गुरुवार, 31 दिसंबर 2020

रोटरी क्लब व इनरव्हील क्लब बस्ती ने ठंड के मौसम में जरूरतमंद लोगों में वितरण किया कम्बल


बस्ती -रोटरी क्लब बस्ती तथा इनरव्हील क्लब बस्ती के संयुक्त तत्वाधान में जाड़े के मौसम में  कंबल वितरण किया गया इस कड़ी में के प्रथम चरण में स्टेशन रोड पर रहने वाले करीब 100 जरूरतमंद लोगों को कंबल वितरित किया गया , रोटरी क्लब के अध्यक्ष डॉ डीके गुप्ता ने कहा कि प्रत्येक वर्ष की भांति इस वर्ष भी पांच चरणों में कंबल वितरण का कार्यक्रम अलग-अलग स्थानों पर किया जाएगा इस वर्ष का कंबल वितरण कार्यक्रम रेज आर्म टू वार्म कैंपेन द्वारा आयोजित करके किया जा रहा है ।
उन्होंने कहा कि डॉक्टर के रूप में भी इस बात से वाकिफ हूं कि तमाम बीमारियां इसमें हार्ट स्ट्रोक ,कार्डियक अरेस्ट ,हेड कंजेशन ,निमोनिया का भी एक मुख्य कारण ठंड है इसलिए रोटरी क्लब सदैव मानवीय संवेदना को समझते हुए हमेशा इस प्रकार के कार्य करती रहती है ।

इनरव्हील क्लब की अध्यक्षा डॉ निधि गुप्ता ने अपने संबोधन में कहा कि बंद कमरों में रहकर ठंड का एहसास नहीं होता है पर निश्चित रूप से इस बात की चिंता होती है कि ऐसे लोग जो सड़कों पर रह रहे हैं बेघर हैं वह इस ठंड में रात कैसे गुजार रहे होंगे इसलिए कंबल वितरण का कार्यक्रम एक पुनीत कार्यक्रम है ।

रोटेरियन डॉक्टर के सिंह ने कहा कि यह काम  ईश्वर की प्रेरणा से किया जा रहा है इस अवसर पर रोटेरियन असिस्टेंट गवर्नर महेंद्र कुमार सिंह, सचिव अरुण कुमार, रोटेरियन आशीष श्रीवास्तव,  रोटेरियन विवेक वर्मा ,रोटेरियन ऋषभ राज , रोटेरियन कुलदीप सिंह , रोटेरियन डॉक्टर एस के त्रिपाठी , विनीत गुप्ता तथा इनरव्हील क्लब से सविता डीडवानिया सहित तमाम रोटेरियन उपस्थित रहे।

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चुनौतियों का सामना करते हुए बीत रहा यह साल ,2021 की बुनियादी ढांचा तैयार करने की जरूरत

विश्वपति वर्मा (सौरभ)
31 दिसंबर 2020

जनवरी माह की गणना के अनुसार आज वर्ष का अंतिम दिन है . वर्ष 2020 में देश के लोगों को कई सारी चुनौतियों का सामना करना पड़ा जिसमे प्रमुख तौर पर गरीबी ,बेरोजगारी , शिक्षा की बदहाली ,चिकित्सा और कृषि के क्षेत्र में संसाधनों की कमी के साथ भूख और कुपोषण से निपटने के लिए अपर्याप्त तैयारी सत्ताधारियों की रही है ।
इसी बीच प्राकृतिक आपदाओं ने भी आम आदमी से लेकर धनकुबेरों को अपनी आगोश में ले लिया जिसमे सबसे ज्यादा विनाशकारी रूप उत्तरी पूर्वी राज्यों में आये बाढ़ ने लिया जिसके चलते 1.60 लाख हेक्टेयर फसल पानी में डूब गया 250 से ज्यादा तटबंध टूट गए 170 से ज्यादा ब्रिज बह गए , हजारों जानवर और इंसान बेमौत मारे गए वहीं 1 करोड़ से ज्यादा लोग पानी से घिरकर जैसे तैसे अपनी जिंदगी बचाने में सफल हुए।

वहीं इस बीच एक और महामारी कोविड- 19 ने पूरी दुनिया के लोगों को जंजीरों में बांध दिया आसमान से हवाई जहाज गायब हो गए , ट्रेन के पहिए जाम हो गए ,सड़कों पर सन्नाटा छा गया , फैक्ट्रियां बंद हो गईं , स्कूल कालेज के गेट पर ताला लग गया , मंदिर, मस्जिद ,चर्च और गिरजाघर के भगवानों ने भी इंसान का साथ छोड़ दिया ,इंसानी बस्तियों में भी लोग एक दूसरे से दूर भागने लगे क्योंकि सम्पूर्ण भारत में लॉकडाउन हो गया।

इस दौरान रोजी-रोटी के लिए शहरों में रहने वाले लोग  बेबश दिखाई दिए ,तालाबंदी ने सबके पैर बांध दिए , लोग बुनियादी सुविधाओं से वंचित होने लगे जिसके चलते भयावह स्थिति उत्पन्न हुई और लोग अपने घरों को पहुंचने के लिए पैदल ही निकल पड़े। इसी तरहं से साल का सबसे ज्यादा दिन आपदाओं और चुनौतियों का सामना करने में ही निकल गया।

अब वर्ष 2021 का कैलेंडर लोगों के सामने खुलने वाला है जिसमे भी चुनौतियों की कमी नहीं है लेकिन इन सब के बीच देश के लोगों और यहां की सरकारों को उससे निपटने के लिए तैयार रहना ही पड़ेगा।

देश की जनता जहां जैसा भी काम कर रही है वहां वैसा करती रहे मसलन किसान खेती करते रहें ,श्रमिक वर्ग काम करता रहे , प्रशासन अपनी सेवाएं देता रहे वहीं सरकार को प्राथमिकता को ध्यान में रखकर काम करने की आवश्यकता पर बल देने की जरूरत है , जिसमे मुख्य रूप से शिक्षा ,चिकित्सा और कृषि के क्षेत्र में व्यापक पैमाने पर सुधार के साथ एक अच्छी नियति के साथ नीति बनाकर अत्याधुनिक संसाधनों की उपलब्धता सुनिश्चित कराने की जरूरत है , रोजगार उपलब्ध कराने के लिए मनरेगा में न्यूनतम मजदूरी ₹300 के साथ उसमें काम के कुछ और बिंदुओं को जोड़ने की जरूरत है उदाहरण स्वरूप मनरेगा योजना के तहत अपनी खेती अपनी मजदूरी , जागरूकता कार्यक्रम , स्वच्छ भारत मिशन को सफल बनाने के लिए कूड़ा इक्क्ठा करना , प्राइमरी स्कूलों के बच्चों को ज्ञान ,विज्ञान ,और समाज से जुड़ी जानकारी देने के लिए योग्य लोगों को जोड़ना आदि ऐसे कुछ कामों पर बल देना चाहिए।

इसके अलवां टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में निवेश करना , प्रत्येक ब्लॉक में कमसेकम एक-एक विश्वविद्यालय की स्थापना करना , कच्चा माल के अनुसार ग्रामीण क्षेत्रों में फैक्ट्रियों को लगाना , सरकारी संस्थाओं के कार्यप्रणाली में सुधार की जरूरत पर ध्यान देना चाहिए साथ ही इस बात पर ध्यान देने की जरूरत है कि देश में बेबुनियाद कार्यों में धन को बर्बाद करने की प्रथा को बंद कर प्राथमिकताओं को ध्यान में रखकर काम करने पर जोर दिया जाए जिससे देश विकास की ऊंचाइयों को छू सके अन्यथा की स्थिति में एक ही खड़ंजे को हर वर्ष लगाने और उखाड़ने की प्रथा चलती रही तो देश को आर्थिक ,सामाजिक और मानसिक विकास के क्षेत्र में पिछड़ने से कोई रोक नही सकता।

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बुधवार, 30 दिसंबर 2020

भारत के राज्यों की पुलिस में 5.31 लाख और केंद्रीय बलों में 1.27 लाख पद ख़ाली

अलग-अलग राज्यों के पुलिस बल में कुल 5.31 लाख से ज्यादा पद खाली पड़े हैं. इसी तरह सीआरपीएफ और बीएसएफ जैसे केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों में भी 1.27 लाख से अधिक पद रिक्त पड़े हैं.पुलिस अनुसंधान एवं विकास ब्यूरो (बीपीआर एंड डी) ने मंगलवार को बताया कि भारत में विभिन्न पुलिस बलों में 2019 में 119,069 कर्मचारियों की भर्ती की गई है.आंकड़ों के मुताबिक, राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों के पुलिस बलों में कुल 2,623,225 पद स्वीकृत हैं, जबकि सेवा में 2,091,488 पुलिसकर्मी हैं. लिहाजा विभिन्न राज्यों के पुलिस बल में एक जनवरी 2020 तक 531,737 पद खाली पड़े थे.इन आंकड़ों में नागरिक पुलिस, जिला सशस्त्र पुलिस, विशेष सशस्त्र पुलिस और भारतीय रिजर्व बटालियन के पद शामिल हैं.
केंद्रीय गृह मंत्रालय की इकाई बीपीआर एंड डी ने बताया कि पुलिस बलों में महिलाओं की संख्या 215,504 है, जो भारत में कुल पुलिस बल का 10.30 फीसदी है. पिछले वर्ष की तुलना में महिला पुलिसकर्मियों की संख्या में 16.05 प्रतिशत का इजाफा हुआ है.समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, सीआरपीएफ, सीआईएसएफ, बीएसएफ, आईटीबीपी, एसएसबी, एनएसजी और असम राइफल आदि केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों में महिलाओं की संख्या महज 2.98 फीसदी है. इन बलों में कुल 29,249 महिला जवान हैं.आंकड़ों के मुताबिक, केंद्रीय सशस्त्र बलों (सीएपीएफ) में कुल स्वीकृत पदों की संख्या 1,109,511 है, लेकिन एक जनवरी 2020 तक सीएपीएफ में कुल 982,391 कर्मचारी काम कर रहे थे, यानी 1,27,120 कर्मचारियों की कमी है.बीपीआर एंड डी ने बताया कि सीएपीएफ में महिला कर्मचारियों की संख्या 29,249 है जो कुल क्षमता का 2.98 प्रतिशत है.सीएपीएफ में केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ), सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ), केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल, (सीआईएसएफ) भारत तिब्बत सीमा पुलिस (आईटीबीपी), सशस्त्र सीमा बल (एसएसबी), राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड (एनएसजी) और असम राइफल्स शामिल हैं.प्रति पुलिसकर्मी अनुमन्य आबादी (पीपीपी) 511.81 है और जनसंख्या के लिहाज से स्वीकृत पुलिस अनुपात (पीपीआर) प्रति एक लाख की आबादी पर 195.39 पुलिसकर्मी हैं.पुलिस क्षेत्र अनुपात (पीएआर) प्रति 100 वर्ग किलोमीटर पर 79.80 पुलिसकर्मी है. आंकड़ों के मुताबिक, देश में 800 पुलिस जिले हैं और स्वीकृत थानों की संख्या 16,955 है.कुल राज्य सशस्त्र पुलिस बटालियन 318 हैं और पुलिस आयुक्तालयों की संख्या 63 है. बीपीआर एंड डी ने बताया कि राज्यों एवं केंद्र शासित पुलिस के पास कुल 202,925 पुलिस वाहन हैं.इसके अलावा 460,220 सीसीटीवी कैमरे हैं. सरकार ने 2019-20 में व्यय और पुलिस प्रशिक्षण में 1,566.85 करोड़ रुपये खर्च किए हैं.बीपीआर एंड डी ने बताया कि उसने पुलिस संगठनों से जुड़े एक जनवरी 2020 तक के आंकड़े जारी किए हैं. उसने कहा कि बीपीआर एंड डी 1986 से वार्षिक आधार पर ‘पुलिस संगठनों से जुड़े आंकड़े’ (डीओपीओ) प्रकाशित करता रहा है.केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने 29 जनवरी 2020 को एक जनवरी 2019 तक का डीओपीओ जारी किया था. उसने एक बयान में बताया कि बीपीआर एंड डी के इतिहास में ऐसा पहली बार है कि किसी खास वर्ष का डीओपीओ उसी साल के दौरान जारी किया गया है. आंकड़ों के सत्यापन के लिए खासे प्रयास किए गए हैं.बता दें कि बीते सितंबर महीने में केंद्र सरकार ने संसद में जानकारी दी थी कि बीएसएफ और सीआरपीएफ जैसे केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों (सीएपीएफ) में एक लाख से अधिक पद रिक्त पड़े हैं.केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने कहा था कि सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) में सबसे अधिक 28,926 खाली पद हैं, इसके बाद केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) में 26,506, केंद्रीय औद्योगिकी सुरक्षा बल (सीआईएसएफ) में 23,906, सशस्त्र सीमा बल (एसएसबी) में 18,643, भारत तिब्बत सीमा पुलिस आईटीबीपी में 5,784 और असम राइफल्स में 7,328 पद रिक्त हैं.इससे पहले बीते फरवरी महीने में रक्षा राज्यमंत्री श्रीपद नाईक ने राज्यसभा में बताया था कि रक्षा मंत्रालय में दो लाख से अधिक पद रिक्त हैं.उन्होंने बताया था कि रक्षा मंत्रालय में 239,740 पद रिक्त पड़े हैं जिनमें से 3,782 पद समूह क के 34,289 पद समूह ख के और 201,669 अन्य पद हैं.नाईक ने बताया था कि सेना में अधिकारियों के 6,867 पद तथा जीसीओ एवं ओआर के 36,517 पद रिक्त हैं. उन्होंने बताया कि नौसेना में अधिकारियों के 1,500 पद तथा नौसैनिकों के 15,590 पद रिक्त हैं. इसके अलावा वायु सेना में अधिकारियों के 425 पद तथा वायुसैनिक के 10,425 पद रिक्त हैं.

