महासचिव, राजेश पाण्डेय को कोषाध्यक्ष, राजन चौधरी एवं लालू प्रसाद यादव को उपाध्यक्ष नामित किया। सभी ने संगठन के दायित्वों को निष्ठापूर्वक निभाने का संकल्प लिया।

 राजन चौधरी ने खबरों की पहुंच बढ़ाने, वेबसाइटों को आय स्रोतों से जोड़ने की तकनीकों पर जानकारी दी। कपीश मिश्र, एवं लालू प्रसाद यादव ने कहा एकजुटता से ही संगठन को पहचान मिलेगी। 

आपस में वैचारिक मतभेद भले हों लेकिन संगठन के बैनर तले सभी एकजुट रहें जिससे अपने अधिकारों के लिये आवाज उठा सकें। बैठक में दिनेश प्रसाद मिश्र, राज आर्या, श्रवण कुमार, शम्भूनाथ कसौधन, जीतेन्द्र कुमार सहित कई पत्रकार मौजूद रहे।

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महंगे पेट्रोल-डीजल पर अनूठा विरोध, मंत्री चला रहे थे स्कूटी पीछे बैठी थीं मुख्यमंत्री ममता बनर्जी

कोलकाता : पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी (Mamata Banerje) ने पेट्रील-डीजल की बढ़ती कीमतों का अनूठे ढंग से विरोध किया है. ममता बनर्जी आज (गुरुवार, 25 फरवरी) कार की सवारी छोड़कर स्कूटर से मुख्यमंत्री दफ्तर पहुंची. उनका स्कूटर मंत्री फिरहाद हकीम चला रहे थे, जबकि सीएम उनके पीछे बैठी थीं. ये साधारण स्कूटर नहीं बल्कि बैटरी से चलने वाला ग्रीन स्कूटर था. इस दौरान हेलमेट पहनीं ममता बनर्जी मुंह पर मास्क लगाई हुई थीं और गले में एक पट्टा लटका रखा था. उस पट्टे पर अंग्रेजी में लिखा था, "आपके मुंह में क्या है, पेट्रोल की कीमत बढ़ाना, डीजल की कीमत बढ़ाना और गैस की कीमत बढ़ाना"


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बुधवार, 24 फ़रवरी 2021

सरदार पटेल का नाम हटा कर नरेंद्र मोदी के नाम हुआ मोटोरा स्टेडियम ,विपक्ष ने कहा पटेल का अपमान

नई दिल्ली: अहमदाबाद का मोटेरा स्टेडियम अब नरेंद्र मोदी स्टेडियम के नाम से जाना जाएगा। मोटेरा स्टेडियम के नाम मशहूर इस स्टेडियम को हाल में बनाया गया है और यह दुनिया का सबसे बड़ा क्रिकेट स्टेडियम है, जिसमें दर्शकों की क्षमता 1,10,000 है और अब यह स्टेडियम नरेंद्र मोदी स्टेडियम के नाम जाना जाएगा। 

इसे लेकर कांग्रेस ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधा है। कांग्रेस प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने कहा, 'मोटेरा स्टेडियम से सरदार पटेल का नाम हटा कर नरेंद्र मोदी रखना आजादी के महानायक का घोर अपमान है। आपके दम्भ और अहंकार की कोई तो सीमा होगी मोदी जी? शर्म कीजिए' 
गुजरात कांग्रेस के वर्किंग प्रेसिडेंट हार्दिक पटेल ने कहा, 'दुनिया के सबसे बड़े अहमदाबाद स्थित सरदार पटेल क्रिकेट स्टेडियम का नाम बदलकर नरेंद्र मोदी क्रिकेट स्टेडियम रखा गया है, क्या यह सरदार पटेल का अपमान नहीं हैं ? सरदार पटेल के नाम पर मत माँगने वाली भाजपा अब सरदार साहब का अपमान कर रही हैं। गुजरात की जनता सरदार पटेल का अपमान नहीं सहेगी। भारत रत्न, लौह पुरुष सरदार पटेल ने आरएसएस पर प्रतिबंध लगाया था और उसी कारण आरएसएस के चेले सरदार पटेल का नाम मिटाने का हर संभव प्रयास कर हैं। बाहर से मित्रता पर भीतर से बैर, यह व्यवहार भाजपा का सरदार पटेल से है। एक बात याद रखिएगा की सरदार पटेल का अपमान नहीं सहेगा हिंदुस्तान।'

कांग्रेस नेता उदित राज ने कहा कि स्वभाव के अनुसार सरदार पटेल स्टेडियम का नाम बदलकर अपना नाम करा दिया। मोदी जी का स्वभाव है कि इस्तेमाल के बाद लात मार देना। वहीं पवन खेड़ा ने ट्वीट कर कहा, 'नरेंद्र मोदी स्टेडियम, जिसका उद्घाटन अमित शाह द्वारा किया गया है। यह स्टेडियम 'हम दो, हमारे दो' को समर्पित किया जाता है।

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बस्ती - विकास के पथ पर अग्रसर रामनगर ब्लॉक का ग्राम पंचायत मझारी पश्चिम -ऋतु देवी

सौरभ वीपी वर्मा 

बस्ती - रामनगर ब्लॉक के ग्राम पंचायत मझारी में बुनियादी ढांचा को मजबूत करने के लिए सरकार द्वारा जारी योजनाओं का क्रियान्वयन किया गया है ,इसके अलावा स्वच्छ पेय जल ,पानी ,निकासी ,सड़क एवं लाइट के काम पर ध्यान दिया गया है ताकि ग्राम पंचायत समेकित विकास के क्षेत्र में आगे बढ़ सके । यह कहना है मझारी ग्राम पंचायत की निवर्तमान प्रधान ऋतु देवी का ।
 निवर्तमान प्रधान ऋतु देवी ने बताया कि ग्राम पंचायत में आवागमन की व्यवस्था को मजबूत करने के लिए लगभग 1200 मीटर इंटरलॉकिंग का कार्य किया गया है ,ग्राम पंचायत के दिव्यांग वृद्ध एवं असहाय महिलाओं -पुरुषों को पेंशन का लाभ दिलवाया गया है जिसमे 123 लोगों को इसका लाभ मिल रहा है ,उन्होंने बताया कि   उजाले की व्यवस्था के लिए ग्राम पंचायत में 6 स्थानो सोलर लाइट लगवाने का काम किया गया है और जल निकासी के लिए लगभग 200 मीटर नाली निर्माण का कार्य भी किया गया है ,साथ ही 10 हैंडपंप के जरिये लोगों को पेय जल मिल रहा है ।

ऋतु देवी ने बताया कि ग्राम पंचायत में स्वच्छ भारत मिशन के तहत 370 लोगों को शौचालय का लाभ दिया गया है एवं वर्तमान समय में प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास योजना के तहत 36 लोगों का आवास बन रहा है। उन्होंने बताया कि ग्राम पंचायत में स्थित प्राथमिक विद्यालय में कायाकल्प के माध्यम से काम कर उसे साफ एवं सुंदर बनाया गया है।

निवर्तमान प्रधान ऋतु देवी के पति रमेश कुमार ने बताया कि ग्राम पंचायत में कई प्रकार की योजनाएं संचालित हैं जिसके तहत गांव को सुधारने का प्रयास किया जा रहा है ,उन्होंने बताया कि ग्राम पंचायत में कुछ लोग शौचालय योजना का लाभ लेकर अभी तक निर्माण नही करवाये हैं इस पर जोर दिया जा रहा है कि लाभ लेने वाले लोग निर्माण कार्य को पूरा कराएं , रमेश कुमार ने बताया कि अभी भी ग्राम पंचायत में सड़क ,नाली ,चकमार्ग के लिए कुछ काम करना बाकी रह गया है यदि पंचायत चुनाव में मौका मिलेगा तो ग्राम पंचायत में बुनियादी ढांचा को मजबूत करने के लिए प्राथमिकता पर ध्यान देते हुए काम किया जाएगा , ताकि ग्राम पंचायत को विकास के क्षेत्र में पहले पायदान पर किया जा सके।

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मंगलवार, 23 फ़रवरी 2021

बस्ती - किसान आंदोलन को बदनाम करने के लिए लगे हैं अमित शाह और देश की मौजूदा सरकार-जयंत चौधरी

बस्ती - राष्ट्रीय लोकदल के जिला इकाई के आह्वान पर   राष्ट्रीय उपाध्यक्ष जयंत चौधरी आज रूधौली में  किसानों के बीच पहुँचे इस बीच किसानों ने रैली में पहुंच कर अपने नेता का भरपूर समर्थन किया।

रुधौली में किसान पंचायत को संबोधित करते हुए जयंत चौधरी ने कहा कि आज पूरे देश में ‘पगड़ी सम्भाल जट्टा’ आंदोलन को चलाने वाले सरदार अजीत सिंह की जयंती को मनाया जा रहा हैं। जयंत चौधरी ने सरदार अजीत सिंह  को श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि 1907 में शुरू हुआ 'पगड़ी सम्भाल जट्टा’ आंदोलन भी अंग्रेजो द्वारा लाए गए तीन क़ानूनों के विरूद्ध ही था।  
उन्होंने कहा कि जैसा आज आंदोलन लड़ा जा रहा हैं और वह क़ानून भी किसानों से उनके ज़मीन पर अधिकार को ख़त्म करने और 25% टैक्स लगाने के विरोध में था उस क़ानूनों को नौ महीने लम्बे चले आंदोलन के बाद अंग्रेज़ी हुकूमत को वापिस लेना पड़ा ठीक ऐसे ही ये सरकार भी झुकेगी। 

जयंत चौधरी ने पूरे देश में हो रही किसान पंचायतों के बारे में कहा कि ये पंचायतें सरकार को संदेश दे रहीं हैं, जिसको अनसुना करना सरकार के लिए ठीक नही रहेगा। 

जयंत चौधरी ने कहा कि अमित शाह और सरकार इस आंदोलन को शुरू से बदनाम करने पर लगे हैं वे कभी इसको खालिस्तानियों का बताते हैं कभी सिर्फ़ पंजाबियों का और अब सिर्फ़ जाटों का बताने की कोशिश कर रहे हैं  लेकिन मैं उनको बता देना चाहता हूँ कि ये आंदोलन किसी जाति का नही बल्कि समूचे देश के किसानों का आंदोलन हैं। 

सरकार के रवैये पर सवाल उठाते हुए उन्होंने कहा कि कल मुजफ्फरनगर के गाँव सोरम में किसानों द्वारा किसान एकता ज़िंदाबाद के नारे लगाने के बाद भाजपा के सांसद ने किसानों को पिटवाया, गाँव की महिलाओं के साथ बदतमीज़ी की गई। क्या किसान इन हमलों पर चुप बैठ सकता हैं? 

जयंत चौधरी ने आगे कहा की हरियाणा सरकार में मंत्री जेपी दलाल किसानों की शहादतों का उपहास उड़ाते हैं इसलिए चाहे किसान का खून बह जाए इनको कोई फ़र्क़ नही पड़ता इन्हें बस कुर्सी प्यारी हैं। 

प्रधानमंत्री मोदी के संसद में दिए बयान पर जयंत चौधरी ने कहा कि वे किसानों को आंदोलनजीवी कह रहे हैं ,फिर तो कबीरदास, डॉक्टर अम्बेडकर, महात्मा गांधी, चौधरी चरण सिंह भी आंदोलनजीवी थे। इसलिए हम सब आंदोलनजीवी हैं। प्रधानमंत्री किसानों को परजीवी भी कहते है पर क्या वो किसान परजीवी हो सकता हैं जिसने हमेशा से दुनिया का पेट भरा हो?

