वैश्विक स्तर पर फैले कोरोना वायरस ने जहां दुनिया भर के कई देशों को कमजोर किया है वहीं इस महामारी ने देश की अर्थव्यवस्था की गति को भी रोक दिया है।
लेकिन माना जाता है कि यदि पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह आज भी पीएम होते तो शायद ऐसे हालत से निपटने के लिए भी कोई न कोई रास्ता अवश्य निकाल लेते। दरअसल, यूपीए कार्यकाल में दो बार प्रधानमंत्री रह चुके मनमोहन सिंह को देश में आर्थिक सुधारों का असल सूत्रधार माना जाता है।
अपनी चुप्पी और सादगी की वजह से बाकी प्रधानमंत्रियों से अलग
बता दें कि मनमोहन सिंह साल 2004 से 2014 तक भारत के प्रधानमंत्री रहे हैं। मनमोहन सिंह अपनी चुप्पी और सादगी की वजह से भारत के बाकी प्रधानमंत्रियों से एकदम अलग हैं। पूर्व प्रधानमंत्री और अर्थशास्त्री मनमोहन सिंह को देश एक अर्थशास्त्री के रूप में ही ज्यादा याद करता है। हालांकि इस शांत स्वभाव के लिए उन्हें अक्सर आलोचनाओं का सामना भी करना पड़ा है।
कैंब्रिज विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र की डिग्री हासिल की
पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का जन्म 26 सितंबर 1932 को अविभाजित भारत के पंजाब प्रांत (अब पाकिस्तान) के एक गांव में हुआ था। मनमोहन सिंह ने कैंब्रिज विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र की डिग्री हासिल करने के बाद उन्हें स्कॉलरशिप भी मिली थी। उन्हें वहां कई अवॉर्ड से नवाजा गया। ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से पीएचडी की पढ़ाई पूरी करने वाले मनमोहन सिंह ने अर्थशास्त्र में थिसिस जमा की।
1991-1995 के दौरान देश की अर्थव्यवस्था को एक नई राह दिखाई
पी.वी. नरसिम्हाराव सरकार में बतौर वित्त मंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह ने वित्तीय बजट पेश करते हुए साल 1991-1995 के दौरान देश की अर्थव्यवस्था को एक नई राह दिखाई थी। रिज़र्व बैंक के पूर्व गवर्नर के तौर पर मनमोहन सिंह ने साल 1991 में आर्थिक सुधार की दिशा में कई बड़े और अहम कदम उठाए। जिसकी बदौलत भारतीय अर्थव्यवस्था को नई रफ्तार मिली।
आर्थिक क्रांति और ग्लोबलाइजेशन की शुरुआत की
वित्त मंत्री के पद पर रहते हुए मनमोहन सिंह ने कई ऐसे नियम बदले जिसने अर्थव्यवस्था को धीमा कर दिया था। साल 1991 में जब भारत को दुनिया के बाजार के लिए खोला गया तो मनमोहन सिंह ही देश के वित्त मंत्री थे। देश में आर्थिक क्रांति और ग्लोबलाइजेशन की शुरुआत मनमोहन सिंह ने ही की थी।
मनरेगा की शुरुआत भी मनमोहन सिंह का फैसला रहा, मनरेगा आज भी रोजगार का एक बड़ा स्रोत है। साल 1991 में मनमोहन सिंह ने संसद में बजट पेश किया था, जिसने भारत के लिए आर्थिक उदारीकरण के रास्ते खोल दिए थे। इस प्रस्ताव में विदेश व्यापार उदारीकरण, वित्तीय उदारीकरण, कर सुधार और विदेशी निवेश के रास्ते खोलने का सुझाव भी शामिल था।
बतौर वित्तमंत्री नई आर्थिक नीति की बात की
मनमोहन सिंह ने बतौर वित्तमंत्री नई आर्थिक नीति की बात की और भारत ने तब आर्थिक उदारीकरण के जरिए इसके लिए अपने दरवाजे खोलने का फैसला किया। इसके अलावा साल 2006 में भारत और अमेरिका के बीच परमाणु समझौता हुआ। ये मनमोहन सिंह की बड़ी सफलता मानी जाती है।
1991 में पहली बार असम से राज्यसभा सदस्य चुने गए
मनमोहन सिंह साल 1991 में पहली बार असम से राज्यसभा सदस्य चुने गए। इसके बाद 1995, 2001, 2007 और 2013 में वो फिर राज्यसभा से संसद पहुंच गए। साल 1998 से 2004 तक जब बीजेपी सत्ता में थी वो राज्यसभा में विपक्षी नेता भी थे। साल 1991 से 1996 तक मनमोहन सिंह ने भारत के वित्तमंत्री के रूप में काम किया।
जन्मदिन पर जानें मनमोहन सिंह से जुड़ी खास बातें…
मनमोहन सिंह का जन्म 26 सितंबर, 1932 को अविभाजित भारत के पंजाब के चकवाल जिले के गह में हुआ था। विभाजन के बाद उनका परिवार भारत आ गया। उन्होंने अपनी पढ़ाई अमृतसर के हिंदू कॉलेज से की व पंजाब विश्वविद्यालय से स्नातक और एमए की पढ़ाई करने के बाद उच्च शिक्षा के लिए कैंब्रिज विश्वविद्यालय, लंदन का रुख किया। पढ़ाई पूरी करने के बाद मनमोहन सिंह ने 1971 में आर्थिक सलाहकार के बतौर वाणिज्य मंत्रालय में काम किया। वहीं 1972 में उन्होंने वित्त मंत्रालय में मुख्य सलाहकार के रूप में काम किया। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष, योजना आयोग के उपाध्यक्ष और बाद में रिजर्व बैंक के गवर्नर तक का पद मनमोहन सिंह संभाल चुके हैं। सिंह ने 1991-1996 तक भारत के वित्त मंत्री की जिम्मेदारी निभाई। आर्थिक संकट में फंसे देश को निकालने के लिए मनमोहन सिंह ने खुली व्यापार की नीति को अपनाया। आज भारत ने जो आर्थिक तरक्की हासिल की है, उसके पीछे आर्थिक सुधारों का बड़ा रोल था। मनमोहन सिंह 1991 में राज्यसभा के लिए चुना गया। 1998 से 2004 तक सिंह राज्य सभा में विपक्ष के नेता भी रहे। मनमोहन सिंह 2004 से 2014 तक देश के प्रधानमंत्री रहे। मनमोहन सिंह को 1987 में पद्म विभूषण, 1993 में एशिया मनी अवार्ड, 1994 में यूरो मनी अवार्ड, 1995 में भारतीय विज्ञान कांग्रेस का जवाहरलाल नेहरू पुरस्कार व 1996 में एडम स्मिथ पुरस्कार से सम्मानित किया गया।