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मंगलवार, 29 दिसंबर 2020

बस्ती-बैंक में नेटवर्क न होने से लेन देन ठप , पैसा न मिलने से कई दिन से निराश होकर लौट रहे उपभोक्ता

बस्ती- पंजाब नेशनल बैंक भिरिया ऋतुराज की शाखा में कई दिनों से नेटवर्क फेल होने के चलते उपभोक्ताओं को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।
3 दिन की छुट्टियों के साथ बैंक में लेन-देन का कार्य 7 दिन से प्रभावित है जिसके चलते सैकड़ो लोगों को बैंक पर चक्कर लगाना पड़ रहा है। उपभोक्ता पैसा मिलने की आस में दिन भर बैठकर इंतजार कर रहे हैं और शाम होते ही निराश होकर वापस लौट जा रहे हैं।

इस संबंध में शाखा प्रबंधक से फोन पर बात करने की कोशिश की गई लेकिन उनसे संपर्क स्थापित नही हो पाया अब लोगों को इस समस्या से निजात कब मिलेगा यह नही पता ।

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सऊदी अरब की एक मशहूर महिला अधिकार कार्यकर्ता को सुनाई गई छह साल की सजा

सऊदी अरब की एक मशहूर महिला अधिकार कार्यकर्ता को कथित तौर पर आतंकवाद के खिलाफ बनाए गए कानून के तहत सोमवार को करीब छह वर्ष जेल की सजा सुनाई गई। सरकारी मीडिया में आई खबर में यह जानकारी दी गई। महिला अधिकारों के लिए आवाज उठाने वाली लुजैन अल-हथलौल पिछले करीब ढाई साल से जेल में हैं, जिसकी आलोचना कई दक्षिणपंथी समूह ओर अमेरिकी सांसदों समेत यूरोपी संघ के सांसद भी कर चुके हैं।
अल-हथलौल उन चंद सऊदी महिलाओं में शुमार थीं, जिन्होंने महिलाओं को वाहन चलाने की अनुमति देने और ‘पुरुष अभिभावक कानून’ को हटाने की मांग उठाई थी जो कि महिलाओं के स्वतंत्रतापूर्वक आने-जाने के अधिकारों का अतिक्रमण था। सरकारी मीडिया के मुताबिक आतंकवाद-रोधी अदालत ने अल-हथलौल को विभिन्न आरोपों में दोषी पाया, जिनमें बदलाव के लिए आंदोलन, विदेशी एजेंडा चलाना, लोक व्यवस्था को नुकसान पहुंचाने के लिए इंटरनेट का उपयोग आदि शामिल हैं।

इसके अलावा अदालत ने अल-हथलौल को उन व्यक्तियों एवं प्रतिष्ठानों का सहयोग करने का भी दोषी ठहराया, जिन्होंने आतंकवाद-रोधी कानून के तहत अपराध किया। बीबीसी की एक खबर के अनुसार अल-हथलौल के परिजनों ने आरोपों से इनकार किया है। उन्होंने कहा कि जेल में बेटी को यातनाएं दी गईं। परिवार ने कहा कि हिरासत में लिए जाने के तीन महीने बाद तक उससे किसी को बात नहीं करनी दी गई। इस दौरान अल-हथलौल को बिजली के झटके दिए गए और कोड़ों से पिटाई की गई। उसका यौन शोषण भी किया गया। हालांकि कोर्ट इन आरोपों से इनकार कर दिया है।

हथलौल को करीब तीन साल पहले हिरासत में लिया गया था। बता दें कि सुनवाई के दौरान कोर्ट उनकी हिरासत को सजा के तौर पर माना और उनकी कुल सजा के दो साल दस महीने कम कर दिए। जेल में सजा काटने की उनकी अवधि मई, 2018 से शुरू होगी। उन्हें अब कुल तीन साल जेल में बिताने होंगे। इधर महिला अधिकार कार्यकर्ता के पास फैसले को चुनौती देने के लिए 30 दिन का समय है। 

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सोमवार, 28 दिसंबर 2020

बस्ती - धान क्रय केंद्रों पर दलालों का बोलबाला , जगह-जगह हो रहा जमकर कालाबाजारी

बस्ती-सरकारी सिस्टम तोड़ने के लिए बिचौलियों ने धान क्रय केंद्रों पर किसानों की तरह अपना पंजीकरण करा लिया है जिसका परिणाम है कि छोटे किसानों से सस्ते दामों पर धान खरीद कर क्रय केंद्रों पर बेंच कर व्यवसायी समर्थन मूल्य का  लाभ ले रहे हैं ।
इस तरह का आरोप लगाते हुए भाजपा नेता जितेंद्र यादव ने उपजिलाधिकारी  को ज्ञापन देकर बताया कि अमरौली शुमाली ,पचानू ,पिपरा जप्ती एवं सोनहा में अन्नदाताओं से धान खरीदने की बजाय उन्हें लंबा समय देकर परेशान किया जाता है जबकि बिचौलियों द्वारा धान को बेंच कर सरकारी दस्तवेजों में धान की खरीदारी को पूरा किया जा रहा है

उन्होंने कहा कि व्यापारी धान खरीद रहे हैं और उनके द्वारा दिए गए खाते में पैसे का हस्तांतरण हो रहा है इस बात की गंभीरता से जांच कराने के लिए जितेंद्र यादव ने प्रशासन को लिखा है।

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परंपरागत अध्ययन प्रणाली बनाम डिजिटल अध्ययन प्रणाली -नीरज कुमार वर्मा

नीरज कुमार वर्मा नीरप्रिय 
सम्प्रति. किसान सर्वोदय इंटर कालेज रायठ बस्ती 

परंपरागत अध्ययन प्रणाली का साधारण अर्थो में तात्पर्य है एक ऐसी अध्ययन प्रणाली जो सदियों से चली आ रही है। देखा जाए तो भारत जैसे देश में अध्ययन की शुरुआत भोजपत्रो से होती है जब  कागज का आविष्कार नहीं हुआ था तो मनुष्य भोजपत्रो पर लिखता पढ़ता था। इसी को आगे बढ़ाते हुए किसी लिखावट को अमर बनाने के लिए शिलालेखों की शुरुआत हुई जहां पत्थर पर लिखा जाता था। आज के समय में देखा जाय तो यह लिखने पढ़ने की परंपरा डिजिटल युग तक पहुंच गई है। अब हार्ड कापी बनाम साफ्ट कापी का जमाना आ गया है।

अध्ययन अध्यापन की जो प्रणालिया या सामाग्री हुई वे समय और परिस्थितियों के अनुसार थी। देखा जाय तो आदिम युग में मनुष्य भोजपत्रो, शिलाओं आदि पर पढ़ता लिखता था। धीरे-धीरे समय ने करवट ली और हम इन चीजों से बाहर निकले। तकनीकी के विकास तथा कागज की खोज ने मनुष्य के अध्ययन अध्यापन प्रणाली को निरन्तर प्रभावित किया है। जैसे जैसे अध्ययन की प्रणालिया बदलती गई उसी के अनुरुप अध्यापन के तरीके भी बदले। ज्यादा समय पीछे न जाकर यदि हम आज के लगभग बीस से पच्चीस साल पहले की बात करें तो उस समय जब बच्चा अपने पढ़ाई लिखाई की शुरुआत करता था तो उसे लेखनी के रुप में डाटपेन न देकर नरकुल की कलम दी जाती थी, कापी के बदले उसे काठ की तख्ती दी जाती थी तथा इरेजर के बदले उसे कालिख आदि प्रदान की जाती थी। उस दौरान बच्चे को सारे विषय उसी तख्ती पर लिखने पढ़ने पड़ते थे आजकल की तरह अलग अलग विषयों को लिखने के लिए अलग अलग कापियां निर्धारित नहीं होती थी। कलम के रुप में वही दुधी का सफेद रंग ही था विभिन्न रंग के डाटपेन नहीं दिये जाते थे। बच्चे बोरे या कपड़े से बने हुए बस्ते का इस्तेमाल करते थे तथा एक बोरा वे अपने पास रखते थे जिससे विघालय में वे जाकर बैठ सके और ज्ञानवर्धन कर सके। ऐसे में कह सकते है कि यह जो ज्ञानार्जन होता था वह काफी विषम परिस्थितियों में होता था।

वर्तमान समय रेडीमेड का है जहां पर पहले से सबकुछ बाजार में पहले से तैयार बना बनाया बाजार में मिल रहा है। उस समय जब बच्चा तख्ती लेकर पढ़ने जाता था तो उसके पास लिखने के लिए केवल एक ही सामग्री होती थी वह थी तख्ती जिस पर उसे विभिन्न विषय लिखने पड़ते थे। ऐसे में एक समय यदि वह उस पर वर्णमाला लिखता तो दूसरे समय उसे मिटाकर उस पर गणित के सवाल हल करने पड़ते थे इस प्रकार किसी बच्चे को सीखने तथा संरक्षित रखने का समय नहीं मिल पाता था। जहां तक पुस्तकों की बात की जाय तो उस समय इतना पैसा नहीं था कि सभी बालकों के पास सुचारु रुप से सभी पुस्तकें उपलब्ध हो। ऐसे में बालक को सीखने में काफी कठिनाई का सामना करना पड़ता था। पर यदि दूसरे नजरिए से देखा जाए तो शिक्षा व्यवस्था काफी किफायती भी थी लोग कम पैसे में शिक्षा प्राप्त कर लेते थे।
पुस्तक तथा कापी प्रणाली की शुरुआत बड़े कक्षाओं अर्थात् कक्षा छह से होती थी। इस कक्षा में पहुंचने पर बच्चे को पढ़ने के लिए पुस्तक तथा लिखने के लिए डाटपेन व कापी मिल जाती थी। इस समय जो अध्यापन की जो पद्धतियां थी वे बहुत विकसित नहीं थी। देखा जाए तो प्रायः मौखिक ढंग से या किताबों के माध्यम से जैसा आज भी देखने को मिलता है बच्चों को अध्यापकों के द्वारा ज्ञान प्रदान किया जाता था। प्रायः शिक्षक किसी पाठ को मौखिक रूप से बताकर या पुस्तकों के सहारे से लिखवाकर अपने कार्य को इतिश्री मान लेते थे। आज के समय में बच्चों को जहां पर करके सीखने या सचित्र पुस्तक प्रणाली के माध्यम से ज्ञान प्रदान किया जाता है वह उस समय नहीं था। आज तो बच्चा विभिन्न विषयों के संदर्भ में खुद प्रयोग करके वैज्ञानिक ढंग से सीखता है या पुस्तकों में जिस विषय या वस्तु का वर्णन किया जाता है उसका एक स्पष्ट चित्र बना होता है। कह सकते है कि उस समय की शिक्षा कल्पनाओं पर आधारित थी पर आज की शिक्षा यथार्थ पर आधारित है। पर हां उस समय की शिक्षा प्रणाली में बच्चों के अंदर एक प्रकार की जिज्ञासा विघमान रहती थी जो बच्चे को किसी विषय वस्तु को जानने के लिए जिज्ञासु बनाये रखती थी। जैसे मुझे याद आता है कि जब कक्षा आठ में मेरे अध्यापक चन्द्रमा के विषय में पढ़ाते थे तो उस समय पुस्तक में चन्द्रमा का चित्र नहीं दिया रहता था आजकल तो पुस्तक में पूर्णिमा से लेकर एकादशी तक के चित्र दिये रहते है। ऐसे में मेरा मन रात होने पर चन्द्रमा को देखने के लिए लालायित रहता था तथा चन्द्रमा को ध्यान से एकटक कुछ देर तक देखते रहते और उसके सतह पर जो पर्वत है काले काले दिखते तो हमारे पूर्वज जो प्रायः अशिक्षित थे उन्हें एक बुढ़िया बताते जो जाते पर अनाज दर रही है ऐसा कहते। वह शिक्षा प्रणाली हमारे जिज्ञासा को तो बनाये रखती थी पर कभी-कभी हम अपनी जिज्ञासा को शांत करने के लिए गलत धारणाओं पर विश्वास कर लेते थे। ऐसे में हमें भ्रमित रहना पड़ता जो उचित नहीं था। वर्तमान शिक्षा प्रणाली हमारी जिज्ञासाओं को शांत करके हमें वास्तविक विषय वस्तु का तुरंत ज्ञान कराने में सक्षम है जो सही है।

ये तो रहा जूनियर तक की कक्षाओं का हाल अब हम बात करें माध्यमिक औल उच्च कक्षाओं की तो उस समय इन कक्षाओं में व्यस्क बच्चे ही पहुंचते थे क्योंकि उनकी जो पढ़ाई शुरू होती थी वह आजकल की तरह तीन साल की आयु में न होकर छह सात वर्ष या इससे ऊपर की उम्र में शुरू होती थी। उस समय बच्चे को खेलने कूदने अर्थात् बचपना का पूरा आनंद उठाने का समय दिया जाता था। आजकल के इस प्रतिस्पर्धी युग की तरह खेल खेल में ही शिक्षा अर्थात् एलकेजी और यूकेजी कक्षाएं नहीं हुआ करती थी। तो हां इन माध्यमिक कक्षाओं मे परंपरागत अध्ययन सामग्री अर्थात् पुस्तके होती थी और इन्ही के माध्यम से अध्यापन भी किया जाता था। आजकल भी अधिकांश विघालयो व महाविद्यालयों तथा विश्वविद्यालयों  में इसी प्रकार हो रहा है जो थोड़ा बहुत परिवर्तन दिखाई दे रहा है वह विभिन्न विषयों में प्रायोगिक प्रणाली को अपनाना है। यह सही है कि वर्तमान समय में विज्ञान ने वह विभिन्न संसाधन आसानी से मुहैय्या करा दिये है जिसके माध्यम से हम बिना समय गवांये विभिन्न विषयों को प्रयोग करके तथा प्रत्यक्ष निष्कर्ष निकालकर आसानी से सीख सकते हैं। जिस विषय को हम पढ़कर कठिनाई से सीखते है उसे यदि हम प्रयोग करके सीखते है तो वह एक तरफ तो आसान हो जाता है और दूसरी तरफ हमारे मस्तिष्क में उस विषय का स्थायित्व हो जाता है।   