प्रधानमंत्री मोदी पर निशाना साधते हुए उन्होंने कहा कि भले ही कोई अब तक मोदी जी को नही समझ पाया हो पर मैं उन्हें समझ गया हूँ ,मोदी जी पर एक धुन सवार हैं वो सब कुछ अपने नाम से चाहते हैं जिसके कारण जो सत्तर साल से संस्थाए बनी हैं, सबको ख़राब करके दोबारा बनाना चाहते हैं लेकिन बंनाने की कबलियत उनमे नही हैं। इसलिए नोटबंदी के समय ग़रीबों को सपना दिखाया कि अमीरों से लेकर ग़रीबों में पैसा बाँटा जाएगा  मैं पूछता हूँ क्या नोटबंदी से आज तक किसी को कोई फ़ायदा हुआ? 

जयंत चौधरी ने सेना से रिटायर्ड गरमुख सिंह  का भी ज़िक्र किया और कहा क्या किसानों के लिए लंगर चलाना गुनाह हैं क्या? और एक सेना का जवान जिसने तीन लड़ाई लड़ी हो वो देश विरोधी हो सकता हैं? साथ ही पुलिस के रवैये पर भी सवाल उठाते हुए अपील की कि किसी अनैतिक आदेश को पुलिस के हमारे भाइयों को मानने से इनकार कर देना चाहिए। 

जयंत चौधरी ने 2010 में मोदी जी द्वारा सुझाई गई रिपोर्ट का भी ज़िक्र किया और कहा कि जब उस समय मोदी जी MSP पर क़ानून के पक्ष में थे तो आज वे विरोध में क्यों हैं?  क्यों MSP को क़ानूनी दायरे में नही लाया जाए? 

जैसा कि हर पंचायत में होता हैं इस पंचायत में भी कुछ फ़ैसले लिए गए 

1-जो निर्दोष किसान शहीद हुए हैं उनका सम्मान हो। पत्रकारों के विरूद्ध अनैतिक कार्यवाही बंद हो। 
2- जब तक तीन क़ानून वापिस नही होते किसान आंदोलन को बल देने के लिए हर परिवार इस आंदोलन में शामिल हो। 
3- मंडी व्यवस्था में सुधार हो ,कोई भी ख़रीद MSP से नीचे नही होनी चाहिए, चाहे कोई भी ख़रीदे। 
4- जिस प्रकार किसानों के मार्ग में दिल्ली में कीले लगाई गई, किसान का अपमान किया गया, उसका बदला वोट की चोट से लिया जाये।

इस पंचायत को बनाने के लिए सदर विधान सभा के पूर्व प्रत्याशी राजा ऐश्वर्य राज सिंह ने जनपद भर से आये हुए किसानों को धन्यवाद दिया और कहा कि किसानों की लड़ाई में हम और हमारी पार्टी साथ खड़ी है।

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यूपी -अबकी बार बदलेगा मतदान की पद्धति ,एक जिले में एक ही चरण में होगा पंचायत चुनाव

उत्तर प्रदेश में मार्च में पंचायत चुनाव की प्रक्रिया शुरू हो सकती है. इसके लिए राज्य निर्वाचन आयोग ने तैयारियां शुरू कर दी हैं. इस बार पंचायत चुनाव के तरीके में आमूलचूल परिवर्तन किया गया है ।

 प्रदेश में पंचायत चुनाव “एक जनपद - एक बार” की पद्धति से कराए जाएंगे. इस बार पंचायत चुनाव में एक जिले के सभी ब्लॉक में एक ही चरण में चुनाव कराए जाएंगे. प्रत्येक मंडल के एक जिले में एक चरण में चुनाव कराया जाएगा. राज्य निर्वाचन आयोग के आयुक्त मनोज कुमार ने सभी जिलाधिकारियों को एक जिले में एक ही चरण में चुनाव की तैयारियां करने के निर्देश दिए हैं.

प्रदेश में अभी तक पंचायत चुनाव में एक जिले में स्थित विकास खंडों में चार चरण में चुनाव कराए जाते थे. यदि किसी जिले में 12 विकास खंड हैं तो प्रत्येक चरण में तीन-तीन विकास खंड में चुनाव कराए जाते थे. इस बार प्रत्येक जिले के सभी विकास खंडों में एक ही चरण में चुनाव कराए जाएंगे. प्रत्येक मंडल के एक से दो जिलों को एक चरण में शामिल किया जाएगा, ताकि चार चरण में चुनाव संपन्न कराए जा सकें ।

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बस्ती -नहरों की सफाई , माइनर निर्माण और मरम्मत के नाम पर करोड़ो रूपये का वारा-न्यारा ,उद्देश्य शून्य

सौरभ वीपी वर्मा

बस्ती - नहरों के साफ सफाई और उसके माइनर निर्माण और मरम्मत के नाम पर जनपद भर में जमकर पैसा खर्च किया गया लेकिन अभी तक उसके उद्देश्यों के प्रगति का कोई पता नही चल रहा है।

जनपद में नवंबर 2020 में 292 किलोमीटर नहरों के सिल्ट सफाई सिंचाई विभाग द्वारा कराई जानी थी इसके अलावा 47 किलोमीटर नालों की सफाई मनरेगा के अंतर्गत होना था लेकिन इसमे अधिकतर काम महज कागजों में हुए हैं ।

एक जानकारी के मुताबिक सरयू नहर खंड-4 रुधौली में 63 नहर है जिसकी लंबाई 217 किलोमीटर है उसकी सफाई होनी थी। इसके साथ बस्ती में 15 किलोमीटर की 04 , महादेवा में 34 किलोमीटर की 07 नहर की सफाई की जानी थी इसके अलावा  सरयू नहर खंड-3 गोंडा द्वारा कप्तानगंज में 22 किलोमीटर की दो नहरों तथा हरैया में 02 किलोमीटर की एक नहर की सफाई की जानी थी ।

लेकिन वर्तमान में नहरों की जो स्थिति है उसकी समीक्षा करने के बाद पता चलता है कि नहरों के सफाई और उसके माइनर निर्माण और मरम्मत के नाम पर अब तक एक बड़े धन को बंदरबांट किया गया है ।

नहर सफाई के जरिये मनरेगा के मजदूरों को रोजगार देने का जो लक्ष्य और योजना तैयार किया गया था उसपर भी कोई काम नही हुआ ,जिन 47 नहरों में मनरेगा के मजदूरों को काम मिलना था वह भी मशीनों के प्रयोग से दस्तावेज में साफ होकर तैयार हो गया।

वर्तमान समय में नहरों में पानी तो आ गया है लेकिन अभी तक उसका उद्देश्य अस्तित्व में नही आ रहा है।अब देखना यह होगा कि नहर सिंचाई योजना से बहुसंख्यक किसानों को फायदा कब तक मिल पायेगा। फिलहाल सच तो यही है कि नहरों के नाम पर हर साल करोड़ो रुपये का वारा न्यारा हो रहा है और धरातल पर उसकी स्थिति शून्य है।

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सोमवार, 22 फ़रवरी 2021

उत्तर प्रदेश - विधानमंडल में पास हुआ योगी सरकार का अंतिम बजट ,जानिए किसको क्या मिला

लखनऊ: उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने आज विधानमंडल में 5 लाख 50 हजार 270 करोड़ 78 लाख रुपये का बजट पेश किया. राज्य में पंचायत चुनाव की सरगर्मियों के बीच पेश किए गए इस बजट में सरकार अगले साल के विधानसभा चुनाव के लिए भी पुख्ता जमीन तैयार करने की कोशिश कर रही है. बजट में कन्या सुमंगल योजना के लिए 1200 करोड़, महिला शक्ति केंद्रों के लिए 32 करोड़ रुपये, गांव में स्टेडियम के लिए 25 करोड़ रुपये, संस्कृत स्कूलों में फ्री छात्रावास की सुविधा, बीमा के लिए 600 करोड़ की व्यवस्था, अधविक्ता चैंबर के लिए 20 करोड़ रुपये, प्रदेश की नहरों के लिए 700 करोड़, डिजिटल स्वास्थ्य मिशन के लिए 32 करोड़ रुपये, पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे के लिए 1107 करोड़ रुपये, निर्माधाीन मेडिकल कालेजों के लिए 950 करोड़ रुपये, चित्रकूट में पर्यटन के लिए 20 करोड़ रुपये की व्यवस्था की गयी है.


वित्त मंत्री सुरेश खन्ना ने बताया कि 2021-22 का बजट युवाओं और रोजगारों को समर्पित है. प्रदेश की हर महिला को सुरक्षा दे रहे हैं. अपराधियों पर सरकार कठोर कार्रवाई कर रही है. बजट में यूपी को आत्मनिर्भर बनाने के लक्ष्य का प्रावधान है. तीन सालों में उत्तर प्रदेश में ऑपरेशनल एयरपोर्ट्स की संख्या 4 से बढ़कर 7 हो गई. जनपद अयोध्या में निमार्णाधीन एयरपोर्ट का नाम मर्यादा पुरूषोत्तम श्रीराम हवाई अड्डा, अयोध्या होगा. इसके लिए 101 करोड़ रुपये का बजट प्रस्तावित किया गया.

अयोध्या के विकास के लिए 140 करोड़ का बजट

कानपुर मेट्रो रेल परियोजना की अनुमोदित लागत 11,076 करोड़ रुपए है. वित्तीय वर्ष 2021-2022 के बजट में परियोजना हेतु 597 करोड़ रुपए आवंटित किए गए हैं. कानपुर मेट्रो रेल परियोजना के प्राथमिक सेक्शन आईआईटी कानपुर से मोतीझील पर ट्रायल रन को जल्द ही किया जाएगा.

अयोध्या के विकास के लिए 140 करोड़ का बजट प्रस्तावित है. अयोध्या एयरपोर्ट का नाम मर्यादा पुरुषोत्तम राम के नाम पर रखे जाने की घोषणा के बाद सदन में जय श्रीराम के नारे लगे. लखनऊ में राष्ट्रीय प्रेरणा स्थल के निर्माण हेतु 50 करोड़ रुपये की व्यवस्था प्रस्तावित है. कोरोना महामारी के कारण लागू लॉकडाउन में प्रदेश के श्रमिकों को रोजगार और स्वरोजगार उपलब्ध कराने के लिए नई योजना मुख्यमंत्री प्रवासी श्रमिक उद्यमता विकास योजना लाई जा रही है. इसके लिए 100 करोड़ रुपये प्रस्तावित है. पल्लेदारों, श्रमिक परिवारों और असंगठित क्षेत्र के कामगारों को सामाजिक सुरक्षा के लिए मुख्यमंत्री दुर्घटना बीमा योजना प्रारंभ की जा रही है. इसके लिए 12 करोड़ रुपये की धनराशि प्रस्तावित है. मुख्यमंत्री जनआरोग्य योजना के लिए 100 करोड़ रुपये की धनराशि की व्यवस्था प्रस्तावित

प्रदेश के 19 जनपदों में कुल 40 छात्रावास बनाए जाएंगे. किताबें भी उपलब्ध कराई जाएंगी. अलग-अलग जनपदों में अधिवक्ताओं के लिए चेंबर बनाए जाएंगे. यूपी सरकार ने मेरठ में स्पोर्ट्स विश्वविद्यालय बनाने का प्रस्ताव रखा है. वित्त मंत्री सुरेश खन्ना ने घोषणा की है कि सामूहिक विवाह योजना का विस्तार किया जाएगा, साथ ही मुख्यमंत्री सक्षम सुपोषण योजना लाई जाएगी. इसके तहत आंगनबाड़ी केंद्रों पर कुपोषित बच्चों को अतिरिक्त पोषण दिया जाएगा.

