प्रवासी भारतीयों के अधिकारों और ब्रिटिश शासकों की रंगभेद की नीति के खिलाफ दक्षिण अफ्रीका में गांधी ने किया था सफल आंदोलन - तहक़ीकात समाचार

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शुक्रवार, 2 अक्तूबर 2020

प्रवासी भारतीयों के अधिकारों और ब्रिटिश शासकों की रंगभेद की नीति के खिलाफ दक्षिण अफ्रीका में गांधी ने किया था सफल आंदोलन

मोहनदास करमचंद गांधी का जन्म दो अक्टूबर 1869 को गुजरात के पोरबंदर में हुआ था। वो पुतलीबाई और करमचंद गांधी के तीन बेटों में सबसे छोटे थे। करमचंद गांधी कठियावाड़ रियासत के दीवान थे। 
महात्मा गांधी ने अपनी आत्मकथा “सत्ये के साथ मेरे प्रयोग” में बताया है कि बालकाल में उनके जीवन पर परिवार और माँ के धार्मिक वातावरण और विचार का गहरा असर पड़ा था। राजा हरिश्चंद्र नाटक से बालक मोहनदास के मन में सत्यनिष्ठा के बीज पड़े। 

मोहनदास की शुरुआती पढ़ाई-लिखाई स्थानीय स्कूलों में हुई। वो पहले पोरबंदर के प्राथमिक पाठशाला में और उसके बाद राजकोट स्थित अल्बर्ट हाई स्कूल में पढ़े। सन् 1883 में करीब 13 साल की उम्र में करीब छह महीने बड़ी कस्तूरबा से उनका ब्याह हो गया।


आत्मकथा में गांधी जी ने बताया है कि वो शुरू-शुरू में ईर्ष्यालु और अधिकार जमाने वाले पति थे। स्थानीय स्कूलों से हाई स्कूल की पढ़ाई करने के बाद साल 1888 में गांधी वकालत की पढ़ाई करने के लिए ब्रिटेन गये। जून 1891 में उन्होंने वकालत की पढ़ाई पूरी कर ली और फिर देश वापस आ गये। देश में गांधी की वकालत जमी नहीं।

साल 1893 में वो गुजराती व्यापारी शेख अब्दुल्ला के वकील के तौर पर काम करने के लिए दक्षिण अफ्रीका चले गये। गांधी के अफ्रीका प्रवास ने उनकी जिंदगी की दिशा बदल  दी। करीब 23 साल के मोहनदास को तब शायद ही पता हो कि जीवन के अगले 21 साल वो दक्षिण अफ्रीका में गुजारने वाले हैं। महात्मा गांधी रस्किन बॉण्ड और लियो तोल्सतोय की शिक्षा से बहुत ज्यादा प्रभावित थे। वो जैन दार्शनिक राज चंद्र से भी प्रेरित थे। गांधी ने दक्षिण अफ्रीका में तोल्सतोय फार्म की भी स्थापना की थी। लंदन प्रवास के दौरान ही उन्होंने हिन्दू, इस्लाम और ईसाई आदि धर्मों का अध्ययन किया था। उन्होंने विभिन्न धर्मों के प्रमुख बुद्धिजीवियों के संग धर्म संबंधी विषयों पर काफी चर्चा की थी।


गांधी जी ने दक्षिण अफ्रीका में प्रवासी भारतीयों के अधिकारों और ब्रिटिश शासकों की रंगभेद की नीति के खिलाफ सफल आंदोलन किए। दक्षिण अफ्रीका में उनके सामाजिक कामों की गूंज भारत तक पहुंच चुकी थी। 1915 में जब वो हमेशा के लिए भारत वापस आए तो उनकी आगवानी के लिए मुंबई  के कई प्रमुख कांग्रेसी नेता उनके स्वागत के लिए पहुंचे। इन नेताओं में गोपाल कृष्ण गोखले भी थे जिन्हें गांधी अपना राजनीतिक गुरु मानते थे। गांधी की भारत वापसी के पीछे गोखले की अहम भूमिका थी। भारत आने के बाद गांधी ने मई 1915 में गुजरात के अहमदाबाद में सत्याग्रह आश्रम की स्थापना की।