वर्तमान समय में देखा जाय तो यह विज्ञान प्रधान युग है। आज के समय में सूचनाओं का संजाल फैला है इसका कारण यह है कि वर्तमान समय में हमारा सूचना प्रौद्योगिकी बहुत उफान पर है। इस सूचना प्रौद्योगिकी ने जहां पर अन्य क्षेत्रों में मानव जीवन को आसान बनाया है वहीं पर शिक्षा के क्षेत्र में भी क्रांतिकारी कार्य किए हैं। सूचना प्रौद्योगिकी के साथ साथ आज देखा जाय तो विभिन्न प्रकार की सुख सुविधाओं से लैस हमारे पास विघालय और विश्वविद्यालय हो गए है। आज के वैज्ञानिक युग में एक सामान्य मनुष्य को एक वैज्ञानिक मानव अर्थात् तर्कशील बनने में समय नहीं लगता है। आजकल के समय में शिक्षा का भी उद्देश्य बच्चों को तर्कशील बनाना उनमें वैज्ञानिक चेतना का विकास करना हो गया है ऐसे में अब शिक्षा विश्वास पर न आधारित होकर निष्कर्ष पर आधारित होने लगी है। आज का बच्चा जब किसी विषय पर ज्ञान प्राप्त करता है तो उसे विज्ञान पर कसकर उसका निष्कर्ष भी प्राप्त करना चाहता है यदि वह प्रयोग खरा नहीं उतरता है तो वह उसे नकार देता है न कि उस पर विश्वास करने लगता है। यह सबकुछ संभव हुआ है तो शिक्षा की इस डिजिटल प्रणाली के कारण।
     इस वैज्ञानिक युग में जहां पर विज्ञान का प्रयोग अन्य क्षेत्रों में किया जा रहा है वहीं पर शिक्षा के क्षेत्र में भी विज्ञान का कुशलता से प्रयोग होने लगा है। कंप्यूटर, एंड्रॉयड मोबाइल, कैलकुलेटर, पेजर आदि यंत्रों के आविष्कार ने शिक्षा के क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव किए है। इन साधनों की सहज उपलब्धता ने शिक्षा प्रणाली को आसान व वैज्ञानिक बना दिया है। आज जब बालक पैदा होता है तभी से उसके वातावरण में ही इन सभी चीजों से उसका स्वाभाविक नाता बनने लगता है। ऐसे में इन सब विषयों के प्रति उसकी रुचि बढ़ने लगती है। आज के समय मे कम्प्यूटर के आविष्कार ने शिक्षा मे आमूलचूल परिवर्तन ला दिया है। कम्प्यूटर एक ऐसा साधन है जिसके माध्यम से हम विभिन्न विषयों का आसानी से अध्ययन अध्यापन कर सकते है। बालक को जिन चीजों को सीखने मे वर्षों जाया करना पड़ता था आज वह उसे डिजिटल प्रणाली के माध्यम से सहजता से और कम समय में सीख सकता है। डिजिटल तकनीक में इंटेरनेट और यू-ट्यूब की खोज ने चार चांद लगा दिए है। आज यदि हम किसी भी विषय वस्तु से संबंधित अध्ययन करना चाहे तो वह हमें टेक्स्ट और वीडियो दोनों रुप मे मिल सकता. है। जिस विषय को  हम पढ़कर नहीं सीख पाते उसका हम इंटेरनेट पर विडियो देखकर आसानी से सीख सकते है। सचमुच इस तकनीक ने मानव को  होमोसेंपियस अर्थात् वैज्ञानिक मानव बनाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है।

इस अध्ययन अध्यापन की सामग्री ने मनुष्य को तो वैज्ञानिक मानव बना दिया पर वह एक तरीके से रोबोटिक मानव बन गया है। कहते है कि जब मनुष्य ज्यादा बौद्धिक हो जाता है तो वह बुद्धिप्रधान हो जाता है उसका ह्रदय पक्ष छिजने लगता है अर्थात उसमें प्रेम, करुणा और श्रद्धा के भाव कम होने लगते है। इस डिजिटल सामग्री से उसके चेतना को तो विस्तार मिला पर किताबों के प्रति जो एक लगाव, एक प्रकार की भक्तिभावना, एक प्रकार की श्रद्धा भावना होती है उसका ह्रास हुआ है। दूसरी तरफ यह अध्ययन सामग्री सूचना परक है जिसमें हमें विषय वस्तु की मात्र सूचना दे दी जाती है उसके संबंध में व्यापक अध्ययन सामग्री हमें कई साइटों पर खोजनी पड़ती है जबकि पुस्तक में यह एक ही स्थान पर मिल जाती है।

 ऐसे में हम कह सकते हैं का हमें परंपरागत अध्ययन सामग्री और डिजिटल अध्ययन सामग्री दोंनो में तालमेल विठाकर तथा मध्यम मार्ग अपनाकर अध्ययन अध्यापन करना होगा। दोंनों को एकदूसरे का विरोधी न मानकर बल्कि पूरक मानकर हमें इस प्रणाली को अपनाना होगा।
       
   

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रविवार, 27 दिसंबर 2020

केरल की राजधानी तिरुवनंतपुर में देश की सबसे कम उम्र की आर्या राजेन्द्रन बनेंगी मेयर

केरल की राजधानी तिरुवनंतपुर में कॉलेज छात्रा 21 वर्षीय आर्या राजेन्द्रन मेयर बनने जा रही हैं. वह देश की अब तक की सबसे युवा मेयर होंगी. हाल में मुदवनमुगल से निगम पार्षद चुनी गईं आर्य को मेयर नियुक्त करने का फैसला हाल सीपीएम जिला सचिवालय के एक पैनल की तरफ से लिया गया है.
स्थानीय निकाय चुनाव 2020 में सीपीएम की तरफ से उतारे गए उम्मीदवारों में वह सबसे युवा चेहरा थीं. वामपंथी के वर्चस्व वाले राज्य की राजधानी में लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट ने वापसी की. लेकिन, इसे बड़ा झटका उस वक्त लगा जब मेयर के उम्मीदवार और मौजूद मेयर चेहरा चुनाव हार गए.

हालांकि, पेरूरकड़ा वॉर्ड के सीनियर कैंडिडेट जमील श्रीधरन का नाम शुरुआत में मेयर पद के लिए विचार किया गया था. लेकिन बाद में इस पर युवा चेहरे को उतारने पर सहमित बनी.

तिरुवनंतपुर के ऑल सेंट्स कॉलेज में बीएससी मैथमेटिक्स की द्वितीय वर्ष की छात्रा आर्या राजनीतिक तौर पर काफी सक्रिय रही हैं. वह वर्तमान में केरल प्रसिडेंट ऑफ बालासंगम हैं, जो सीपीएम का चिल्ड्रेन विंग है.

शुक्रवार को उन्होंने संवाददाताओं से कहा कि वह पार्टी की तरफ से दी जाने वाली भूमिका को सहर्ष स्वीकारेंगी और उम्मीद करती है कि राजनातिक काम और पढ़ाई दोनों साथ-साथ जारी रहेगा.

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वित्तीय अधिकार छीनने के बाद योगी सरकार ने प्रधानों की बढ़ाई एक और मुसीबत

लखनऊ: यूपी की योगी सरकार भ्रष्टाचार को लेकर सख्त है. इसी कड़ी में सरकार ने एक और बड़ा फैसला किया. अब प्रधानों के कार्यकाल में आवंटित और आहरित धनराशि की जांच की कराएगी. कमियां पाए जाने पर ग्राम प्रधानों के खिलाफ सख्त कार्रवाई होगी. ग्राम प्रधानों को आवंटित और 25 दिसंबर तक निकाली गई धनराशि से कराए गए कार्यों का भौतिक सत्यापन के लिए सरकार ने फैसला किया है. 
आपको बता दें कि 25 दिसंबर को ग्राम प्रधानों का कार्यकाल खत्म हो गया है. प्रदेश में 58 हजार गांवों में अब प्रधान का पद खाली हो गए हैं. इसके बाद शनिवार से ग्राम पंचायत का काम एडिशनल डिस्ट्रिक्ट ऑफिसर (ADO) को सौंप दिए गए हैं. यही अधिकारी ग्राम पंचायत के विकास के लिए काम करेंगे. साथ ही लोगों की समस्याओं का निवारण भी करेंगे.

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शनिवार, 26 दिसंबर 2020

यूपी- हैंडपंप छूने की वजह से दबंगों ने 45 वर्षीय दलित व्यक्ति को पीटा

उत्तर प्रदेश के बांदा जिले में सरकारी हैंडपंप को छूने को लेकर हुए विवाद में 45 साल के दलित व्यक्ति की पिटाई करने का मामला सामने आया है.यह घटना बिसंडा थाना क्षेत्र के तेंदुरा गांव के शंकरपुरवा मजरे में बीते शुक्रवार को हुई.पीड़ित रामचंद्र रैदास के अनुसार, शुक्रवार सुबह करीब आठ बजे जब वह पीने का पानी भरने गए तो राम दयाल यादव नाम के शख्स के परिवार के लोगों ने हैंडपंप छू लेने का आरोप लगाकर झगड़ा करने लगे और बाद में लाठी से मारकर घायल कर दिया.बिसंडा थाना के एसएचओ नरेंद्र प्रताप सिंह ने बताया, ‘इस मामले में एफआईआर दर्ज की गई है. पीड़ित का आरोप है कि जब वह तेंदुरा गांव में सरकारी हैंडपंप से पानी लाने गए थे तो उन पर लाठी से हमला किया गया.
इसके बाद दोनों पक्षों के बीच मारपीट शुरू हो गई.सिंह ने कहा कि इस हमले में रैदास घायल हो गए और उन्हें प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में भर्ती किया गया. यह विवाद पिछले दो माह से चल रहा है. पुलिस कई बार मौके पर पहुंच कर मामले को सुलझा चुकी है.एसएचओ का कहना है, ‘रैदास का आरोप है कि दो महीने पहले आरोपियों ने उन्हें यादवों के इलाके में लगाए गए हैंडपंप से पानी लाने पर रोक लगा दी थी, लेकिन अतर्रा के उपजिलाधिकारी के हस्तक्षेप के बाद मामले को सुलझा लिया गया था.’पुलिस अधिकारी का कहना है कि मामले की जांच की जारी है.

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शुक्रवार, 25 दिसंबर 2020

आज मध्य रात्रि से खत्म हो रहा ग्राम पंचायत का कार्यकाल ,उसके बाद भी नही रुकेगा यह काम

बस्तीः जनपद में ग्राम प्रधान का कार्यकाल समाप्त होने के कारण आज रात्रि 12.00 बजे से कोई भी ग्राम प्रधान किसी प्रकार का कोई भुगतान नही कर सकेंगे। उक्त जानकारी जिलाधिकारी आशुतोष निरंजन ने दी है। डीपीआरओ, सभी बीडीओ तथा सहायक विकास अधिकारी (पंचायत) को भेजे गये निर्देश में उन्होने इस आशय की जानकारी दी है।

कहा है कि ग्राम पंचायतों को आवंटित धनराशि का ई-ग्राम स्वराज-पी0एफ0एम0एस0 एकीकृत प्रणाली के माध्यम से ग्राम प्रधानां को चेकर के रूप में अधिकृत किया गया था। उन्होने बताया कि सभी ग्राम पंचायतों के ग्राम प्रधानों का डी0एस0सी0 ई-ग्राम स्वराज पर 25 दिसम्बर की रात 12.00 बजे से अनरजिस्टर्ड कर दिया गया है। सभी अधिकारी सुनिश्चित करे कि ग्राम प्रधान का डी0एस0सी0 समय से अनरजिस्टर्ड हो जाय तथा शासन द्वारा नामित चेकर की डी0एस0सी0 ई-ग्राम स्वराज पर रजिस्टर्ड हो जाय। इसका उल्लंघन पाये जाने पर संबंधित ग्राम पंचायत सचिव तथा सहायक विकास अधिकारी (पंचायत) के विरूद्ध कार्यवाही की जायेंगी।

ग्राम पंचायत का कार्यकाल खत्म होने के बाद प्रधानों से सारे अधिकार छीन लिए जाएंगे लेकिन ग्राम पंचायत में  स्वच्छ पेय जल की व्यवस्था में कोई रुकावट नही आएगा ,यदि ग्राम पंचायत का कोई हैंडपंप इस दौरान खराब होता है तो उसे ग्राम विकास अधिकारी और एडीओ पंचायत के माध्यम से मरम्मत किया जाएगा।

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गुरुवार, 24 दिसंबर 2020

25 दिसंबर को मध्य रात्रि से खत्म हो जाएगा ग्राम प्रधानों का कार्यकाल , वित्तीय अधिकार होगा सीज

UP Panchayat Chunav: उत्‍तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में ग्राम प्रधानों (Gram Pradhan) के खाते 25 दिसंबर रात 12:00 बजे से बंद हो जायेंगे. इसके बाद प्रशासनिक अधिकारियों के हाथ में कमान सौंप दी जाएगी. ग्राम पंचायत सचिव, सहायक विकास अधिकारी (पंचायत) और जिला पंचायती राज अधिकारी के हाथ में कमान होगी. इस बाबत पंचायती राज विभाग ने सभी जिलाधिकारियों को निर्देश भेज दिया है.
25 दिसंबर के बाद ग्राम प्रधान कोई नया काम नहीं कर पाएंगे. ग्राम प्रधान गांवों में वही काम करा पाएंगे जो पहले से चल रहे हैं. साफ है कि उनका वित्तीय अधिकार खत्म हो जाएगा. इसके लिए शासनादेश जारी कर दिया गया है. निर्देश सभी जिलाधिकारियों को भेज दिए गए हैं. प्रधानों का कार्यकाल समाप्त होते ही अधिकार पंचायती राज अधिनियम के तहत पंचायत विभाग के अधिकारियों के जिम्मे आ जाएगा.

गौरतलब है कि 25 दिसंबर से पहले चुनाव हो जाना चाहिए था, लेकिन कोरोना संकट की वजह से चुनाव में देरी हो गई. अब मार्च में चुनाव कराए जाने के संकेत मिल रहे हैं. पंचायतों के परिसीमन और मतदाता पुनरीक्षण का काम चल रहा है. 