किसानों को मुफ्त पानी की सुविधा के लिए 700 करोड़ रुपये

वित्त मंत्री सुरेश खन्ना ने बजट भाषण में कहा कि गन्ना किसानों को एक हजार करोड़ से ज्यादा का भुगतान किया गया. प्रदेश में अधिक उत्पादक वाली फसलों की पहचान की जाएगी. ब्लॉक स्तर पर कृषक उत्पादन संगठनों की स्थापना होगी और इसके लिए 100 करोड़ रुपये दिए जाएंगे. किसानों को मुफ्त पानी की सुविधा के लिए 700 करोड़ रुपये दिया जाएगा. किसानों को रियायती दाम पर लोन देने का भी एलान किया गया है.

वित्त मंत्री सुरेश खन्ना ने कहा कि रबी की फसल के लिए 223 लाख मीट्रिक टन खरीद का लक्ष्य है. 119 चीनी मिलों ने 126 लाख 37 हजार टन चीनी का उत्पादन किया है. पिपराइच और मुंडेरवा की नई चीनी मिलों में 27 हजार मेगावॉट क्षमता का संयंत्र स्थापित किया गया है, गन्ने के रस से सीधे इथेनॉल बनाने वाली पिपराइच पहली चीनी मिल होगी. जेवर एयरपोर्ट के लिए 2000 करोड़, चित्रकूट और सोनभद्र एयरपोर्ट से 2021 में हवाई सेवाओ का संचालन शुरू हो जाएगा.

योगी सरकार का यह पांचवां और आखिरी पूर्ण बजट

वित्त मंत्री ने बजट भाषण में एलान किया कि आयुर्वेद को बढ़ावा दिया जा रहा है. लखनऊ-पीलीभीत में आयुर्वेद विद्यालयों का काम किया जा रहा है. कोरोना टीकाकरण के लिए 50 करोड़ रुपये प्रस्तावित किए गए हैं. गंगा एक्सप्रेस-वे परियोजना के भूमि ग्रहण के लिए 7,200 करोड़ और निर्माण कार्य के लिए 489 करोड़ रुपये के बजट व्यवस्था की गई. इसके अलावा बुंदेलखंड क्षेत्र की विशेष योजनाओं के लिए 210 करोड़ रुपये का बजट प्रस्तावित किया गया.

बुंदेलखंड एक्सप्रेस वे के लिए 1492 करोड़ रुपये का बजट पेश किया. वित्त मंत्री ने पूर्वांचल एक्सप्रेस वे के लिए 1107 करोड़ रुपये का बजट दिया. गोरखपुर एक्सप्रेस वे के लिए 750 करोड़ रुपये का बजट पेश किया. बता दें कि यूपी सरकार का यह पहला पेपरलेस बजट है. यह बजट ऐप पर भी उपलब्ध है. सरकार ने इसके लिए यूपी सरकार का बजट ऐप तैयार कराया है. इस ऐप को गूगल प्ले स्टोर से डाउनलोड किया जा सकता है. सरकार का यह पांचवां और आखिरी पूर्ण बजट है.

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रविवार, 21 फ़रवरी 2021

किसान: एक जनांदोलन - नीरज कुमार वर्मा

नीरज कुमार वर्मा नीरप्रिय 
किसान सर्वोदय इंटर कालेज रायठ बस्ती उ. प्र. 

भारत को गांवों का देश कहा जाता है क्योंकि इस देश की अधिकांश जनता गांवों में निवास करती है। इन गांवों में निवास करने वाली जनसंख्या के जीविका का मुख्य आधार कृषि है। दिन-रात अथक परिश्रम करके, विभिन्न प्रकार के मौसम की अनुकूलता प्रतिकूलता को झेलते हुए, जनकल्याण की भावना से प्रेरित होकर जो कृषि कार्य करते है उसे किसान कहते है। 

पूंजीवादी व्यवस्था में जहाँ पर व्यापारी वर्ग रत्ती-रत्ती में लाभ जोड़ता है वहीं पर अन्नदाता ही एक ऐसा वर्ग है जो ज्यादा लाभ हानि की चिंता किए बगैर तन मन से अपने कार्य में रत रहता है। यह बात किसी से छुपी नहीं है कि किसानों को उनके परिश्रम का वाजिब हिसाब कभी नहीँ मिला है।
 स्वतंत्रता प्राप्ति के पूर्व के स्थिति का आकलन करें तो उस समय जमींदारी प्रथा का प्रचलन था। जमींदार और सामंत किस प्रकार से किसानों का शोषण करते थे इसका जिक्र प्रेमचंद ने अपने प्रसिद्ध उपन्यास गोदान(1936) में बखूबी किया है। किस प्रकार होरी नामक किसान इस शोषण की चक्की में पीसता हुआ एक किसान से मजदूर बन जाता है। जीवन के अंतिम पड़ाव में उसे मजदूरी भी करनी पड़ती है। होरी के साथ साथ उसका सारा परिवार इस गरीबी की मार को झेलता है जिसका जिक्र करते हुए प्रेमचंद ने लिखा है - "धनिया की छह संतानों में अब केवल तीन जिंदा है, एक लड़का गोबर कोई सोलह साल का। तीन लड़के बचपन में ही मर गये। उसका मन आज भी कहता था अगर उनकी दवादारु होती तो वे बच जाते, पर एक धेले की दवा भी न मंगवा स्की थी। उसकी उम्र ही अभी क्या थी? छत्तीसवां ही साल तो था, पर सारे बाल पक गये थे, चेहरे पर झुर्रियां पड़ गई थी। सारी देह ढल गई थी, वह सुंदर गेहुंआ रंग सॅवला गया था और आंखों से कम सूझने लगा था। पेट की चिंता ही के कारण तो। कभी तो जीवन का सुख न मिला। " इस प्रकार प्रेमचंद ने जहाँ पर होरी और उसके कृषक परिवार की दुर्दशा का वर्णन किया है वहीं पर केदारनाथ अग्रवाल ने कृषक परिवार के पीढ़ी दर पीढ़ी मिलने वाली त्रासदी जो विरासत के रुप में होती है का वर्णन करते हुए लिखा है--

     जब बाप मरा तब पाया
     भूखे किसान के बेटे ने
      घर का मलबा टूटी खटिया
      कुछ हाथ भूमि वह भी परती
      बनिया के रुपये का कर्जा
      जो नहीं चुकाने पर चुकता
      दीमक गोजर मच्छर माटा
       ऐसे हजार सब सहवासी
       बस यही नहीं जो भूख मिली
     सौ गुना बाप से अधिक मिली।

कमोबेश यदि आज के समय में देखा जाय तो किसान की यह दशा ज्यों का त्यों बनी है। वर्तमान समय राजनितिक पार्टियों और पूंजीपतियों का गठजोड़ दिनों दिन बढ़ता जा रहा है। ये पूंजीपति वर्ग राजनैतिक पार्टियों को चुनाव प्रचार में अकूत धन देते है वहीं पर जब ये पार्टियां सत्ता में आती है तो इनके पक्ष में नितियों का निर्माण कर इन्हें पूंजी इकट्ठा करने में परोक्ष सहयोग प्रदान करते है। इन दोनों की संधि का परिणाम यह निकला है कि आज किसान ऋणग्रस्त होकर होरी से दो कदम आगे बढ़ते हुए आत्महत्या करने के लिए के लिए विवश हो रहा है। क्या गांधी ने ऐसे ही सपने को देखकर आजादी की लड़ाई लड़ी थी? बिल्कुल नहीं, गांधीजी ने 'मेरे सपनों का भारत' नामक पुस्तक में लिखा है--"यदि भारतीय समाज को शांति पूर्ण मार्ग पर सच्ची प्रगति करनी है तो धनिक वर्ग को निश्चित रुप से स्वीकार कर लेना होगा कि किसान के पास वैसी ही आत्मा है जैसी उनके पास है और अपनी दौलत के कारण वे गरीब से श्रेष्ठ नहीं है।

      पर ऐसे आदर्श तो वर्तमान में केवल किताबी बातें ही लग रही है। वर्तमान दौर में पूरे देश में किसान, मजदूर, मध्यमवर्ग सत्ता और राजनीति के गठजोड़ के कारण पीड़ित है। आज हमारे देश का अन्नदाता अपने घरों से दूर इस ठिठुरनभरी रात में खुले आसमान के नीचे सोने व बिना  विजली, पानी, मकान के जीवन यापन करने को बेवश है। इसका कारण सरकार के तीन नए कृषि कानून - कृषक उपज व्यापार एवं वाणिज्य (संबर्धन एवं सरलीकरण) विधेयक 2020,तथा कृषक (सशक्तिकरण और संरक्षण) कीमत अश्ववासन एवं कृषि सेवाकर विधेयक 2020 तथा आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक 2020 है। सरकार इस बात को लेकर डिंगे हांक रही है कि ये तीनो कृषि कानून किसानों की आय को बढ़ाने वाले है। पर यह उस कहावत को चरितार्थ करता है कि हाथी के दांत खाने के और दिखाने के और। सच तो यह है कि यह कानून देशी कार्पोरेट घरानों के साथ साथ विदेशी कंपनियों के पक्ष में है। इस कानून के माध्यम से न्यूनतम समर्थन मूल्य समाप्त हो जायेगा तथा फूड कार्पोरेशन आफ इंडिया का अस्तित्व खत्म हो जायेगा। इसके साथ ही भंडारण की सीमा भी खत्म हो जायेगी। इसका नतीजा यह होगा कि देर सबेर सार्वजनिक वितरण प्रणाली जिसके तहत 80 करोड़ जनता को प्राप्त खाघ सुरक्षा भी समाप्त हो जायेगी। वहीं पर दूसरी तरफ कार्पोरेट घरानों के लोग कृषकों को उनकी उपज का वाजिब मूल्य भी नहीं देंगे और फिर उसी का भंडारण करके उसे की गुना दामों में बेचेंगे। धीरे-धीरे ये कृषकों को अपने अनुसार फसल उगाने को भी विबश करेंगे। ये उन खाघान्न पदार्थों को जिनका अमेरिका और यूरोप में भौगोलिक परिस्थितियों के चलते उत्पादन नहीं हो पाता है परंतु वहाँ के उपभोक्ताओं के बीच इनकी व्यापक मांग रहती है के उत्पादन के लिए मजबूर करेंगे। इससे भारत की पूरी खाघान्न श्रृंखला तहस नहस हो जायेगी। 

