केंद्र सरकार की नाकामियों के चलते नोटबन्दी और तालाबंदी में गरीबों ने गंवाई जान ,पीएम मोदी को चिंता नही - तहक़ीकात समाचार

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रविवार, 10 मई 2020

केंद्र सरकार की नाकामियों के चलते नोटबन्दी और तालाबंदी में गरीबों ने गंवाई जान ,पीएम मोदी को चिंता नही

विश्वपति वर्मा-

8 नवंबर 2016 को रात 8 बजे देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का चलचित्र आता है जिसमे घोषणा होता है कि आज से देश भर में 500 और 1 हजार के नोटों को बंद कर दिया गया है यानी कि अब 500 और 1000 के सभी भारतीय नोट कागज के टुकड़े में बदल गया .

नोटबन्दी के बाद देश भर के बैंकों के सामने लंबी-लंबी कतारों में हजारों हजार की संख्या में लोग खड़े रहे और इन लाइनों में लगने वाले लोग देश के गरीब मजदूर और महिलाएं थीं इस दौरान 120 से अधिक लोगों को अपनी जान भी गंवानी पड़ी ,इस प्रक्रिया के दौरान दौलत की ढेरी पर बैठे एक भी व्यक्ति की मौत की खबर नही सुनाई दी .

इसी प्रकार कोरोना वायरस की चैन को तोड़ने के लिए साहब ने एक बार एक और चलचित्र जारी किया जिसमें अचानक देश भर में लॉकडाउन की घोषणा कर दिया गया इस दौरान  गांव से हजारों किलोमीटर दूर कोई अस्पताल में इलाज के लिए गया था तो कोई मंदिरों में दर्शन करने कोई सचिवालय गया था तो कोई सुप्रीम कोर्ट गया था परीक्षा और पर्यटन की दृष्टि से भी हजारों हजार की संख्या में गांव के लोग शहरों की तरफ गए हुए थे लेकिन साहब के तालाबंदी ने सबको जहाँ-तहां कैद कर दिया .
21 दिनों के लॉकडाउन के दौरान लोग इस आस में बैठे रहें कि सरकार द्वारा बसों और ट्रेनों के माध्यम से उन्हें उनके गांव भेजा जाएगा लेकिन इसी दौरान कानों में एक और लॉकडाउन की आवाज गूंज उठती है इस दौरान सरकार द्वारा कोई ऐसी व्यवस्था नही की गई जिससे शहरों में फंसे लोग अपने घर पहुंच सके .अमरौली शुमाली निवासी कृष्णचन्द्र अपने लड़के को दिल्ली एम्स में लेकर हार्ट की दवा करवाने गए थे  मुरादपुर गांव की एक लड़की बलिया परीक्षा देने गई थी बस्ती के रहने वाले अनिल वर्मा उत्तराखंड में कृषि प्रशिक्षण प्राप्त करने गए थे सब अपनी अपनी जगह से वहां से निकलने के लिए फोन की घण्टी बजाते रहे लेकिन उनके आवागमन के लिए कोई ठोस कदम नही उठाया जा सका इसी बीच एक और लॉकडाउन 17 मई तक बढ़ गया ,प्रवासी मजदूरों के पास खाने के पैसे तक नही बचे ,किरायेदार भी किराया मांगने लगे लोगों को शहरों से खदेड़ा जाने लगा लिहाजा मजदूर वर्ग पैदल ही अपने गंतव्य स्थान पर पहुंचने के लिए निकल लिया।

मजदूरों के लिए यह रास्ता भी आसान नही था हजारों हजार किलोमीटर की यात्रा में खाने के लाले पड़ गए पैरों की चप्पलें टूट  गईं ,पांव में जख्म आ गए साथ ही साथ 600 से अधिक सड़क दुर्घटनाओं में 140 से अधिक लोगों ने अपनी जान भी गंवाई इसी प्रकार देश भर में सैकड़ों लोगों की मौत भूख की वजह से हो गई लेकिन इन सब के बाद भी सरकार का गरीबों ,मजदूरों और श्रमिकों पर कोई चिंता नहीं रहा. 7 महीने की गर्भवती महिलाओं के लिए कोई व्यवस्था नही था 65 साल की बुजुर्ग के लिए कोई इंतजाम नही था जिसके चलते कड़ी धूप में पदयात्रा करने के लिए लोग मजबूर दिखाई दिए।

नोटबन्दी से लेकर तालाबंदी के पूरे दौर को देखा जाए तो इस दौरान केवल देश का गरीब और मजदूर आदमी शोषण का शिकार हुआ है मौतें भी गरीब,मजदूर श्रमिकों का हुआ वीआईपी लोगों के लिए तो एयरपोर्ट के बाहर लग्जरी कारों को लेकर प्रशासन खड़ा रहा वहीं देश की बहुसंख्यक आबादी अपने ही देश मे अपने ही लोगों द्वारा सुगम व्यवस्था के लिए मोहताज दिखाई पड़ी .लेकिन गूंगी बहरी और अंधी सरकार के राज में कोई ठोस कदम नही उठाया जा सका जिससे शहरों में फंसे हुए लोगों को अब तक घर पहुंचाया जा चुका हो।

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