बताते चलें कि निर्वाचित होने के बाद ग्राम प्रधानों को पंचायती राज विभाग की ओर से एक बस्ता दिया जाता है, जिसमें उनसे संबंधित सभी प्रकार के अभिलेख समेत वित्तीय लेनदेन के लिए डोंगल, स्वच्छ भारत मिशन में इस्तेमाल होने वाली चेकबुक समेत अन्य समाग्री होती हैं. बस्ता जमा होते ही प्रधान का डोंगल डि-एक्टिवेट कर दिया जाएगा. 25 दिसंबर को कार्यकाल खत्म होने के बाद ग्राम प्रधानों का अपना बस्ता पंचायती राज विभाग में जमा करना होगा. इसके बाद वह कोई भी वित्तीय एवं प्रशासनिक कामकाज नहीं निपटा सकेंगे.

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बुधवार, 23 दिसंबर 2020

बस्ती - किसान दिवस के रूप में मनाई गई पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की 118वीं जयंती

बस्ती - पूर्व प्रधानमंत्री व किसान नेता चौधरी चरण सिंह की 118वीं जयंती किसान दिवस के रूप में मनाई गई। अपना दल ‘एस’ के प्रदेश कोषाध्यक्ष व जिला पंचायत सदस्य राम सिंह पटेल के नेतृत्व में कार्यकर्ताओं ने गौर ब्लॉक के छितहा स्थित पार्टी के जोन कार्यालय पर श्रद्धा सुमन अर्पित कर उन्हे याद किया गया।
  कार्यक्रम को संबोधित करते हुए जिला पंचायत सदस्य रामसिंह पटेल ने कहा कि चौधरी चरण सिंह सच्चे मायने में किसानों के नेता थे। उन्हीं के बदौलत किसानों को बहुत सारे अधिकार मिले। उन्होंने 1954 में भूमि संरक्षण कानून को पारित कराया, उनके द्वारा किसान हित में किए गए कार्यों के चलते उनकी जयंती किसान दिवस के रूप में मनाई जा रही है।

जिला सचिव राम जीत पटेल ने कहा कि चौधरी चरण सिंह आजीवन गांव, गरीब, किसान के शोषण के खिलाफ संघर्ष करते रहे। जब काका कालेलकर आयोग की सिफारिशें ठंडे बस्ते में कैद थी, परिवर्तन तथा भागीदारी के लिए बेचैन समूह के निरंतर संघर्ष को देखते हुए इन्हीं के प्रयासो से मंडल आयोग का गठन किया गया, जिसमें पिछड़े वर्ग के लिए आरक्षण का प्रावधान था।

  कार्यक्रम का संचालन अमर नाथ निषाद ने किया।इस अवसर पर सुरेन्द्र गुप्ता, लाला भैया,अरविंद पाठक,अनिल पटेल,पवन चौधरी,देव पटेल, मीरा प्रधान,कमलेश पटेल,प्रमोद कुमार पाल,देव चौधरी, शैलेन्द्र राजभर, रविन्द्र पटेल,नीरज पटेल, प्रमोद पाल,राजकुमार शर्मा,केशव राम चौधरी,आर के यादव, डी एन निषाद,अभिषेक आर्य, सूरज पटेल आदि मौजूद रहे।

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सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट को 69 पूर्व नौकरशाहों ने बताया बेकार और गैर जरूरी , PM मोदी को लिखा पत्र

पूर्व नौकरशाहों के एक समूह ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) को एक खुला पत्र लिखकर सेंट्रल विस्टा पुनर्विकास परियोजना (Central Vista Project) पर चिंता व्यक्त करते हुए आरोप लगाया है कि शुरुआत से ही गैर जिम्मेदाराना रवैया दिखाया जा रहा है. ‘कांस्टिट्यूशनल कंडक्ट ग्रुप' के बैनर तले 69 सेवानिवृत्त नौकरशाहों ने दावा किया है कि देश का लोक स्वास्थ्य ढांचा निवेश का इंतजार कर रहा है और सवाल किया कि स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी सामाजिक प्राथमिकताओं के स्थान पर बेकार और अनावश्यक परियोजना को प्रधानता क्यों दी जा रही है.
इस पत्र पर पूर्व आईएएस अधिकारी-जवाहर सरकार, जावेद उस्मानी, एन सी सक्सेना, अरूणा रॉय, हर्ष मंदर और राहुल खुल्लर तथा पूर्व आईपीएस अधिकारी-ए एस दुलत, अमिताभ माथुर और जुलियो रिबेरो के दस्तखत हैं. उन्होंने कहा, ‘‘संसद के नए भवन के लिए कोई खास वजह नहीं होने के बावजूद यह बेहद चिंता की बात है कि जब देश में अर्थव्यवस्था गिरावट का सामना कर रही है, जिसने लाखों लोगों की बदहाली को सामने ला दिया है, सरकार ने धूमधाम से इस पर निवेश करने का विकल्प चुना है.''

राष्ट्रीय राजधानी में सेंट्रल विस्टा परियोजना के तहत संसद के नए परिसर, केंद्रीय मंत्रालयों के लिए सरकारी इमारतों, उपराष्ट्रपति के लिए नए इनक्लेव, प्रधानमंत्री के कार्यालय और आवास समेत अन्य निर्माण किए जाने हैं. परियोजना का काम कर रहे केंद्रीय लोक निर्माण विभाग (CPWD) ने अनुमानित लागत को 11,794 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 13,450 करोड़ रुपये कर दिया है. पत्र में आरोप लगाया गया है, ‘‘हम अपनी चिंताओं से अवगत कराने के लिए आपको यह पत्र आज इसलिए लिख रहे हैं क्योंकि सरकार और इसके प्रमुख के तौर पर आपने केंद्रीय विस्टा पुनर्विकास परियोजना के मामले में कानून के शासन का अनादर किया. शुरुआत से ही इस परियोजना में गैर जिम्मेदाराना रवैया दिखाया गया, जो शायद ही इससे पहले कभी दिखा हो.''

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मंगलवार, 22 दिसंबर 2020

नहर कटने से बर्बाद हुए गेहूं की फसल पर मुआवजा के लिए सपा नेता ने एसडीएम को सौंपा ज्ञापन

केoसीo श्रीवास्तव

बस्ती-समाजवादी पार्टी के युवा नेता राहुल सिंह ने ज्वाइंट मजिस्ट्रेट हरैया नंदलाल कलाल को ज्ञापन देकर नहर से कटान होकर बर्बाद हुए फसलों पर मुआवजे की मांग की ।
राहुल सिंह ने कहा कि क्षेत्र के पकड़ी जप्पती में नहर के कटने से पकड़ी, इटवा राजा,गड्ढ़ा पांडेय,महुआ, बरगदवा, बसहा सहित कई गांव के किसानों के एक हजार बीघा से अधिक गेहूं का फसल नुकसान हो गया।
इस लिए  ज्वाइंट मजिस्ट्रेट नन्द किशोर कलाल से मिलकर नहर विभाग से मुवाजा की मांग की गई है।

उन्होंने कहा कि मुआवजा के संदर्भ में कोई सूचना न मिली तो एक हप्ते बाद किसानों के साथ धरना प्रदर्शन के लिए मजबूर होंगे।

ज्ञापन सौंपते वक्त राम तौल,लालजी वर्मा,अनिल यादव,विनय वर्मा, ओंकार,मनोज सहित दर्जनों किसान शामिल रहे।

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यूपी में चारों पदों पर चार चरणों में एक साथ होगा त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव

उत्तर प्रदेश में ग्राम प्रधान, ग्राम पंचायत सदस्य. क्षेत्र पंचायत सदस्य और जिला पंचायत सदस्य के चुनाव इस बार एक साथ होंगे। अभी किसी भी तारीख की औपचारिक घोषणा नही हुई है लेकिन कयास लगाया जा रहा है कि मार्च 2021 में चुनाव कराने की तैयारी है। 
Up panchayat chunav 2020

प्रदेश में त्रिस्तरीय पंचायतों, ग्राम पंचायत, क्षेत्र पंचायत और जिला पंचायत का कार्यकाल क्रमश: 25 दिसंबर, 14 जनवरी और 18 मार्च को समाप्त हो रहा है। 25 दिसंबर को आधी रात से ग्राम पंचायतें भंग हो जाएंगी। 
ग्राम पंचायतों में 26 दिसंबर से विकास खंडों के सहायक विकास अधिकारियों (एडीओ पंचायत) को प्रशासक नियुक्त कर दिया जाएगा। जिला पंचायत अध्यक्ष का कार्यकाल पूरा होने पर जिलाधिकारी और क्षेत्र पंचायत अध्यक्ष (ब्लाक प्रमुख) का कार्यकाल पूरा होने पर उप जिलाधिकारी (एसडीएम) को प्रशासक तैनात किया जाएगा। 

शासन ने पंचायत चुनावों कराने के लिए युद्ध स्तर पर तैयारी प्रारंभ कर रखी है। सरकार की मंशा मार्च में पंचायत चुनाव कराने की है। पिछली बार ग्राम प्रधान व ग्राम पंचायत सदस्य के चुनाव एक साथ हुए थे। क्षेत्र पंचायत सदस्य व जिला पंचायत सदस्य के चुनाव अलग से हुए थे। इस बार समय बचाने के लिए चारों पदों के चुनाव एक साथ कराने की तैयारी है। 

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मोबाइल का इतिहास और फोन से भारतीय समाज पर प्रभाव -नीरज कुमार वर्मा "नीरप्रिय"

नीरज कुमार वर्मा "नीरप्रिय
लेखक - किसान सर्वोदय इंटर कालेज रायठ बस्ती में प्रवक्ता हैं 

जैसा कि नाम से विदित है कि मोबाइल शब्द का तात्पर्य गतिशीलता से है। मोबाइल के आगमन से सूचनाक्रांति में एक नई दस्तक हुई है। संचार के इस साधन के आगमन से भारतीय मानव समुदाय को काफी कुछ सहूलियत मिली तथा भारतीय समाज में जो एक प्रकार की जकड़न और गतिहीनता विघमान थी उसमें एक सार्थक हस्तक्षेप का आगाज भी हुआ।
 देखा  जाए तो भारत में दूरसंचार क्रांति की शुरुआत सन् 1984 से मानी जाती है जब अमेरिका से लौटे इंजीनियर सेम पित्रोदा तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के सलाहकार बने। इन्होंने देश में संचार तकनीकी के विकास पर जोर दिया तथा नये शोध के मकसद से सी-डाॅट अर्थात् सेंटर फार डेवलपमेंट ऑफ टेलीमैटिक्स की स्थापना की। 1985 में डाकविभाग और दूरसंचार विभाग को अलग कर दिया गया तथा 1986 में केन्द्र सरकार ने संचार मंत्रालय की स्थापना की। नब्बे के दशक में जब उदारीकरण की आर्थिक नीतियों का आरम्भ किया गया तो दूर संचार के क्षेत्र में नई कंपनियों का आगमन हुआ। प्रारंभ में लैंडलाइन सेवा हुआ करती थी ऐसे में यह सेवा मात्र कुछ व्यक्तियों तक सीमित थी जो प्रतिष्ठा का विषय समझा जाता था। सन 2000 के बाद सूचना प्रौद्योगिकी में मोबाइल का आगमन क्रांतिकारी ढंग से हुआ और आज के दौर में देखा जाय तो विभिन्न प्रकार के स्मार्टफोन और एंड्रॉयड सेट आमजन के हाथ में है।

 ये तो हुई मोबाइल और उसके इतिहास के संदर्भ में छोटी मोटी बातें। अब हम बात करते है कि मोबाइल का भारतीय समाज पर किस कदर प्रभाव पड़ा है तो देखा जाय भारतीय समाज एक ऐसा समाज है जो विभिन्न प्रकार की अपनी विभिन्नताओं और विभिन्न संस्कृतियों को अपने आपमें समेटे हुए है। यहां के लोगों का यह स्वभाव होता है कि वे किसी चीज़ से चाहे वह निर्जीव हो या सजीव बहुत जल्द भावात्मक रिश्ता जोड़ लेते है। भारतीय परंपरा में यह माना जाता है कि परिचय ही प्रेम का प्रवर्तक होता है इसी का निर्वहन करते हुए प्रत्येक भारतीय का मोबाइल जैसे निर्जीव चीज के प्रति अपना भावात्मक रिश्ता जोड़ने में कोई हिचक नहीं महसूस होती है। 

मोबाइल एक हल्का, छोटा और सुलभ साधन है जिसे हम आसानी से वहन कर सकते है। साथ साथ रखते हुए यह रिश्ता इतना गहरा और भावुक हो जाता है कि यदि कहीं पर मोबाइल गुम हो जाती है तो उस समय जो दुख होता है वह मानवीय होता है। मोबाइल के गुम हो जाने या भूल जाने पर व्यक्ति अकेलापन महसूस करने लगता है ऐसी भावुकता को दूर करने के लिए उसे कुछ वक्त भी लग जाता है।
    मोबाइल के आगमन से हम दूर दराज के मित्रों, रिश्तेदारों, सगे-संबंधियों के साथ अपना संबंध त्वरित साध लेते है। अब हमें चिट्ठी के माध्यम से किसी का हाल पूछना जमाने की बात हो गई है उसका स्थान व्हाट्सएप और एसएमएस ने ले लिया है। इस प्रकार मोबाइल तथा उनके विभिन्न प्रकार के सोशल ऐपों ने दूरी का जो एहसास होता है उसे खत्म कर दिया है। लंबे अंतरालों के बाद अपने मित्रों, सगे-संबंधियों तथा रिश्तेदारों से मिलने की जो उत्सुकता और जिज्ञासा होती थी वह लगभग समाप्त हो गई है। हमें याद आता है अपने बचपन का वह दिन जब हमारे गांव व घरों के लोग दिल्ली तथा मुम्बई जैसे असंवेदनशील शहरों में रहकर दिन-रात मेहनत करके मात्र खुराकी ही चला पाते थे भविष्य के लिए कुछ बचा नहीं पाते थे यहाँ तक कि घर आने के लिए गाड़ी का किराया भी उधार लेकर आते थे पर इन सभी चीजों से हमें उस दौर में क्या मतलब थे हम तो केवल उनके उनके मुख उन अनजान शहरों के संबंध में विभिन्न बातों जैसे वहाँ के लोगों के रहन सहन, वहाँ की सुविधाओं असुविधाओं, वहां की बड़ी बड़ी बिल्डिंगों आदि के बारे में सुनकर खाफी रोमांचित होते थे। इसी प्रकार चिट्ठी पढ़ने में जो संवेदना थी कि पढ़ने वाला और सुनने वाला दोनों कुछ क्षण के लिए भावुक हो जाते थे सचमुच आज ऐसी संवेदनशीलता को मोबाइल ने छीन लिया है तथा मोबाइल पर झगड़े भी होने लगे है।