  इन्ही सब काले कृषि कानूनों का विरोध कृषक गाजीपुर, सिंध, टिकरी आदि दिल्ली की सीमाओं पर अहिंसक ढंग से विगत की महीनों से कर रहे है। प्रारंभ में सत्तापक्ष ने किसान आंदोलन पर विभिन्न प्रकार के आरोप लगाए। सरकार का कहना है कि यह आंदोलन विपक्ष के द्वारा प्रायोजित है, तो आगे चलकर कहा कि यह आंदोलन किसानों के कृषि कानूनों के न समझी का परिणाम है और जब सत्ताधारी पार्टी ने विभिन्न प्रकार के हथकंडे अपनाकर भी इस आंदोलन को तोड़ न सकी तो वह किसानों को खालिस्तानी आदि कहकर देशद्रोही साबित करने में लग गई। पर ये सब जो विभिन्न प्रकार के आरोप सत्ता पक्ष के द्वारा लगाए गए हैं उसके विपरीत परिणाम निकलकर सामने आये है। देखते-देखते यह किसान आंदोलन जो पंजाब और हरियाणा से उत्पन्न हुआ आज संपूर्ण भारत में फैल गया। आज लगभग 40 किसान संगठनों के संयुक्त किसान मोर्चा के बैनर तले यह किसान आंदोलन हो रहा है। इतिहास इस बात का साक्षी है कि व्यापक जनसहभागिता वाले किसी बड़े जनांदोलन के बिना कोई बड़ा परिवर्तन नहीं हुआ है। जनसहभागिता के साथ जनांदोलन को संगठित होना नितांत आवश्यक होता है। यदि यह जनांदोलन इतना संगठित न होता तो सत्तापक्ष के द्वारा इसे जो कई प्रकार से तोड़ने का प्रयास निरंतर किया जा रहा है उससे यह कब का विखर गया होता। सरकार जहाँ पर सिंधू बार्डर पर बैठे किसानों पर स्थानीय लोगों से पत्थर चलवाये जिससे कई किसान घायल भी हो गए। वहीं पर प्रशासन व विभिन्न अन्य कारणों से अब तक लगभग 40 से अधिक किसान शहीद हो चुके है। ऐसे में कह सकते हैं कि यह आंदोलन किसी एक खास समूह का नहीं है बल्कि एक मंच पर सैकड़ों का संगठन है। इस आंदोलन की व्यापकता दिनोंदिन अभूतपूर्व ढंग से बढ़ती जा रही है। 

     इस आंदोलन की व्यापकता की जिम्मेदारी सत्ताधारी पार्टी का तानाशाही रवैया है जो किसानों के वाजिब मांगो को ध्यान न देकर अपने शक्तियों से उसे डराने धमकाने का प्रयास कर रहा है। जबकि सरकार को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि लोकतंत्र में सबको शांतिपूर्ण ढंग से प्रदर्शन करने का अधिकार है। संविधान का अनुच्छेद 19 (1) (ब) के अनुसार नागरिकों को शांतिपूर्वक और बिना हथियारों के जमा होने का अधिकार है। आज का किसान अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हो गया है इसका कारण यह है कि अब किसान की पीढ़ियां भी पढ़ लिख रही है। वह होरी के जमाने का किसान नहीं रहा है जो सिपाही की वर्दी देखकर दुबक जाता था। अब उसमे आंख से आंख मिलाने की ताकत आ गई है। और यह क्षमता उसकी जागरूकता के साथ साथ भारतीय लोकतंत्र की ही देन है। कृष्ण किशोर ने लोकतंत्र की अवधारणा में लिखा है - "जितना अशिक्षित, गरीब और अस्वस्थ समाज होगा, उतना ही लोकतांत्रिक प्रशासन का भय सर्वव्यापी होगा। हमारे समाज में भी सरकारी संस्था एक भय पीठ बनकर लोगों को अपने से दूर रखने में महारत रखती है। चुने हुए प्रतिनिधि दिखने में भी लोगों जैसा दिखना बंद हो जाते है। वे अलग ही सत्ता स्वरुप हो जाते है।

     इस प्रकार हम कह सकते है कि किसान आंदोलन जन जन का आंदोलन है जिसके प्रति राष्ट्र की अधिकांश जनता की सहानुभूति है। यह सही है कि सत्ता पक्ष और मीडिया संस्थान जिसके एक एक शब्द को जनता कभी शास्त्र वचनों की तरह सत्य मानती थी के द्वारा इस आंदोलन को निरंतर हतोत्साहित किया गया है। हम तो शुक्रगुजार है इस सोशल मीडिया और आम जनमानस की जागरूकता का जो इस जनांदोलन की दशा एवं दिशा को बरकरार रखने में महती भूमिका अदा कर रहा है। 
    

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शनिवार, 20 फ़रवरी 2021

पीएम नरेंद्र मोदी को को जवाबदेही तय करना चाहिए कि 6 साल में आपने महंगाई के अलावा क्या बदला है

सौरभ वीपी वर्मा

वो कथित देश भक्त कहाँ गए जो महंगाई बढ़ने भर की आहट से सड़क से लेकर सदन तक में हंगामा करने लगते थे ,शायद 11 दिन तक लगातार  ईधनों के दाम बढ़ने की जानकारी इनको अभी तक नही हो पाई ,नही तो महंगाई पर आम आदमी का हवाला देकर हंगामा खड़ा करने वाले लोग सरकार को घेर लिए होते !
आजादी के इतिहास में ऐसा पहली बार देखने को मिल रहा है कि मीडिया घरानों के दलाल पत्रकार विपक्ष से सवाल पूछ रहे हैं कि महंगाई पर विपक्षी दलों के नेता क्यों नही बोल रहे हैं , यह भी पहली बार देखने को मिल रहा है जब कथित देशप्रेमी सरकार को जिम्मेदार ठहराने के बजाय विपक्ष से ही महंगाई पर सवाल पूछ रहे हैं।

वैसे सवाल पूछने के लिए इनकी क्षमता इतनी मजबूत नही है कि वह कुछ जाहिर कर सकें , इनको बोलने ,चिल्लाने और कुतर्क करने के लिए खुद देश का प्रधानमंत्री ही उकसाता रहता है ,जैसा कि हाल ही में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि मध्यम वर्ग को ऐसी कठिनाई नहीं होती यदि पिछली सरकारों ने ऊर्जा आयात की निर्भरता पर ध्यान दिया होता. समझ में नही आता कि ऐसे अज्ञानी प्रधानमंत्री को क्या जवाब दिया जाए , जब ये पूरा देश गरीबी ,बेरोजगारी और भ्रष्टाचार में बदलाव लाने के लिए ही तुम्हे मौका दिया है तो पीएम मोदी को जवाबदेही तय करना चाहिए कि 6 साल में आपने क्या बदला है।

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शुक्रवार, 19 फ़रवरी 2021

श्रीनगर में टी स्‍टाल पर आतंकियों ने दो पुलिसवालों की गोली मारकर हत्या की, CCTV में कैद हुई घटना

जम्‍मू-कश्‍मीर के श्रीनगर शहर में शुक्रवार को आतंकियों ने दो पुलिसकर्मियों को बेहद नजदीक से गोली मारकर मौत के घाट उतार दिया. तीन दिन में इस तरह की यह दूसरी घटना है, यह क्षेत्र के CCTV कैमरे में कैद हुई है.  जम्‍मू-कश्‍मीर पुलिस के कांस्‍टेबल सोहेल और मोहम्‍मद यूसुफ शहर के बाघट बारजुला एशिया के एक टी स्‍टाल पर थे तभी यह हमला हुआ. हमले में घायल हुए दोनों पुलिसकर्मियों को अस्‍पताल ले जाया गया जहां उनकी मौत हो गई.


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गुरुवार, 18 फ़रवरी 2021

यूपी- देश में पहली बार किसी महिला को होगी फांसी, उसके जुर्मों को सुनकर कांप जाएगी रूह

भारत में आजादी के बाद पहली बार किसी महिला शिक्षामित्र को फांसी देने की तैयारी की जा रही है। मथुरा जेल में बंद अमरोहा की रहने वाली शबनम की दया याचिका राष्ट्रपति ने खारिज कर दी है।
A woman will be hanged for the first time in the country

यूपी। भारत में आजादी के बाद पहली बार किसी महिला को फांसी देने की तैयारी की जा रही है। मथुरा जेल में बंद अमरोहा की रहने वाली शबनम की दया याचिका राष्ट्रपति ने खारिज कर दी है, जिसके बाद जेल प्रशासन फांसी की तैयारी शुरू कर दी है। मेरठ का पवन जल्लाद ही शबनम को फांसी देगा। पवन दो बार मथुरा जेल का निरीक्षण कर चुका है, हालांकि फांसी की तारीख अभी तय नहीं है, मगर जल्द ही तारीख आ सकती है।

फांसी की सजा बरकरार

बता दें कि अमरोहा की रहने वाली शबनम ने अप्रैल 2008 में प्रेमी के साथ मिलकर अपने सात परिजनों की कुल्हाड़ी से काटकर बेरहमी से हत्या कर दी थी। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने शबनम की फांसी की सजा बरकरार रखी थी। राष्ट्रपति ने भी उसकी दया याचिका खारिज कर दी है। लिहाजा आजादी के बाद शबनम पहली महिला कैदी होगी जिसे फांसी पर लटकाया जाएगा

जूर्म की पूरी कहानी

अमरोहा की रहने वाली शबनम ने अप्रैल 2008 में प्रेमी के साथ मिलकर अपने सात परिजनों की कुल्हाड़ी से काटकर बेरहमी से हत्या कर दी थी। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने शबनम की फांसी की सजा बरकरार रखी थी। राष्ट्रपति ने भी उसकी दया याचिका ख़ारिज कर दी है। अमरोहा ज़िले का बावनखेड़ी गांव 15 अप्रैल 2008 को गांव की एक लड़की की चीख पुकार से लोगों की नींद खुलती है। गांव के लोग जब घर पहुंचते हैं तो परिवार के सात लोगों का खून से लथपथ शव फर्श पर पड़ा था।

25 साल की शबनम चीख- चीखकर लोगों को बताती है कि लुटेरों ने लूट के लिये उसके परिवार को मार डाला। पुलिस मौके पर पहुंचती और जब मामले की जांच होती है तो पूरी कहानी सामने आ जाती है। पुलिस के अनुसार 25 साल के शबनम ने अपने प्रेमी के साथ मिलकर पूरी घटना को अंजाम दिया।दरअसल पोस्टग्रेजुएट और पेशे से शिक्षामित्र शबनम को पांचवीं पास सलीम से प्यार हो गया था।

बाद में उगला सच

परिवार वालों को यह रिश्ता मंजूर नहीं था। इसी बीच शबनम गर्भवती हो गई। फिर दोनों ने मिलकर परिवार को खत्म करने की योजना बनाई। 15 अप्रैल, 2008 की रात शबनम ने खाने में कुछ मिलाया और जब सब बेहोशी की नींद सो गए तो उसने एक-एक कर कुल्हाड़ी से सबको मौत के घाट उतार दिया। पुलिस ने जांच के क्रम में जब शबनम की कॉल डिटेल निकाली तो उसके सलीम से बात होने की पुष्टि हो गई। शबनम से जब कड़ाई से पूछताछ की गई तो उसने सब उगल दिया।
प्रेमी सलीम को भी गिरफ्तार कर लिया गया और हत्या में उपयोग किया गया कुल्हाड़ी भी बरामद हो गया। अदालत ने जघन्य हत्याकांड के लिये शबनम और सलीम दोनों को फांसी की सजा सुनाई है। जेल जाने के करीब सात माह बाद शबनम के एक बेटे को जन्म दिया। कई साल तक ये बच्चा शबनम के साथ रहा। 2015 में फांसी की सजा सुनाए जाने के शबनम ने इस बच्चे को अपने दोस्त और उसकी पत्नी को सौंप दिया था। शबनम और सलीम का बेटा अभी 11 साल का है।
मथुरा जेल में 150 साल पहले महिला के लिये फांसी घर बनाया गया था। आजादी के बाद किसी महिला को भारत में फांसी नहीं दी गई है। शबनम पहली महिला है, जिसे फांसी दी जानी है। फांसी देने से पहले फांसी घर की मरम्मत भी की जा चुकी है। अब जेल प्रशासन को डेथ वारंट जारी होने का इंतजार है।

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बुधवार, 17 फ़रवरी 2021

यूपी -नीरज कुमार वर्मा बनाये गए कांग्रेस कमेटी में पिछड़ा वर्ग के कार्यकारी प्रदेश सचिव