भारत आने के बाद गांधी ने देश के विभिन्न हिस्सों में होने वाले सार्वजनिक कार्यक्रमों शामिल होना शुरू किया। भारत में उन्होंने पहली महत्वपूर्ण राजनीतिक कार्रवाई 1917 में बिहार में चंपारण से नील आंदोलन की शुरुआत से की। नील की खेती करने वाले किसानों को गांधी ने कष्टकारी ब्रिटिश कानून से मुक्ति दिलायी। 1917 में अहमदाबाद में हैजा के प्रकोप की वजह से उन्हें अपना आश्रम साबरमती ले जाने पड़ा, जहां वो आज भी स्थित है। 1918 में खेड़ा के किसान आंदोलन का नेतृत्व किया।


गोखले की साल 1915 में मृत्यु हो जाने के बाद कांग्रेस में सबसे बड़े नेता बाल गंगाधर तिलक थे। 1920 में तिलक के निधन के बाद गांधी कांग्रेस के सबसे बड़े नेता के तौर पर उभरे। 1919 में जलियांवाला बाग में हजारों निहत्थे भारतीयों के नरसंहार के विरोध में गांधी ब्रिटिश सरकार से मिले इनाम-ओ-इकराम वापस कर दिये। ब्रिटिश सरकार के रौलेट एक्ट के खिलाफ उन्होंने “सविनय अवज्ञा आंदोलन” की शुरुआत की। गांधी ने अली बंधुओं के खिलाफत आंदोलन का भी समर्थन किया। अली बंधुओं (शौकत अली और मोहम्मद अली जौहर) ने तुर्की के ऑटोमान साम्राज्य के शासक को ब्रिटिश शासकों द्वारा सत्ता से हटाए जाने के खिलाफ आंदोलन किया था। सितंबर 1924 में गांधी ने हिन्दू-मुस्लिम एकता के लिए 21 दिनों का उपवास रखा था। इस दौरान ही वो कांग्रेस के अध्यक्ष बने और उसमें आमूलचूल बदलाव किए।


मार्च 1930 में गांधी ने अपने जीवन की सबसे महत्वपूर्ण यात्रा दांडी मार्च शुरू की। “नमक सत्याग्रह”  नाम से मशहूर गांधी जी की करीब 200 मील लम्बी इस यात्रा के बाद उन्होंने नमक न बनाने के ब्रिटिश कानून को तोड़ दिया था। साइमन कमीशन की रिपोर्ट के आधार पर ब्रिटिश सरकार ने भारत के “स्वराज की मांग” पर विचार के लिए गोलमेज सम्मेलन का आयोजन किया। भारत में संवैधानिक सुधारों पर चर्चा के लिए गांधी ब्रिटेन में हुई गोलमेज सम्मेलन में शामिल हुए। गांधी ने 1942 में अंग्रेजों के खिलाफ भारत छोड़ो आंदोलन का आह्वान किया। ये आंदोलन ब्रिटिश हुकूमत के ताबूत में आखिरी कील साबित हुआ। भारत छोड़ो आंदोलन, आजाद हिन्द फौज, नौसेना विद्रोह और दूसरे विश्व युद्ध से उपजे हालात के मद्देनजर अंग्रेजों का हौसला पस्त हो गया था। जून 1947 में ब्रिटिश वायसराय लार्ड लुई माउंटबेटन ने घोषणा की कि 15 अगस्त 1947 को हिन्दुस्तान आजाद हो जाएगा। हालांकि आजादी के साथ ही देश भारत और पाकिस्तान नाम के दो मुल्कों में विभाजत भी हो गया। 30 जनवरी 1948 को एक हिन्दू कट्टरपंथी नाथूराम गोडसे ने महात्मा गांधी की गोली मारकर हत्या कर दी। बापू की मृत्यु की सूचना देते हुए देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहलाल नेहरू ने सच ही कहा था, “हमारे जीवन की रोशनी चली गयी…”

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