     वर्तमान समय में मोबाइल क्रांति के आगमन से भारतीय समाज में जो काफी वर्जनाएं थी वे कुछ हद तक कम हुई है। प्रारंभ में देखा जाता था कि मोबाइल का प्रयोग पुरुष प्रधान समाज में सिर्फ पुरुष ही करता था या घर में एक ही मोबाइल होती थी जिसपर सभी बात तो कर सकते थे पर उस मोबाइल का मालिक सिर्फ़ पुरूष होता था पर अब इन परंपराओं में बहुत कुछ परिवर्तन हुआ है तथा अब घूंघट में रहने वाली बहू के पास मल्टीमीडिया सेट होता है जिससे वह अपने पति तथा सगे संबंधियों से बेहिचक बात कर लेती है। यह तो रहा मोबाइल का सकारात्मक पहलू यदि हम  इसके नकारात्मक पक्ष की तरफ देखे तो मोबाइल के अत्याधिक प्रयोग से भारतीय परिवार में तरह तरह की कलह भी पैदा होने लगी है। कभी-कभी ऐसा भी होता है कि गलत नंबर से काल आने पर दो अनजान लड़के लड़कियों में संबंध बन जाते है धीरे-धीरे ये संबंध इतने प्रगाढ़ हो जाते है कि ये अवयस्क अवस्था में अपराध कर बैठते है। साथ ही स्मार्टफ़ोन के अत्यधिक प्रयोग से बच्चों की आंखें कमजोर होना आम बात हो गई है। अक्सर देखा जाता है कि अधिकांश बच्चे मोबाइल से चिपके रहते है जिससे मां - बाप व बच्चों में अक्सर खींचातानी होती रहती है। विभिन्न प्रकार के सर्वेक्षणों में देखा जा रहा है कि इस मशीनी युग में स्मार्टफ़ोन पर अत्यधिक निर्भरता के कारण बच्चों का किताबों के प्रति लगाव कम हो गया है। किताबों के प्रति लगाव के कमी का परिणाम यह हो रहा है कि बच्चों में विचार-विश्लेषण व समझने की क्षमता कम होती जा रही है। अब उनके पढ़ाई का मकसद सिर्फ़ नौकरी पाना बनता जा रहा है न कि समझदार बनना। येन-केन प्रकारेण वे तथ्यात्मक अध्ययन करके इसमें सफल भी हो जा रहे हैं। किताबों और गुरुओं के प्रति जो एक भावात्मक लगाव होता था वह इस गुगलगुरु के आने से खत्म होता जा रहा है। 

मुझे याद आता है कि एक समय ऐसा था कि जब साक्षात्कारकर्ता किसी विषय वस्तु से संबंधित प्रश्न पूछने के बजाय सिर्फ़ अभ्यर्थी के अध्ययन सामग्री अर्थात् उसके द्वारा पढ़ी गई किताबों और उसके लेखक का नाम जानकर उसके मानसिक स्तर का अनुमान लगा लेते थे तथा इसी आधार पर उसे अच्छे अंक भी दे देते थे। आगे भी क्या ऐसा संभव होगा? इस गुगलगुरु वाली पीढ़ियों के आने से यह विचारणीय प्रश्न है।

    ऐसे में मेरा सुझाव है कि मोबाइल का सीमित और सुनियोजित प्रयोग करते हुए इस भारतीय समाज में जो विसंगतियां आ गई है उसे दूर किया जा सकता है। किसी भी चीज़ का अति सदैव विनाशकारी होता है यह हमें स्मरण रखना चाहिए।
        

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सोमवार, 21 दिसंबर 2020

कोरोना वायरस का नया स्ट्रेन हुआ बेकाबू, एक बार फिर पूरी दुनिया को कर सकता है तबाह

कोरोना वायरस ने नए खतरनाक रूप (Coronavirus Strain) ने कहर ढाना शुरू कर दिया है. खतरा भांपते हुए जर्मन सरकार ब्रिटेन (Britain) और दक्षिण अफ्रीका (South Africa) की उड़ानों पर रोक लगाने पर विचार कर रही है. जर्मनी के स्वास्थ्य मंत्री के सूत्रों ने रविवार को यह जानकारी दी.कोरोना वायरस के नए खतरे को देखते हुए बेल्जियम (Belgium) और नीदरलैंड (Netherland) पहले ही ब्रिटेन से विमान और ट्रेन सेवा रोक चुके हैं.


ब्रिटेन ने खुद माना है कि कोरोना वायरस के नए स्ट्रेन ने कहर बरपाना शुरू करदिया है. नीदरलैंड ने रविवार से ब्रिटेन के लिए सभी यात्री उड़ानों (Passenger Flights) पर रोक लगा दी है. बेल्जियम पहले यह निर्णय़ कर चुका है. सूत्रों का कहना है कि जर्मन (Germany) भी ऐसे ही कदम पर गंभीरता से विचार कर रही है.जर्मन सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि ब्रिटेन की गतिविधियों पर पैनी नजर है. वायरस के नए स्ट्रेन से जुड़ी सूचनाओं और डेटा को हम खंगाल रहे हैं. जर्मनी अन्य यूरोपीय देशों के संपर्क में भी है. हालांकि अभी तक जर्मनी में नया स्ट्रेन का कोई भी मरीज नहीं मिला है. 

ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जानसन (UK PM Boris Johnson) ने लंदन और साउथईस्ट इंग्लैंड के तमाम इलाकों में 30 दिसंबर तक लॉकडाउन का ऐलान किया है. इन इलाकों में कोरोना का वह स्ट्रेन मिला है, जो मूल वायरस से 70 फीसदी ज्यादा संक्रामक पाया गया है. बेल्जियम के फैसले से विमान सेवा के साथ यूरोस्टार ट्रेन सेवाओं का संचालन भी प्रभावित होगा.यूरोपीय देशों ने यह कदम ऐसे वक्त उठाया है, जब क्रिसमस (Christmas)  और नए साल के जश्न (New Year Celebration) को लेकर लोग बाहर घूमने जाने की योजना बना रहे हैं. पिछले साल इसी वक्त कोरोना ने दुनिया में कहर ढाना शुरू किया था. यूरोपीय देश इटली, फ्रांस, ब्रिटेन में इसने बड़ी तबाही मचाई थी. इस बार सरकारें काफी सतर्क हैं.



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रविवार, 20 दिसंबर 2020

बस्ती -उद्योग व्यापार मंडल के पदाधिकारियों ने संगठन को सशक्त बनाने के लिए लिया निर्णय


बस्ती- आज जनपद बस्ती में अखिल एकता उद्योग व्यापार मंडल की आवश्यक बैठक जिला अध्यक्ष दिनेश चंद जायसवाल के नेतृत्व में उनके आवास पर की गई। बैठक में मुख्य अतिथि प्रदेश उपाध्यक्ष कुलदीप जायसवाल एवं प्रदेश आईटी प्रभारी विमल पांडे की मौजूद रहे। बैठक में प्रदेश में व्यापारियों के लिए प्रदेश के हर जिले में राष्ट्रीय कार्यकारिणी द्वारा पारित 5/12/ 2020 के 11 सूत्रीय सुझाव पर चर्चा कर व्यापारियों के हितों की रक्षा करने एवं संगठन को सशक्त बनाने पर निर्णय लिया गया।
 इस अवसर पर प्रदेश उपाध्यक्ष कुलदीप जायसवाल ने कहा कि" यह प्रस्ताव सरकार व व्यापारियों के बीच समन्वय स्थापित करने की एक पहल स्थापित करेगा 11 सूत्री प्रस्ताव इस प्रकार है
1- हर स्तर के व्यवसायिको का प्रत्येक माह में 1 दिन का अनिवार्य साप्ताहिक अवकाश की घोषणा की जाय ।
2- केंद्र द्वारा घोषित व्यवसायिक आयोग का गठन जल्द से जल्द हो और इनका अध्यक्ष व्यवसायिक वर्ग से ही होना चाहिए।
3- व्यावसायिको को की सुरक्षा के लिए प्रत्येक स्तर पर व्यवसायिक सुरक्षा सेल का गठन हो।
4- प्रत्येक स्तर के व्यवसायिको के आर्थिक सुरक्षा के लिए भामाशाह व्यवसायिक सुरक्षा बीमा केंद्र सरकार द्वारा निःशुल्क कराया जाए।
5- जी.एस.टी की दरों को उचित रेनसेल करके अनुपालन  सरलीकृत किया जाए।
6- लालफीताशाही के ऊपर निगरानी के लिए स्पेशल सेल का गठन हो जो हर तरह के कुछ दलालों के ऊपर अंकुश रख सके।
7- प्रत्येक नए उद्यमी नए उद्योग को लगाने पर 10 वर्ष सरचार्ज तक हर तरह के करों को समाप्त किया जाए ।
8- बैंकों के हर तरह के लेनदेन पर लग रहे शुल्क समाप्त किया जाए जिससे हर डिजिटल लेनदेन पर कोई शुल्क ना लगे इसकी व्यवस्था किया जाए।
9- कोरोनाकाल में व्यवसायिको के परेशानियों को ध्यान में रखकर छटनीसुदा कर्मचारियों को रोजगार तथा नौकरी दोनों के लिए उचित प्रबंध किया जाए।
10- ऑनलाइन व्यवसाय पर अंकुश लगाकर फिजिकल व्यापार को प्रोत्साहन किया जाए।
11- छोटे कुटीर ग्रामीण उद्योगों एवं निजी कारीगरों के लिए उचित बाजार व्यवस्था का निर्माण किया जाए।
 इस अवसर पर जिला अध्यक्ष दिनेश चंद जायसवाल ने कहा कि व्यापारियों के बीच 11 सूत्री मांगों की चर्चा होगी संगठन को मजबूती से आगे बढ़ाने के लिए सभी स्तर के व्यवसायिको को जोड़ा जाएगा हर स्तर के व्यवसायियों की समस्याओं को चिन्हित कर सरकार तक पहुंचा कर समाधान कराया जाएगा।

 इस अवसर पर निम्न व्यवसाई उपस्थिति रहे- बजरंग लाल जायसवाल, संजय जायसवाल, विपिन आहूजा ,सतीश चंद जायसवाल ,कुलदीप बरनवाल ,बजरंगी गुप्ता ,महेश चंद जायसवाल ,राम नारायण जसवाल, श्याम नारायण ,गणेश चंद्र भट्ट, श्याम कसौधन ,रतन जयसवाल ,शिव कुमार आदि लोग उपस्थित रहे।

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नजरिया -पत्रकारिता के प्रति एकनिष्ठता का अभाव,मूल्यों को खोकर बनाये जा रहे समाचार

नीरज वर्मा 'नीरप्रिय

पत्रकारिता के प्रति देखा जाए तो जो एक प्रकार की मिशनरी की भावना संपादको तथा पत्रकारों में अपने प्रारंभिक दौर में विद्धमान थी उसका वर्तमान दौर में गौर करें तो निरंतर क्षरण हो रहा है। कारण यह है कि उस दौर की पत्रकारिता मात्र धन और यश कमाने का साधन न होकर जीवन का एक साध्य हुआ करती थी। उस समय के संपादकों तथा पत्रकारों में एक प्रकार के आदर्श विद्धमान होते थे वे अपने आदर्शों या मूल्यों से किसी प्रकार की समझौता नहीं करते थे चाहे इसके लिए उन्हें कितना ही बलिदान क्यों न देना पड़ा हो।

 ऐसे आदर्श को हम एक उदाहरण के माध्यम से स्पष्ट करना चाहेंगे जैसाकि आपको मालूम होगा कि भारत का पहला समाचार पत्र 'द बंगाल गजट' था जो वारेन हेस्टिंग्स के शासनकाल में निकला। इसके संस्थापक व संपादक 'जेम्स आगस्टस हिकी' थे। उन्होंने हेस्टिंग्स के शासनकाल के दौरान हुए भ्रष्टाचारों आदि कारनामों का चिट्ठा जनता के समक्ष खोलकर रख दिया इसके लिए उन्हें कारावास व भारत से निष्कासन का दंड भी भोगना पड़ा। उसी दौरान वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट आया जिसे धता बताते हुए न जाने कितने लोगों ने पत्र निकाले। गांधी, नेहरु, तिलक, आजाद आदि ने बड़ा लक्ष्य को सामने रखकर अखबार निकाले। 
 वहीं आज के समय में देखा जाय तो पत्रकारिता एक प्रकार का व्यवसाय हो गया  है। जिस प्रकार किसी व्यवसाय को शुरू करने के लिए बड़ा पूंजी और श्रम की आवश्यकता होती है उसी प्रकार पत्रकारिता भी है। इसके साथ ही साथ पत्र संचालकों को बहुत प्रकार के दबाव भी झेलने होते है जिसमें राजनेता, बाहुबली, प्रशासक व विज्ञापनदाता प्रमुख है। यदि हम स्वाधीनता के दौर की बात करे तो उस दौर में पत्रकारिता के समक्ष देश के नवनिर्माण का अतरिक्त लक्ष्य मौजूद था। उस युग में जवाहरलाल नेहरु उदात्त और लोकतांत्रिक नेता थे जो पत्रकारिता की लोककल्याणकारी भूमिका को प्रोत्साहित करने के पक्षधर थे और उस समय यदि देखा जाए तो अखबार ही एकमात्र पत्रकारिता का साधन था जिसके लिए भारी पूंजी निवेश की आवश्यकता नहीं पड़ती थी। ये उस समय की पत्रकारिता के लिए कुछ अनुकूल परिस्थितियां थी। 