लखनऊ -उत्तर प्रदेश में नीरज कुमार वर्मा को कांग्रेस कमेटी में पिछड़ा वर्ग प्रकोष्ठ का प्रदेश सचिव मनोनीत किया गया है ।इस मौके पर विधायक नरेश सैनी द्वारा बधाई देते हुए पद की जिम्मेदारी दी गई  ,यह जानकारी  उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के पिछड़ा वर्ग के कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष मनोज यादव ने दिया  ।
नवनियुक्त प्रदेश सचिव ने इस मौके पर कहा कि पार्टी में मिली जिम्मेदारी के दायित्व को भलीभांति निभाते हुए शोषित, वंचित ,पिछड़ों, दलितों ,किसानों व अंतिम जन तक पार्टी के नीतियों को पहुंचाने का प्रयास करेंगे।
 
नीरज कुमार वर्मा को प्रदेश सचिव नियुक्त होने पर जिला अध्यक्ष ( बस्ती) अंकुर वर्मा व जिला अध्यक्ष पिछड़ा वर्ग प्रकोष्ठ भूमधर गुप्ता, दीपक पटेल, प्रीतम, शैलेन्द्र तिवारी, जे. पी. यादव, संतोष पटेल, भालचंद्र पटेल, वी. के. चौधरी, हरीलाल, राकेश कुमार, अजय राव, जाकिर अली आदि ने बधाई दी है ।

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आदर्श नही बन पाया सांसद हरीश द्विवेदी ,जगदंबिका पाल एवं रक्षा मंत्री का गोद लिया गया गांव

सौरभ वीपी वर्मा

भारत में ब्रिटीश काल 1880 से 1884 के मध्य लार्ड रिपन का कार्यकाल पंचायती राज का स्वर्ण काल माना जाता है। इसने स्थाई निकायों को बढाने का प्रावधान किया। स्वतंत्रता के बाद भारतीय संविधान के भाग -4 में ग्राम पंचायतों के गठन और शक्तियां का उलेख किया गया है लेकिन इसको संवैधनिक दर्जा नहीं मिला।
पंचायती राज व्यवस्था में ग्राम,तालुका और जिला आते हैं| भारत में प्राचीन काल से ही पंचायती राज व्यवस्था आस्तित्व  में रही है ।आधुनिक भारत में पहली बार तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु द्वारा राजस्थान के नागौर जिले के बगदरी गाँव में 2 अक्टूबर 1959 को पंचायती राज व्यवस्था लागू की गयी । इस समय राजस्थान के मुख्यमंत्री ‘मोहनलाल सुखाडिया’ व मुख्या सचिव ‘भगत सिंह मेहता’ थे ।भगत सिंह मेहता को राजस्थान में व बलवंतराय मेहता को भारत में पंचायती राज का जनक मन जाता है ।

इसको सवैधानिक दर्जा 73 वें संविधान संशोधन 1992 मे मिला इसको ग्याहरवी अनुसूची, भाग -9 व Article 243 में 16 कानून व 29 कार्यो का उलेख किया गया है।भारत में 1957 – बलवन्त राय मेहता समिति की सिफारिश पर त्रिस्तरीय पंचायती राज का गठन किया गया।

उसके बाद से पंचायत के विकास का सिलसिला शुरू हो गया जो वर्ष 2000 आते आते ग्रामीण क्षेत्रों में विकास की क्रांति की तरह दिखाई देने लगा , लेकिन जिम्मेदार जनों की निरंकुशता के चलते सरकार द्वारा चलाई गई की महत्वाकांक्षी योजना अपने उद्देश्य की तरफ नही जा पाई फिलहाल ग्राम पंचायत के लिए योजना बनना जारी रहा और भारी भरकम बजट खत्म होता रहा।

उसके बाद 2013 में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनने के बाद देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आदर्श ग्राम पंचायत बनाने की घोषणा किया जिसमें सांसद ,विधायक और उच्चाधिकारियों को एक-एक गांव को गोद लेकर वहां पर बुनियादी सुविधाओं का ढांचा तैयार करना था लेकिन सरकार की निरंकुशता और स्थानीय जिम्मेदारों की उदासीनता के चलते रक्षामंत्री राजनाथ सिंह का गांव बेंती , सिदार्थनगर के सांसद जगदंबिका पाल का गोद लिया हुआ गांव भारत भारी एवं बस्ती के सांसद हरीश द्विवेदी द्वारा गोद लिया गया गांव अमोढ़ा भी समग्र एवं समेकित विकास में पीछे रह गया। बता दें कि इस दौरान दोनों सदनों के सांसदों ने देश के 800 ग्राम पंचायतों को गोद लिया था।

हम जल्द ही आपको तीनों गांवों की समीक्षात्मक रिपोर्ट भी दिखाएंगे

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मंगलवार, 16 फ़रवरी 2021

आइए जानते हैं भारतीय संविधान में नागरिकों के लिए दी गई 7 मौलिक अधिकारों के बारे में

भारतीय संविधान में 7 मौलिक अधिकारों का वर्णन दिया गया है जिसके बारे में हर भारतीय नागरिकों को जानना जरूरी है तो आइए बताते हैं 7 मौलिक अधिकारों के बारे में ।

समानता का अधिकारा - अनुच्छेद 14 से 18 तक

स्वतंन्त्रता का अधिकार - अनुच्छेद 19 से 22 तक

शोषण के विरूद्ध अधिकार - अनुच्छेद 23 व 24

धार्मिक स्वतंन्त्रता का अधिकार - अनुच्छेद 25 से 28 तक

शिक्षा एवम् संस्कृति का अधिकार - अनुच्छेद 29 और 30

सम्पति का अधिकार - अनुच्छेद 31

सवैधानिक उपचारो का अधिकार - अनुच्छेद 32

अनुच्छेद - 12 राज्य की परिभाषा

अनुच्छेद - 13 राज्य मौलिक अधिकारों का न्युन(अतिक्रमण) करने विधियों को नहीं बनाऐंगा।

44 वें संविधान संशोधन 1978 द्वारा "सम्पति के मौलिक अधिकार" को इस श्रेणी से हटाकर "सामान्य विधिक अधिकार" बनाकर 'अनुच्छेद 300(क)' में जोड़ा गया है।

वर्तमान में मौलिक अधिकारों की संख्या 6 है।

समानता का अधिकार- अनुच्छेद 14 से अनुच्छेद 18

अनुच्छेद - 14 विधी कके समक्ष समानता ब्रिटेन से तथा विधि का समान सरंक्षण अमेरिका से लिया

अनुच्छेद - 15 राज्य जाती धर्म लिंग वर्ण, आयु और निवास स्थान के समक्ष भेदभाव नहीं करेगा।

राज्य सर्वाजनिक स्थलों पर प्रवेश से पाबन्दियां नहीं लगायेगा।

अनुच्छेद 15(3) के अन्तर्गत राज्य महीलाओं और बालकों को विशेष सुविधा उपलब्ध करवा सकता है।

अनुच्छेद - 16 लोक नियोजन में अवसर की समानता(सरकारी नौकरीयों में आरक्षण का प्रावधान)

अनुच्छेद 16(1) राज्य जाती, धर्म, लिंग वर्ण और आयु और निवास स्थान के आधार पर नौकरी प्रदान करने में भेदभाव नहीं करेगा लेकिन राज्य किसी प्रान्त के निवासियो को छोटी नौकरीयों में कानुन बनाकर संरक्षण प्रदान कर सकता है।

अनुच्छेद 16(4) के अन्तर्गत राज्य पिछडे वर्ग के नागरिको को विशेष संरक्षण प्रदान कर सकता है।

इसमें भुमिपुत्र का सिद्धान्त दिया गया है।

अनुच्छेद - 17 अस्पृश्यता/छुआ छुत का अन्त - भारतीय संसद ने अस्पृश्यता निशेध अधिनियम 1955 बनाकर इसे दण्डनिय अपराध घाषित किया है।

अनुच्छेद - 18 उपाधियों का अन्त किया गया है राज्य सैन्य और शैक्षिक क्षेत्र के अलावा उपाधि प्रदान नहीं करेगा(वर्तमान में समाज सेवा केा जोड़ा गया) ।उपाधि ग्रहण करने से पुर्व देश के नागरिक तथा विदेशी व्यक्तियों को राष्ट्रपति की अनुमति लेना आवश्यक है।

स्वतन्त्रता का अधिकर- अनुच्छेद 19 से 22 तक

अनुच्छेद - 19 में सात प्रकार की स्वतंन्त्रता दी गई थी 44 वें संविधान संशोधन 1978(सम्पति अर्जित की स्वतन्त्रता हटा दिया)

अनुच्छेद 19(1)(क) - भाषण या अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता

- प्रैस और मिडिया की स्वतंन्त्रता

- सुचना प्राप्त करने का अधिकार - 12 अक्टूबर 2005 से जोड़ा।

अनुच्छेद 19(1)(ख) - शान्ति पूर्वक बिना अस्त्र-शस्त्र के सम्मेलन करने की स्वतन्त्रता।

अपवाद - सिखों को कटार धारण करने का अधिकार।

अनुच्छेद 19(1)(ग) - संघ या संगम बनाने की स्वतंन्त्रता।

अपवाद - सैन्य संगठन और पुलिस बल संघ नहीं बना सकते है।

अनुच्छेद 19(1)(घ) - बिना बाधा के घुमने - फिरने की स्वतंन्त्रता ।

अनुच्छेद 19(1)(ड़) -व्यापार या आजिविका कमाने की स्वतन्त्रता।

अनुच्छेद 19(1)(च) - सम्पति अर्जन की स्वतन्त्रता(हटा दिया)

अनुच्छेद 19(1)(छ) - स्थायी रूप से निवास करने की स्वतन्त्रता।

अपवाद - जम्मू - कश्मीर।

अनुच्छेद - 20 अपराधों के दोषसिद्ध के सम्बन्ध में सरंक्षण प्राप्त करने का अधिकार।

अनुच्छेद 20(1) किसी व्यक्ति को तब तक अपराध के लिए दोषी नहीं ठहराया जाता है जब तक लागु कानुन का उल्लगन न किया हो।

अनुच्छेद 20(2) किसी व्यक्ति के लिए एक अपराध के लिए दण्डित किया जा सकता है।

अनुच्छेद 20(3) किसी व्यक्ति को स्वंय के विरूद्ध गवाही देने के लिए विवश नहीं किया जा सकता।

अनुच्छेद 20 और 21 आपातकाल में निलम्बित नहीं किया जाता।

अनुच्छेद - 21 प्राण एवं दैहिक स्वतन्त्रता का अधिकार।

अनुच्छेद 21(क) 86 वां संविधान संशोधन 2002, 6-14 वर्ष के बालकों को निशुल्क् अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार।

शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009, 1 अप्रैल 2010 से सम्पुर्ण भारत में लागु।

अनुच्छेद - 22 कुछ दशाओं में गिरफ्तारी से संरक्षण प्राप्त करने का अधिकार, इसमें निवारक ,निरोधक विधि भी शामिल है।

अनुच्छेद 22(1) गिरफ्तार किये गये व्यक्ति को उसके कारण बताने होंगे।

अनुच्छेद 22(2) उसे वकील से परामर्श प्राप्त करने का अधिकार।

अनुच्छेद 22(3) 24 घंटे में सबंधित न्यायलय में पेश करना होगा - यात्रा व अवकाश का समय शामिल नहीं।