 अनेक अध्येता पत्रकारिता के स्तर में आई गिरावट के लिए इंदिरा गांधी और आपातकाल के दौरान सेंसरशिप व पत्रकारों का दमनचक्र मानते है जोकि निराधार है। यदि उस समय को ध्यान से देखा जाए तो 1975 के आसपास हो रहे मुद्रण तकनीकी के विकास के कारण पत्रकारिता भारी पूंजी निवेश की मांग करने लगी जिससे अनेक छोटे और मझौले आकार के पत्र बंद हो गए दूसरी ओर नव  पूंजीवादी ताकते अपने पैर जमाना आरंभ कर दी जिससे बहुराष्ट्रीय कंपनियों का दबदबा बढ़ते चला गया। 1982 मे एशियाई खेलों के दौरान टेलीविजन युग का आरम्भ हुआ जिससे प्रिंट मीडिया को इससे प्रतिस्पर्धा करने के लिए अपने बाह्य साज-सज्जा में भी परिवर्तन करना पड़ा। बाह्य साज सज्जा पर ज्यादा ध्यान देने से उसके आंतरिक तत्व गौण पड़ने लगे। इसी प्रकार टेलीविजन ने जो विभिन्न प्रकार के गंभीर सामाजिक मुद्दे उठाने आरम्भ किये थे वे भी फीके पड़ने लगे और मनोरंजन प्रधान प्रवृत्ति की ओर अग्रसर होने लगे। 

इधर दो तीन दशको से देखा जा रहा है कि राजनीति विचारधारा पर केंद्रित न होकर व्यक्ति, जाति व संप्रदाय पर होने लगी है। ऐसे में जो सत्ता पर काबिज हो रहे है वे चाहे केन्द्रीय सरकार हो या राज्य सरकार उनका कोई मूल्य या आदर्श नहीं रह गया है। वे चाटुकारिता प्रिय होने लगे है ऐसे में ये नेता मीडिया में अपने प्रशंसा के सिवा और कोई अन्य बात नहीं सुनना चाहते हैं ऐसे में पत्रकारिता हवा के रुख को देखकर संचालित होने लगी है जो इन हवाओं के अनुकूल चलते है अर्थात चाटुकारिता करते है वे फायदे में रहते है इसके विपरीत जो पत्रकारिता के मूल्यों या आदर्शों पर चलते है उन्हें विभिन्न प्रकार की प्रताड़ना झेलनी पड़ती है। वर्तमान समय के उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण के दौर ने पत्रकारों की स्थिति दोयम दर्जे की बना दी है। पत्रकारों के हितों के लिए लड़ने वाले जो संगठन थे वे सब छिन्न भिन्न हो गये है उनपर कुछ स्वार्थियों का कब्जा हो गया है। एक के बाद एक नये संगठन बने पर उनका मकसद पत्रकारिता के मूल्यों की रक्षा करने के बजाय अपने बर्चस्वरुपी स्वार्थ को कायम करना था। पहले के अखबारों में नए पत्रकारों को प्रशिक्षण दिया जाता था वे अपने वरिष्ठों के मार्गदर्शन में पत्रकारिता करते थे। इस प्रकार अखबार अपने मूल्यों एवं नीतियों के अनुसार निकलते थे पर आज यह व्यवस्था खत्म हो गई है। इस बीच सोशल मीडिया नामक एक नया प्लेटफॉर्म विकसित तो हुआ है जहाँ पर प्रत्येक व्यक्ति अपने मन की बातों, विभिन्न सामाजिक व राजनैतिक मुद्दों को व्यक्त कर सकता है पर इनमें एक प्रकार की उच्छृंखलता विघमान है साथ ही साथ पत्रकारिता के लिए जो प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है उसका भी अभाव है। 

 ऐसे में हम कहना चाहेंगें कि यदि हमें पत्रकारिता के प्रति एकनिष्ठता प्रदर्शित करनी है तो संपादकों व पत्रकारों को हिम्‍मत जुटानी होगी, खतरे मोल लेने होंगे  तथा आपस में एकजुटता लानी होगी क्योंकि स्वस्थ पत्रकारिता और स्वस्थ समाज के विकास के लिए यह आवश्यक है। 

लेखक किसान सर्वोदय इंटर कॉलेज रायठ ,बस्ती में प्रवक्ता है

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शनिवार, 19 दिसंबर 2020

बस्ती - समेकित विकास की योजनाओं को लागू करने में पिछड़ गया रामनगर ब्लॉक का यह गांव

ग्राम पंचायत की समीक्षात्मक रिपोर्ट
केoसीo श्रीवास्तव और सुशील कुमार की पड़ताल 

विश्वपति वर्मा ( सौरभ)

बस्ती- उत्तर प्रदेश में ग्राम पंचायत का कार्यकाल 25 दिसंबर को समाप्त हो रहा है उसके बाद ग्राम पंचायत में विकास कार्यों की सभी प्रस्तावित योजनाएं ठप हो जाएंगी ,लेकिन इस 5 साल के दौरान ग्राम पंचायत में क्या बदला है यह जानने के लिए हमने बस्ती जनपद के रामनगर ब्लाक के असुरैना ग्राम पंचायत में रहने वाले लोगों और वहां पर पहुंची योजनाओं का पड़ताल किया , हमारी रिपोर्ट में पता चला कि अभी भी ग्राम पंचायत विकास के क्षेत्र में पिछड़ा हुआ है यहां तक की सरकार की महत्वाकांक्षी योजना भी गांव में लागू नहीं हो पाई है ।
दस्तावेजों में रह गया शौचालय योजना

  ग्राम पंचायत में पहुंचने के बाद हमने सबसे पहले सरकार की सबसे बड़ी और महत्वाकांक्षी योजना स्वच्छ भारत मिशन के बारे में जानकारी हासिल किया गांव के दलित बस्ती में पहुंचने के बाद पता चला कि अभी भी गांव के अधिकांश लोगों के पास शौचालय योजना का लाभ नहीं पहुंचा है , गांव के निवासी झगरू ने बताया कि उनके घर पर शौचालय बनाने के लिए प्रधान द्वारा कुछ सामग्री दिया गया था जिससे शौचालय का निर्माण कराया गया है लेकिन अभी तक शौचालय में सीट और उसके गड्ढे पर ढक्कन नहीं लग पाया है जिसके कारण वह शौचालय योजना के उद्देश्य से अभी भी वंचित है ।
उजाले की व्यवस्था ध्वस्त

ग्राम पंचायत में उजाले की व्यवस्था के लिए सरकार द्वारा स्ट्रीट लाइट, सोलर लाइट के माध्यम से गांव में जगमग की व्यवस्था सुनिश्चित कराने की योजना तैयार की गई है , इस योजना के माध्यम से ग्राम पंचायत में सोलर लाइट और स्ट्रीट लाइट तो लगाए गए हैं लेकिन गांव के खंभों पर लगाए गए स्ट्रीट लाइट गुणवत्ता विहीन होने केे नाते जल्द ही खराब हो गए जिसका परिणाम है कि अब गांव में उजाले की व्यवस्थाा के नाम पर पैसा खर्च करने के बाद भी योजना अपने उद्देश्य को प्राप्त्त नहीं कर सका ।
स्वच्छ पेयजल योजना में भी बेईमानी

गांव के लोगों को स्वच्छ पेयजल की व्यवस्था उपलब्ध हो पाए इसके लिए सरकार द्वारा कई महत्वाकांक्षी  परियोजनाओं को ग्राम पंचायत में लागू किया जाता है जिसमें से एक सबसे सफल और टिकाऊ संसाधन हैंडपंप है लेकिन ग्राम पंचायत में हैंड पंप की व्यवस्था होने के बाद भी लोगों को स्वच्छ पेयजल से वंचित होना पड़ रहा है क्योंकि ग्राम पंचायत में लगाए गए एक हैंडपंप को बरसों से खोल लिया गया जिसके चलते आसपास के लोगों को दूषित पानी पीने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है ।
खड़ंजा उखाड़ कर छोड़ा 

सरकार की मंशा है कि गांव के लोगों को आवागमन में कोई असुविधा ना हो इसके लिए पंचायती राज और ग्राम विकास के माध्यम से गांव में खड़ंजा , इंटरलॉकिंग आरसीसी इत्यादि सड़कों का निर्माण कराया जाता है लेकिन ग्राम प्रधान गांव में सड़कों को बनवाने की जगह गांव की सड़कों को उखाड़ने में दिलचस्प दिखता है, गांव के लालजी ने बताया कि उनके घर के सामने से पहले से खड़ंजा लगा हुआ था लेकिन ग्राम प्रधान ने हमारे घर के सामने खड़ंजा उखाड़ दिया और जब कई महीनों तक खड़ंजा नहीं लगाया गया तब हमारे द्वारा प्रधान जंग बहादुर से कहा गया कि इसका निर्माण करवा दिया जाए तब प्रधान ने कहा कि मेरी इच्छा होगी तो सड़क बनवा एंगे नहीं तो नहीं बनाएंगे
स्वच्छ भारत मिशन के नाम पर गोलमाल

स्वच्छ भारत मिशन योजना के नाम पर पूरे देश को साफ सुथरा रखने की बात की जा रही है लेकिन ग्राम पंचायत में इसकी हकीकत क्या है गांव में पहुंचने के बाद ही पता चलता है ,ग्राम पंचायत असुरैना में स्वच्छ भारत मिशन के नाम पर कूड़ेदान की स्थापना की गई है लेकिन यहां के जिम्मेदार सेक्रेटरी और प्रधान पर सवाल खड़ा होता है कि आखिर जब पूरा गांव कूड़े की ढेर पर टिका है तो कूड़ादान लगाने का क्या औचित्य है, सच तो यह है कि पैसे के बंदरबांट के लिए इस तरह की योजनाओं को गांव में लागू किया जाता है। 
स्कूल में इंटरलॉकिंग सड़क बनाने में हुआ घटिया ईंटो का प्रयोग

ग्राम पंचायत में स्थित प्राथमिक विद्यालय में इंटरलॉकिंग सड़क के निर्माण का काम कराया गया है मौके पर पहुंचकर हमने स्कूल में लगाए गए सड़क का जायजा लिया तो पता लगा कि यहां पर घटिया किस्म के सामग्रियों का प्रयोग किया गया है इसके नाते यहां पर लगाए गए सड़क में ईंटों का टूटना शुरू हो गया है जो आने वाले कुछ ही दिनों में टूटकर खत्म हो जाएगा।

ऐसी स्थिति को देखने के बाद सवाल पैदा होता है कि आखिर ग्राम पंचायत में समग्र एवं समेकित विकास की योजनाएं पीछे क्यों रह जाती हैं, क्या जनता उपयोग की वस्तु बनकर रह गई है या फिर जनता के लिए लाई गई योजनाओं का क्रियान्वयन भी ठीक तरह से हो पाएगा ,हम अगली कड़ी में बताएंगे कि आखिर ग्राम पंचायत में कितना पैसा खर्च किया गया और उससे कौन-कौन से उद्देश्यों की पूर्ति हो पाई है आप बने रहें तहकीक़ात समाचार के साथ ।

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भारत में कोरोना के कुल मामले एक करोड़ के पार, अमेरिका के बाद दूसरा सर्वाधिक केस वाला देश

देश में पिछले 24 घंटों में कोरोना वायरस संक्रमण के 25,152 नए मामले सामने आए हैं जबकि 347 लोगों की मौत हुई है. इसके साथ ही भारत में कोरोना के कुल मामले एक करोड़ के आंकड़े को पार कर गया है. यह आंकड़ा पार करने में 325 दिन लगे. इसी साल 30 जनवरी को देश में कोरोना वायरस का पहला मामला सामने आया था. भारत दुनिया का ऐसा दूसरा देश है जहां कोरोना के मामले एक करोड़ से ज्यादा रिपोर्ट हुए हैं. पहला देश अमरीका है. भारत में कोरोना के कुल मामले 1,00,04,599 रिकॉर्ड किए गए हैं.

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शुक्रवार, 18 दिसंबर 2020

बस्ती -जिम्मेदारजनों की उदासीनता का सबसे शर्मनाक तस्वीर , देखने के बाद उड़ जाएगा होश

केसी श्रीवास्तव/सुशील कुमार

बस्ती- सरकार द्वारा ग्राम पंचायत के लोगों को उनके ही गांव में कई सारी महत्वाकांक्षी योजना के जरिये सुविधाओं की बुनियादी ढांचा तैयार करने के लिए प्रयत्नशील है लेकिन स्थानीय स्तर पर जिम्मेदार लोगों की उदासीनता के चलते लाखों की योजनाएं मात्र हाथी दांत बनकर रह गई है।
तस्वीर सल्टौआ ब्लॉक के परसा खाल गांव की है जहां पर एक दशक पूर्व गांव के बाहर डॉक्टर अंबेडकर सामुदायिक भवन बनाया गया था लेकिन मौके की तस्वीर देखने के बाद ग्राम पंचायत के प्रधान और संबंधित अधिकारियों पर सवाल खड़ा होता है कि क्या यह योजना मात्र कागजों में लोगों के लिए सुविधाजनक है या फिर लोगों को उसका लाभ मिलेगा।
तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती द्वारा गांव के लोगों को एक जगह पर एकत्रित होकर किसी काम को सम्पन्न करने के उद्देश्य के लिए इस भवन का सौगात दिया गया था लेकिन आज भवन की स्थिति यह है कि न तो यहाँ साफ सफाई है और न ही पहुंचने की सुगम व्यवस्था जिसका परिणाम है कि एक शानदार योजना सरकारी दस्तवेजों में सिमट कर रह गया।

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एक हप्ते और चलेगी गांव की सरकार ,उसके बाद प्रधान से छीन लिया जाएगा वित्तीय अधिकार

बता दें कि उत्तर प्रदेश में मौजूदा ग्राम पंचायतों का कार्यकाल 25 दिसंबर को खत्म हो रहा है। नियमानुसार इससे पहले गांवों में चुनाव हो जाने चाहिए लेकिन इस बार कोरोना की वजह से चुनाव में देरी हो रही है, हालांकि सरकार की तरफ से चुनाव की तैयारियां जोरों पर हैं। वैसे 25 दिसबंर को ग्राम प्रधानों का कार्यकाल खत्म होते ही नए कामों की शुरुआत पर रोक लग जाएगा। सरकार की ओर से 25 दिसंबर के बाद कभी भी अधिसूचना जारी हो सकती है।

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खबरों से तिलमिलाई बस्ती पुलिस,पत्रकार के विरुद्ध लगाया फर्जी मुकदमा

पुलिस की बर्बरता जिस तरह से आम आदमी पर होता है ठीक वैसा ही करने के लिए समाज के अग्रणी व्यक्ति को निशाना न बनाया जाए यह कत्तई ठीक नही है यह बात वेब मीडिया एसोसिएशन के जिला अध्यक्ष विश्वपति वर्मा (सौरभ ) ने कहा।

हमारे पत्रकार साथी नैतिकता और प्रमाणिकता के प्रमाणों के साथ खबरों को अंतिम रूप देते हैं लेकिन खबरों की वजह से तिलमिलाई पुलिस ने मीडिया दस्तक के संपादक श्री अशोक श्रीवास्तव के खिलाफ गंभीर धारा में मुकदमा दर्ज किया है और यह बिल्कुल ठीक नही है जबकि सच तो यह है कि तहरीर देने वाले व्यक्ति को अशोक जी दूर -दूर तक नही जानते हैं।
हमारी पड़ताल में पता चला है कि पुलिस के इशारे पर उस व्यक्ति ने अशोक जी के खिलाफ थाने में शिकायत की है जबकि आरोप पूर्ण रूप से बेबुनियाद है ,हम बस्ती पुलिस से बताना चाहते हैं कि बदले की भावना से ऐसा काम न करें जिससे विभाग के लोगों में नकरात्मक छवि दिखाई पड़े।

वेब मीडिया एसोसिएशन में एक जिम्मेदार पद पर होने के नाते हमारी नैतिक जिम्मेदारी है कि किसी पत्रकार पर बेबुनियाद आरोप मढ़कर उन्हें हताश परेशान न किया जाए अन्यथा की स्थिति में हाथ पर हाथ धरे बैठे नही रहेंगे हम शोषण करने वाले लोगों से जमकर मुकाबला करेंगे ,इतना ही नही अगर बस्ती पुलिस पत्रकार साथी के ऊपर लगाए गए मुकदमे में क्लीन चिट नही दिया तो पुलिस के खिलाफ रणनीति के तहत अगली कार्यवाही हमारा संगठन करेगा।

बता दें कि जनपद के परसुराम थाने की एक पीड़िता के बयान के बाद मीडिया दस्तक ने खबर प्रकाशित की थी जिसके बाद पुलिस ने दूसरे व्यक्ति की मदद से मीडिया दस्तक के संपादक अशोक श्रीवास्तव के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 389  मेंं मुकदमा दर्ज किया है।

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गुरुवार, 17 दिसंबर 2020

मीडिया दस्तक के संपादक के विरूद्ध पुलिस ने दर्ज किया फर्जी मुकदमा ,पत्रकारों ने तय की रणनीति

बस्ती- वरिष्ठ पत्रकार अशोक श्रीवास्तव के विरूद्ध एक साजिश के तहत परसरामुपर थाने में आईपीसी की धारा 389 के तहत मुकदमा दर्ज करये जाने से नाराज पत्रकारों ने आज प्रेस क्लब सभागार में बैठक की। पुलिस के इस कृत्य को अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला बताते हुये पत्रकारों ने कहा किसी भी दशा में उत्पीड़न बर्दाश्त नही किया जायेगा।


अध्यक्षता कर रहे उ.प्र. श्रमजीवी पत्रकार यूनियन (पंजी.) के जिलाध्यक्ष एवं वरिष्ठ पत्रकार दिनेश प्रसाद मिश्रा ने कहा कि बस्ती पुलिस पत्रकारों को अपराधी बनाने में तुली है। साफ सुथरी, इमानदार छबि के निष्पक्ष पत्रकार पुलिस के आंख की किरकिरी बने हुये हैं। ऐसे लोगों की आवाज दबाने के लिये पुलिस हर प्रकार के हथकंडे इस्तेमाल कर रही है। सम्बन्धित मामले में पत्रकार अशोक श्रीवास्तव ने दलित गैगरेप पीड़िता का दर्द अपने समाचार माध्यमों में मजबूत साक्ष्यों के साथ प्रकाशित और प्रसारित किया।

खबर को सज्ञान लेकर मामले की जांच करवाने और दोषियों के खिलाफ कडी कार्यवाही करने की बजाय पुलिस कप्तान ने तुरन्त खबरों को झूठा करार दे दिया। मामले में पुलिस का घटिया चरित्र सामने आया, बदले की भावना से पेरित होकर परसरामुपर पुलिस ने थर्ड पार्टी को उकसाकर पत्रकार अशोक श्रीवास्तव के खिलाफ फर्जी मुकदमा दर्ज करवा दिया। जबकि वादी की उनसे कोई जान पहचान, मुलाकात या बातवीत नही है। पत्रकार राजप्रकाश ने पुलिस के इस कृत्य की निंदा करते हुये निर्णायक लड़ाई लड़ने को कहा।

व्यापारी नेता आनंद राजपाल ने कहा जनपद में अघोषित इमरजेंसी जैसा माहौल है। निरंकुश हो चुका प्रशासनिक अमला साफ सुथरी छबि के लोगों को बदनाम करने में जुटा है जो जनता की आवाज हैं और पीड़ितों का दर्द उच्चाधिकारियों तक पहुंचाते हैं। मामला पत्रकारों की प्रतिष्ठा से जुड़ा है इसलिये हमे एकजुट होकर लड़ना होगा। बैठक में मौजूद देवेन्द्र पाण्डेय, तबरेज आलम, मनोज सिंह, दिलीप श्रीवास्तव, अनिल श्रीवास्तव, संजय राय, कपीश मिश्रा, बृजवासी लाल शुक्ला, ब्रह्मानंद पाण्डेय, देवानंद पाण्डेय, राजन चौधरी, मो. टीपू, विजय प्रकाश मिश्रा आदि ने पुलिसिया कृत्य की निंदा की।

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उत्तर प्रदेश- महिला ने बस्ती के तीन पुलिसकर्मियों पर लगाये गंभीर आरोप ,पुलिस महानिरीक्षक से शिकायत

बस्तीः जब रक्षक ही भक्षक बन जाये तो फिर इस देश के लोग न्याय की उम्मीद किससे करें ,ताजा मामला उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले की है जहां पर एक महिला ने परसुराम पुर थाने की पुलिस पर गंभीर आरोप लगाया है।

परसरामुपर थाना क्षेत्र की एक विवाहिता का कहना है कि 24-25 नवम्बर की मध्य रात्रि में तीन गाड़ियों में करीब 15 की संख्या में पुलिस टीम उसके घर के अंदर घुसी और बड़े बेटे को उठा ले गयी।

महिला ने बताया कि उसके द्वारा इस पुलिसिया कार्यवाही का कारण पूछने पर उसके  साथ अश्लील हरकत की गयी एवं जातिसूचक गालियों से उसे बेइज्जत किया गया। पीड़िता के मुताबिक आधे घण्टे बाद पुलिस टीम फिर पहुंची और इस बार उसको जबरन उठा ले गयी। इन दोनो कार्यवाहियों में कोई महिला पुलिसकर्मी टीम में शामिल नही थी। थाने में ले जाकर उसे और बेटे को मारा पीटा गया। 
                    प्रतीकात्मक तस्वीर
महिला का आरोप है कि पूछताछ के दौरान उसे थाने के अंदर बने एक वीआईपी रूम में ले जाया गया जहां थाने के 3 पुलिसकर्मियों द्वारा उसके साथ दरिंदगी को अंजाम दिया और डरा धमकाकर उसकी जुबान बंद कर दी गयी।

महिला ने कहा कि उससे धमकी दिया गया कि जुबान खुली या कहीं शिकायत की तो पूरे परिवार को फर्जी मुकदमे में फंसाकर जीवन बरबाद कर देंगे। डरी सहमी महिला ने कुछ दिनों तक जुबान बंद रखा। पांच छः दिन बाद उसने हिम्मत करके अपने साथ हुई हैवानियत की जानकारी पति को दी जो पति सफाईकर्मी है। उसका कहना है दो बार छापेमारी के बाद दो पुलिसकर्मी पूरी रात उसके घर की छत पर बैठे रहे। 

 बाद में बेटे को 22 हजार रूपया देकर थाने से छुड़ाया। 07 दिसम्बर को पीड़ित पुलिस कप्तान से मिलने पहुंची लेकिन वहां तैनात सुरक्षाकर्मियों ने उसे बेइज्जत करके भगा दिया।मजबूर होकर 09 दिसम्बर को पुलिस महानिरीक्षक से मिले और पूरे प्रकरण की जानकारी दी। उन्होने न्याय का भरोसा दिया है।

 पीड़ित महिला और उसके पति का कहना है कि उनके साथ अनहोनी हुई है, पुलिस ने अपनी शक्ति का दुरूपयोग कर हैवानियत को अंजाम दिया और डरा धमकाकर जुबान बंद करा दी।

 पूरे मामले में परसरामुपर के थानाध्यक्ष का कहना है कि गांव में हुये एक अपहरण मामले में पुलिस ने महिला और उसके बेटे को थाने पर बुलाया था। घर से उठाकर लाने और थाने में उसके साथ रेप के आरोप झूठ व बेबुनियाद हैं। पुलिस कप्तान हेमराज मीणा ने भी खबर को झूठ और बेबुनियाद बताते हुये इसका खण्डन किया है। 


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बुधवार, 16 दिसंबर 2020

सड़कों पर से हटाए जाएं किसान', याचिका पर SC में आज सुनवाई, अन्नदाता के साथ आईं खाप पंचायतें

तीन नए कृषि कानूनों पर सरकार और किसान नेताओं के बीच गतिरोध बरकरार है. किसान अभी भी कड़ाके की ठंडके बावजूद आंदोलन कर रहे हैं और अपनी मांगों पर डटे हैं. इस बीच आज किसान आंदोलन को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होनी है. सुप्रीम कोर्ट में कृषि कानून, किसान आंदोलन और अन्य मसलों पर अलग-अलग याचिकाएं दाखिल की गई हैं. इनमें सबसे अहम है आंदोलन कर रहे किसानों को सड़कों पर से हटाने की याचिका. लॉ स्टूडेंट ऋषभ शर्मा ने यह याचिका दायर की है. दूसरी तरफ किसानों ने आज (बुधवार, 16 दिसंबर) को दिल्ली-नोएडा का चिल्ला बॉर्डर बंद करने का ऐलान किया है. किसानों के समर्थन में अब यूपी के खाप पंचायतें भी आ गई है।

सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को किसान आंदोलन से जुड़ी कई याचिकाओं पर सुनवाई होनी है. इनमें दिल्ली के अलग-अलग बॉर्डर पर जाम और कोरोना वायरस संकट को लेकर भी याचिका दायर की गई है. इसके अलावा किसान आंदोलन में मानवाधिकारों, पुलिस एक्शन और किसानों की मांग मानने की अपील से जुड़ी याचिका भी दाखिल की गई है. चीफ जस्टिस एस ए बोबडे, जस्टिस ए एस बोपन्ना और जस्टिस वी रामसुब्रमण्यम की बेंच इन मामलों पर सुनवाई करेगी

पश्चिमी यूपी की कई खाप पंचायतों ने किसान आंदोलन का समर्थन किया है और 17 दिसंबर को आंदोलनरत किसानों के साथ मिलकर दिल्ली की सीमाओं पर प्रदर्शन करने की घोषणा की है. अखिल खाप परिषद के सचिव सुभाष बालियान ने ये जनाकरी दी है. 

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मंगलवार, 15 दिसंबर 2020

UK के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन होंगे गणतंत्र दिवस समारोह में मुख्य अतिथि, कबूल किया आमंत्रण


भारत ने अपने अगले गणतंत्र दिवस समारोह (India's Republic Day) के लिए ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन (British PM Boris Johnson) को समारोह के मुख्य अतिथि के तौर पर बुलावा भेजा था, जिसे जॉनसन ने स्वीकार कर लिया है. बोरिस जॉनसन 26 जनवरी को भारत के गणतंत्र दिवस के समारोह में हिस्सा लेंगे. ब्रिटिश विदेश सचिव की ओर से मंगलवार को इसकी घोषणा की गई.