निवारक निरोध विधि के अन्तर्गत - शत्रु देश के नागरिक को गिरफ्तार किया जाता है या ऐसी आशंका ग्रस्त व्यक्तियों को गिरफ्तार किया जाता है इन्हें उपर के सामान्य (22(1),(2),(3)) अधिकार प्राप्त नहीं है।

शोषण के विरूद्ध अधिकार-अनुच्छेद 23 से अनुच्छेद 24

अनुच्छेद - 23 इसमें मानव का अवैध व्यापार, दास प्रथा, तथा बेगार प्रथा को पूर्णतय प्रतिबन्धित किया गया है। अपवाद - राज्य किसी सार्वजनिक प्रयोजन के लिए अनिवार्य श्रम लागू कर सकता है।

अनुच्छेद - 24 14 वर्ष से कम आयु के बालकों को उद्योग धन्धों में काम पर नहीं लगाया जाता है। अर्थात् बाल श्रम प्रतिबन्धित किया गया है।

वर्तमान में ऐसी आयु के बालको को घरेलु कार्यो में भी नहीं लगाया जा सकता है।

धार्मिक स्वतन्त्रता का अधिकार - अनुच्छेद 25 से 28

अनुच्छेद - 25 अन्तकरण के आधार पर धर्म को मानने की स्वतन्त्रता ।

अनुच्छेद - 26 माने गये धर्म के प्रबंधन करने की स्वतन्त्रता(प्रबन्धन- चल और अचल सम्पति का)।

अनुच्छेद - 27 राज्य किसी धर्म की अभिवृदि पर धार्मिक आधार पर कोई कर नहीं लगायेगा।

अनुच्छेद - 28 सरकारी वित्त पोषित विद्यालयों में धार्मिक शिक्षा नहीं दि जा सकती है। लकिन किसी विन्यास(ट्रस्ट) द्वारा स्थापित विद्यालय में कुछ प्रावधानों के अन्तर्गत धार्मिक शिक्षा दी जा सकती है। लेकिन इसमें सभी को बाध्य नहीं किया जा सकता है।

शिक्षा और संस्कृति का अधिकार-अनुच्छेद 29 से अनुच्छेद 30

यह अधिकार अल्पसंख्यक वर्गो को प्राप्त है।

अनुच्छेद - 29 राज्य के अन्तर्गत रहने वाला प्रत्येक नागरिक को अपनी भाषा, लिपी और संस्कृति को सुरक्षित और संरक्षित करने का अधिकार है।

अनुच्छेद - 30 भाषा,लिपी और संस्कृति की सुरक्षा हेतु सभी अल्पसंख्यक वर्गो को अपनी पसन्द की शिक्षण संस्थान की स्थापना करने का अधिकार है ऐसी संस्थाओं में प्रवेश से वंचित नहीं किया जायेगा।

संवैधनिक उपचारों का अधिकार-अनुच्छेद - 32

डा. अम्बेडकर ने इसे संविधान की आत्मा कहा है।

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सोमवार, 15 फ़रवरी 2021

पंचायत चुनाव की तैयारी कर रहे प्रत्याशियों के लिए खबर ,जानिए कब आएगा आरक्षण की सूची

उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव को लेकर सरगर्मी तेज होने लगी है वहीं अब प्रत्याशियों के बीच उहापोह की स्थिति यह है कि आरक्षण की सूची कब जारी होगी।

तो आपको बता दें कि क्षेत्र पंचायत व ग्राम पंचायत के वार्डों के आरक्षण की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। प्रधान व तीनों स्तर के वार्डों के श्रेणीवार आरक्षण की प्रारम्भिक जानकारी तीन मार्च को मिल जाएगी। लेकिन आरक्षण के आवंटन की फाइनल सूची 14 मार्च को जारी होगी।

जिला पंचायत अध्यक्ष और प्रमुख का आरक्षण चार्ट शासन द्वारा जारी होने के बाद अब प्रधान, जिला, क्षेत्र व ग्राम पंचायत सदस्यों के आरक्षण व आवंटन की प्रक्रिया 20 फरवरी से शुरू हो जाएगी फिर दो से तीन मार्च को इसका प्रकाशन किया जाएगा। 

प्रस्तावित आरक्षण सूची पर ग्रामीण चार से आठ मार्च तक अपत्तियां दर्ज करा सकेंगे। अगर उन्हें लगता है कि किसी प्रधान या वार्ड का आरक्षण नियमों के मुताबिक नहीं तो वह इसके लिए जिलाधिकारी व डीपीआरओ के पास आपत्ति दर्ज करा सकेंगे। 10 मार्च से 12 मार्च तक जिलाधिकारी की अध्यक्षता वाली समिति आपत्तियों का निस्तारण करेगी। 13 और 14 मार्च को आरक्षण की अंतिम सूची  जारी कर दी जाएगी।

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गुटखा किंग जगदीश जोशी का बेटा 100 करोड़ के मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में गिरफ्तार

देश के बेहद चर्चित गोवा गुटखा किंग कहे जाने वाले जगदीश जोशी के बेटे सचिन जोशी को गिरफ्तार कर लिया गया है. सूत्रों के मुताबिक केंद्रीय जांच एजेंसी ED की मुम्बई ब्रांच द्वारा उसे गिरफ्तार किया गया है. ओमकार बिल्डर से जुड़े 100 करोड़ के मनी लॉन्ड्रिंग मामले में यह कार्रवाई की गई है. सचिन जोशी राजस्थान के रहने वाले हैं. सचिन जोशी विजय माल्या का विवादित बंगला खरीदने के चलते चर्चित  हुए थे. सचिन साउथ इंडियन और बॉलीवुड की कई फिल्मों में अभिनय कर चुका एक चर्चित कारोबारी है.
साल 2004 में सचिन जोशी के पिता जगदीश पर अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम और अनीस इब्राहिम के साथ करीबी रिश्ते होने का भी आरोप लगा था.

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रविवार, 14 फ़रवरी 2021

लखनऊ - माहवारी स्वच्छता पर डॉक्टर से इंटरनेट से जुड़कर किया गया ऑनलाइन संवाद

लखनऊ - इंदिरा नगर के सूगामऊ समुदाय में UNFPA rec फाउंडेशन व "यह एक सोच" फाउंडेशन द्वारा संचालित जबरदस्त जाग्रिक कार्यक्रम के तहत, "माहवारी स्वच्छता में डॉक्टर से ऑनलाइन संवाद कर सत्र लिया गया । 
चेन्नई से डॉक्टर प्रियंका मेहता ने इंटरनेट के माध्यम से जुड़कर अपना बहुमूल्य योगदान दिया व पूरे सत्र में बहुत ही आवश्यक जानकारियां दी व अपने अनुभव भी साझा किए । सत्र में करीब 40 से अधिक प्रतिभागी शामिल रहे जिन्होंने माहवारी स्वच्छता पर चर्चा की व जाना कि माहवारी एक प्राकृतिक प्रक्रिया है जिसमे साफ़ सफाई जरूरी है एवं पौष्टिक आहार खाना चाहिए | 
साथ ही प्रतिभागियों ने सफेद पानी (white discharge), योनि की स्वच्छता, आदि विषयों पर चर्चा हुई व उनके सवालों के जवाब विस्तार से दिए गए। हीमोग्लोबिन की महत्ता व आयरन की आवश्यकता पर भी बात हुई । इस दौरान माहवारी के दौरान अचार आदि को न छूना, बाल ना धोना, मंदिर में ना जाना आदि मिथकों पर विस्तार से चर्चा की गई ।


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मीडिया और विज्ञापन Media and advertising जिससे खबरिया संस्थानों के चरित्र में हुआ बदलाव

लेखक -नीरज कुमार वर्मा "नीरप्रिय"
किसान सर्वोदय इंटर कालेज रायठ बस्ती उ. प्र. 

मीडिया और विज्ञापन का वर्तमान समय में चोली दामन का साथ है। अतीत पर नजर डाला जाय तो विज्ञापन को एक प्रकार से सूचना देने का साधन मात्र समझा जाता था। पर आज के समय में जब से मीडिया के क्षेत्र में पूंजीपतियों का प्रवेश हुआ है तब से विज्ञापन के चरित्र में काफी बदलाव आ गया है। जैसे-जैसे बाजार हावी होता जा रहा है उसी प्रकार से विज्ञापन की महत्ता भी बढ़ती जा रही है। एक समय था जब विज्ञापन और सूचना में कोई खास अंतर नहीं समझा जाता था। 
आज व्यवसायिक समय में विज्ञापन एक प्रकार से मीडिया के आय का प्रमुख स्रोत हो गया है। विभिन्न प्रकार के मीडिया चैनलों व मुद्रित माध्यमों जो खबर आमदर्शक तक पहुंचायी जाती है वह लगभग निःशुल्क होती है या मामूली शुल्क पर उपलब्ध होती है। इस प्रकार खबरों को आमदर्शक या पाठक तक पहुंचाने में मीडिया संस्थानों द्वारा जो खर्चे होते है वह उसे विज्ञापनों के जरिये पाटते है। लागत और व्यय संबंधी यह अवधारणा यहाँ तक तो उचित है। पर भारतीय संदर्भ में यदि देखे तो 1991 ई. के बाद मीडिया मालिकों की विज्ञापन के प्रति जो धारणा थी उसमें बदलाव होने लगी। वे विज्ञापनों जरिए अधिक से अधिक मुनाफा कमाने के बारे में सोचने लगे। विज्ञापन का मूल उद्देश्य अब सूचना प्रदान करने के बजाय 'जो दिखता है वही बिकता है' के तर्ज पर उत्पाद विशेष के लिए बाजार तैयार करना हो गया।

  खैर¡ दिन-प्रतिदिन विज्ञापन की यह दुनिया मायावी होती जा रही है। इस रुप तक पहुंचने के लिए इसने लंबा सफर तय किया है। वैश्विक स्तर पर देखा जाय तो विज्ञापन के शुरुआत के साक्ष्य 550 ई.पूo में मिलते है। शुरुआती दौर में ये विज्ञापन मिश्र, यूनान व रोम  आदि में प्रचलित रहे। इस समय विभिन्न प्रकार के खबरियां चैनलों या मुद्रित माध्यमों का विकास नहीं हुआ था। ऐसे में पत्थरों या पेंटिग के जरिए विज्ञापन किया जाता था। मिश्र में विज्ञापन के लिए पपाइरस का प्रयोग किया जाता था। पपाइरस पेड़ के तने में एक खास तरह की वस्तु होती थी जिस पर संदेश को अंकित करके इसे पोस्टर के रुप में इस्तेमाल किया जाता था। यह तो रही उस दौर की बात जब तकनीकों का ईजाद नहीं हुआ था। 

15 वीं और 16 वीं शताब्दी में मुद्रण तकनीकि में व्यापक परिवर्तन हुए। इस समय विभिन्न प्रकार के प्रिटिंग मशीनों का चलन बढ़ने लगा। इन दिनों देखा जाए तो छपे हुए पर्चे का प्रयोग विज्ञापन के रुप में होता था। समाचार पत्रों में जहाँ तक विज्ञापन के शुरुआत की बात है तो यह सत्रहवीं शताब्दी में हुआ जब इग्लैंड के साप्ताहिक अखबारों में इस प्रकार के कुछ विज्ञापन निकाले गए।