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सोमवार, 14 दिसंबर 2020

बस्ती- जनपद के चारों तहसीलों पर कल होगा सम्पूर्ण समाधान का आयोजन,रुधौली में रहेंगे डीएम

बस्ती – जिलाधिकारी आशुतोष निरंजन की अध्यक्षता में जिला स्तरीय तहसील समाधान दिवस रूधौली में 15 दिसम्बर को प्रातः 10.00 बजे से होगा। उक्त जानकारी एसडीएम रूधौली नीरज प्रसाद पटेल ने दी है। इसमें सभी जिला स्तरीय अधिकारियों की उपस्थिति अनिवार्य है।

इसी प्रकार तहसील भानपुर में मुख्य विकास अधिकारी, तहसील हर्रैया में अपर जिलाधिकारी एवं तहसील बस्ती सदर में मुख्य राजस्व अधिकारी की अध्यक्षता में समाधान दिवस का आयोजन होगा तथा लोगों की समस्याओं का निस्तारण किया जायेगा।

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सात दशक बाद भी दस्तावेजों के पन्नों में सिमट कर रह गया गांधी जी के ग्राम स्वराज का सपना

गांधी जी ने स्वराज भारत का सपना देखा था लेकिन इस देश के उदासीन नेता ,निरंकुश प्रशासन और लापरवाह जनप्रतिनिधियों के चलते आज स्वराज का उद्देश्य सरकारी दफ्तरों में रखे गए दस्तवेजों में सिमट कर रह गया है ।

 आज जहां देश में प्राथमिकताओं को ध्यान में रखकर ग्रामीण क्षेत्र में शिक्षा को महत्व देना चाहिए था,रोजगार के साधन उपलब्ध कराने के लिए इकाइयों को बढ़ावा देना चाहिए था, चिकित्सा के क्षेत्र में व्यापक पैमाने पर सुधार करना चाहिए था तो वही प्राथमिकता को दरकिनार कर इस देश में बेबुनियाद मुद्दों पर काम किया गया।
 देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत को विकसित बनाने के लिए कई सारे दावे किए लेकिन ना तो आदर्श ग्राम पंचायत का सपना साकार हो पाया और ना ही स्मार्ट सिटी की कोई छाया दिखाई पड़ रही है ऐसा दिखाई पड़ता है कि हमारी देश की सरकारों द्वारा हमारे देश के लोगों को केवल गुमराह करने का बार-बार षणयंत्र रचा जाता है जिसके चलते हमारा देश और हमारे देश के लोग वहीं के वहीं पर खड़े हुए हैं जहां वह 7 दशक पहले खड़े थे।

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रविवार, 13 दिसंबर 2020

TRP SCAM: रिपब्लिक चैनल के सीईओ विकास खानचंदानी मुंबई में गिरफ्तार

TRP रेटिंग स्कैम (TRP Rigging Scam) मामले में रिपब्लिक टीवी (Republic TV) के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (CEO) विकास खानचंदानी को गिरफ्तार कर लिया गया है. खानचंदानी को रविवार सुबह मुंबई पुलिस ने गिरफ्तार किया है. इस मामले में अब तक 13 लोगों की गिरफ्तारी हो चुकी है. मुंबई पुलिस ने इस मामले में 6 अक्टूबर को प्राथमिकी (FIR) दर्ज की थी और हंसा रिसर्च के अधिकारी नितिन देवकर की शिकायत के बाद जांच शुरू की थी. मुंबई पुलिस (Mumbai Police) ने कथित टीआरपी घोटाले में नवबंर में यहां की एक अदालत में आरोप-पत्र दाखिल किया था.

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शनिवार, 12 दिसंबर 2020

स्वास्थ्य केंद्र सल्टौआ में एंटी रेबीज की वैक्सीन लगवाने के लिए करना पड़ता है हप्तों तक इंतजार

प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र सल्टौआ में एंटी रेबीज की वैक्सीन लगाने के लिए दिन निर्धारित कर दिया गया है जिसके चलते आम जनमानस को जिला मुख्यालय का चक्कर लगाना पड़ता है।

अमरौली शुमाली निवासी रामावतार और घनश्याम ने बताया कि उन्हें कुत्ते ने काट लिया था जिसका एंटी वैक्सीन लगवाने के लिए प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र सल्टौआ गए तो वहां बताया गया कि यहां पर मंगलवार और शनिवार को वैक्सीन लगाया जाएगा जिसके नाते उन्हें जिला अस्पताल बस्ती जाना पड़ा।

इसी प्रकार क्षेत्र के दर्जनों लोगों ने बताया कि अस्पताल पर हर दिन वैक्सीन नही लगाया जाता है जिसके कारण या तो जिला अस्पताल जाना पड़ता है या फिर दूरदराज से आये हुए मरीजों को वापस लौट जाना पड़ता है ।लोगों की मांग है कि एंटी रेबीज की सूई हर दिन लगाई जाए।

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यूपी- पुलिस अधीक्षक को गोली मारने की धमकी देना सिपाही को पड़ा महंगा ,कप्तान ने किया बर्खास्त


यू ट्यूब पर वीडियो बनाकर आया था सुर्खियों में सिपाही दिग्विजय राय

 यू ट्यूब पर एक आपत्तिजनक वीडियो अपलोड कर सुर्खियों में आया था। इसकी जानकारी जब एसपी हेमराज मीणा को हुई तो उन्होंने उसे निलंबित कर दिया था। आरोप है कि वह बिना अधिकारियों की अनुमति के वीडियो बनाकर उसे यू ट्यूब पर अपलोड करता है,जो पुलिस एक्ट के विरुद्ध है

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अन्नदाताओं का आंदोलन जारी, आज दिल्ली जयपुर राष्ट्रीय राजमार्ग बंद करने का ऐलान

कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों का आंदोलन (Farmers Protest) शनिवार को 17वें दिन में प्रवेश कर गया है. सरकार की ओर से जारी मान मनौव्वल के बीच आंदोलित किसानों ने प्रदर्शन तेज करने की चेतावनी दी है. किसानों की तरफ से शनिवार को टोल प्लाजा घेरने और दिल्ली-जयुपर हाईवे बंद करने का ऐलान किया गया है. 
किसानों के आंदोलन को देखते हुए पुलिस की तरफ से सतर्कता बरती जा रही है. किसानों की चेतावनी के बीच दिल्ली के पुलिस कमिश्नर एस एन श्रीवास्तव शुक्रवार रात को अचानक सुरक्षा व्यवस्था का जायजा लेने टीकरी बॉर्डर पहुंचे. यहां बॉर्डर पर मौजूद सुरक्षाकर्मियों से मुलाकात की. केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने किसान संगठनों के नेताओं से प्रस्ताव पर विचार करने का आग्रह किया है और कहा कि वह किसानों के साथ बातचीत करने के लिए तैयार हैं. 

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शुक्रवार, 11 दिसंबर 2020

79 फीसदी आबादी की औकात सरकार ने तय कर दी है कि तुम निचले स्तर पर जी रहे थे और वहीं जियोगे

सौरभ वीपी वर्मा-

किसान ,व्यापारी ,सफाई कर्मी ,चपरासी ,मजदूर ,नाई ,दर्जी ,मोची, नौकरानी से लेकर बेरोजगार से टैक्स के रूप में सरकार पैसा ले रही है लेकिन उसके बदले उन्हें क्या दे रही है यह सब वही समझ पा रहे हैं जो वर्षों से अंतिम पंक्ति में जीवन यापन कर रहे हैं।
आज देखने को मिल रहा है कि देश मे प्राथमिकता को दरकिनार कर जनता के पैंसे से मुख्यमंत्री आवास बन रहा है ,पार्टी कार्यालय  का विस्तार हो रहा है ,नेताओं के पैसा कमाने का कारखाना ,डिग्री कालेज और चिट -फट कंपनियां  बन रही हैं ,वीवीआइपी लोगों के लिए बुलेट ट्रेन,तेजस ,विमान की व्यवस्था हो रही है ,नेताओं के काफिले में टेक्नोलॉजी से लैस गाड़ियां बढ़ रही हैं ,मॉल खुल रहे हैं आदि इसी तरह के कार्य इस दौर में दिखाई दे रहे हैं।

जबकि देश की एक बहुत बड़ी आबादी मूलभूत सुविधाओं से वंचित है , देश की 79 फीसदी आबादी की औकात सरकार ने तय कर दी है कि तुम निचले स्तर पर जी रहे थे और वहीं जियोगे , जबकि सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए थी धीरे धीरे लोगों को उनके वास्तविक जिंदगी से बाहर निकालने का काम करे वह गरीब जो वर्षों से अंत्योदय की लाइन में खड़ा है वह बीपीएल की श्रेणी में आये ,जो बीपीएल में है वह अग्रिम पंक्ति में आये जो ,जो अग्रिम पंक्ति में है वह और आगे जाए इसके लिए मुख्य रूप से  शिक्षा और चिकित्सा के क्षेत्र में व्यपक पैमाने पर बदलाव लाने की जरूरत है , आवास ,सड़क, सुद्ध पेय जल की कारगर व्यवस्था की आवश्यकता है, मतदाता पेंशन ,रोजगार की व्यवस्था ,नवाचार शिक्षा, टेक्नोलॉजी का विस्तार बहुत ही जरूरी है अन्यथा की स्थिति में पीएम मोदी जैसे लोग शीर्ष स्तर पर पहुंच कर ऐशो आराम की सारी व्यवस्था छीन लेंगे और आम आदमी वहीं का वहीं खड़ा रह जायेगा।

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गुरुवार, 10 दिसंबर 2020

किसानों के भारत बंद के बाद ,14 दिसंबर को राष्ट्रव्यापी धरना प्रदर्शन ,नेशनल हाईवे होंगे जाम

कृषि कानूनों (Farm Laws) में संशोधनों को लेकर मोदी सरकार (Modi Goverment) के प्रस्ताव आंदोलनरत किसानों (Farmers) को मंजूर नहीं हैं. किसानों ने प्रेस कॉन्फ़्रेंस में कहा कि हमें जो प्रस्ताव मिला है उसे हम पूरी तरह से रद्द करते हैं. हम जियो (Jio) के सारे मॉल्स का बहिष्कार करेंगे. हम 14 तारीख को ज़िला मुख्यालयों को घेरेंगे. पूरे देश में विरोध प्रदर्शन करेंगे. उन्होंने कहा कि 12 दिसंबर को जयपुर- दिल्ली हाईवे को रोकेंगे. 
किसानों ने कहा कि वे 14 दिसंबर को पूरे देश में विरोध प्रदर्शन करेंगे. वे 12 दिसंबर को पूरे देश के टोल प्लाज़ा जाम कर देंगे. इसी दिन दिल्ली-जयपुर हाईवे को बंद करेंगे. साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि हाईवे इससे पहले भी बंद किया जा सकता है. किसान संगठन के नेता डॉ दर्शनपाल ने कहा कि हम रिलायंस के सारे मॉलों का बहिष्कार करेंगे.

नए कृषि कानूनों (Farm Laws) को वापस लेने की मांग को लेकर बुधवार को 14वें दिन भी किसानों का आंदोलन (Farmers Protest) जारी है. केंद्र सरकार (Centre Govt) और किसानों की मंगलवार रात हुई बैठक में सरकार द्वारा किसानों को प्रस्ताव भेजे जाने की बात कही गई. सूत्रों के मुताबिक सरकार ने जो प्रस्ताव तैयार किया है उसके अनुसार, MSP खत्म नहीं होगा. सरकार MSP को जारी रखेगी और इसके लिए कानून बनाया जाएगा.

सरकार की ओर जारी किए गए प्रस्ताव के मुताबिक, मंडी कानून APMC में बड़ा बदलाव होगा. प्राइवेट प्लेयर्स को रजिस्ट्रेशन कराना होगा. सरकार अब कॉन्ट्रैक्ट फॉर्मिंग में किसानों को कोर्ट जाने का अधिकार भी देगी. अलग फास्ट ट्रैक कोर्ट के गठन को भी मंजूरी मिलेगी. प्राइवेट प्लेयर्स पर टैक्स लगाने को मंजूरी दी जाएगी. फिलहाल सरकार इलेक्ट्रिसिटी अमेंडमेंट बिल पेश नहीं करेगी. इसमें बदलाव किए जाने के बाद इसे सदन में पेश किया जाएगा.

केंद्र की मोदी सरकार ने किसानों के सामने जो रखे हैं वे किसान संगठनों ने स्वीकार नहीं किए.

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मंगलवार, 8 दिसंबर 2020

प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदर दास मोदी किसानों के हित में कभी सही निर्णय ले ही नही सकते ,आखिर क्यों?

सौरभ वीपी वर्मा

वक्त आ गया है कि देश के लोग इंकलाब जिंदाबाद का नारा बोलते हुए सड़क से होते हुए सदन की तरफ बढ़ें ,इस देश की तानाशाह सरकार किसानों ,मजदूरों और गरीबों को  गर्त में भेजने के लिए आये दिन नए और बेबुनियाद कानून बनाकर कारपोरेट घरानों को बढ़ाने का काम कर रही है ।

आखिर जब बाबा रामदेव पतंजलि कंपनी का मोहर लगाकर किसानों द्वारा उपजाए गए गेहूं को खरीद कर 45 रुपया किलो का MRP निर्धारित कर आटा बेंच सकते हैं तो उन किसानों को MSP से वंचित क्यों किया जाता है जिन्होंने ठंडी, गर्मी, बरसात में कड़ी मेहनत करके फसलों को पैदा किया है।
यही भारतीय जनता पार्टी की सरकार किसानों की आय दोगुना करने की बात कर रही थी लेकिन देखने को मिल रहा है कि खेती की लागत लगातार बढ़ती जा रही है और वहीं डीजल के दाम में भी बढ़ोतरी हो रही है परंतु सरकार के पास इस तरह के कोई आंकड़े मौजूद नही है।

 साढ़े तीन सालों में सिर्फ पेट्रोल और डीजल के कर पर 9 लाख करोड़ से ज्यादा फायदा सरकार को हुआ है लेकिन किसानों का एक रुपया केंद्र सरकार ने माफ नहीं किया. वहीं 1 लाख 30 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा का ऋण बड़े उद्योगपतियों का माफ कर दिया गया।

इस देश में ललित मोदी, विजय माल्या ,मेहुल चौकसी जैसे लोग कई हजार करोड़ रुपये का लोन लेकर देश से भागकर विदेशों में जाकर व्यवसाय और अय्याशी कर रहे हैं वहीं जब से केंद्र में मोदी सरकार आई तबसे किसानों के आत्महत्या करने के मामले में 45 फीसदी इजाफा हुआ है तो आखिर किसानों के प्रति सरकार का इतना नफरत क्यों है?

सच तो यह है कि जो कहावत कही गई है चोर चोर मौसेरे भाई वह इस सरकार में सटीक बैठता है ,इस देश के शीर्ष कारोबारी गुजराती हैं और साहब भी गुजरात से ही आते हैं जिन्हें फायदा पहुंचाने और अपनी चमक बरकरार रखने के लिए पीएम नरेंद्र दामोदर दास मोदी किसानों के हित में कभी सही निर्णय ले ही नही सकते।

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