वर्तमान समय में देखा जा रहा है कि वर्गीकृत विज्ञापनों का खासा महत्व है। वर्गीकृत विज्ञापनों की शुरुआत अमेरिका से मानी जाती है। जहाँ पर अखबारों में खबर लगने के बाद जो छोटे छोटे स्थान छूटते थे वहाँ पर सूचनात्मक विज्ञापनों का प्रयोग किया जाता था। आजकल ऐसे वर्गीकृत विज्ञापनों का महत्व बढ़ता जा रहा है। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि पहले ये विज्ञापन जो समाचार से स्थान छूटता था वहाँ पर दिये जाते थे पर आज तो जो स्थान विज्ञापन से शेष बचता है वहाँ पर समाचार दिए जाते है। एक तरह से ये विज्ञापन समाचारों पर कब्जा कर ले रहे है और मीडिया मालिक यह कहते हुए नहीं अघाते कि यह तो हमारे आय का एक स्रोत है जिससे हम कम मूल्य पर पाठकों को समाचार उपलब्ध करा पाते हैं। देखा जाए तो ये वर्गीकृत विज्ञापन जो वर्तमान समय में प्रचलित है विज्ञापनों के इतिहास में एक नये मोड़ साबित हुए है। इस प्रकार के विज्ञापनों ने खबरिया संस्थानों के चरित्र में काफी बदलाव ला दिए है। इन वर्गीकृत विज्ञापनों ने इश्तिहारों की दुनियां को संगठित करने में अहम भूमिका अदा की है। इसी का परिणाम है कि वर्तमान समय में विभिन्न प्रकार की विज्ञापन एजेंसियों का गठन किया जाने लगा है। दुनिया में पहली विज्ञापन एजेंसी सन 1841 ई. में बोस्टन में वालनी पामर नाम से खुली। आज तो ऐसे एजेसियों की भरमार पूरे विश्व में हो गई है।

     मौजूदा समय में देखा जाय तो विज्ञापन में महिलाओं व बच्चों का भी इस्तेमाल व्यापक पैमाने पर किया जा रहा है। विज्ञापनों के इतिहास में झांका जाय तो यह देखा जाता है कि विज्ञापन के क्षेत्र में पहले पुरुष ही होते थे पर आगे चलकर महिलाएं इसमें जुड़ने लगी। प्रारंभ में महिलाओं को लेकर यह तर्क दिया जाता था कि महिलाएं खरीदारी में अहम भूमिका अदा करती है ऐसे में विज्ञापनों में उनका प्रयोग किया जाना फायदे का सौदा है। पर आजकल देखा जा रहा है कि प्रत्येक विज्ञापन के लिए नारी देह का खुलकर इस्तेमाल किया जा रहा है। कुछ ऐसे विज्ञापन है जिसकी विज्ञापित वस्तु के प्रयोग से महिलाओं का कोई लेना-देना नहीं होता है फिर भी बाजारवादी अर्थव्यवस्था का असर यह है कि नारी की काया को बिकने वाले उत्पाद में परिवर्तित कर दिया गया है। यह एक तरह से पूंजी उगाहने का जरिया बन गया है। नारी को सेक्सुअल रुप में  पेश करने वाला पहला विज्ञापन अमेरिका की एक महिला ने बनाया था। आज तो ऐसा समय आ गया है कि बिना कोई सेक्सी लड़की दिखाए बिना विज्ञापन पूरा ही नहीं होता है। प्रिंट मीडिया में नारी के देह को तो विज्ञापित किया ही जाता था पर जो कुछ बचा खुचा था उसे इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने आकर पूरा कर दिया। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने नारी के रुप को काफी विकृत कर दिया। महिलाओं के अलावा विज्ञापनों की दुनिया में बच्चों का सर्वाधिक इस्तेमाल किया जाता है। इसके पीछे कई वजहे है। पहला तो यह कि विज्ञापन के माध्यम से बाल मस्तिष्क को आसानी से प्रभावित किया जा सकता है तथा उन्हें अपनी ओर सरलता से मोड़ा जा सकता है। दूसरी वजह यह है कि विज्ञापन के माध्यम से बालक किसी खास ब्रांड के उपभोक्ता बन जाते है। पर इन विज्ञापनों से बचपन छीनता जा रहा है तथा बच्चों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहे हैं। मीडिया संस्थान जहाँ पर प्रचार करते है कि किसी खास ब्रांड का प्रयोग करना ही आधुनिकता है वहीं पर यदि कोई गरीब का बच्चा उस ब्रांड का प्रयोग नहीं कर पाता है तो उसमें हीनता की भावना घर करने लगती है। आजकल बच्चे इसी विज्ञापन को देखकर अपनी दिनचर्या निर्धारित करने लगे है जो खेदजनक है। 

     जहाँ तक इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों जैसे रेडियो, टेलीविजन आदि की बात है तो प्रांरभ में इन पर विज्ञापन नहीं दिए जाते थे क्योंकि इन्हें स्वयं को विज्ञापित करना था। यदि हम रेडियो की बात करे तो जब रेडियो स्टेशनों की संख्या बढ़ी तो विज्ञापन की शुरुआत प्रायोजित कार्यक्रमों से हुई। उस समय जो विज्ञापन दिये जाते थे वे कार्यक्रम की शुरुआत व अंत में दिए जाते थे। धीरे-धीरे एक ही कार्यक्रम में छोटे छोटे टाइम स्लाट में विज्ञापन दिया जाने लगा। यह प्रयोग काफी सफल रहा। इसी परंपरा का पालन टेलीविजन ने भी किया है। वर्तमान दौर सोशल मीडिया का है जहाँ पर हम सभी फेसबुक, व्हाट्सएप व यूट्यूब का इस्तेमाल भरपूर रुप से कर रहे है। इन माध्यमों में विज्ञापनों का इस्तेमाल व्यापक रूप से किया जा रहा है। 

     ऐसे में देखे तो विज्ञापन आज के बाजार का एक अभिन्न अंग बन गया है। विज्ञापन लोगों की सोच को तय करने में अहम भूमिका का निर्वाहन कर रहे है। सोच तय करना तो विज्ञापन की सफलता मानी जा सकती है पर समाज के लिए यह दुर्भाग्य की बात है। क्योंकि विज्ञापन जो बनाये जाते है वे एक प्रकार के व्यावसायिक हित को दिमाग में रखकर निर्मित होते है। इनके निर्माण में किसी प्रकार के सामाजिक कल्याण की भावना नहीं होती है। यधिप कुछ विज्ञापन सामाजिक हित से जुड़े होते है जो नाममात्र के है। इन विज्ञापनों ने खबरों के चरित्र पर बुरा असर डाला है। लेकिन यदि गहराई से देखा जाय तो खबरों के बदलते चरित्र में सिर्फ विज्ञापनों को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है। क्योंकि विज्ञापनों के सामने घुटने टेकने का कार्य ये मीडिया संस्थान कर रहे है। यदि विज्ञापन सिर्फ संस्थान चलाने के लिए किए जाए तो कोई समस्या नहीं होती है लेकिन यदि इसे कमाई का जरिया मान लिया जाय तो कई दिक्कतें सामने आने लगती है। यह सही है कि जिस संस्थान ने जितने अधिक समझौते किए हैं उसे उतने ही विज्ञापन मिले है तथा उसके कारोबार मे बढ़ोत्तरी भी हुई है। पर इस प्रकार के समझौते मीडिया संस्थान के संपूर्ण स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होते है। इसे खबरिया संस्थानों की उपलब्धि नहीं मानी जा सकती है। इनकी उपलब्धि तो जनसरोकारिता ही है। 
      

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शनिवार, 13 फ़रवरी 2021

जिला अस्पताल बस्ती में पहली बार आयुष्मान योजना के तहत सम्पूर्ण हुआ कुल्हा प्रत्यारोपण

बस्ती- जिला अस्पताल बस्ती में पहली बार आयुष्मान योजना के तहत सम्पूर्ण कुल्हा प्रत्यारोपण(Total Hip Replacement) हुआ।कुल्हा प्रत्यारोपण करने वाली टीम में डॉ डीo केo गुप्ता ,डॉ राम चन्द्र,डॉ अवधेश चौबे,ओमकार वर्मा स्टाफ नर्स व समस्त ओटी स्टाफ ने कार्य किया।
जिला अस्पताल की मुख्य अधीक्षक ने कहा कि ये हमारे लिए गर्व की बात है कि जो जटिल व बड़े आपरेशन अभी तक प्राइवेट अस्पतालों में ही संभव थे वे आपरेशन हमारे जिला अस्पताल के डॉ डी  के गुप्ता और उनकी टीम द्वारा आयुष्मान योजना के तहत पुर्णतः निःशुल्क होना संभव हो सका।

ओटी इंचार्ज सिस्टर उषा पाल, और उनकी सहयोगी संध्या सिस्टर, परमात्मा चौधरी ने भी हर्ष व्यक करते हुए कहा कि उन्हें भी नया व बड़ा काम करते हुए गर्व का अनुभव हो रहा है। 

मरीज़ सीमा पत्नी राम सुन्दर निवासी हल्लौर डुमरियागंज ने बताया कि वो लगभग सात सालों से बाये  कूल्हे के दर्द से परेशान थीं मरीज ने कहा कि जिला अस्पताल में इलाज न मिलता तो इलाज कराना संभव नही था , सीमा के पति ने बताया कि उसे अस्पताल के सभी कर्मचारियों का उचित सहयोग मिला ।

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समीक्षा - राजनीति को संविधान पर राज करने का अधिकार नहीं होना चाहिए

भारतीय राजनीतिक और प्रशासनिक व्यवस्था आम नागरिक के अधिकारों का अतिक्रमण कर रही है। भारतीय संसद और विधानसभा को केवल विधाई शक्तियां ही मिलनी चाहिए थी लेकिन संविधान में इन दोनों को प्रशासनिक शक्ति से विभूषित करके भारतीय जनमानस के साथ धोखा किया गया है। लोकतंत्र की विशेषता ही जनता को स्वनिर्णय की शक्ति प्रदान करना है। 

लेकिन भारतीय समाज की विडंबना है कि सभी लोकतांत्रिक शक्तियां संविधान के माध्यम से संसद और विधानसभाओं ने अपहृत कर ली है। इन दोनों की मूर्खता कहो अथवा लालच कि भारतीय प्रशासनिक व्यवस्था दोनों को बाईपास करके आम आदमी के लिए पीड़ा का कारण बन चुकी है।जहाँ राजनीतिक व्यवस्था ने भारतीय समाज को पूरी तरह विघटित तथा बर्बाद कर दिया है वही प्रशासनिक व्यवस्था ने विकास की राह में अड़ंगा लगाया है। 

यह सर्वविदित है कि किसी भी देश के लिए सामाजिक, वैयक्तिक एवं चारित्रिक विकास के लिए व्यक्ति के अंदर जिम्मेदारी का भाव होना अति आवश्यक है। व्यक्ति का जिम्मेदार होना उसके निर्णय लेने की स्वतंत्रता की सीमा पर निर्भर करता है। आदर्श लोकतंत्र की स्थापना के लिए जनता का शासन व्यवस्था में सहभागी होना अनिवार्य होना चाहिए। शासन व्यवस्था में समाज की सहभागिता जनमानस के अंदर विकासपरक जिम्मेदारी लेकर आती है। जब आमजन शासन व्यवस्था में सहभागी होकर स्वविकास के निर्णय स्वयं करने लगता है उस स्थिति में राजनैतिक व्यवस्था उच्च प्रतिमान स्थापित करने की ओर अग्रसर होने लगती है। 

सहभागी शासन व्यवस्था एक नई सामाजिक राजनीतिक व्यवस्था को जन्म देती है जिसमें समाज को शासनिक और प्रशासनिक व्यवस्था का एक महत्वपूर्ण अंग होने का अधिकार प्राप्त होता है। जिस व्यवस्था में समाज का उत्तरदायित्व पूर्ण स्थान होता है वह एक आदर्श व्यवस्था कही जाती है। इस व्यवस्था में राजनीति समाज के प्रति उत्तरदायी होती है। समाज व्यक्तियों से मिलकर बनता है और व्यक्ति के निर्णय लेने की स्वतंत्रता की सीमा देश की राजनीतिक व्यवस्था संविधान के माध्यम से निर्धारित करती है।

 राजनीति को संविधान पर राज करने का अधिकार नहीं होना चाहिए। संविधान समाज का चेहरा होता है जो समाज की प्रकृति को प्रतिबिंबित करता है। क्योंकि संविधान समाज की परिपक्वता को प्रदर्शित करता है इसलिए संविधान पर समाज का अधिकार होना चाहिए ना कि राजनीति का। व्यक्ति की स्वतंत्रता की सीमा का निर्धारण करना समाज का प्राकृतिक अधिकार है। यदि इस अधिकार को राजनीति अपहृत करती है तो यह अव्यवस्था और आरजकता का ही कारण बनता है। ग्राम स्वराज्य की अवधारणा समाज को शासनिक एवम प्रशासनिक व्यवस्था में सहभागी बनाने पर जोर देती है। 

शासन की ग्राम स्वराज्य परिकल्पना एक ऐसी व्यवस्था है जो राजनैतिक अव्यवस्था, भ्रष्टाचार, अराजकता अथवा तानाशाही जैसी समस्याओं का पूर्ण रूप से समाधान करती है। इस परिकल्पना को आदर्श लोकतंत्र भी कहा जा सकता है। ऐसे व्यक्ति की आदर्श स्वतंत्रता के रूप में भी परिभाषित किया जा सकता है। ग्राम स्वराज राम राज्य व्यवस्था कीं पहली सीढ़ी है़। राम राज्य मतलब सभी सुखों से परिपूर्ण समाज। परिपूर्ण समाज में स्व निणर्य वाली व्यवस्था ग्राम स्वराज से ही आ सकती है। 

ग्राम स्वराज का स्वरूप कैसा होना चाहिए 

ग्राम स्वराज शासन कि सबसे छोटी इकाई हो यह वर्तमान ग्राम सभा कि तरह क्षेत्र पंचायत ,ब्लॉक, जिला पंचायत और D M के अधीन नही होना चाहिए यह प्रशासनिक व्यवस्था राज्य सरकार कि तरह स्वतंत्र होना चाहिए। यह व्यवस्था हर नागरिक कि भागीदारी पर चले , इस व्यवस्था में आम जन के सभी सुख दुख में ग्राम स्वराज कि पूर्ण भागीदारी हो । ऐसी व्यवस्था बनाई जाए जहां शिक्षा स्वास्थ्य आवास से जुड़ी सभी समस्या हल करे । कानून व्यवस्था से जुड़ें सभी मसले और विवाद ग्राम स्तर पर हल किये जायें  ऐसा करने से हम।ग्राम स्वराज और आदर्श ग्राम पंचायत के सपने को पूरा कर सकते हैं।

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शुक्रवार, 12 फ़रवरी 2021

बस्ती - समग्र एवं समेकित विकास के उद्देश्य को पूरा करने में फिसड्डी रह गया ग्राम पंचायत मैनी

समीक्षात्मक रिपोर्ट
 सौरभ वीपी वर्मा

 बस्ती- सरकार द्वारा भारत के गांव को समग्र एवं समेकित विकास के क्षेत्र में समृद्ध बनाने के लिए भारी-भरकम बजट खर्च किया जा रहा है ताकि 7 दशक बाद गांधीजी के ग्राम स्वराज के सपने को पूरा किया जा सके लेकिन स्थानीय जिम्मेदारों की निरंकुशता के चलते सरकार द्वारा जारी किया गया बजट बंदरबट और भ्रष्टाचार की भेंट चढ़कर खत्म हो जा रहा है।

जिला मुख्यालय से 24 किलोमीटर दूर बस्ती बांसी मार्ग के संपर्क मार्ग पर स्थित रुधौली ब्लॉक के मैनी ग्राम पंचायत के लोगों ने 10 वर्ष पूर्व शायद यही सोचा होगा कि अब ग्राम पंचायत के लोगों को पंचायत से जुड़ी दस्तावेजों और योजनाओं को पाने के लिए दूर नही जाना पड़ेगा क्योंकि इस गांव में मिनी सचिवालय का निर्माण जो हुआ था लेकिन अधिकारियों की निरंकुशता के चलते जहां आज तक मिनी सचिवालय में एक भी काम नही शुरू हो पाया वहीं निवर्तमान प्रधान की उदासीनता के चलते मिनी सचिवालय खण्डहर में तब्दील हो गया ।
एक तरफ सरकार स्वच्छ भारत मिशन चला रही है लेकिन दूसरी तरफ ग्राम पंचायत मैनी में डस्टबिन और स्वच्छता के नाम पर भारी-भरकम धन खर्च करने के बाद भी ग्राम पंचायत गंदगी के ढेर पर टिका हुआ है  , ग्राम पंचायत में डस्टबिन के नाम पर जुलाई 2020 में 1 लाख 34 हजार 200 रुपया खर्च किया गया वहीं स्वच्छता के नाम पर ₹34000 खर्च किया गया लेकिन पूरे गांव में गंदगीयों और कूड़ों का ढेर दिखाई दे रहा है ,इसके अलावा ग्राम पंचायत में वर्ष 2019 में अंडरग्राउंड नाली निर्माण के नाम पर लगभग  4 लाख रुपया खर्च किया गया लेकिन ग्राम पंचायत से पानी निकासी की ठोस व्यवस्था नही बन पाई  ।
ग्राम वासियों को स्वच्छ जल मुहैया कराने को लेकर भारत सरकार और उत्तर प्रदेश सरकार से लेकर जल निगम तक अथक प्रयास किए जा रहे हैं वही ग्राम पंचायत में लगाए गए हैंडपंप को रिबोर करने एवं उसके मरम्मत करने के नाम पर ग्राम पंचायत में बड़ा धन खर्च कर जा रहा है उसके बाद भी ग्राम पंचायत के लोगों को दूषित पानी पीने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है।
 वहीं ग्राम पंचायत में लगाया गया एक और हैंडपंप मरम्मत के अभाव में खड़ा है लेकिन जिम्मेदारों द्वारा स्वच्छ पेयजल की व्यवस्था के ढांचे को मजबूत करने के लिए कोई सुधि नही ली गई ।
भारत सरकार द्वारा देश के गरीब लोगों को आवास दिया जा रहा है लेकिन ग्राम पंचायत में जिम्मेदार जनों की लापरवाही और निरंकुशता के चलते प्राथमिकता को दरकिनार कर आवास का आवंटन किया गया है। ग्राम पंचायत की निवासिनी लक्ष्मी देवी ने बताया कि उनके पास रहने के लिए घर नहीं है वह टीन शेड के एक जर्जर मकान में अपने दो बच्चों के साथ जीवन यापन कर रही हैं लेकिन आवास के नाम पर उन्हें आज तक आश्वासन के अलावा  और कुछ नही मिला।
ग्राम पंचायत में बन रहे सार्वजनिक शौचालय का काम अभी पूरा तो नही हो पाया है लेकिन जिस तरह से इसका निर्माण हो रहा है यह अपने उद्देश्य की तरफ भी नही पहुंच पायेगा , गांव में जो शौचालय का निर्माण हो रहा है उसकी पूरी दीवाल बिना DPC (Dump Proofing Course )  के ही खड़ा कर दिया गया है जबकि मानक के अनुसार नींव और दीवाल के बीच DPC होना चाहिए था।
ग्राम पंचायत में अव्यवस्था के सम्बंध में ग्राम पंचायत अधिकारी फैज अहमद से बात करने की कोशिश की गई लेकिन उनसे संपर्क नही हो पाया ।

इस सम्बंध में खण्ड विकास अधिकारी विमला चौधरी से बात हुई तो उन्होंने कहा कि सरकार द्वारा जारी योजना को धरातल पर पूर्ण रूप से क्रियान्वित करने के लिए काम किया जा रहा है लेकिन यदि मैनी गांव में स्वच्छता और अन्य मद के पैसों में हेर फेर किया गया होगा तो संबंधित लोगों पर आवश्यक कार्यवाई की जाएगी।

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गुरुवार, 11 फ़रवरी 2021

आरक्षण का इंतजार खत्म, योगी कैबिनेट ने लगायी मुहर, जल्द होगा चुनाव की तारीखों का ऐलान

उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव (UP Panchayat Chunav) की सरगर्मी तेज हो गयी है. वैसे लोगों के लिए इस समय बड़ी खबर है, जो चुनाव की तारीखों के ऐलान और आरक्षण नियमावली का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं. दरअसल खबर है कि उत्तर प्रदेश की योगी आदित्याथ सरकार ने आरक्षण नियमावली (reservation rules) पर अपनी मुहर लगा दी है.


मीडिया रिपोर्ट के अनुसार योगी कैबिनेट ने पंचायत चुनाव को लेकर आरक्षण नियमावली को अपनी मंजूरी दे दी है. योगी कैबिनेट से आरक्षण नियमावली पर रास्ता साफ होने के बाद बताया जा रहा है कि बहुत जल्द चुनाव को लेकर अधिसूचना जारी कर दी जाएगी.

आरक्षण नियमावली को मंजूरी मिलने के साथ ही अब स्थिति साफ हो जाएगी कि कौन सा गांव में कौन सी जाति के लिए आरक्षित है या फिर आरक्षण से बाहर है. इधर ऐसा माना जा रहा है कि आरक्षण सूची जारी होने के बाद जल्द ही चुनाव आयोग पंचायत चुनाव को लेकर तारीखों का ऐलान कर देगा.

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बुधवार, 10 फ़रवरी 2021

कासगंज पुलिस हत्याकांड में एक आरोपी पुलिस एनकाउंटर में ढेर, मुख्य आरोपी अब अभी फरार

उत्तर प्रदेश के कासगंज में मंगलवार देर रात को हुए पुलिस हत्याकांड के एक आरोपी को पुलिस ने बुधवार को एनकाउंटर में मार गिराया है. हालांकि, मुख्य आरोपी मोती धीमर घटना को अंजाम देकर अभी भी फरार है. मरने वाले की शिनाख़्त मोती धीमर के भाई एलकार के रूप में हुई है. जानकारी है कि पुलिस और बदमाशों के बीच सिढपुरा थाना क्षेत्र के नगला धीमर के पास काली नदी के किनारे मुठभेड़ हुई, जहां शराब तस्करों पुलिस के बीच गोलियां चली हैं.
बता दें कि मंगलवार की देर रात कासगंज के गांव नगला धीमर में सिपाही देवेंद्र और दरोगा अशोक मोती धीमर नाम के बदमाश को वारंट तामील कराने गए थे, लेकिन बदमाशों ने यहां उनपर जानलेवा हमला कर दिया. बदमाशों ने सिपाही की हत्या कर दी और दरोगा को बुरी तरह पीटकर-पीटकर घायल कर दिया और खेत में फेंक गए.

बुधवार की सुबह तक फॉरेंसिक एक्सपर्ट की टीम कासगंज में घटनास्थल पर पहुंच गई है और मौके से साक्ष्य जुटा रही है. आला पुलिस अफसर भी मौके पर क्राइम सीन की जांच कर रहे हैं.

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस घटना का संज्ञान लिया था और अपराधियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने के निर्देश दिए थे. सरकार की ओर से मृतक सिपाही के परिजनों को 50 लाख रुपए और एक आश्रित को नौकरी देने की घोषणा की गई है. 

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